नारा लगाने हे पइसा कमाना हे...चुनई आहे ददा

बने जुड़हरे-जुड़हर निगम के चुनई उरकगे अउ पंचइती चुनई अवइया हावय। अतेक जड़काला म तको सहर दंदकत रिहिसे। जड़काला हावय तब ले चुनई वाले मनके मारे कोनो गली, कोनो घर दुवार नइ बाचिस। उंकर रेंगई ले तो भुइंया म फुतकी उड़त रिहिसे। जतके तन मन धन ले मंदिर देवाला म जाके अरजी करत रिहिन हाबे ओतके लगन ले वोट डरइया मनके दुवार म तको नेता मन अरजी-बिनती करत रिहिन हाबे। कतकोन मन तो अपन नेता के दरस पांच बछर पाछू करिन हाबे। सबोच के मन म कुछू-काही बात बर नराज रिहिस फेर आठ दिन के मया म ऊंकर पांच बछर के रीस भुलागे। नेता मन रीस उतारे के दवई जोन धरे रिहिसे। जेन जइसन मांगत रिहिसे, सबो के मंसा पुरा होवत रिहिसे। ए पांच सला तिहार के अगोरा तो कुछ आदमी ल बड़ जतन ले रिथे। काबर के काम बुता खोजे बर नइ परय, अरे आठ दिन तो कमाय बर तको नइ लागय। नेता मनके पाछू-पाछू किंजरना हाबे अउ नारा लगाना हाबे। बस फेर ताहन खाये पीये के कोनो चिंता नइये। ये बात अलग हाबे के जीते के बाद ओला कोनो कुकुर नइ पुछे।
आज जेला देखबे तेला सौ-पचास लोगन के भीड़ धरे किंजर रिथे। बड़का नेता मन सभा करे के आगू चेता के राखे रिथे के बने भीड़ सेकेल के राखहू तभे मै आहू। छोटे नेता मन ऊंकर बात मान के चाहे जइसन होवे, जेन करे बर लागय, कइसनो करके भीड़ जुटाना हाबे इही जुगाड़ म रथे अउ बनिहार मनला कारयकरता बनाके नेता के आगू जय जयकार करवाथे। जतका बड़का नेता, ओकर बर ओतके जादा भीड़ जाही। चलो अब के चुनई ले बनिहार मनके तो फइदा हो जथे। आज ए छाप के नेता के पाछू काल ओ नेता के पाछू। कोनो दिन तो एक जुवार येकर जय अऊ दूसर जुवर दूसइया के जय। जय बोल के पइसा कमाव। कास ये नेता मन चुनई जीते के बाद उकर खातिर कोनो अइसन रद्दा बनातिस के ओमन ल सबर दिन काम बुता मिलते राहय। ओमन ला रोजी-रोटी बर बाट जोहे ल झन होवे। फेर अइसन हो जही तव भीड़ म कोन जुरियाही। गरीब अउ दुखिया नइ रिही तव नेता जी भासन काकर दीही। कोन ल विकास कराये के लबारी किरिया खाही।
अब के चुनई ह तो घर परवार के चुल्हा तको अलगा देथे। एक भाई भारतीय जनता पारटी जी जिंदाबाद, जिंदाबाद-जिंदाबाद काहत हावय तव दूसर भाई कांग्रेस पारटी जिंदाबाद, जिंदाबाद-जिंदाबाद काहत हाबे तव तीसर ह अऊ आन परटी के जय जयकार करथे। दू दिन बने रिहिसे तीन दिन बने रिहिसे चउथईया दिन म भाई-भाई म खिबिड़-खाबड़ मातगे। बाहिर के आन-आन के झगरा घर म आथे के तोर नेता अइसे हे वइसे हे। वो किथे तोर नेता अइसे हे-वइसे हवय। धीरे-धीरे चुनई ह चुल्हा ल तको अलगा देथे। खास करके मंझोलन परवार वाले मनके इही हाल होथे। काबर के सबसे छोटे अउ बड़े परवार वाले मन ला तो अपन काम कउड़ी ले फुरसत नइ मिलय। मंझोलन परवार अपने-अपन म लड़ मरथे। बड़का नेता तो अलग-थलग रिथे फेर मंझोलन परवार के कारयकरता मन ल तो एके तिर रेहे बर हाबे तव रोज-रोज गारी बखाना देवई, पोल पट्टी खोलई म रिस तो लागबे करही। मंझोलन परवार मन लड़ मरथे अउ छोटकू अउ बड़का परवार वाले मन दूनो परटी संग संघर के पइसा झोरे के बुता करथे। काबर के जइसन संग तइसन बेवहार करना, नारा लगाना हे अउ पइसा कमाना हे...चुनई आहे ददा ।

लोई ल काबर टोरे रे बइरी, नार ल पुदक देते... आतंकी नेतिस सैनिक स्कूल

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छोटे-छोटे नोनी बाबू ल पढ़ लिख के चेतलग होही किके मदरसा-स्कूल म महतारी बाप मन पठोथे। चार घंटा स्कूल पठोय बर पठोथे फेर दाई-ददा के जी लगे रिथे के कोन जनी लइका कइसे होही, का करत होही। स्कूल असन ठऊर म छोटे-मोटे राई आथे फेर कोनो ल अतका अजम नइ राहे के चरचीर ले सफा पढ़इया लइका ल कोनो मार डारही। फेर का करबे जइसन सपना म घलोक नइ सोचे रेहेन तइसन पाकिस्तान के पेसावर साहर के सैनिक स्कूल म होगे। उहां सैनिक स्कूल म घुसर के आतंकी मन पढ़इया लइका मनला गोली मार-मार के ढनगा दिस। खबर पायके बाद घलोक मन नइ मानत रिहिसे अऊ भगवान सो बिनती करय के हे भगवान ये खबर ह लबारी हो जतिस।
          आज हमन पाकिस्तान के पेसावर ले केऊ कोस दुरिहा म हाबन तभो ले सैनिक स्कूल म होय आतंकी हमला म मरे 132 झिन लइका मनला सुरता करेच भर म आंखी डबडबा जथे तब सोचव तो भला उकर दाई-ददा उपर का बितत होही। टी.बी. म देखत बखत सबे लइका के परवार वाले मन इहिच गारी बखाना देवत रिहिसे के हतियारा हो नाननान लोई कस कोरा के लइका मन ल मार डरेव। तुहर बल म कीरा परत रिहिसे तव हमी मन ल मार डरे रितेव। जेकर पीरा तिही ल जनाथे तभे तो किथे न लोई ल टोर के आगू नारे ल पुदक देतेव।
ये हमला के जुमेदारी पाकिस्तान के तालिबानी संगठन ‘तहरीक-ए-तालिबान’ ले हावय। स्कूल म ये आतंकी मन 132 लइका मारे हावय, उहू लइका मन उहां के सैनिक मन के रिहिन हाबे। आतंकी मन बैर म सैनिक स्कूल म हमला करिस के इहां सैनिक के लइका मन पढ़थे। सैनिके मन के सेती हमर बुता सिद्ध नइ परे, हमर संगी मन ल मारथे तव उकरो बाल बच्चा ल मारबोन किके नेत के सैनिक स्कूल म हमला करिस। ये मन अतेक निरदई होगे के जेखर कोनो कसूर नइये तेनो मन ल मार के डनगा दिस। अइसन मनखे ल नरक म तको ठऊर नइ मिले। ओकर मनके जे होही तेन तो होबे करही फेर पाक सरकार ल तको सोचे के आए। इही आतंकी मनला तो ओमन खुदे सह देथे। सरी दुनियां जानथे के पाकिस्तान ह इही आतंकी मनके बल म गरजथे। पाकिस्तान के आधा सेना तो तालिबानी मनके हितवा-मितवा आए। पर के बल म गरजइया के आज का हाल होइसे सरी दुनिया देख तको डरिस। दुख के बेरा म कखरो बुरई करना बने बात नोहे फेर अइसन घटना ले तो चेत आना चाही के पर कुआं खनबे तेने एक दिन खुदे झपाबे।

