गोबरहिन डोकरी

               गोधुली बेला म गांव डहर लहुटत बरदी। गांव भर के गरवा ल हांकत बरदिहा अउ बरदिहा के पाछु म गोबरहिन। येहा रोज के किस्सा आय। बिहनीयां ले बरदिहा मन गांव के गरवा ल दइहान म सकेले अउ अलग-अलग बरदी बना के चराय बर परिया कोती, बनडबरी कोती लेगथे। माई लोगिन मन गोबर बिने बर झऊंहा धर के निकलथे। गरवा के पाछु-पाछु उवत के बुड़त किंजरथे। जतके गरवा ततके गोबरहिन।           
               एकक चोता बर चिथो-चिथो होवत रिथे। रोज असन आजो जवान मोटयारी मन तो झऊंहा-झऊंहा गोबर ल मुड़ी म बोहे लिचलिच-लिचलिच आवथे। उकरे पाछु म सुकवारो डोकरी ह सपटा भर खरसी गोबर ल बोहे कोंघरे-कोंघरे आवथे। जीये बर खाय ल लागथे अउ खाय बर कमाय ल,बपरी डोकरी ह कमा-कमा के आधा उमर पोहा डरिस। ओकर आगु हंसइया न पाछु रोवइया। दाउ दरोगा घर लकड़ी छेना बेच बेच के जिनगी के गाड़ी घिरलावथे।
           आज डोकरी हा आधा झऊंहा गोबर ल पाइस ताहन लकर धकर घर आगे। कभु काल तो पाथे। झऊंहा ल बाहिर मे खपल के अछरा म पछीना ल पोछत भितर म खुसरिस। एक कुरिया के घर वहू बिन कपाट सकरी के। खटिया उधे रिहीस तेला गिराके बइठीस। थकहा जांगर एक सांहस हकन के सुरताइस।
             उठीस त मुंधियार हो गे रिहीस। चिमनी बार के आगी सिपचइस अउ अपन पुरती भात ल रांध घला डरीस। एक परोसना खाके आधा ल बासी बोर के खटिया म ढ़लंगे। डोकरी सुते सुते मने मन गुनंथें- कब तक अइसने जिनगी चलही ? दिन दुकाल के बेरा म कहां के बनी भुती मिलही। खेत खार परिया परगे। बुड़हत काल मे का खंती के ढेला उकलही ?
            सिरतोन बात ताय दिन दुकाल म सबेच ल तो काम चाही। असाढ़ म एक पानी के गिरे ले सबो झन धान ल बो डरीस। फेर आय असाढ़ म पानी निटोर दिस। बिन पानी के धान पान घलो खेत खार म आखी निटोर दिस। पानी बिन सबो के खेत सुखागे।
             फेर बड़े दाउ कुंवा बोर वाला ये गांव भर म उहीच भर गाड़ा गाड़ा धान लुइस। गांव के मन इही आसरा म रिहीस के दाउ घर बाड़ही मांग के चार महीना के भुख मरी ल काट लेबो अउ फेर साल के धान होही तेमा बड़े दाउ के चुकारा कर देबो। धीरे धीरे सबो के किसान के कोठी अटागे।
           सबो किसान एक दिन सुनता करके बड़े दाउ करा बाड़ही मांगे बर गीस। हाथ जोर के सबो झन बिनती करिस- मालिक हमर घर म एको बीजा चाउंर नइहे थोर बहुत साहमत करवं, हमरो फसल होही ताहन लहुटा देबो। बड़े दाउ ह तो निचट जिछुट्टा निकलीस। गजब कलप डरीस। तभो ले दुच्छा के दुच्छा लहुटा दिस।
           सबो गारी बखाना देवत ओकर घर ले निकलगे। जाही तिहा अपन खटिया म जोर के लेगही रोगहा ह अतेक धन दउलत ल अपन मुड़ेसा म जोरे बइठे हे। सियान मन तो कले चुप रइगे। जवान मन अतलंगहा होथे। जवानी जोसियागे। दाउ ह सोन के थारी म खाथे अउ गांव वाला मन के खाय बर दाना नसीब नइ होवथे।
