मेला के मितानी

मेला म बधे हे मितान ते पाय के दूनो मितान बर मेला हर मितानी के चिन्हारी होगे हे। जइसे-जइसे मांघ लक_ाथे, पुन्नी तिरयाथे मितान संग भेट करे के खुशी बाड़हत जाथे। कोनो ह देव धामी के दरस करे बर जाथे, कोनो ह हाट बजार करे के मजा ले बर जाथे अउ कोनो-कोनो मन ह तो भीड़-भड़क्का के धक्का लेयेच बर जाथे। फेर सोहन अउ मोहन मन तो एक दूसर ले भेट करेच बर जाथे। सोहन अउ मोहन ह नाननान रिहिसे तब अपन-अपन दाई-ददा एक पइत संग मेला देखे बर गे रिहसे। उहें मेला म दूनों झन ल ओकर दाई-ददा मन मितान बधवाय रिहिसे। ऊंकर दूनों के परवार ह मेलाच म पहिली खेप संघरे रिहिस, आन-आन राज के रहवइया अऊ आन राज केे मेला। उदूप ले संघरिस, अउ अइसन नता गढ़हइस कि एके ठन चुल्हा म दूनों के जेवन चूरे। संघरे नहावय, संघरे देव धामी के दरस करे बर मंदिर देवाला किंजरे। मोहन अउ सोहन दूनों झीन के गाड़ी ह नदिया तिर एके जगा ढिलाय रिहिसे ते पाय के एक ठीन घर बरोबर नता-रिस्ता होगे। बने-बने मन मिले रिहिस के ओमन ल आन राज के मेला देखे बर आय हन किके गमे नी होत रिहिस। अइसे लागे जानो-मानो गांवे के मड़ई मेला म हावन। दू दिन के रहइया चार दिन रिगे। मेला तो चार दिन के रेला आय, बार नाहकिस ताहन उसलो-उसलो होगे। इकरो मन के समान के जोरा-जंगारी होय लगगे। संग छुटे के दुख होइस। कोन जनी अब के गे अउ कब भेंट होही, होही कि नहीं। तिर तखार के होतेन ते आवा जाही मेल-मुलाकात करतेन फेर दूर देस के डहरचला। दूनों झीन मन इही गुनते रिहिस के ठउका मित-मितान बधे के बिचार अइस। सियान मन ले जादा दूनो के लइका मन मनके संग नइ छूटत रिहिस, लइकाच मन ल मितान बधा देथन किके अउ सोहन-मोहन ल मितान बधवा दिस। मेला म रद्दा रेगत अभरे सही अभरिस। डहरचलती मनके मन ह अइसे मिंझरिस के मितानी नता होगे। अब तो सोहन अउ मोहन जवान होगे हाबे अपन-अपन घर के सियान होगे हे तभो ले एको साल मेला जवई नइ अतरिस। साल के साल जाथे, दूनों मितान मिलथे। घर दुवार अउ मया पिरित के गोठ होथे हाट बजार करथे अउ घर लहुट आथे।
ऊंकर मन के मितानी के किस्सा ह जतके मंदरस सही मीठ हे वोतके लीम सहिक करू घलोक हे। सोहन के ददा ह जे खा के अपन गांव ल गाड़ी फांदिस। दुरिहा के कारोबार किके ओकर दाई ह दिने मान सबो तियारी ल कर के राखे रिहिस। सबो कोनो जेवन पानी करिस अउ निकलिस। रात भर गाड़ी चलिस। सुकवा के उति होइस अउ गाड़ी के मेला पहुंचती होइस। अइसने मोहन के ददा मन घलोक जे खा के लिकले रिहिस ते पाय के उहू मन सुकवा उवत मेला म आगे रिहिसे। वोतका बेरा जादा गाड़ी-घोड़ा नइ पहुंचे रिहिस ते पाय के मेला म नंदिया के लक्ठाच म ओकर गाड़ी पहुंच गे रिहिस। नंदिया तिर गाड़ी ल ढिलिस अउ बइला मन ल पानी पियाय बर लेगिस। बेर नइ उवे रिहिस ते पाय के सोहन के निंद नइ उमचे रिहिस। गाड़ी म लगे टट्टा के छांव म लइका बने सुते हे किके वोकर दाई ददा मन नंदिया नहाय बर चल दिन। बेर उवे के आगू बने नहा खोर के अइस लइका मन ल उठाबो अउ मंदिर देवाला दरस करे बर जाबो किके। गाड़ी मेर आगे लइका ल उठाय बर टट्टा म ढकाय कपड़ा ल उघारिस। भितरी म लइका नइ दिखिस। ओकर दाई हांक पारिस- अरे सोहन कहां हस बेटा। ओ कोति मोहन के दाई तको चिल्लाय लगे मोहन-मोहन किके। दूनो अपन-अपन गाड़ी ल उतरके कोन जनी कते कोति रेंगे देहे ते कोनो कोति ले आरो तको नइ मिलत हे। तिर तखार के अवइया-जवइया अउ आस परोस के गड़हा मन ल पुछिस। कोनोच नइ देखे पाइस के लइका मन कोन कोति अउ कतका बेर रेंग गे ते। दूनो झीन के डेरा म रोवा-राही परगे। कोनो काल के लइका मन के साध म मेला जाबो करिस ते साधो भुतागे। पूरा मेला भर छान मारिस। दूनो परवार के मन संघरे खोजइ बुता करे। आन राज अनचिन्हार अउ आन सगा के रिहिस फेर दूनो के उपर एके दुख परे रिहिस। इही पा के दूनो ह एक दूसर के सगा नता-रिस्ता बरोबर जिकर करके खोजई करे। मंदिर देवाला हांट बजार सबो कोति ल देख डरिस फेर कोनो कोति ले सोहन-मोहन मिलिस। कोन कोति गे हाबे तेकर आरो तको नइ मिलत रिहिसे। जेने मंदिर म जवे