किसान संग खेलाही करत हे सरकार

https://drive.google.com/file/d/0B5JiseIf82T0aHVka1BIcEoxTmM/view?usp=sharingअपन तन के पछीना ओगरा के जग बर बियारी के जोखा करइया किसान मन अब धोखा के सिकार होगे। किसान मनला सरकार ह सुरूच ले टुहू देखा-देखा के राखिस। चुनई के बखत अपन घोसना पाती म पसर-पसर घोसना करके मुठा म देवथे। आस तो अतेक के नइ रिहिसे, फेर जतेक सरकार ह घोसना पाती म लिखिन ओतका देना ओकर फरज बनथे। का सोच के ओमन घोसना करिस, अब दे बर का होवत हे तेन ला उही मन जाने।
छत्तीसगढ़ के मुखिया ल लोगन मन चाऊर वाले बाबा के नाव ले जाने, काबर के ओकर करज ह नेक रिहिसे। गरीब-बनिहार मनके पीरा ल समझे अउ मलहम तको लगावे। गरीब मन ला एक रूपिया दू रूपिया किलो म चाऊर देके सरकार ह गरीब के हितवा तो बनके फेर ओकर ये कारज ह अब लोगन के समझ म आवथाबे के ये चुनई जीत के सत्ता पायके पैतरा रिहिसे। काबर के चाऊर कांड के तको फरीफरकत होगे। चुनई के उरकते गरीब के रासन कारड कटागे। सत्यापान अउ जांच के नाव लेके गरीब मन अपन काम-बुता ल छोड़के सरकारी दफ्तर के चकर काटत हाबे। जब रासन कारड ल काटेच बर रिहिसे तव चुनई के आगू धकाधक बनईस काबर?
किसान ह घलोक कम धोखा नइ खइस, बपरा मन करजा ले लेके आन बछर ले आगर खेती म रूपिया लगईस। जेकर कर जादा भुइया नइये तेनो मन पर के खेत ल रेगहा-अधिया म लेके खेती करिन। जेन मन खेती ल रेगहा-अधिया या फेर खेत बनिहार भरोसा कमवात रिहिसे तनो मन बने जिकर करके खेती म पछीना ओगार के गाड़ा-गाड़ा धान लुइस। अब सोसायटी म धान बेचे के बखत अइस तव पंजीयन अउ अक्कड़ म दस कोंटल के करारी होगे। अक्कड़ म दस कोंटल का हिसाब लगागे सरकार ह अतके धान ल खरीदे के घोसना करे हाबे तेन ल उही मन जाने। एक डहर तो सरकारे ह सेखी मारत हाबे के ये पइत किसान मनके पैदावार बाढ़हे हाबे। जब सरकार कर आकड़ा हाबे के किसान मन के ओतकेच रकबा म फसल के पैदावार बढ़िस। त फेर अक्कड़ पाछु दसे कोंटल तय करना का बने बात आय।
जेकर उपर सरकार ल कड़ा कार्यवाही करना चाही ओकरे कोति हुकारू भर देथे। पऊर साल किसान मनके कतको ठऊर के धान ह माड़े-माड़े जरई धर लिस, कतको धान पानी बरसात म परे रिहिसे। सरेखा करे बर चेत नइ करिस। कतकोन राईस मिल वाला मन चाऊर जमा नइ करिस। जमा करिस तेने मन गिनहा। अइसन राईस मिल वाला मन ल सरकार नोटिस भर देवथे। काहते भर हाबे कार्रवाही करे जाही फेर कब करही तेन ल उही मन जाने। गरीब, किसान अउ बनिहार उपर कार्यवाही करे बखत एको घड़ी सोचय नहीं, न सरकार सोचे न अफसर, अपने मन मुताबिक फइसला सुना देथे। देखव न अब धान खरीदी के मामला ल किसान मन ले ओतके धान खरीदत हाबे जतकाके ओमन करजा करे हाबे, माने किसान मनके बेचे धान ह ओकर खातु-कचरा के पुरती हो जही। अब किसान मन ये गुनान म हाबे के आगू के निस्तारी कइसे चलही। काबर के किसान मन करा रूपिया के पेड़वा नइये जेला टोरके अपन अटाला चलाही। बर-बिहाव करे के हाबे, नोनी-बाबू बर कपड़ा ओनहा, घर-दुवार ल चतवारे के हाबे, लइका ल पढ़ाना-लिखाना हाबे। सबो बर कोरी-कोरी रूपिया लागही। सरकारे सोचे कोरी भर के धान म किसान कइसे खरचा चलाही। आखिर म ओमन ला दलाल अउ कोचिया के दुवारी म जायेच बर तो परही। 

* जयंत साहू*

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छत्तीसगढ़ी दिवस मनई कब फत परही?

