सुखियार

कमजोरहा किसान अउ बनिहार-भुतिहार घर के लइका मन ननपनेच ले काम बूता म घलोक चेतलग रिथे। उमर के मुताबिक घर के कामकाज ल अपने-अपन सिखत जाथे। अउ इही लइका मन अपन ददा-बबा के नांगर ल थामथे, मउका म घर के सियानी पागा ल बांधथे। फेर दाऊ दरोगा अउ गउटिया घर के लइका मन नानपन ले सुख म रिथे तेन पाय के सुखियार हो जथे। सबे काम ल ओमन बर-बिहाव के उमर म सीखथे उहू म कोनो ल सीखइया राखे रिथे तेने हा सीखोथे। बात-बात म बात निकलथे त महूं ला एक झन सुखियार के सुरता आवथे।
धरमपुरा गांव ले दू कोस दूरिहा म गांव के गउटिया के गांव दानीटोला हाबे। बारा गांव के अंकालु गउटिया काहत लागे। जेन गांव जावय उहां के लोगन मन मान गवन म कोनो कमी नइ करत रिहिसे। सुनन भर पावे के गउटिया ह अवइया हे किके, ताहने गांव ल तिहार-बार बरोबर संभरा डरे। अंकालु गउटिया घर खेती-खार भरपूर रिहिस तभो ले मेहनत करे बर नइ छोड़िस। नौकर-चाकर मन संग कमाय बर भीड़ जथे। सुभाव ले घलोक छिछढ़ाहा नइ रिहिसे जेन गांव म जाए उहा दान-धरम करय। गांव के भजन किरतन सेवा सटका नाचा गम्मत वाले मन ल उरउती बर दान देवय, गरीबहा मन के रूपिया पइसा ले साहमत करय। गांव के मन घलो ओला देवता बरोबर माने।
अंकालु ह कमईया मन के गजब समनमान करय। दरोगा ह खेत के बनिहार-भूतिहार मन ल बरोबर मजूरी देवे, तभो ले गउटिया अपन मनखुशी बनिहार मन ल रूपिया-पईसा बांटय। कोनो ल बेटी-बेटा बिहाव करे बर त कोनो ल घर बनाय बर। गउटिया ह गांव के लोगन मन ल कहाय कि तुहरे मेहनत के परसादे हमर खेती सिरजत हावे। तुहर मन के साहमत करे म हमला कोनो अखर पैदा नइ होवय।
गउटिया ह धरमपुरा जे पइत आवय ते पइत दरोगा सन सरी गांव ल किंजरे। तेकर पाछू अपन खेत-खार ल देखे बर जावए। दरोगा अउ कमईया मन ऊपर गउटिया ह गजब भरोसा करय। धरमपुरा वाला मन घलोक झुठ-लबारी अउ चोरी चमारी म नइ राहत रिहिन। जइसन राजा तइन परजा बरोबर। गांव के बनिहार मन सो भेट करे के पाछू अपन खेत ल किंजरे बर निकलिस। अपन खेत-खार ल किंजरत-किंजरत वोकर नजर नानकुन लइका उपर पर परिस। लइका हा सियान मन सहिक खेत म नांगर जोतत रिहिस। बड़े नंगरिहा बरोबर सुर लगा के आरा अरा रारा करत भइसा नांगर ल लटलटहा मटासी म फांदे राहय। बारा तेरह बच्छर के रिहिस होही टूरा ह।
गउटिया ह लइका ल कमावत देख के अपन लइक के सुरता करथे। मोर लइका ह तो येकर ले हूसियार हे। फेर ओहा बाहिर के काम ल तो छोड़ घरे के एक ठन आड़ी-काड़ी नइ टारय। अपने काम ल घर के नौकर मन करा करवाथे। गउटिया हा मनेमन गुने लागथे- मोर लइका हर तो काम बूता कोति थोरको धियान नइ करे। अतेक चिज सब के सरेखा कइसे करही। गउटिया ल बक खाय देखत दरोग ह पुछते का गुनत हव बड़े गउटिया। गउटिया किथे- कुछू नइ दरोगा गुनत रेहेवं कि ये लइका ह नान्हे उमर म घर के बुता म अपन दाई-ददा के थेभा हे अउ एक ठन मोरो लइका हे जोन ह कोनो काम बर चेत नइ करे। दरोगा किथे काबर ठटठा करथव बड़े गउटिया तुहर घर के लइका अउ काम करही। अरे गरीबहा बनिहार-भुतिहार घर के लइका मन काम बुता ल करथे। गउटिया घर के लइका मन थोहरे कमाथे। छोटे गउटिया तो बड़का भाग धरके