                चार झन टूरा मन दाउ ले तंगागे। मांगे म नइ मिले त नंगाय ल परही अइसे बिचार लगाके रातकुन कुलुप अंधियार मे बड़े दाउ के बाड़ा म घुसरगे। दाउ के जोगासन म माड़े कुची ल धरिस अउ तिजउरी ल खोल के एक मोटरा सोने सोन के मोहर ल गठियाइस अउ पल्ला निकलगे।
 ओइलत खानी तो कोनो गम नइ पइस फेर भागे के बेरा पाहरादार मन देख डरीस। बाड़ा भर चोर चोर किहीके हो हल्ला होगे।
              चोरहा मन भागत भागत गोबर्हिन डोकरी के घर म लुकागे। येती बर दाउ के लठैत मन गांव भर म बगरगे। घरो घर तलासी सुरु होगे। येती बर इकर मन के जी थरथरागे पकड़ा जबो त मोहर जही अउ हमर मन के जान घलो जाही। उकर खुसूर फुसूर बड़बड़ाइ म सुकवारो डोकरी के निंद उमचगे। कोन कोन हव रे कइके हुत पारथे। चारो झन टूरा मन डोकरी के पांव म गिरगे। सबो बात ल फोरिहा के बताइस।
            डोकरी ल चोरहा टूरा मन उपर दया आगे। डोकरी किथे- मैं ह तहू मन ल बचाहू अउ ये मोहर ल घलो फेर मोर एक ठन सरत हे। चोरहा मन पुछिस का सरत हे। डोकरी किथे- पकड़ाहू त मै अउ बांच जाहू त ये मोहर ल गांव भर म बाट देहूं। चारो झन डोकरी के सरत ल मान के मोहर ल डोकरी ल धरा के अपन अपन घर कोती टरक दिस। मुंदराहा होइस ताहन डोकरी ह मोहर के गठरी ल परवा म टांग के झऊंहा धरिस अउ निकलगे अपन बुता म।
          पहरेदार मन डोकरी ल सियनहिन ए कहिके कांहि नइ किहीस। डोकरी ह झउंहा भर गोबर बिन के आगे। घर के परवा म खोचाय मोहर ल गोबर म गिलिया के सइत दिस। वोतके बेरा बड़े दाउ के लठियारा मन घलो-घरो घर तलासी लेवत डोकरी घर आगे।
           सबो समान ल छिही बिही करके खोजिन फेर नइ पाइस। लठियार मन के जाय के बाद डोकरी अपन बूता म लगगे। गिलीयाए गोबर ल धरके ओरी ओरी बियारा के भाड़ी म छेना थोप डरिस। चोरहा टूरा मन सोचते रइगे। मोहर काहां गायप होगे। मोहर कहू जाय फेर उकर तो जीव बांचगे। बड़े दाउ ह अपन पहरेदार मन ल खिसयावत घर लहुटगे। अउ फैसला करिस- मोहर ह गांव म काकरो घर नइ मिलीस फेर मोहर गांव ले बाहिर गे नइहे। धरे होही त देख देख के थोरे जिही। जिये बर चाउर दार बिसाय ल परही। कब तक बेचे बर नइ निकलही। गांव के बाहिर पहेरा लगा दव अवइया जवइया सबके तलासी करे बर।
              येती बर छेना सुखाइस ताहन गोबरहिन डोकरी ह अपन सरत के मुताबिक एकक ठन छेना गांव भर म बांट दिस। छेना देके बेरा डोकरी ह कान म फुसुर फुसुर करे। बड़े दाउ ह डोकरी ल छेना बाटत देखिस फेर वो का जानय कि छेना के भितरी म मोहर भरा हे तेला। गांव के मन मोहर बेचे बर बजार जाय अउ ए बात के पहरेदार मन घला गम नइ पाइस। वो मन सोचे छेना बेचे बर बजार जाथे।
            अइसन सियानी मति ले गांव भर बर दार चाउर के जुगाड़ होगे। चोरहा मन के संगे संग गांव वाले मन घलो डोकरी के अक्कल ले अपन जीव बचा लिस। एक ठन बुराइ ले गांव भर के भलाइ होगे। अब अवइया असाढ़ के आवत ले जिनगी चल जही। गोबर्हिन डोकरी जेकर माथा म दिन भर गोबर छबड़ाय राहय ओकर मति ल तो देख, दरिदरिन कस दिखे फेर गांव भर के दरिदरी ल दुरिहा दिस। गांव के मन डोकरी के जय जय गइस अउ दिन दुकाल ले निसफिकीर होगे।