छत्तीसगढ़ राज के सपना ल साकार करे म लोक कलाकार अउ साहित्यकार मनके गजब योगदान हाबे। सिरतोन बात किबे तव छत्तीसगढ़ ह साहित्यिक आंदोलन के सिरजन आए। भासा के लड़ई ले अलग राज के सपना जोंगईस। इहां के जुन्नटहा कलमकार मन तइहा समे ले अलग अपन चिनहारी खातिर लड़ई लड़त रिहिस हाबे, धीरे-धीरे चारो मुड़ा के कलमकार मन सुनता-सुलाह होके दिल्ली तक पहुंचिस। उकर संग म लोक कलाकार मन तको अपन अलग चिनहारी पाये खातिर साहमत दिस, ओ बखत कोनो राजनेता बने ह ढंग के लड़ई म नइ कुदत रिहिसे। नेता मनला तो अजम तको नइ रिहिस के साहित्यकार अउ कलाकार मनके लड़ई फत परही। कलमकार मनके हौसला ल देखके नेता मन तको धीरे-धीरे लोरघत गीस अउ हम 1 नवंबर 2000 के अलग चिनहारी पागेन। अलग राज बने के बाद राजनेता मन गद्दी पागे उही मन वाहवाही तको बटोरिस। फेर छत्तीसगढ़िया मन ठगागे। भाखा के लड़ई ले राज बनिस, अब नेता मूल बात ल बिसार के छत्तीसगढ़ी संग दगाबाजी कर दीस। 

अलग छत्तीसगढ़ राज पाये के बाद कलमकार मन ये सोचत रिहिन के ओमन के लड़ई पुरा होगे, फेर सिधवा मन नेता मनके चाल नइ जान पाइस। सत्ता पाते साठ जेकर बल म छत्तीसगढ़ अलग राज पाइस ओही ल भुलागे। जेन कारन बर अलग राज मिलिस ओकर चेत नइ करिस। हद तो तब होगे जब छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा बनाये बर छै बछर के बखत लागिस। छत्तीसगढ़िया कलमकार ल छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा बनाये खातिर गेलौली करे बर परिस, आंदोलन करे बर परिस तब छत्तीसगढ़ के विधानसभा म 28 नवंबर 2007 के छत्तीसगढ़ी ह राजभाखा बनिस। सरकार ह छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के गठन करिस। आयोग के काम काज तो आज तक काखरो समझ म नइ आइस। दू कार्यकाल होगे फेर आयोग के काम काज ले कोनो साहित्यकार खुस नइये। आयोग के बारे म ये केहे जावत हे के छत्तीसगढ़िया मनके मुंह तोपे बर आयोग बनाये गे हाबे। सात साल होगे छत्तीसगढ़ी ल राजभासा बने फेर सरकार ल सुरता नइये के छत्तीसगढ़ी दिवस मनाये जाना हाबे। छत्तीसगढ़ी दिवस मनाये के जिम्मा राजभासा आयोग अउ संसकिरति विभाग उपर छोड़ के सरकार ह कान मुंदे बइठे हाबे। का राज भासा के सम्मान करना सबो के जिम्मेदारी नइ बने। रास्ट भाखा दिवस ल कइसे सबो सरकारी अउ गैर सरकारी विभाग मन मनाथे। 


छत्तीसगढ़ी दिवस मनाये बर का राजभासा आयोग बनाये गे हावय? का छत्तीसगढ़ी के सबो सरकारी विभाग के जिम्मेदारी नइ बने के ओमन छत्तीसगढ़ के राजभाखा छत्तीसगढ़ी के सम्मान करय। सरकार ह 28 नवंबर ल छत्तीसगढ़ी दिवस के रूप म मनाये के घोसना करे हाबे। यहू घोसना पउर साल ले होय हाबे। माने सरकार ल छत्तीसगढ़ी दिवस मनावत दूये साल होवथे। अउ राजभाखा बने सात साल होवथे। अब इही मेर आयोग अउ सरकार के मंसा के फरीफरकत होगे के ओमन छत्तीसगढ़ी ल राजभासा अउ छत्तीसगढ़ राजभासा आयोग का खातिर बनाइस हाबे। खैर छत्तीसगढ़ी दिवस के ओढ़र म कखरो पै ल का खोधियाबे। जेकर सो जइसे बनथे छत्तीसगढ़ी के उरऊती बर बुता करन। जइसे हिन्दी दिवस ल सबो सरकारी विभाग मन मनाथे ओइसने छत्तीसगढ़ी दिवस के दिन तको सबो छत्तीसगढ़ी म गोठियान। स्कूल-कॉलेज म तको एक दिन छत्तीसगढ़ी वाचन होवय। छत्तीसगढ़ी म पढ़ाय-लिखाय जावे। कम से कम एक दिन तो अइसन करके देखन। तभे छत्तीसगढ़ी दिवस मनई फत परही।