तेने म मनउती के मांगय। बदना बदय। का साधु का भटरी सबो करा बिचरवा डरे रिहिस। सबोच ह काहय आ जही तोर लइका ह। उंकर मन के मेला तो रोवा राही म कटगे। दिन बुड़ताहा फेर एक रपेटा खोजे बर निकलिस। हतास निरास होके मोहन सोहन के दाई-ददा मन अपन डेरा मेर लुहटिस। डेरा म मोहन अउ सोहन दूनो झन कांदा कुंसियार अउ ओखरा झड़कत बइठे राहय। दूनो लइका गाड़ी के छांव म गोड़ हाथ ल लमाये निसंसो बइठे। लइका ल देख ऊंकर दाई-ददा के जी म जी आईस। अपन-अपन लइका ल छाती म ओधा के रोइस। दूनो झन संखरे रिहिस ते पाय के अपन गाड़ी खोजत-खोजत उहू मन आगे। उसनिंदा म उठके दूनो लइका मन घर सहिक सूर-सूर म रेंग गे रिहिस। फेर भगवान के किरपा ले दूनो झन फेर बने-बने लहुट के आगे। ऊंकर दाई-ददा मन देव धामी म बधे बदना ल तूरते पूरा करिस। एकईस-एकईस ठन नरियर महादेव के मंदिर म चघाईस। सबो मंदिर देवाला म जाके अगरबत्ती अउ फूल-पान चढ़ाके देवी-देवता के जय जय गइस। अइसन रकम ले सोहन अउ मोहन मन संघरे रिहिसे। असल संगी उही आय जेन हा बखत म काम आवय। अउ ये मन तो अनबुद्धि रिहिसे तभो ले संग ल नइ छोड़े रिहिसे। तब ल देख ले अउ अब ल। वोमन साल के मेला म मिलथे। अउ मिले-बिछड़े किस्सा ला रई-रई के सोरियाथे।
जयंत साहू, डूण्डा, रायपुर

परसार के गऊंदन

    अकोली वाला मन के नांगर फंदावे त चइतराम ह आधा अक्कड़ ल जोत के ठाड़हे राहय। घर के खेती होवे चाहे पर के बनि चइतराम ह अइनेच कमाथे। तेकरे सेती तो जे नही ते वोला काम म बलाथे। अकोली गांव म चइतराम ह अपन दू झन भाई ल धर के आय रिहिस। वो समे ओकर गांव घर न खार म खेत। भइगे लोटा अउ थारी धरके आय रिहीस।
   गंाव के बड़का सियान मन घर बनि-भुती करके नानकुन कुरिया ल बना डारे हे। किथे न कमइया बर काम के कमी नइये तइसने चइतराम बर गांव म काम के दुकाल नइहे। चइतराम अपन दूनो भाई इसवर अउ सेवक संग जूर मिलके बनि-भुति करके पेट रोजी चलावथे। तीनों भाई म इसवर ह दू कलास पढ़े रिहिस ते पाय के कमइ के हिसाब-किताब उही ह राखे। इकर कमइ ल देख के कोनो ह बइमानी घलो नइ करत रिहिस। जतका दिन कमाय राहय तेकर ले दू आना उपराहाच देवे।
    बनि के थोर-थोर पइसा सकेल-सकेल के परिया भुइया ल बिसावत गीन। गांव के सियान मन किथे चइतराम अब तो तुहर गंाव म घर होगे अउ खार म खेत घला होगे त तीनों झन बर बिहा कर डरतेव। चइतराम किथे बात तो रिसतोन किथव ददा फेर तूहर साहमत के बिना मे काय कर सकथव। मोर तो दाई-ददा कोनो नइहे जेन मन हमर बर बिहा के सरेखा करतिन। अतका ल सून के गांव के दाउ दरागा मन अगवा बन के तीनों भाई के बर बिहाव कर दिन। बने मनखे के सबे ह बने होथे।
    कमई के परसादे घर के परिस्थिती सुधरे लगिस। तीनो भाई ह पर के बनि ले छुट के अपन बिसाय परिया ल सोझियावय। रोज थोक-थोक कमा-कमा के बन बुटा ले छबाय परिया ल धनहा खेत बना डरिस। मेहनत के बिरवा ह दुच्छा नइ जाय फर धरबे करथे। चइतराम इसवर अउ सेवक के मेहनत घला फर धरिस। धीरे-धीरे तीनों भाई तीस अक्कड़ के जोतनदार होगे। घर परिवार ह मेहनत के भरोसा सुधरगे।
    अब तो पर घर बनि करे ल घलो नइ जाय। घरे ले बेरा नइ उसरे त काहा बनि म जाही। सबो के लोग लइका बाड़गे। नानकुन कुरिया ले अब बड़ेक ा घर बियारा अउ परासर होगे। गांव म अब कोनो ओला बिचारा गरीब नइ काहय। अब ओकर घर अइसन समे हे कि उही ह चार झन बनिहार ल चला लिही। फेर इकर मन म धन के थोरको गरब गुमान नइहे। आजो वोइसने जिनगी जियथे जइसन गरीब रिहीस त जियत रिहिस।
    कनकी के पेज म अम्मारी के साग जेला तिन बेर पुरो के तीनों भाई खाय। आज वइसन दिन तो नइहे फेर आदत ह नइ छूटे हे। खाय के बेरा कमाय के बेरा संघरे सकलाके गोठ बात करत खाय। अकोली गांव म चइतराम इसवर अउ सेवक के गजब नाम होगे। अब तो तीनों झन अपन लइका मन ल घलो खेत लेगय। चइतराम किथे बनिहार के लइका खेती के बुता नइ सिखही त काय काम के। नांगर के पाछु-पाछु लइका मन ल रेंगावत किस्सा कहानी सुनावत राहय।