नरई के नसबंदी

गांव म धान लुवर्इ के काम सुरू होगे हे,खेती खार कमतियागे हाबे ते पाय के बनिहार भुतिहार के संसो नइये। एक झन खोजे बर जाबे तव चार झन मिल जथे। एसोच भर आय ताहन पउर बर बनिहार भुतिहार के जरूरते नइ परे। खेते नइ रही तव कहां के बनी अउ कहां के भुतिहार। फेर बनिहार मन ल घलो काम के संसो नइये काबर कि जेन जगा खेत हे ओ जगा बड़े बड़े माहल बनही अउ बाहिर ले बड़का-बड़का सेठ मन आही। सेठइन मन घर के काम बुता ल तो करे नही तव इही गांव के खेत कमइया मन उकर घर जाके झाड़ू पोछा करही। बर्तन मांजही ओकर कपड़ा ओनहा धोही। खेत रहीस त ठसन रिहीस किसान कहावे,धरती के असल बेटा कहावे अब तो कोनो गत नइ रइगे। साहर वाला मन वोमन ल नवा नाम देहे ''लेबर''।

 देस परदेस सबो कोती इहीच हाल हे, विकास के नाम अब खेती खार के दोहन होवथे सड़क बनाय बर बनगे हाबे तव चौडीकरण, आफिस बनाय बर नही तव नेता अउ अफसर के बसुंदरा बनाय बर धनहा डोली संग कुकृत्य करे जावथे। कृषि भुमि ल आवासी म परिवर्तित करके उपजाउ माटी उपर अत्याचार करके महल खड़े करत हाबे। ये सब काम खुले आम होवथे तभो ले पंच परमेश्वर टोपा बांधे बइठे हे। का खेती खार के बंदरबाट करे म परमेश्वर(शासन) के घलो हाथ हे ? यदि नही तो खेती खार ल बचाय बर कोनो सार्थक पहल काबर नइ होवथे ? 

जेन चक (खार) के लुवत ले पंदराही अठोरिया हो जाए वो हा दुये दिन म लुवागे। येहा कृषि विभाग के उन्नत तकनीक के कमाल नोहय बल्की जमीन दलाल मन के कमाल आय। चरिहा-चरिहा पइसा कुड़हो के किसान मन ल हिरो डरे हे। किसान मन अब अपने खेत के नरर्इ के नसबंदी कराय बर दलाल मन के दुवारी जावथे। नरर्इ के नसबंदी सुन के अचरज होवथे होही लेकिन ये बात सत्य हे। बनिहारिन मन खेत लुवत लुवत काहथे कि एसोच भर अउ ताहन पउर बर इहां काही नइ उपजय काबर कि दुलसिया भउजी ह नसबंदी करइस तइसने बरोबर एकरो हो जही। नरर्इ के नसबंदी होय ले खेत परिया पर जही अउ ताहन दलाल मन कृषि ल आवासी म परिवर्तित करके नक्सा पास कराही अउ मकान बना लिही। जब ये बात बनिहारिन के समझ आगे तव परमेश्वर के समझ काबर नइ आवथे या समझ के भी बेसमझी हे तेन ल उही जाने। लोग लइका के बड़वार ल रोके बर नसबंदी कराय जाथे वोइसने बरोबर पैदावार के रोके खातिर नरर्इ के नसबंदी होवथे। कृषि वैज्ञानिक मन तो सपना म घलो नइ सोचे रिहीस होही की नरर्इ के नसबंदी हो सकत हे। खैर ये तो उंकर विषय नोहय काबर कि ओमन अउ वोकर विभाग तो दूसर काम म व्यस्त हे।
कृषि मंत्रालय तो उन्नत बीज,उन्नत तकनीक अउ रोग रार्इ के उपचार अउ वोकर नियंत्रण के राग अलापत हे। जब खेते नइ रही तव ये सब कोन काम के। फसल अउ पैदावार के ल छोड़ के पहिली खेत के संरक्षण कर कुछ काम करव। कृषि मंत्रालय का सिरिफ काठा धरे धान नापे बर बइठे हे। बेरा के राहत खेत ल राष्टीय धरोहर के रूप म संरक्षित कर लेना चाही नही त एक दिन कृषि वैज्ञानिक मन के प्रयोग करे के पुर्ती घलो खेत नइ बाचही। खेत के बंदरबाट करइया मन उपर तो कोनो विभाग के लगाम नइये अब आखरी म कृषि मंत्रालय भर दिखत हे हो सकथे उही ह संज्ञान म लेके खेती ल बचाय के कुछु उदीम करही।