पेट कटारी बनी

        साहर के रिगबिग-सिगबिग अंजोर ले बने तो गांव के महिना पंद्रही के पुन्नी के अंजोरी बने। भले अगोरा करा के आथे फेर तिहरहा कस खुसयाली तो लानथे। जिहां दिन अउ रतिहा सबर दिन एके बरोबर उहां के मन पुन्नी पुनवासा के चैघडि़या ल का जानय। गांव के अउ साहर के बनी म अइसनेच फरक हे। वोमन बनिहार अउ पनही ल एके जान अपन पावं तरी रउन्द देथे। गांव अउ साहर के जिनगी ल जेन मन भोगे हे तेन मन जानथे। गांव म बनी करे ले मान मर्यादा बने रिथे, बाहिर कमईया मनके कोनो इज्जत नइ करे। फिरंता बबा ह अपन जवानी म परवार सुद्धा परदेस गे रिहीस कमाय खाय बर। आधा उमर काट के लहुटिस। उहू म अकेल्ला। ओकर परवार ल परदेस ह भख ले लिस। तब ले परन करे हे की अब गांव म कोनो घर ल सुन्ना नइ होन देव। सब ल गांवे म बनी भुति मिलय अइसन कारज म रमें रिथे। अपन ह सरी भुगतना ल भोग के बइठे हे ते पाय के गांव के मन ल सही रद्दा बताथे।
        इही पाय के गांव के मन अपन संका-समाधान बर फिरंता बबा ल बलाय। वोकर राय ले बिगर पाना नइ डोलावत रिहीस। फेर जब ले बिसरू ह साहर ले पइसा कमा के आय हे सबे मनखे मन ओकरे कोति ढरक गे हाबे। ओमन अब फिरंता बबा उपर दोस लगाय के सुरू घलो कर देहे। काबर कि उही ह गांव के मनखे मन ल साहर जाय बर बरजे। बिसरू ह बरपेली भगागे रिहीस तेनो ह जब गांव लहुटके अइस तव माला-माल होके। इही बात म गांव के दू चार झन मन ह फिरंता संग इरसा करे बर धर लिन। वोकर मनके मन ह सोचे कि बबा ह जानसुन के हमन ल पोट्ठ होवन नइ देवथे। गरीबे राहय किके साहर नइ जान दिस। सबे बेरोजगार जेवान मन ह बिसरू के संगत करत हाबे कि ओकरे संग साहर जाबो अउ रूपिया पइसा कमा के गांव लहुटबो।
        बिसरू पारा के मन ह अपन-अपन डेरा-डोगरी ल धरके तियारे रिहीस बिसरू संग साहर जाय बर। जइसे फिरंता बबा ह गम पइसे के गांव मन ह साहर जाय बर निकल गेहे किके तव वोमन ल किथे- झन जावा साहर बाबू हो, जोन भी गांव म रोजी बनी मिलत हे उही म खुश राहव। वोतके म अपन गुजारा चलत हे त जादा के लालच काबर करत हव। दूर देश म बनी कमा के कोनो ह जहीजाद नइ जोरे सके हे। जउन कुछ सिरजथे अपने खेती डोली म सिरजथे। अब तो सबो आंखी म बिसरू कस धन जोरे के सपना सिरजत रिहिस कोनो ह फिरंता बबा के बात नइ मानिस। बिसरू ह सबो झन से कागज म अंगूठा लगवाइस कि वोमन अपन-अपन मरजी ले बनी करे बर साहर जावथे कोनो वोमन ल जोर जबरई करके नइ लेगत हे। खुशी-खुशी अंगूठा चपकिस अउ चल दिस साहर म बनी करे बर।
        परदेस के भट्ठा म लेग के बिसरू ह काम लगा दिस। भट्ठा के मालिक ह सबो कोनो ल पैसठ रूपिया रोजी म काम में राख लिस। काम के काम अउ रहे बर घर पाके मगन होगे। बिसरू के केहे म काम मिलिस किके लोगन मन ओकर बड़ बड़ाई करिन।
        सबो कोनो बने मन लगाके पंदरा दिन काम करे रिहीस के मालिक ह संझा कुन बनी के चुकारा करे बर आगे। सबो बनिहार ओरी-ओरी ओरियइस नाव पुकार-पुकार के मालिक ह पचास-पचास रूपिया के हिसाब ले सात सौ पचास रूपिया देवत गिस। ओतके रूपिया ल देख के एक झिन बनिहार ह मलिक सो पुछथे कि मालिक तुमन तो पैसठ रूपिया रोजी कहे रेहेव फेर येतो पचासे के हिसाब आवथे। मालिक गुसिया के किथे येला तोर मुशी ल पुछ वोही ह बताही। कोन मुशी ल किथो साहेब। अरे उही बिसरू ल जेन ह तुमन