    थोरके म लइका मन घलो नांगर के पाड़की ल थामहे लगगे। देखइया मन किथे देख लइका मन घला दाई-ददा कस कमइया निकलही। किथे न जइसन-जइसन घर दुवार तइसन-तइसन फइरका अउ जइसन-जइसन दाई-ददा तइसन-तइसन लइका। रमगे टूरा मन घला खेती म। ददा के संगे संग मूड़ भर के बइला ल बिता भर के टूरा ह नाथ डरिस। जमहेड़ के गाड़ा म फांदीस अउ हकन के तुतारी मारिस। होर .... होर ....  काहते हे बइला ह गाड़ा सुध्धा घुरवा म उतरगे।
    नेवरिया गड़हा कतेक कासड़ा ल तिरतीस। थामहे नइ सकिस। चइतराम ह धकर लकर बइला ल ढिलिस अउ दू चार झन बला के गाड़ी ल घुरवा ले बाहिर निकालिस। टूरा मन डर्रावत रिहिस ददा ह खिसीयाही किके। फेर चइतराम ह गुसियाय ल छोड़ मने मन मगन होगे। किथे किसान घर के लइका गाड़ा ल बइला संग नइ खेलही त का फुग्गा घुनघुना ल खेलही। ओ दिन ले लइका मन के बल अउ बाड़गे।
    एक दिन इसवर ह गांव के सब लइका मन ल इसकूल जात देखिस। ओकरो मन होइस कि मोरो घर के लइका मन पढ़तिस लिखतिस। घर जाके लइका मन ल किथे काली ले तहू मन इसकूल जाहा रे। अतका ल सुनके टूरा मन अपन-अपन ले नइ जान नइ जान किके टरक दिस। इसवर ह दू कलास पढ़े रिहिस ते पाय के अपन टूरा ल पढ़ाय के साध मरिस। फेर ओकर टूरा पुनीत के थोरको पढ़े के मन नइ रिहिस। तभो ले बरपेली इसकूल म नाम लिखा दिस। नइ जाव काहे तेला मार पिट के पठोवे। चइतराम अउ सेवक ह अपन टूरा मन ल जादा नइ बरजिस। काबर कि जोर जबरदस्ती ले लइका ह बिगड़ जथे। इसवर ल घला कि बरजिस लइका उपर जोझा झन पार किके।
    इसवर नइ मानिस अउ अपन टूरा पुनित ल परसदा के इसकूल म भरती करा दिस। ओ समे अकोली ह नानकुन बस्ती रिहिस ते पाय के गांव इसकूल नइ रिहिस। गांव के सब लइका मन पढ़े बर परसदा जाय। सड़क नइ रिहिस पैडगरी रद्दा म रेंगत जाय ल परे। सुक्खा दिन म तो बन जए फेर पानी बादर के दिन म माड़ी भर चिखला ल नाहकत जाय ल परे। इसवर ल पढ़ई ले गजब लगाव रिहिस इही पाए के अपन सपना ल अपन टूरा पुनित म देखे।
    पुनित ह पढ़ लिख के हूसियार हो जही त हमर चीज बस के हिसाब-किताब राखही।  हमू मन ल थोर बहूत अकछर के गियान कराही किके आस राखे रिहिस। पुनित ह बिहनिया ले नहा-खोर के खा डरय। पढ़े बर जाही किके कोनो वोला काम घला नइ तियारत रिहिस। कमइया मन ले आगु वोला खाय बर देवय। पाछू बाकी कमइया मन खाके खेत जावे। पुनित ह झोला म एक ठन रोटी लूका के धरे राहय। एक ठन अंगाकर वोकर दाई ह अउ धरा दिस। अइसने रोज पुनित ह खात पियत बेरा म आवे बेरा म जावे। इसवर ल गजब गुमान होगे अपन बेटा उपर काबर कि अब चेत लगा के इसकूल जाय बर धर लेहे। चइतराम अउ सेवक ल घला भरोसा होगे। पढ़-लिख के बने चिज बस के सरेखा कर लिही किके।
    पुनित ह सबो के पंदउली पाके अऊ छानी म चड़गे। घर ले तो रोज निकले इसकूल बर फेर कोनो दिन जाय कोन दिन नइ जाए। नइ जाय तेन दिन परसार म बइठ के अंगाकर रोटी ल खा लय अउ छुट्टी के बेरा घर आ जए। इसवर ल थोरको गम नइ रिहिस। लेदे के टूरा ह आठवी पास होगे। चइतराम ल पुनित उपर भरोसा अऊ बाड़गे। उही भरोसा म पुनित ल तारा कुची धरा दिस। हूसियार के लइका डेढ़ हूसियार होगे। इसकूल जावथवं कइके निकलथे अउ परसार म जाके जुवां-चित्ती म रम जथे।
    पुनित के हाथ म तो तिजउरी के चाबी राहय। जतका पइसा चाहे ततका निकाले अउ जुवां म उड़ा दय। चार आना आठ आना के दाव ह आठ रुपिया दस रुपिया के होगे। अब तो पुनित के इसकूल जवइ बिलकुल बंद होगे अउ ओकर संगे-संग तीन झन अउ टूरा मन के घलो बंद होगे। परसदा के मास्टर ह एक दिन इकर मन के सिकायत करे बर अकोली अइस। गुरुजी किथे तूमन अपन लइका मन इसकूल काबर नइ भेजव। चार महीना ले गैर हाजिर हे। अतका ल सून के गांव के सियान मन किथे टूरा मन तो रोजे इसकूल जाथन किके घर ले निकथे फेर कोना जनी काहा जाके बिलमथे। गुरुजी किथे नही भइ इसकूल आबे नइ करे। आधा बीच ले बइठ के घर आ जात होही।