तुहर घर अवतरे हे। गउटिया किथे बड़का भाग धरके दुनिया म आए हे दरोगा फेर अपनो ल चेत करे बर लागथे। सबर दिन एके नइ होवे। ककरो भाग ले पथरा ह घलो सोना हो जथे अउ सोना ला पथरा होवत देरी नइ लागे। दरोगा किथे केहे बर सिरतोन बात ल काहत हव बड़े गउटिया फेर तुहर असन सुजानी सियान घर के लइका ह कइसे भला गलत रद्दा म रेंगही। गउटिया किथे- मोर बात ह घर के बाहिर राज म चलथेे दरोगा फेर घर भितरी नइ चले। गउटनीन के आगू तो मोर एक नइ चले। महतारी बेटा मिलके मोर बात ल काट देथे। समे के राहते कुछू न कुछू उदीम करे परही दरोगा। दरोगा किथे- बने केहेव बड़े गउटिया मोर कोनो काम परही त आरो करिहव। तुहर बर मै का सरी गांव जीव होम देबो। गउटिया ह मनेमन गुनिस अउ किथे मउका परे म जरूर तुमन ल सोरियाहू दरोगा फेर अब गांव कोति चले जाए।
खार तनि ले गांव म अइस। गांव वाले मन इहंचे चार पाहर रात ल बिताले गउटिया किके गजब गेलौली करिस। गउटिया हा नइ लागे नइ लागे काहते रिहिस, फेर गांव वाल अउ दरोगा के जोजियाई म चार पाहर रात रूके बर तियार होगे। दिन बुड़ताहा दरोगा घर के दरोगिन ह तसमई, सोहारी रांध डरिस। धकर-लकर जेवन तको तिपो डरिस। दरोगा ह गउटिया बर पाठ-पिढ़हा मड़ा के बियारी करे बर बइठाइस। थारी के तसमई अउ सोहारी ल देख के गउटिया किथे काबर अतेक डमडम करे वो दरोगिन। जउन तुहर हड़िया म रोजे चुरथे तिही ल रांधे रिते। याहा का तीन तेल के जेवन बना डरे। दरोगिन किथे हमर तो सियान गवार कोनो नइये, न मइके म न अउ ससुरार म, तूही ल दूनो डहर के सियान जानथवं बड़े गउटिया, बेटी काहस चाहे बहु, रिस झन करव। आवा झपकुन बियारी करव नितो जुड़ा जही। गउटिया ह दरोगा अउ दरोगिन के मया ल देखके मगन होके जेवन ल उसइस। दूये कांवरा मुहं म लेगे पाय रिहिस के गावं के दून-चार झीन माई लोगिन मन साग धर के आगे। दरोगिन ल मलिया ल धरावत किथे। ये लेवा हमरो घर के साग चिखा देवा गउटिया ला। कोनो मछरी, कोनो ह मुनगा बरी, कोनो मुरई भाठा। बड़े गउटिया ह उकर मन के मया ल देख के जेवन खाये बिगर अघागे। तभो ले कोनो ल निरास नइ करीस अउ सबो घर के साग ल चिखीस।
गउटिया हा बियारी करके उठिस अउ माची म बइठिस। बाड़ा ले बाहिर के भाखा ल ओरखत गउटिया ह दरोगा ल किथे कस दरोगा आज गांव म का होवथे। नाचा गम्मत कस आरो मिलथे। दरोगा किथे बने गम पावत हव बड़े गउटिया तुहर आय के उच्छाह म सब गम्मतिहा मन सकलाय हे अउ नाचा पेखन के तियारी करत हे। गउटिया घलो नाचा गम्मत के सउखिया रिहिस। नाचा के नाव सुन के चोंगी पियत दरोगा दूनो बइठगे गुड़ी म। गउटिया के पहुचते बजगरी मन एक ताल ठोकिस ताहन बीच म रोक के गउटिया के गांव कोति ले सम्मान करके असीस लिन अउ ताहन सुरू होगे नाचा। पहावत बेरा ल देखत नचकार मन जादा ठटठा दिल्लगी के गोठबात अउ गीद ल उरका के सुरू करिस गम्मत 'सुखियारÓ।