साफ-सफाई के संखनांद म फुटहा नंगाड़ा तको ठिनठिनावथाबे


                          सिरी नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनते साठ देस म एक नवापन दिखत हाबे। अइसे लागत हे जानो-मानो ढुड़गा म फेर पीका फूटत हाबे, थकहा जांगर फेर भाड़ी फोरत हाबे। कतको लोगन के नारी ल टमड़ के देखेवं, सबोच हर नवा जोस अउ जुनून म दिखत हाबे। मोदी जी के आजादी परब के भासन जेमा ओमन केहे रिहिन के तुमन 12 घंटा काम करहू त मैं 13 घंटा काम करहूं। लागथे इही बात अब जवान मनके मन म समागे, चारो मुड़ा नमो-नमो के गुन-गान होवथाबे। मोदी जी ह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जयंती के दिन ले सरी देस ल स्वच्छता महाअभियान के संकलप दिस। परन करे ल किहिन के अवइया दिन माने 2019 म जब हमन गांधी जी के 150 वां जयंती मनाबो तब हमर भारत म गंदगी के नामो निसान नइ रिही। संकलप के असर तो सरी देस म दिखिस जिहा-जिहा भाजपा के सासन हाबे उहा छोटे-बड़े सबो कार्यकर्ता ले लेके राज के मुखिया तको ह बाहरी धर के सड़क बाहरे बर निकलगे। ओकर संगे-संग सबो सरकारी विभाग ल तको निर्देस जारी होगे के सबो ल स्वच्छता अभियान म जुरना हे अउ अपन-अपन कार्यालय के साफ-सफाई करना हाबे। जनप्रतिनिधी, अफसर, करमचारी, मास्टर सबो झिन मन जुर मिलके बाहरी धरे-धरे फोटो खिचाइस। फोटो खिचाइस ये पाके केहे बर परत हे के जिहा ओमन सफई अभियान चलईस ओ करा अभी तको कचरा बगरे हाबे। 
                      कतको अफसर मन सान से सेखियावत फोटो ल अखबार म छपाये तको रिहिसे के हमन अपन कार्यालय म स्वच्छता अभियान चलाके साफ-सफाई के संकलप ले हाबन। सरकारी विभाग म तो साफ-सफाई बर बकायदा आदेस जारी होय रिहिसे। अभियान तो अइसे होगे के चलो कोनो बोलत हे तव आदेस कर दव, फोटो खिचालव, खेल खतम, एक दिन म थोरहे कचरा साफ होही। ये एक दिन वाले मनतो अभियान के कबाड़ा करत हाबे। कुछू करथे तेकर ले जादा तो जनवाथे। मोदी जी के मंसा म कोनो संका नइये उकर अभियान एक दिन जरूर सफल होही। फेर फोटो छपास नेता अफसर के हिरदे म ये बात ल जाना चाही के जेन जगा म हम सफाई के संकलप लेवन ओ जगह हमेसा साफ होना चाही। दूसर के मन मढ़ाये वाला बुता नइ होना चाही। अपन हिरदे ले लोगन ह ये महाअभियान ले जुरे तब काम बनही। 
                अभियान के संख तो बाजगे फेर सुरू होय हाबे तेन दिन ले जिहा-जिहा के खबर सुने रेहेव के फलाना जगा स्वच्छता अभियान के आयोजन फलाना नेता डहर ले करे गे रिहिस हाबे, उहीच ठउर म गंदगी पसरे दिखत हाबे। अपन-अपन गली-मोहल्ला अउ घर ल देखन तव अपन घरेच भर साफ दिखथे उहू ह पर भरोसा। झाड़ू-फोछा के बुता करे बर बनिहार लगाये रिथन उही ल चिचिया-चिचिया के, गारी गल्ला देके अपन घर ल साफ करवाथन। घर के कचरा ल बाहिर फेकवाथन। मोटर गाड़ी म चघे-चघे खई-खजेनी अउ आने समान के कचरा ल बाहिर सड़क म फेक देथन। हमरे घर ले निकले कचरा ल गली म देख के सफाई वाला बर ताव म आ जथन। पद अउ पावर के सेती तुरते साफ करा लेथन। हांसी-ठठ्ठा तब लागथे जब सौ-सौ झिन जेकर घर साफ-सफई करे बर बनिहार हाबे ओही मन देखनी करे बर बाहरी धर के सड़क ल बहार के फोटो खिचाथे। ओकर बाद ओ जगह म नास्ता के कागत, झिल्ली, फूलमाला, दुच्छा परे पानी के बोतल। अभियान वाले मन जतका के सफई नइ करे तेकर ले जादा तो अऊ कचरा बगरा के रेंग देथे। माननीय मादी जी के सियानी सोच ले भारत एक दिन सिरतोन म स्वच्छ भारत बनही। काबर के जेकर विचार नेक रिथे अउ निसुवारथ काम करे के जेकर म जुनून रिथे ओकर संग भगवान तको देथे। भगवान अइसन मनखे के संग नइ देवे जेन मन साफ-सफई के फूटहा नंगाड़ा बजाके वाहवाही बटोरथे।


पढ़े-लिखे अड़हा ले बने गांव के गड़हा


छत्तीसगढ़ ल तीज-तिहार के गढ़ केहे जाथे ये बात कहा-सुनी वाला नोहे बल्कि आंखन देखी आए। आज कतको कलमकार मन एक ले सेक छत्तीसगढ़ के महिमा लिखत रिथे बिगर कोनो ठोस परमान के। सिरिफ सुने-सुनाये बात ल लिख के ओला किताब तको छपा देथे। रिस तब लागथे जब गांव के कोनो सियान ह असल मरम ल बताथे तव ओला परमानित करे बर केहे जाथे। केहे तो ए जाथे के असल ल परमान के जरूरत नइ परय फेर अब जरूरत परत हाबे काबर के हमर तीज तिहार अउ संस्कृति के बारे म अतेक अकन लंद-फंद चलागन सुरू होगे हाबे जेला देख के हमी ल भोरहा हो जाथे के हम कोन राज म आगे हाबन। 
गांव के होय या साहर के, पढ़हंता मन कोनो परब ल मनाये के आगू ओकर विधी-विधान ल जाने बर ऐती-ओती के किताब ल पढ़थे। जबकि ओला अपन घर के सियान ले पुछना चाही के फलाना तिहार ल काबर मनाये जाथे अउ कइसे मनाये के परंपरा हाबे। कोनो ह अपन घर के सियान ल नइ पुछके लंद-फंद किताब ल पढ़ के ओला अपन संस्कृति मान लेथे अउ अपन परवार म तको उही चलागन सुरू कर देथे। अब तो अइसे जानबा होथे के कोनोच तिहार ह आरूग नइ बाचे हावय। सबो म खधवन मिंझरगे। कतको के नावे मिटागे हावय, बांचे हे तेन ह समझ म नइ आवे के ए कोन राज के परब आए। 
पहिली तो बाहरी लोगन मन हमर संस्कृति ल नकार दीस अउ हमरे घर म रहीके हमी मनला अपन रंग म रंगे के उदीम करीस। फेर जब-जब ओमन ल हमर से कोनो फायदा होवइया रिथे तब अपनो मन हमर रंग म रंगे के देखावा करथे। देखावा तो आए, ओमन हमर संस्कृति अउ परब ले सिरिफ अपन रोजी-रोटी चलाथे। हमर धरम अउ विस्वास के आड़ म अपन दुकान चलाथे। 
ये बात सऊहत देखे बर मिलत हाबे रायपुर के गोल बजार म। छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार ले जुरे सबो जिनिस ल आगू गवई-गांव के लोगन मन जाके बेचय ओकर मरम बतावे के का-का विधी ले येकर उपयोग करना हाबे। अब गांव-गवई के पसरा वाले मन के ठऊर म आन-आन मनके दुकान सजे हाबे। ओमन समाने भर ल जानथे अउ ओकर मरम पुछे म आन-तान बताथे। कतको मन तो अपने मुताबिक जिनिस ल तको धरा देथे अऊ हमरे सहिक कतकोन अड़हा मन बिसा घलो लेथन। बिसाये के बाद ओकरे सो पुछथन के येकर कइसे उपयोग करना हाबे। नइ जाने तभो ले कुछु भी आन-तान बताथे काबर के ओला तो अपन समान बेचना हाबे।
दोस बजार के नोहे, हमरे म सरी दोस भरे हाबे। कोनो ल अपन संस्कृति के बारे म बता नइ सकन। हमर से कोनो पुछते तव हमू मन किताब खोजथन। जबकि हमला मालूम हावय के हमर संस्कृति ह अलिखित हाबे। अपन घर के सियान ले जानकारी लेना छोड़के पर के सुने-सुनाए ल बताना ह जादा गर पउला होवथाबे। हमला अपन संस्कृति अउ रीति-रिवाज ल जानना घातेच जरूरी हाबे तभे हमर अस्तित्व बाचही। एकर बर सबले आगू तो किताब ल पढ़के हूमन-धूपन के काम ल बंद करे बर परही। किताबे पढ़इया मनके सेती तो हमर तिहार-बार के नाम बिगड़े हाबे। हरेली, कमरछट, सकट, पोरा, तीजा, दसराहा, सुरहुति, गोबरधन पूजा, मातर, होरी जइसन हमर छत्तीसगढ़ के परमुख तिहार के नाम आरूग नइ बाचिस तव रीत-रिवाज के का गोठ करबोन। 

छत्तीसगढ़ के विधानसभा म नइ गुंजय छत्तीसगढ़ी!