    इसकूल के बहाना टूरा मन काहा जाथे किके एक दिन सियान मन पासथे। टूरा मन इसकूल जाय बर घर ले निकलथे। पाछु-पाछु यहू मन निकलथे। पुनित अउ ओकर संगवारी मन परसदा के इसकूल जाय ल छोड़के गांव के पिछोत के परसार म खुसर जथे। उहा लुका के कोनो माखुर गठत कोनो बिड़ी सुलगावत अपन अपन बसतर ल फेक दिस। एक झन टूरा ह अपन थइली ले तास पत्ता निकालिस अउ चारो झन बर बांटिस। जइसे दांव लगाय बर पइसा निकालिस ठुक ले चइतराम मन पहुंचगे। किथे कस रे इही तूहर इसकूले अउ ए काय पढ़थव। सियान मन ल देख के सबे झन सुकुड़दुम होगे।
अपन-अपन टूरा मन ला नंगत ठइावत घर डहर लानिस। पुनित ल घला चइतराम ल चार चटकन हनिस अउ तिरत घर कोति लेगिस। घर म आगे चइतराम किथे ये टूरा के करनी म मोर तन बदन म आगी बरगे। पछीना ओगार के कमाय धन ल लूटाही त दुख ता लगबे करही।  चइतराम किथे सबके तो पछीना के कमई आय फेर मोर खून के कमाइ ये। येला ते हा परसार म जुवां खेल के लूटावथस।
    तोर नमे भर पुनित ए करम ले तो ते कुल के कलंख अस। पुनित तैतो परसार के गउदन अस। घर म राखबे त घर बस्साही दुवार म राखबे त दुवार। जानवर घला तोला नइ सुंखे तइसन घर भर म तोर नियत बस्सगे। अपन टूरा के अतेक गारी बखाना ल इसवर ह सहे नइ सकिस। पुनित डहर बोले ल धर लिस। इसवर किथे- भइया तोरे भर कमइ नोहे मोरो कमइ आय। तै लहू गंवाय हस त महू तो गवाय हवं। मोर लइका तोर बर कलंख होगे। इही तोर अउ मोर के तनीतना म झगरा बाड़गे। झगरा ह बाटा हिसा म आगे। तीनों भाई अपन-अपन चूलहा अलगा डरिस। बाटा हिस्सा के बाद तको पुनित के बेवहार ह नइ बदलिस। अपन बाप के मेहनत के कमइ ल जुवां म उड़ाय ल नइ छोड़िस। बाप ये तभो ले के दिन ले सइही आजे सुधरही काले सुधरही कइके मन ल मड़ावथे। पुनित ह दिनो दिन अउ बिगड़त जात हे। जुवां ले गांजा दारु म उतरगे। घर म रोज रुपिया बर झगरा करे। नइ देवय त मार पीट के नंगा लेवे। इसवर ह अब अपने लइका के दुख रोवे। भाई मन का कितीस वोमन तो परोसी होगे रिहिस। कलेचुप बाप बेटा के झगरा ल देखे।
    हरेली तिहार के दिन चइतराम अउ सेवक अपन-अपन नांगर बक्खर के पूजा करे बर धोवत-मांजत रिहिस। इसवर घला तरिया म लेग के नांगर ल धोइस। गांव बर हरेली तिहार बड़ खुसयाली के परब आय। अपन-अपन खेती के औजार ल सुमरे के दिन आय। एकरे परसादे तो खेती किसानी के बुता सिरजथे। सबो औजार ल अंगना म मड़ाके पिसान के हाथा देवथे। बंदन के टिका लगावथे। माई-पिला जुरियाके आरती उतारथे। तीनो भाई ह अपन आगू के दिन ल सोरियवथे। सुनता अउ परेम के दिन ह सुरता आवथे। लइका के झगरा के सेती का ले का होगे। इसवर ह पुनित के दुख म बने ढंग ले तिहार नइ मनावथे।
    पूजा करे के बाद पुनित ह मनमाड़े पीये हे अऊ पीये बर पइसा मांगे ल आगे। इसवर पइसा नइ दिस त अंगना म माड़़े नांगर बक्खर अउ रापा कुदारी मन ल देख डरिस। पुनित ल कुदारी ल उठा के किथे आज इही ल बेच के दारु पीहू। हरेली तिहार के कुदारी ल बेचे बर धर लिस ये हा इसवर ल साहन नइ होइस। कुदारी ल छोड़ावत किथे मेहा इही रापा कुदारी म रात दिन मेहनत करके घर दुवार खेती खर बनायेवं अउ तै ह येला बेचे बर लेगथावस। पुनित एक नइ सुनिस हाथ ल झटकार के घर ले निकलगे।
    कुल के कलंख के पाप ह हद ले बाहिर होगे। इसवर ह मार आंखी ललियाए पुनित के पाछू-पाछु परसार कोति दउड़ीस दिस। कुदारी धरे पुनित अउ इसवर के बज्र झगरा होगे। मारिक मारा पटकिक पटका। तिहार के दिन सुनसान बियारा कोनो छोड़इया नइ रिहिस। पुनित अउ इसवर दूनो झन जोर दार किकियइस। ताहन भइगे अनहोनी ह होगे। इसवर ह अपन टूरा ल उही परसार के गउदन म मुसेट परिस। आज अइसन दिन आगे इसवर करा कि गांव भर के गऊंदन पुनित के नाव मेट परिस।
    इसवर अपन करम म कठल के रोइस। राम लखन बरोबर अपन भाई मन करा जाके छिमा मांगिस। किहिस मोरे सेती हमर चुलहा अलहाय रिहिस। घर के बाटा होय रिहिस। इसवर किथे भइया मोर लइका ह तो उही दिन मोर हाथ ले निकलगे रिहिस अउ आज मोरे हाथ ले ये दुनिया ले निकलगे। चइतराम किथे यें का किथस इसवर। हा भइया आज पुनित मोर हाथ ले ये दुनिया ले निकलगे। अतका ल सुन के चइतराम अउ सेवक ह तीनो भाई दुख के बेरा म फेर जुरियगे। अपन मन के रिस भुलागे। चइतराम किथे ते ये काय कर डरेस भाई। अपने लहू ल बोहा के आगेस। चइतराम अउ सेवक धकर-लकर परसार म गिस उहां पुनित लहू-लहू म नहाय परे राहय, नारी ल टमड़के देखिस त संसा चलत रिहिस। तीनों भाई के सुनता अउ जिकर करे ले पुनित के जीव बांचगे। अब पुनित के नाव जनम ह घर ल मिंझारे के ओखी होइस। गरहन के अंधियारी के बाद फेर पुन्नी के अंजोर सहि पुनित बने रद्दा म आगे। फेर कारी रात बरोबर हरेली के दिन अउ परसार के गउंदन ल अकोली गांव अउ चइतराम, सेवक, इसवर जीवन भर सुरता रही।