ल लाने हे। पैसठ रूपिया तुहर रोजी हे जेमा के पचास रूपिया तुमन ल मिलही अउ पनद्रा रूपिया ह मुशी ल मिलही। मोर बात म परतित नइये त पुछ लव। गांव के बनिहार मन बिसरू ले पुछिस कइसे तै हमर पाछू दलाली खाय बर लाने हस का। बिसरू किथे येमा दलाली के का बात हे, गांव म तुमन तो अतको नइ पात रेहेवं। जतके मिलत हे ततके म खुश राहव। तुमन ल काम देवाय हवं घर देवाय हवं त मै वोतको नइ कमाहू। अब गांव के मन ल समझ अइस कि बिसरू ह काबर साहर लाने।
        वो भट्ठा म बिसरू असन कइयो झन रिहीस जेमन अपन-अपन कोति के लाने बनिहार के बनि म बांटा लेवे। भट्ठा के काम म लगे बनिहार मन पछिना पटक के कमावे अउ पगार के दिन म बाटा वाला मन आ जए। अब तो उंकर बनी म मुशी के, घर किराया, बिजली के, पानी के, निस्तारी के, सबो के अलग-अलग पइसा कटे के सुरू होगे। गांव के मन तो अइसन सपना म नइ सोचे रिहीन होही। साहर म कमा-कमा के गांव के ढाबा भरबो सोचे रिहीन, इहां तो बनी ह पेट कटारी होवथे। लइका सियान राए-राए कमावथे तेहू म साग नून तेल के पुरती नइ होवथे। उपर ले साहर म बिसहत के दार चाउंर, जरत ले महंगाई। गांव म अतेक जांगर टोर कमई नइ करत रिहीस तभो ले खाय बर सपुरन रिहीस।
        अब लोभिया मन ल सुरता आवथे फिरंता बबा के गोठ ह। सबे कोनो ह अब गांव जाए के सुध लमाइस। मालिक ले किथे अब हमन अपन-अपन गांव लहुटबो मालिक हमन ला अब छुट्टी दव। मालिक किथे इंहा ले कोनो ल छुट्टी नइ मिलय। तुहर भरोसा मेहा बड़का आडर ले डरे हवं, वो आडर ह जब तक पुरा नइ होही कोनो घर नइ जा सकव। कोनो बरपेली जाए के कोसिस घलो झन करहू काबर कि तुमन ह इहां लिखा पढ़ी करा के काम म आय हव। गांव के मन पुछथे कइसन लिखा पढ़ी मालिक। अरे जेन दिन तुमन आय हव वो दिन तुहर मन ले स्टाम म दसखत करवाय रेहेवं। वोमा लिखाय रिहीय कि तूमन मोर काम ल पुरा करे बिगर नइ जा सकव। जाहू त मोर नकसानी के भरपाई तुमन करहू।
        अब अइस आफत, काम करत हे त पेट कटावथे अउ काम छोड़त हे तव गर कटावथे। कसई खुटा म अरझे जांगर पेरावत हे। कानहून के जानकार मन बनिहार मन संग खेल कर करिस। दस रूपिया के स्टाम म मजदूर के जिनगी बिसा लिस। ये एक कानहून के तोड़ बर दूसर कानहून चाही। भट्ठा, कारखाना के कमइया मन कहां के कानूहन जानही। फिरंता बबा के बरजई ल नइ मानिस तेकर भुगतना ल भुतत हे।
        फिरंता बबा ह गांव म बइठे-बइठे इकर मन के भुगतना ल भांप डरिस अउ सरकार करा गांव के बनिहार मन लपता हे किके दरखास दिस। थाना-कछेरी, संतरी-मंतरी से मेल मुलाकात करके गांव के बनिहार मन ल छोड़ा के लानिस। गांव के मन दूसर जनम धरके गांव म लहुटिस, उच्छाह मंगल के गीत गावत सियान मन के पावं पलउटी परिस अउ गांवे म रोजी मजूरी बनी-भुति करे के किरिया खाके अपन खेती किसानी के बुता म रमगे।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ए भाखा म पढ़ि के मन परसन्न होगे जयंत भाई...
    फेर बने किस्सा केहे... बधइ हवे... ।

    ||लालच करके अब धरे, अपन अपन मुड़ हाय
    अपने घर अउ गाँव के, माटी सिरतोन आय||

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  2. अइसनहे होथे लालच मा घर दुआर छोड़ के जाए मा
    बिसरु असन अम्मरबेल अब्बड़ मनखे पाबे।

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