हांसी दिल्लगी ले भरे गम्मत म बड़े घर के टूरा ह कइसे सुख म रइके घलो बिगड़ते अउ गरीब घर के लइका मन कइसे घर के सियानी पागा ल नानपन म थामहे के बल करथे। इही गम्मत म सुखियार लइका हा घर के कइसे-कइसे दुरगति करथे। अपन सुख बर ददा के सिराय के बाद घर के खेतीखार ल बेच के साहर म बसगे। गांव के खेती-खार मन म बड़का-बड़का कारखाना बनगे। ओकर खेत के कमइया किसान मन खेत म कारखाना के बने ले बेकार होगे हे। दिन दूबर होगे। दाना-दाना बर लुलवाय ल होगे। कतको गांव के लोगन मन अपन घर दुवार ल छोड़के आन राज म रोजी मजूरी करे बर जावत हे। गम्मत म खेत के सिराय ले का-का दुख परही गांव के मन ल इही ल देखावत राहय नाचा वाला मन ह।
गम्मतेच म अइसन लइका मन ल सोज रद्दा म लाने के उपाय घलोक बताइस। घर संसार ल सुघ्घर चलाये के, बाप ददा के पाय धन दौलत ल सिलहोय के बड़ सुंदर गम्मत बनाय रिहिसे धरमपुरा साज वाला मन ह। नाचा गम्मत देख के गउटिया संसो म परगे काबर के गउटिया तो सोचत रिहिसे के मोर लइका ह सुखियार हे कब कमाय बर सिखिही फेर गांव के लोगन मन तो गउटिया ले अऊ आगू के दिन गुनत रिहिस कि गउटिया के नइ रेहे ले किसान मन के का गत होही। गम्मत देखे ले गउटिया के संसो अउ बाढ़गे फेर गम्मत के जउन आखरी होइस तइसन मोरे घर के किस्सा ह सिरावे इही गुनत गम्मतिहा मन के गुनगान करिस। गम्मत के किस्सा तो गउटियच के उपर माड़े रिहिस।
गउटिया ह गांव वाला मन के नाचा-गम्मत के उदीम ल समझगे कि येमन मोला मोर टूरा के गति अउ भविस के अनहोनी ले आरो करय हे। दरोगा ल किथे कस दरोगा इही गियान ल मोला ओतके बेरा खेत म नी बता देते, अतेक डमडम करे का जरूवत रिहिसे। दरोगा किथे- हमन अतके गुनी नइ हावन बड़े गउटिया जेन तोला गियान देबो। तै हमर गांव के नान्हे लइका मन ल चेतलग होवत देखके छोटे गउटिया बर बड़ संसो करे ते पाय के हमू मन ल संसो होइस कि तुहर पाछू हमर का हाल होही। हमन अपन कोति ले तोला किबो काहत रेहेन फेर तुहर आगू नइ केहे सकेन अउ ये उदीम करेन, हमर सो काही गलती होइस होही त माफी देहू। हमर मन के अतके मंसा हे कि तुहरे असन छोटे गउटिया के घलो हमर ऊपर किरपा बने राहय। तुहरे परसादे तो हमर जिनगी चलथे गउटिया। खेत रही त हमर मन के रोजी-रोटी चलत रही। खेत सिराही ततो हमु मन सिरा जबो। तुहर राहत ले तो कोनो संसो नइ हे फेर। गउटिया किथे फेर का दरोगा? दरोगा किथे आजकाल के दाउ, गउटिया मन अपन गांव-गांव के खेती-खार ल बेच के कारखाना-फेकटरी बनावत हे। ओमन ह, खेती तो हमन करन नहीं त खेत ल राख के का करबो किके गांव के खेत ल बेचथे अउ साहर म जाके बड़का घर अउ दुकान बना के सेठ बन जाथे।
कोनो-कोनो मन तो खेते म कारखाना लगावत हे। ऊंकर कारखाना के धुंगिया म हमर तो जिनगी खुवार हो जही। तुहर ददा अउ तुहर पाहरो म तो निसफिकर रेहेन फेर छोटे गउटिया के पाहरो कोन जनी हमर का होही इही बात के हमन संसो हे बड़े गउटिया। गउटिया हा धरमपुरा वाला मन के पीरा ला सुन के किथे कि मोर पीरा ले तुहर पीरा ह जबर हे। मैं अपन जियत ले तुहर उपर दुख नइ आवन देववं। अउ फेर मोर उपर भरोसा राखव मैं जाय के पहिली तुहर पीरा ला सदा बर हर के जाहूं। जिये मरे के गोठ ल सुन के सबो के मुंह रोनमुहां होगे। गोठे-गोठ म गजब बेरा तको होगे रिहिसे। गउटिया हा गांव वाले मन के मुंह ल देख के थोकुन हांसी-दिल्लगी के गोठ सुरूवईस। रोवासी के बेरा ल हांसी के ठिहा बनाके समझइस के संसो झन करा, गउटिया के जुबान म भरोसा करव। मोला बिदा देवव काबर कि सबो झीन काम बुता वाला मनखे। बिहनिया के अगोरा करिहां त जाय के बेर चूक जही। बड़े फजर ले गउटिया ल अपन गांव जाना हे अउ गांव वाला मन अपन-अपन बुता म किके सबो झीन सुते बर गिन।