 
छत्तीसगढ़ राज ल अलग होय तेरह बछर बितगे, छत्तीसगढ़ी ल राजभासा के पदवी पाय छै बछर ले आगर होगे हाबे फेर अब ले छत्तीसगढ़ी ह सरकारी कामकाज के भाखा नइ बने हाबे। डा. रमन सिंह के सियानी म तिसरइया पइत इहां भाजपा के सरकार बइठिस। साढ़े चार कोरी विधायक चुनके अइस जेमा एक्का-दुक्का ल छोड़के सबोच हर छत्तीसगढ़ी भाखा ल जानथे। छत्तीसगढ़ी म गोठियाथे-बतराथे फेर जब-जब अइसन मउका आथे जिहां ओमन ल महतारी भाखा म गोठिया केओकर मान बढ़ाना चाही ओ बखत ओंकर मुंह ले आन भाखा निकलथे। तव का छत्तीसगढ़ी ल सिरिफ लोगन ल बुद्धू बनाय बर ओमन बोलथे? अइसन बेवहार छत्तीसगढ़ी संग काबर होइस जबकि सबो विधायक-मंत्री मनके चुनई के भासन ह छत्तीसगढ़ी म होवत रिहिसे। बड़ मीठ-मीठ बोलय, दाई-ददा, भाई-बहिनी, कका-काकी, ममा-ममा सबो नता ल उटकय अऊ जानता ल अपन गुरतुर बोली म हिरोवए। अब चुनई जीतागे तव लागथे ओहू मन ल अब छत्तीसगढ़ी म गोठियाए म लाज लागत होही। ये बात ह परमानित घलो होगे विधानसभा अउ लोकसभा के सपथ लेवई कार्यक्रम म।
का फइदा अइसन छत्तीसगढ़ी बोलइया-समझइया विधायक होय ले विधान सभा म तो सवाल-जवाब छत्तीसगढ़ी म होबे नइ करें। आन दरी ले ये पइत जादाच आसरा रिहिस नवा विधायक मन ले, सुरू म इही लागत रिहिसे के विधानसभा के सदस्या लेवत बखत छत्तीसगढ़ी भाखा ले विधानसभा गुंज जही फेर छत्तीसगढ़िया मन के ये सपना ह सपनाच रइगे। छत्तीसगढ़ी म सपथ लेवइ ह दसे-बारा म अटकगे छत्तीसगढ़ी के आकड़ा छत्तीस तक तको नइ पहुंचिस। अइसने लोकसभा म चुनके गे गियारा सांसद मन ले तको रिहिसे फेर उहां आठवां अनुसूची के सेती अबिरथा होगे। बोलइया मन तो इहू काहत हे के आठवां अनुसूची ओखी भर होइसे, छत्तीसगढ़ी के छोड़े अऊ आन भाखा नइ आतिस तव कइसे करतिस? सोचे अउ समझे के बात आए जेन ल पीरा रिथे वो बोंबिया डारथे, नइये तिकर तो गोठे छोड़व।
तातेतात अबही छत्तीसगढ़ विधान सभा सत्र आयोजित होय रिहिसे। जेमा छत्तीसगढ़ी म सवाल-जवाब के दुकाल परे रिहिस हाबे। जानबा होवय के इही विधान सभा ह छत्तीसगढ़ी शब्दकोस छपवा के गजब वाहवाही बटोरे हाबे। एक नही, दूदी ठिन किताब छपा ठरिस राजभासा आयोग के मारफत ले। ओ शब्दकोस के विधान सभा ह का उपयोग करत हाबे तेला उही जाने। अपने मन हिरक के नइ देखत होही तइसे लागथे। बने मनसा लेके बनाय रितिस शब्दकोस तब आज ले छत्तीसगढ़ी ह कामकाज के भाखा बन जतिस।
दूसर मन ला माने बाहिर ले आए बड़का अफसर मन ल येमा काम करे म भले अड़चन आही। फेर अड़चन ल दूरिहाय बर विधान सभा तो खुदे शब्दकोस बनाये हाबे तव ओकर उपयोग करंय न। अइसे घलोक नइहे के सबो बाहिर के अफसर हाबे, छत्तीसगढ़िया मन घलोक बड़े-बड़े पद म हावे, होहू मन छत्तीसगढ़ी म गोठियाथे-बतराथे। फेर काम करत बखत छत्तीसगढ़ी के उपयोग नइ करे एकर कारन हे के ओमन तीन बघवा छपे कागज के आदेश ल मानथे। अउ आदेश करइया मन विधान सभा म खुदे हिन्दी म सवाल-जवाब करथे तव दूसर मनके का असरा करबोन।
९८२६७-५३३०४

टेक्स के बदला बीमारी !