                                                                          =०==

सुखियार

कमजोरहा किसान अउ बनिहार-भुतिहार घर के लइका मन ननपनेच ले काम बूता म घलोक चेतलग रिथे। उमर के मुताबिक घर के कामकाज ल अपने-अपन सिखत जाथे। अउ इही लइका मन अपन ददा-बबा के नांगर ल थामथे, मउका म घर के सियानी पागा ल बांधथे। फेर दाऊ दरोगा अउ गउटिया घर के लइका मन नानपन ले सुख म रिथे तेन पाय के सुखियार हो जथे। सबे काम ल ओमन बर-बिहाव के उमर म सीखथे उहू म कोनो ल सीखइया राखे रिथे तेने हा सीखोथे। बात-बात म बात निकलथे त महूं ला एक झन सुखियार के सुरता आवथे।
धरमपुरा गांव ले दू कोस दूरिहा म गांव के गउटिया के गांव दानीटोला हाबे। बारा गांव के अंकालु गउटिया काहत लागे। जेन गांव जावय उहां के लोगन मन मान गवन म कोनो कमी नइ करत रिहिसे। सुनन भर पावे के गउटिया ह अवइया हे किके, ताहने गांव ल तिहार-बार बरोबर संभरा डरे। अंकालु गउटिया घर खेती-खार भरपूर रिहिस तभो ले मेहनत करे बर नइ छोड़िस। नौकर-चाकर मन संग कमाय बर भीड़ जथे। सुभाव ले घलोक छिछढ़ाहा नइ रिहिसे जेन गांव म जाए उहा दान-धरम करय। गांव के भजन किरतन सेवा सटका नाचा गम्मत वाले मन ल उरउती बर दान देवय, गरीबहा मन के रूपिया पइसा ले साहमत करय। गांव के मन घलो ओला देवता बरोबर माने।
अंकालु ह कमईया मन के गजब समनमान करय। दरोगा ह खेत के बनिहार-भूतिहार मन ल बरोबर मजूरी देवे, तभो ले गउटिया अपन मनखुशी बनिहार मन ल रूपिया-पईसा बांटय। कोनो ल बेटी-बेटा बिहाव करे बर त कोनो ल घर बनाय बर। गउटिया ह गांव के लोगन मन ल कहाय कि तुहरे मेहनत के परसादे हमर खेती सिरजत हावे। तुहर मन के साहमत करे म हमला कोनो अखर पैदा नइ होवय।
गउटिया ह धरमपुरा जे पइत आवय ते पइत दरोगा सन सरी गांव ल किंजरे। तेकर पाछू अपन खेत-खार ल देखे बर जावए। दरोगा अउ कमईया मन ऊपर गउटिया ह गजब भरोसा करय। धरमपुरा वाला मन घलोक झुठ-लबारी अउ चोरी चमारी म नइ राहत रिहिन। जइसन राजा तइन परजा बरोबर। गांव के बनिहार मन सो भेट करे के पाछू अपन खेत ल किंजरे बर निकलिस। अपन खेत-खार ल किंजरत-किंजरत वोकर नजर नानकुन लइका उपर पर परिस। लइका हा सियान मन सहिक खेत म नांगर जोतत रिहिस। बड़े नंगरिहा बरोबर सुर लगा के आरा अरा रारा करत भइसा नांगर ल लटलटहा मटासी म फांदे राहय। बारा तेरह बच्छर के रिहिस होही टूरा ह।
गउटिया ह लइका ल कमावत देख के अपन लइक के सुरता करथे। मोर लइका ह तो येकर ले हूसियार हे। फेर ओहा बाहिर के काम ल तो छोड़ घरे के एक ठन आड़ी-काड़ी नइ टारय। अपने काम ल घर के नौकर मन करा करवाथे। गउटिया हा मनेमन गुने लागथे- मोर लइका हर तो काम बूता कोति थोरको धियान नइ करे। अतेक चिज सब के सरेखा कइसे करही। गउटिया ल बक खाय देखत दरोग ह पुछते का गुनत हव बड़े गउटिया। गउटिया किथे- कुछू नइ दरोगा गुनत रेहेवं कि ये लइका ह नान्हे उमर म घर के बुता म अपन दाई-ददा के थेभा हे अउ एक ठन मोरो लइका हे जोन ह कोनो काम बर चेत नइ करे। दरोगा किथे काबर ठटठा करथव बड़े गउटिया तुहर घर के लइका अउ काम करही। अरे गरीबहा बनिहार-भुतिहार घर के लइका मन काम बुता ल करथे। गउटिया घर के लइका मन थोहरे कमाथे। छोटे गउटिया तो बड़का भाग धरके तुहर घर अवतरे हे। गउटिया किथे बड़का भाग धरके दुनिया म आए हे दरोगा फेर अपनो ल चेत करे बर लागथे। सबर दिन एके नइ होवे। ककरो भाग ले पथरा ह घलो सोना हो जथे अउ सोना ला पथरा होवत देरी नइ लागे। दरोगा किथे केहे बर सिरतोन बात ल काहत हव बड़े गउटिया फेर तुहर असन सुजानी सियान घर के लइका ह कइसे भला गलत रद्दा म रेंगही। गउटिया किथे- मोर बात ह घर के बाहिर राज म चलथेे दरोगा फेर घर भितरी नइ चले। गउटनीन के आगू तो मोर एक नइ चले। महतारी बेटा मिलके मोर बात ल काट देथे। समे के राहते कुछू न कुछू उदीम करे परही दरोगा। दरोगा किथे- बने केहेव बड़े गउटिया मोर कोनो काम परही त आरो करिहव। तुहर बर मै का सरी गांव जीव होम देबो। गउटिया ह मनेमन गुनिस अउ किथे मउका परे म जरूर तुमन ल सोरियाहू दरोगा फेर अब गांव कोति चले जाए।