बड़े फजर ले धरमपुरा ले निकले अंकालु गउटिया ह मंझन के होवत ले अपन घर अमरगे। जाते साठ टूरा के आरो लिस। ओकर तो निंद नइ उमचे रिहिसे। गउटनीन ल हूत पारिस के टूरा ल उठा कतेक बेरा ले सुते रिही। गउटनीन उलटा गउटिया ला हूरसे बरन किथे मोर राजा बेटा ल बनिहार-भुतिहार जाने हस का। का बड़े बिहनिया ले उठ के नांगर फांदही। उठही अपन बेरा म। गउटिया किथे बनिहार होवे चाहे मालिक बने बेरा म उठे ले देह बने रिथे वो। काम बूता ल नइ करतिस ते झन करतिस, बिहनिया ले तो उठ जातिस। असल किबे त तिही ह टूरा ल अऊ बिगाड़त हस गउटनीन। गउटनीन के एड़ी के रिस तरवा म चड़गे। फुनफुनावत टूरा ल उठाईस। टूरा घलोक अपन दाई उपर गे रिहिसे। उठते साठ कोने काबर उठाथस किके बगियागे। गउटिया के आदत ह दूनो झन ले अलगे रिहिसे। गउटिया हा टूरा ल कभू कड़ा जुबान नइ बोलत रिहिस अउ न गउटनीन ला। जेन मान सम्मान बाहिर म गउटिया के हाबे वोइसन घर म नइ हे, घर के मन ओला धरमात्म, घरफूकिया के डाहसना देथे। गउटिया ह टूरा ल सोझियाए बर अउ गउटनीन के चेत चघाय बर धरमपुरा के गम्मतिहा मन के टिरिक म चलिस।
लोग लइका घर दुवार धन दउलत के संसो फिकर ले अपन मन ल दूरिहा के गउटिया घलोक मनमतंगा होगे। बिहनिया ले नहा खोर के पितांबरी ओढ़हे दुवार म आसन लगाय राहय। जउन भी ओकर दुवारी आवे मांगे बर ओला मनमरजी दान देवय। जेन मांगे तिही ल दे देवय। कोनो धान मागे त बोरा भर धान धरा देवय। कोनो रूपिया पइसा मांगे तव चार के चालिस दे देवय। गांव-गांव म मंदिर देवाला बनवाय बर अपन घर के जमा सबो रूपिया ल लुटाए लगिस। गउटनीन के तो बुधे हरागे आजकाल गउटिया ल का होगे हे। दान धरम तो करे फेर सोच बिचार के करय। पुरखा के कमई ल बेवहर कर बगरावत हे। काहीं चिज के हिसाब नइ राखत हे, अइसन म कतेक दिन ले पुरही पुरखा के जमीन जहीजाद ह।
अतको म टूरा के चेत नइ आइस। तब गउटिया किथे मोर खेत के मालिक उही जेन हा खेत ल कमाही। गांव-गांव मुनादी करइस अउ अपन नाव के खेत मन के लिखा-पढ़ी कराय के सुरू कर दिस। लिखा-पढ़ी म लिखाय कि जेन ह मोर खोती ल बोही-कमाही तिही ह ओकर मालिक होही, अउ वो खेत ल कोनो ह कभू कहू ल बेच नइ सके। बेचे के उदीम करही त सबे खेत-खार ह दानधरम के काम म सऊंपा जही। जइसे गउटिया के लिखा-पढ़ी के सोर उड़ीस ओकर खेत बोवइया, बारा के बारा गांव के कमइया मन अपन-अपन ले मे बोथवं मे बोथवं किके गउटिया करा आय के सुरू होगे। गउटिया घलोक राजी खुसी ले अपन खेत के कागत ल बनिहार मन ल देवत जावए। गउटिया के अइसन चरितर ल देख के गउटनीन बरजथे फेर गउटिया एको नइ सुने। अब तो ओकर घर के सबो नौकर-चाकर मन घलोक अब खेती-खार वाला होगे। घर के काम बुता करे बर बुता करइया के अंकाल परगे। गउटनीन ह गउटिया उपर रिस झर्रा झर्रा के घर के काम ल करे। ओकर टूरा रई-रई के काम बर अपन दाई ल रेरी पारे। पानी दे पसीया दे। कुरता ल हेर पनही लान दे। अब महतारी-बेटा के घलोक खिबीड़-खाबड़ माते के सुरू होगे। गउटिया तो पहिलीच के अपन काम ल करे, नौकर-चाकर के जाय ले कोनो अखर नइ होइस। अपन पुरखौती खेती के सरेखा के संसो तो गउटिया ला घलोक रिहिसे फेर औलाद ह पुरखा के जहीजाद के सरेखा करय इही उदीम म सबे खेती किसानी के दाव खेले हे। गांव वाले मन उपर तको भरोसा हे ते पाय के अतेक बड़ उदीम ल करे हावय।