 का गांव का सहर सबो कोति पिवरी के कहर ले लोगन थर्राय हाबे। जानकार मन के मुताबिक पिवरी(पीलिया)ह खराब खाना अउ पानी ले होथे। अबही जेन कोति ले पिवरी सचरे के जादा आरो मिलत हे वोहे बड़का-बड़का सहर के कालोनी अउ बस्ती। ये उही पारा बस्ती आए जिहा के लोगन मन राजधानी के निगम के पानी ले अपन निसतारी करथे। इहां के लोगन मन हरके बछर सरकार ल निसतारी के मोल तको चुकोथे माने सरकार ल जल-मल कर देथे। अब प्रसासन के ये कहना कि लोगन मन जतर-कतर खावत पियत रिथे तेन पाए के पिवरी होय हाबे, अइसन कहइया मन ल सोचना चाही के वो बपरा मन कहां के पानी ले निसतारी करत हाबे। निगम के पानी ल सरी जनता बऊरत हाबे। अउ घर के आगू-पाछू ले बोहइया नाली के सफई के जुमेदारी तको निगम हे हावय। आखिर कोन बात के टेक्स लेथे सरकार?
जानकार मन के मुताबिक पिवरी ह खराब खान-पान ले सचरइया रोग आए। येकर जानबा मानुख ल 15-20 दिन म होथे। भूख नइ लागे, भात-बासी म रूवाप नइ राहय। उल्टी, मुड़ पीरा, कमजोरी आ जथे। कोथा-कोथा पीराथे अउ आंखी के संगे-संग देह ह पिवरा दिखथे। पिवरी के जानबा होय के बाद तुरते अस्पताल म इलाज कराना चाही। कतकोन मन गांवखरा दवई तको करथे।
गांवखरा दवई के उपर लोगन के विसवास ये पाए के हाबे कि आगू के समे म डाक्टर नइ रेहे ले इही गांवखरा दवई खाए ले पिवरी उड़ा जावत रिहिस। गांवखरा दवई बने काट नइ करे अइसे बात नइहे, बात समे के हाबे। अब जगा-जगा अस्पताल हे। गरीब मन बर खैराती अउ रूपिया वाला मन के परावेट अस्पताल। गांवखरा दवई के जानकार मन सिरागे हाबे अऊ लूट-खरोट वाला मन दुकान खोले बइठे हाबे। जीव बचाय बर तो सरी उदिम होथे, रोग लगे हाबे तव काट तो खोजे बर परही। फेर सियानी इही किथे रोग के कारन ल आगू काटे जाए।
जीलेवा पिवरी के सचरई ल देख के अब डाक्टरो मन काहत हावय कि खान-पान म बने जिकर करके धियान धरव। बात सिरतोन तको हे काबर कि जिनगी अमोल हे अउ हमर जीव बर हमी ल संसो करे बर परही। अब प्रसासन-सासन के गतर ल देखत इही सोला बात आए कि साव चेत करे ले ही देह बने रिही।
मंत्री-संत्री मन जेन कोति ले पिवरी के आरो पाथे तेने कोति राजनीति के रोटी सेके बर मसक देथे। होना जाना कुछू नही बड़े-बड़े भासन देके आ जथे। एक दूसर के मुड़ी म दोस ल थोपत रिथे। बिमरहा मन दुख भोगत अस्पताल म परे हाबे। घरवाला मन संसो फिकर म झुंझवाए रिथे। अऊ ये कोति अफसर, नेता सेखियावत जांच ऊपर जांच, धरना परदसन अउ कार्यवाही करे के ढोंग सुरू कर देथे।
सोचे के बात आय कि जेकर बुता हे सबर दिन पानी अउ नाली के जांच करे के वोमन अब जांचत हाबे। बीमारी सचरे के आगू कहां गे रिहिस हाबे। बीमारी सचरे के बाद सिविर लगा के जगा-जगा पानी के जांच के करना, लोगन मन के डाक्टरी जांच करवाना। पियास लागे के बाद कुआं कोड़ई ह पढ़े-लिखे अउ जुमेदार मनखे मन के काम नोहे। प्रसासन करा सबो सुविधा हाबे रोज पानी के जांच कर सकत हे, नाली के सफाई कर सकत हे अउ सबले बड़े बात उही मन काहत हे कि खराब खाना नइ खाना चाही तव जगा-जगा म खुले खाए-पिये के जिनिस के दुकान के जांच होना चाही। साल भर के टेक्स झोके हव तो साल भर ये बुता काबर नी होवे। जागरूक जनता ह समय म सरकार ल टेक्स चुहाय हाबे। तव का पिवरी ले मरइया जनता ल सरकार कोति ले ये बीमारी इनाम समझे जाए, आखिर जनता के मउत के जुमेदार कोन हे?
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अक्ति लोक परब : जीव अउ जिनगी मरम

छत्तीसगढ़ ह कृषि प्रधान अंचल आए। इही पाय के इहां के सबो परब-तिहार ह कोनो न कोनो रूप ले खेति-किसानी ले जूरे रिथे। बइसाख के अंजोरी के तिज म परब मनाथन अक्ति। अक्ति ह गांव के सियान बर जतके महत्ता के हाबे ओतकेच नान्हे लइका मन बर तको हाबे। बिजहा म फोकियावत जरई, प्रकृति के सेवा अउ बिहाव संस्कार के सरेखा। घर के डोकरी-डोकरा के सियानी पागा ल बांधे नान्हे लइका ह अपन संस्कृति ल कइसे सिखथे अक्ति के दिन परगट देखे बर मिलथे।