खार तनि ले गांव म अइस। गांव वाले मन इहंचे चार पाहर रात ल बिताले गउटिया किके गजब गेलौली करिस। गउटिया हा नइ लागे नइ लागे काहते रिहिस, फेर गांव वाल अउ दरोगा के जोजियाई म चार पाहर रात रूके बर तियार होगे। दिन बुड़ताहा दरोगा घर के दरोगिन ह तसमई, सोहारी रांध डरिस। धकर-लकर जेवन तको तिपो डरिस। दरोगा ह गउटिया बर पाठ-पिढ़हा मड़ा के बियारी करे बर बइठाइस। थारी के तसमई अउ सोहारी ल देख के गउटिया किथे काबर अतेक डमडम करे वो दरोगिन। जउन तुहर हड़िया म रोजे चुरथे तिही ल रांधे रिते। याहा का तीन तेल के जेवन बना डरे। दरोगिन किथे हमर तो सियान गवार कोनो नइये, न मइके म न अउ ससुरार म, तूही ल दूनो डहर के सियान जानथवं बड़े गउटिया, बेटी काहस चाहे बहु, रिस झन करव। आवा झपकुन बियारी करव नितो जुड़ा जही। गउटिया ह दरोगा अउ दरोगिन के मया ल देखके मगन होके जेवन ल उसइस। दूये कांवरा मुहं म लेगे पाय रिहिस के गावं के दून-चार झीन माई लोगिन मन साग धर के आगे। दरोगिन ल मलिया ल धरावत किथे। ये लेवा हमरो घर के साग चिखा देवा गउटिया ला। कोनो मछरी, कोनो ह मुनगा बरी, कोनो मुरई भाठा। बड़े गउटिया ह उकर मन के मया ल देख के जेवन खाये बिगर अघागे। तभो ले कोनो ल निरास नइ करीस अउ सबो घर के साग ल चिखीस।
गउटिया हा बियारी करके उठिस अउ माची म बइठिस। बाड़ा ले बाहिर के भाखा ल ओरखत गउटिया ह दरोगा ल किथे कस दरोगा आज गांव म का होवथे। नाचा गम्मत कस आरो मिलथे। दरोगा किथे बने गम पावत हव बड़े गउटिया तुहर आय के उच्छाह म सब गम्मतिहा मन सकलाय हे अउ नाचा पेखन के तियारी करत हे। गउटिया घलो नाचा गम्मत के सउखिया रिहिस। नाचा के नाव सुन के चोंगी पियत दरोगा दूनो बइठगे गुड़ी म। गउटिया के पहुचते बजगरी मन एक ताल ठोकिस ताहन बीच म रोक के गउटिया के गांव कोति ले सम्मान करके असीस लिन अउ ताहन सुरू होगे नाचा। पहावत बेरा ल देखत नचकार मन जादा ठटठा दिल्लगी के गोठबात अउ गीद ल उरका के सुरू करिस गम्मत 'सुखियारÓ।
हांसी दिल्लगी ले भरे गम्मत म बड़े घर के टूरा ह कइसे सुख म रइके घलो बिगड़ते अउ गरीब घर के लइका मन कइसे घर के सियानी पागा ल नानपन म थामहे के बल करथे। इही गम्मत म सुखियार लइका हा घर के कइसे-कइसे दुरगति करथे। अपन सुख बर ददा के सिराय के बाद घर के खेतीखार ल बेच के साहर म बसगे। गांव के खेती-खार मन म बड़का-बड़का कारखाना बनगे। ओकर खेत के कमइया किसान मन खेत म कारखाना के बने ले बेकार होगे हे। दिन दूबर होगे। दाना-दाना बर लुलवाय ल होगे। कतको गांव के लोगन मन अपन घर दुवार ल छोड़के आन राज म रोजी मजूरी करे बर जावत हे। गम्मत म खेत के सिराय ले का-का दुख परही गांव के मन ल इही ल देखावत राहय नाचा वाला मन ह।
गम्मतेच म अइसन लइका मन ल सोज रद्दा म लाने के उपाय घलोक बताइस। घर संसार ल सुघ्घर चलाये के, बाप ददा के पाय धन दौलत ल सिलहोय के बड़ सुंदर गम्मत बनाय रिहिसे धरमपुरा साज वाला मन ह। नाचा गम्मत देख के गउटिया संसो म परगे काबर के गउटिया तो सोचत रिहिसे के मोर लइका ह सुखियार हे कब कमाय बर सिखिही फेर गांव के लोगन मन तो गउटिया ले अऊ आगू के दिन गुनत रिहिस कि गउटिया के नइ रेहे ले किसान मन के का गत होही। गम्मत देखे ले गउटिया के संसो अउ बाढ़गे फेर गम्मत के जउन आखरी होइस तइसन मोरे घर के किस्सा ह सिरावे इही गुनत गम्मतिहा मन के गुनगान करिस। गम्मत के किस्सा तो गउटियच के उपर माड़े रिहिस।