खेती ह गउटिया के न दाउ के अउ न दरोगा के, ये तो जेन कमाही तेकर होही। अइसन विचार के मनखे दुनिया म बिरले अवतरथे। गउटिया के घर परिवार के खुसियाली बर गउटिया के मयारू किसान मन देव धामी म अरजी करथे। गउटनीन अउ ओकर टूरा के अब चेत आगे रिहिस फेर गउटिया के फैसला तो अटल के वो कही दिस तेन ल करथे। अब गउटिया के टूरा अउ गउटनीन तको खेत कमाय के जोंगिस। बिहनिया ले उठे अउ गांवे के खेत म कुछू काहीं काम करके आवे अउ वो खेत ल अपन नाम करे बर गउटिया ल कहाय। तब गउटिया किहिस कि वो खेत म पहिली तै अन उपजा अउ वो अन्न ल लान तभे खेत ह तोर होही। खेत के मेड़ खुंदे भर ले थोरे तुहर नाव म खेत चढ़ाहूं। खेत के लालच म गउटिया के टूरा अब दिन भर खेत म पछीना ओगरा के बूता करे बर लगगे। अब गउटनीन के समझ म आगे के गउटिया ह बने करत हे लइका ला समझाये बर। ओकरे भल बर तो गउटिया हर काहय मिही ह ओकर एको बात ल फत नइ परन देवत रेहेवं। मोरे सोहबत म लइका ह अतेक पान सुखियार अउ ढीटठाहा होय हे।
गउटिया के सुखियार लइका ह अब अपन बोय अन्न के बीजा ल जामत देख के मेहनत करे म जोन सुख मिलथे तेल ल जान डरिस। जेन सुख बइठे-बइठे खाय म हे तेकर ले केऊ गुना आगर सुख अपन मेहनत के फर ल देखे म होथे। गउटिया के लइका ह अपन बाप ल किथे मोला मेहनत के मोल समझ आगे हे। अतका बात ल सुन के गउटिया ह बड़ खुस हो जथे। फेर एक मन म सोचथे कहू ये हा लोभ के मारे तो नइ काहत होही। येकरो परछो ले बर परही। गउटिया ह अपन टूरा ल किथे- मोर ददा ह माने तोर बबा ह हमर खेत म हंडा गड़िया के राखे हाबे फेर कोन जनी कोन गांव कोन डीह कोन खार म होही ते। तै ओला खोज लानबे तभे मैं मानहू कि तै मेहनत के मोल ल जान डारे हाबस। अतका ल सुन के लइका किथे- ददा हंडा तो सबो खेती म गढ़े हे फेर ओमा मेहनत करके सिरजाये बर परथे। खेती करके पछीना ओकराये बर परथे तब जाके ओ गढ़े धन हा बाहिर आथे। गउटिया हा अपन लइका अउ गउटनीन के बदले बेवहार ल देख के मगन होगे। गउटिया के गति बनगे किके जब गांव के लोगन मन ल आरो होथे, अपन-अपन कागत-पुरजा धर के गउटिया के खेती के हक पाय रिथे तेला लहुटाय बर आथे। बनिहार-भुतिहार मन किथे गउटिया अब हमन ल ये कागत के जरूरत नइ हे, छोटे गउटिया हा घलोक तुहरे असन भलमानस हे, हम ओकर हक ल मार के अपन लोग लइका के मुंह म चारा नइ डारन, हमन ल जोन मेहनत के मोल मिलथे उही म हमन राजी खुसी ले हाबन। गउटिया ह गांव वाले मन के बात ल सुन के खेत के कागत ल राखिस अउ धरमपुरा के दरोगा संग नाचकार मन ल आसीस दिस जेकर मन के देखाय गम्मत ले वो ह अपन सुखियार बेटा ल कमईया अउ हूसियार बना डरिस। मोर कहिनी पूरगे अउ दार-भात चूरगे।