पुतरी-पुतरा के टिकावन परत हाबे
चुलमाटी,दतेला, बरात। नान्हे बाजा पालटी



















सुवासिन

 ग्राम देव के पूजा
ठाकुरदेव ह गांव के सबले बड़का देव आए। तेकरे सेती तो कोनो भी कारज होए सबले पहिली ठाकुरदेव के नाव सुमरथन। अक्ति के दिन ठाकुरदेव के मंदिर म गांव के लइका सियान जुरियाके पूजा-पाठ करथे अउ गांव खुसियाली के कामना करथे। संगे-संग गांव के अऊ आन देवधामी म तको किसान मन धान के दोना  चखाथे।
धान चघथे ठाकुरदेव म
गांव के किसान म ये दिन अपन-अपन घर ले डूमर पाना के दोना बनाके ओमा एक दोना धान भर के ठाकुरदेव म चघाथे। सबो किसान के घर ले धान के दोना आए के पाछू गांव के सियान अउ बइगा मन मिलके सबो के धान ल मिंझारथे। पैरा ल बेठ अइसन लपेट के काठा बनाथे। उही काठा म धान ल नापथे। नपाय धान ल फेर दोना-दोना भर के गांव किसान म अपन-अपन घर लेगत जाथे। मंगल कारज म डूमर के तको गजब महत्ता हाबे। बिहाव म मंगरोहन डूमर डारा के ही बनाये जाथे। जइसे कि धान ह किसान मन के बिजहा के काम आही तव काम ल सिद्ध पारे खातिर डूमर के पाना ले दोना बनाथे।
किसानी के बोहनी
बइगा हा काठा के धान ल उही मेर नेंगहा छित के नांगर तको चलाथे। गांव के सियान मन के चलाए परंपरा हा आजो चले आवत हाबे। किसान मन हर पूजा-पाठ होय के बाद ठाकुरदेव म चघे धान ल दोना म अपन घर लेगथे। उही धान ल किसान मन अपन बिजहा म मिंझारथे। उही धान ल जमो के तको देखथे। अइसे मानता हाबे के अइसन करे ले किसान के एको बीजा धान ह खइत नइ होवे। सबो बीजा म जरई आथे।
नवा करसा के पानी
अक्ति के दिन ले ही गांव के माईलोगन मन नवा करसा म पानी भरथे। किथे घलोक नारी-परानी मन हा कि करसा के पानी ह अक्ति के माने के बादे मिठाथे। इही पाय के नवा करसा म अक्ति के दिन ले ही पानी पिये के सुरू करथे।
मंदिर देवाला अउ पेड़-पौधा म पानी रूकोना
अक्ति के दिन गांव के लइका सियान मन करसा धर-धर के निकलथे अउ ओरी-ओरी गांव के सबो देव-धामी म पानी रूकोथे। गांव म जतेक भी पेड़-पौधा हे तेनो म पानी रूकोथे। छत्तीसगढ़ के संस्कृति म इही ह तो हमला सबले आन चिनहारी देवाथे। बइसाख के लाहकत घाम म रूख-राई म पानी रूकोना, कोना ल जीवन देके समान पुन आए। अक्ति ले सुरू ये परंपरा हा चलते रिथे, रूख-राई हरियाते रिथे। ये परंपरा ह एक डहर तो हमर देव-धामी के प्रति आस्था ल देखाथे ऊहें दूसर कोति हमर प्रकृति के खातिर परेम ल तको देखाथे। देव-धामी के आसिस के संगे-संग रूख-राई तको पावन पुरवाही संग अपन आसिस बगराथे।
पुतरी-पुतरा के बिहाव
अक्ति के दिन गांव के नाननान नोनी मन पुतरी-पुतरा के बिहाव रचाथे। नान्हे लइका मन माटी के पुतरी-पुतरा के बिहाव के सरी नेंग-जोंग ल करथे। मड़वा गड़ियाथे, मड़वा छाथे, तेल हरदी चुपरथे। सिरतोन के बिहाव बरोबर मंगल-उच्छाह ले लइका मन गीद तको गाथे। बरात निकालथे, टिकावन बइठारथे। सियान ल बिहाव म करत नेंग-जोंग ल लइका मन देखे रिथे वहू मन ओइसनेच करथे अपन पुतरी-पुतरा के बिहाव म। अक्ति के पुतरी-पुतरा के बिहाव ह ये सेती बड़ महत्ता के हाबे कि बिहाव के संस्कार ल लइका मन देख-देख के सिखथे। बिहाव के सबो नेंग-जोंग ल सीख के अपन पुतरी-पुतरा के बिहाव करत बखत ओला सुरता कर करके बिहाव संस्कार के सरेखा करथे। नोनी पिला मन तो पुतरी-पुतरा के बिहाव करथे फेर बाबू पिला मन तको ये खेल म पाछू नइ राहय। नेवता-हिकारी, गवइ-बजई अउ समान के जोखा करे के काम ल बाबू पिला मन करथे। इही पाय के अक्ति के पुतरी-पुतरा के बिहाव ह खेल नहीं बल्कि सिरतोन के बिहाव लागथे।
अक्ति के बिहाव लगिन 
अक्ति के दिन बिहाव के लगिन तको विशेष रिथे। कतको दाई-ददा मन अपन लोग-लइका के बिहाव बर इही लगिन के अगोरा करथे। दिन बादर ल बने जोंग के अक्ति भावंर ल बने मानथे। छत्तीसगढ़ म अक्ति के दिन गजब बिहाव होथे।