गउटिया ह गांव वाला मन के नाचा-गम्मत के उदीम ल समझगे कि येमन मोला मोर टूरा के गति अउ भविस के अनहोनी ले आरो करय हे। दरोगा ल किथे कस दरोगा इही गियान ल मोला ओतके बेरा खेत म नी बता देते, अतेक डमडम करे का जरूवत रिहिसे। दरोगा किथे- हमन अतके गुनी नइ हावन बड़े गउटिया जेन तोला गियान देबो। तै हमर गांव के नान्हे लइका मन ल चेतलग होवत देखके छोटे गउटिया बर बड़ संसो करे ते पाय के हमू मन ल संसो होइस कि तुहर पाछू हमर का हाल होही। हमन अपन कोति ले तोला किबो काहत रेहेन फेर तुहर आगू नइ केहे सकेन अउ ये उदीम करेन, हमर सो काही गलती होइस होही त माफी देहू। हमर मन के अतके मंसा हे कि तुहरे असन छोटे गउटिया के घलो हमर ऊपर किरपा बने राहय। तुहरे परसादे तो हमर जिनगी चलथे गउटिया। खेत रही त हमर मन के रोजी-रोटी चलत रही। खेत सिराही ततो हमु मन सिरा जबो। तुहर राहत ले तो कोनो संसो नइ हे फेर। गउटिया किथे फेर का दरोगा? दरोगा किथे आजकाल के दाउ, गउटिया मन अपन गांव-गांव के खेती-खार ल बेच के कारखाना-फेकटरी बनावत हे। ओमन ह, खेती तो हमन करन नहीं त खेत ल राख के का करबो किके गांव के खेत ल बेचथे अउ साहर म जाके बड़का घर अउ दुकान बना के सेठ बन जाथे।
कोनो-कोनो मन तो खेते म कारखाना लगावत हे। ऊंकर कारखाना के धुंगिया म हमर तो जिनगी खुवार हो जही। तुहर ददा अउ तुहर पाहरो म तो निसफिकर रेहेन फेर छोटे गउटिया के पाहरो कोन जनी हमर का होही इही बात के हमन संसो हे बड़े गउटिया। गउटिया हा धरमपुरा वाला मन के पीरा ला सुन के किथे कि मोर पीरा ले तुहर पीरा ह जबर हे। मैं अपन जियत ले तुहर उपर दुख नइ आवन देववं। अउ फेर मोर उपर भरोसा राखव मैं जाय के पहिली तुहर पीरा ला सदा बर हर के जाहूं। जिये मरे के गोठ ल सुन के सबो के मुंह रोनमुहां होगे। गोठे-गोठ म गजब बेरा तको होगे रिहिसे। गउटिया हा गांव वाले मन के मुंह ल देख के थोकुन हांसी-दिल्लगी के गोठ सुरूवईस। रोवासी के बेरा ल हांसी के ठिहा बनाके समझइस के संसो झन करा, गउटिया के जुबान म भरोसा करव। मोला बिदा देवव काबर कि सबो झीन काम बुता वाला मनखे। बिहनिया के अगोरा करिहां त जाय के बेर चूक जही। बड़े फजर ले गउटिया ल अपन गांव जाना हे अउ गांव वाला मन अपन-अपन बुता म किके सबो झीन सुते बर गिन।
बड़े फजर ले धरमपुरा ले निकले अंकालु गउटिया ह मंझन के होवत ले अपन घर अमरगे। जाते साठ टूरा के आरो लिस। ओकर तो निंद नइ उमचे रिहिसे। गउटनीन ल हूत पारिस के टूरा ल उठा कतेक बेरा ले सुते रिही। गउटनीन उलटा गउटिया ला हूरसे बरन किथे मोर राजा बेटा ल बनिहार-भुतिहार जाने हस का। का बड़े बिहनिया ले उठ के नांगर फांदही। उठही अपन बेरा म। गउटिया किथे बनिहार होवे चाहे मालिक बने बेरा म उठे ले देह बने रिथे वो। काम बूता ल नइ करतिस ते झन करतिस, बिहनिया ले तो उठ जातिस। असल किबे त तिही ह टूरा ल अऊ बिगाड़त हस गउटनीन। गउटनीन के एड़ी के रिस तरवा म चड़गे। फुनफुनावत टूरा ल उठाईस। टूरा घलोक अपन दाई उपर गे रिहिसे। उठते साठ कोने काबर उठाथस किके बगियागे। गउटिया के आदत ह दूनो झन ले अलगे रिहिसे। गउटिया हा टूरा ल कभू कड़ा जुबान नइ बोलत रिहिस अउ न गउटनीन ला। जेन मान सम्मान बाहिर म गउटिया के हाबे वोइसन घर म नइ हे, घर के मन ओला धरमात्म, घरफूकिया के डाहसना देथे। गउटिया ह टूरा ल सोझियाए बर अउ गउटनीन के चेत चघाय बर धरमपुरा के गम्मतिहा मन के टिरिक म चलिस।
लोग लइका घर दुवार धन दउलत के संसो फिकर ले अपन मन ल दूरिहा के गउटिया घलोक मनमतंगा होगे। बिहनिया ले नहा खोर के पितांबरी ओढ़हे दुवार म आसन लगाय राहय। जउन भी ओकर दुवारी आवे मांगे बर ओला मनमरजी दान देवय। जेन मांगे तिही ल दे देवय। कोनो धान मागे त बोरा भर धान धरा देवय। कोनो रूपिया पइसा मांगे तव चार के चालिस दे देवय। गांव-गांव म मंदिर देवाला बनवाय बर अपन घर के जमा सबो रूपिया ल लुटाए लगिस। गउटनीन के तो बुधे हरागे आजकाल गउटिया ल का होगे हे। दान धरम तो करे फेर सोच बिचार के करय। पुरखा के कमई ल बेवहर कर बगरावत हे। काहीं चिज के हिसाब नइ राखत हे, अइसन म कतेक दिन ले पुरही पुरखा के जमीन जहीजाद ह।
अतको म टूरा के चेत नइ आइस। तब गउटिया किथे मोर खेत के मालिक उही जेन हा खेत ल कमाही। गांव-गांव मुनादी करइस अउ अपन नाव के खेत मन के लिखा-पढ़ी कराय के सुरू कर दिस। लिखा-पढ़ी म लिखाय कि जेन ह मोर खोती ल बोही-कमाही तिही ह ओकर मालिक होही, अउ वो खेत ल कोनो ह कभू कहू ल बेच नइ सके। बेचे के उदीम करही त सबे खेत-खार ह दानधरम के काम म सऊंपा जही। जइसे गउटिया के लिखा-पढ़ी के सोर उड़ीस ओकर खेत बोवइया, बारा के बारा गांव के कमइया मन अपन-अपन ले मे बोथवं मे बोथवं किके गउटिया करा आय के सुरू होगे। गउटिया घलोक राजी खुसी ले अपन खेत के कागत ल बनिहार मन ल देवत जावए। गउटिया के अइसन चरितर ल देख के गउटनीन बरजथे फेर गउटिया एको नइ सुने। अब तो ओकर घर के सबो नौकर-चाकर मन घलोक अब खेती-खार वाला होगे। घर के काम बुता करे बर बुता करइया के अंकाल परगे। गउटनीन ह गउटिया उपर रिस झर्रा झर्रा के घर के काम ल करे। ओकर टूरा रई-रई के काम बर अपन दाई ल रेरी पारे। पानी दे पसीया दे। कुरता ल हेर पनही लान दे। अब महतारी-बेटा के घलोक खिबीड़-खाबड़ माते के सुरू होगे। गउटिया तो पहिलीच के अपन काम ल करे, नौकर-चाकर के जाय ले कोनो अखर नइ होइस। अपन पुरखौती खेती के सरेखा के संसो तो गउटिया ला घलोक रिहिसे फेर औलाद ह पुरखा के जहीजाद के सरेखा करय इही उदीम म सबे खेती किसानी के दाव खेले हे। गांव वाले मन उपर तको भरोसा हे ते पाय के अतेक बड़ उदीम ल करे हावय।
खेती ह गउटिया के न दाउ के अउ न दरोगा के, ये तो जेन कमाही तेकर होही। अइसन विचार के मनखे दुनिया म बिरले अवतरथे। गउटिया के घर परिवार के खुसियाली बर गउटिया के मयारू किसान मन देव धामी म अरजी करथे। गउटनीन अउ ओकर टूरा के अब चेत आगे रिहिस फेर गउटिया के फैसला तो अटल के वो कही दिस तेन ल करथे। अब गउटिया के टूरा अउ गउटनीन तको खेत कमाय के जोंगिस। बिहनिया ले उठे अउ गांवे के खेत म कुछू काहीं काम करके आवे अउ वो खेत ल अपन नाम करे बर गउटिया ल कहाय। तब गउटिया किहिस कि वो खेत म पहिली तै अन उपजा अउ वो अन्न ल लान तभे खेत ह तोर होही। खेत के मेड़ खुंदे भर ले थोरे तुहर नाव म खेत चढ़ाहूं। खेत के लालच म गउटिया के टूरा अब दिन भर खेत म पछीना ओगरा के बूता करे बर लगगे। अब गउटनीन के समझ म आगे के गउटिया ह बने करत हे लइका ला समझाये बर। ओकरे भल बर तो गउटिया हर काहय मिही ह ओकर एको बात ल फत नइ परन देवत रेहेवं। मोरे सोहबत म लइका ह अतेक पान सुखियार अउ ढीटठाहा होय हे।
गउटिया के सुखियार लइका ह अब अपन बोय अन्न के बीजा ल जामत देख के मेहनत करे म जोन सुख मिलथे तेल ल जान डरिस। जेन सुख बइठे-बइठे खाय म हे तेकर ले केऊ गुना आगर सुख अपन मेहनत के फर ल देखे म होथे। गउटिया के लइका ह अपन बाप ल किथे मोला मेहनत के मोल समझ आगे हे। अतका बात ल सुन के गउटिया ह बड़ खुस हो जथे। फेर एक मन म सोचथे कहू ये हा लोभ के मारे तो नइ काहत होही। येकरो परछो ले बर परही। गउटिया ह अपन टूरा ल किथे- मोर ददा ह माने तोर बबा ह हमर खेत म हंडा गड़िया के राखे हाबे फेर कोन जनी कोन गांव कोन डीह कोन खार म होही ते। तै ओला खोज लानबे तभे मैं मानहू कि तै मेहनत के मोल ल जान डारे हाबस। अतका ल सुन के लइका किथे- ददा हंडा तो सबो खेती म गढ़े हे फेर ओमा मेहनत करके सिरजाये बर परथे। खेती करके पछीना ओकराये बर परथे तब जाके ओ गढ़े धन हा बाहिर आथे। गउटिया हा अपन लइका अउ गउटनीन के बदले बेवहार ल देख के मगन होगे। गउटिया के गति बनगे किके जब गांव के लोगन मन ल आरो होथे, अपन-अपन कागत-पुरजा धर के गउटिया के खेती के हक पाय रिथे तेला लहुटाय बर आथे। बनिहार-भुतिहार मन किथे गउटिया अब हमन ल ये कागत के जरूरत नइ हे, छोटे गउटिया हा घलोक तुहरे असन भलमानस हे, हम ओकर हक ल मार के अपन लोग लइका के मुंह म चारा नइ डारन, हमन ल जोन मेहनत के मोल मिलथे उही म हमन राजी खुसी ले हाबन। गउटिया ह गांव वाले मन के बात ल सुन के खेत के कागत ल राखिस अउ धरमपुरा के दरोगा संग नाचकार मन ल आसीस दिस जेकर मन के देखाय गम्मत ले वो ह अपन सुखियार बेटा ल कमईया अउ हूसियार बना डरिस। मोर कहिनी पूरगे अउ दार-भात चूरगे।