नेता मन के टोटका अउ ठोटका

चारो मुड़ा चुनई परब के बरोड़ा चलत हाबे। का गांव, का साहर ल किबे गली-गली म तको नेता मन के रेंगई ले फुतकी उड़त हाबे। जेन ल कभू चार आना दान-धरम म देवत नी देखे रेहेन तेने मन अब जनता ऊपर अपन कोठी उरकावत हाबे। जनता ल मोहय के नाना उदीम करत हाबे। रूपिया-पइसा, दारू, बोकरा, ओनहा-कपड़ा, घर बऊरे के समान के संगे-संग, जंतर-मंतर अउ पूजा-पाठ तको होवत हाबे। ये दरी आन बच्छर ले जादा चुनई के गदर माते हाबे। काबर कि हमर छत्तीसगढ़ म अभिच्चे विधान सभा के चुनई निपटे हे अऊ ये दे फेर लोकसभा होगे। सबोच ल अपन-अपन जीत के भरोसा होवथाबे। काबर कि सबो कोनो ह अपन-अपन सलाहकार के बात मान के ओकरे विधी-विधान ले फारम ल भरे हाबे। 
फारमे भरेच भर ले जीते के उम्मीद ये पाय के तको जादा हे काबर कि ये पइत बड़े-बड़े ज्योतिष के बात मान के ओकर केहे मुताबिक दिन-बादर ल देख के सही बेरा म फारम भरे हाबे। येहा सोचे के बात आए कि जेन नेता मन ल देश अउ समाज ल चलाना हे, जनता के दुख-सुख के संगवारी बनना हे वो मन हा मुहरत देख के नामांकन भरही तब जीते के बाद ओकर दिन-बादर कइसे रइही। मुहरत के फेर म छोटे बड़े सबो नेता मन फसे हाबे। उत्तर ले दक्षिण, पूरब ले पश्चिम सबो डहर एकेच बात सुने बर मिलिस के फलाना नेता ह अपन नामांकन ल अपन ज्योतिष के बताए मुताबिक भरिस हाबे। नामांकन भरे ल जाए के आगू घर म पूजा-पाठ अउ हुमन-धूपन के कार्यक्रम होना भले ही धरम अउ आस्था ल उजगार करथे फेर इहीच दिन अइसना करना यहु तो बतावत हाबे कि का सोच के नामांकन भरे बर जावत हस। जेन मन पहिली पइत चुनई परब म उतरे ते मन ह कहू पूजा-पाठ करत हाबे, हुमन-धूपन करत हे तिकर म जादा अलकरहा नइ लागे फेर जेन मन बीस-बीस साल ले कुर्सी म पलथियाए हे तेन मन कहू अइसन करथे तव मन म कुछू अऊ सोच विचार उमड़थे। कहू ये नेता मन पूजा-पाठ, हुमन-धूपन अउ तंजर-मंतर ले तो नइ जीतत होही? का ज्योतिष के बताए बेराच म नामांकन भरे ले चुनई जीताथे। कतको मन तो ज्योतिष ले पुछ के उकरे मुताबिक ओनहा-कपड़ा तको पहिरथे। अइसन सब आस्था अउ भक्ति ह चुनईच के बेरा म जादा देखे बर मिलथे। चुनई लड़त बखत जेन-जेन मंदिर म मुड़ी नावए रिथे तिहा जीते के बाद हिरक के नइ देखे, ओकर बाद तो घर के जोगी जोगड़ा अउ आन गांव के सिद्ध हो जथे कहे के मतलब नेताजी ल चुनई जीते के बाद दूरिहा-दूरिहा के देव-धामी दरस करे के साध लाग जथे। बेरा के फेर ह ओमन ल चुनई जीताए म कतका साहमत करथे उही मन जाने।
बड़का नेता मन करत हाबे तव काकरो आंखी म नइ गड़त हाबे। कहू इही ल छोटे मनखे मन करे तव अंधविश्वासी कहाही, इहीच मन केहे बर धर लिही के ये नाननान नेता मन तंत्र-मंत्र करके समाज म अंधविश्वास बगरावथे। आयोग तको तुरते उमिया जही कार्यवाही करे बर। चुनई ल छोड़ के आन दिगर सिजन म कुछ कार्यकरम ल देखन तव इकर मन के करई ह विधी-विधान हो जथे अउ छोटे आदमी मन के ह अंधविश्वास अऊ आडंबर होथे। येमन के करत किरिया करम ल जनता म टीवी, रेडियो अउ पेपर म परगट देखत हाबे। ये नेता मन जतके चुनई जीते म टोटका करथे ततका तो आम आदमी मन तको नी करत होही। इकर मन के आगू पाछू चार आंखी लगे रिथे तेन पाय के इमन दूसर के मार्फत काम ल सिद्ध पारथे। एकक झिन नेता के नाम बकरना बने नोहे काबर के सबोच के इही हाल हे, सबो पंचन, सबोच दल के नेता मन टोटका अजमावत रिथे।
टोटका अजमाए के बाद अब इहू बात ह झूट होवथे के बड़े आदमी के बड़े ठोटका। चुनई के होवत ले छोटे-बड़े, उच-नीच के खचका डबरा सबो बरोबर होगे हाबे। अउ चुनई आयोग के सेती सबो नेता मन देख ताक के परचार करथे। चुनई म कतका रूपिया बरोना हे तेहू ल आयोग ह बताए हे तेन पाय के अब ये बड़का नेता मन के ठोटका ह तको सटगे हाबे। का मजदूर का बनिहार सबो के घर जाके पेज-पसिया पियत हाबे। काकरो घर जाए के आगू नेता मन थोरको नइ बिचार करत हे कि कोन जात-धरम के मनखे के घर जावत हाबन, ओकर घर के चऊर-दार कइसन चूरे-पके होही। नेता मन जावत हे अउ मांग के चार कांवरा खावत हे। चांदी के थारी के म सोन के सीथा खवइया मन अब गरीब के पसिया पीके का बताना चाहत हे तेन तो अब सबो कोनो जान डरे हाबे। गरीब बर मया-पीरा होतिस अउ सिरतोन म गरीबहा समाज के बड़वार बर बुता करे के मंसा होतिस तब आज अतेक बच्छर बाद तको हमर देश के दशा अउ दिशा आज जस के तस नइ रितिस। चुनई परब म जतका रूपिया उरकाथे, ए रूपिया काहां ले आथे येला सबोच ह जान डरे हाबे।
अब रूपिया के बात अइगे हाबे त इहू बात कोति बिचार करे बर परही कि आज देश के जेन-जेन बड़का राजनीतिक दल हे ओही मन सबले जादा रूपिया सिरवाथे। ओकर पार्टी म करोड़ों का अरबों रूपिया जमा होही। आखिर ये रूपिया ल पार्टी वाला मन कहा ले बटोरथे। पार्टी म अतेक कोस के काबर जरवत परथे। अऊ सबले बड़े दुर्भाग के बात ये आए कि दल वाले मन के बटोरे रूपिया ल कोनो जनहित म नइ लगाए जाए। नेता मन अपन पार्टी के निज काम अउ चुनई लड़े बर सकेले रिथे। कुल मिलाके केहे जाए तव राजनीति घलोक अब व्यवसाय होगे हाबे। अउ बैयपारी मन पइसा ले पइसा बनाना जानथे। आज चुनई म पांच लाख गवावथे तव चुनई जीते के बाद पांच के पचास होके रिही। सब पइसा अउ सत्ता के खेल हे तबे तो सरी करम करे जावत हाबे। बड़े नेता मन के सिखान ल अब छोटे मन सिखत हाबे। काबर की इहां तो राजनीति म तको एक परिवारवाद अउ विचाराधारा ह पार्टी म मिंझरे हाबे। एकर ले कोनो अलग होय के कोसिस नी करे अउ न कबू अलग होय। सबो बड़का नेता चाहथे कि ओकर बनाए राजसत्ता के सुख ओकरे कुल-कुटुम भोगते राहे। आधा तो इही परिवारवाद वाला मन के सेती पार्टी के परमुख बुता माने जनसेवा ह कुलुप हो जथे अउ पार्टी सेवा के भावना जादा उमियाए रिथे। काबर कि आगू चलके सबे ल चुनई म टिकट चाही। जेन नेता मन आज पार्टी के टिकिट पाके चुनई म अपन भाग अजमावत हे वोमन पार्टी के बड़ लगन ले सेवा करे हे तेकरे फल आए। लेदे टिकट पाथे नाम पाथे तव सत्ता पाए बर जोर अजमाइस होनेच हे। ये सब तो अब राजनीति के अमेट लेख होगे हाबे। इही पाए के जगा-जगा के मंदिर देवाला म पूजा-पाठ, हुमन-धूपन, मांदी-मेला सब चलत हाबे, अउ सनातन चलते रइही तइसे लागथे।

मंगनी जचनी

मंगनी जचनी
बाढ़हे-बाढ़हे नोनी बाबू, होगे पारा भर म देखनी।
पुस सिरागे मांग ह आगे, कब होही मंगनी जचनी।

काम बुता म चटपट-चटपट, गोठ बात बर हे चटरी।
चाल चलन म गउ बरोबर, रंग रूप म हे सोनपुतरी।।
संसो म परगे दाई-ददा, सगा अगोरय नोनी ठगनी।
कब होही मंगनी जचनी...

गांव म नइये कोनो कुंवारी, संगी सहेली के होगे पठौनी।
काकर संग करवं हांसी ठिठोली, जवानी परय जुझउनी।।
बिहाव के हरदी कोरा छोड़ाही, छुट जही बहिनी अघनी।
कब होही मंगनी जचनी....
 
नता गोतर म बात बगरगे, चिज-बस ल देख के सगा उतरगे।
जग म धनलोभिया सचरगे, एकरे सेती गरीबिन बेटी छुटगे।।
दुलौरिन बर गठरी जोरवं, खाके बासी नून चटनी।
कब होही मंगनी जचनी.....
बाढ़हे-बाढ़हे नोनी बाबू, होगे पारा भर म देखनी।
पुस सिरागे मांग ह आगे, कब होही मंगनी जचनी।


छेरछेरा

  माई कोठी के छबना अब हेर डरा।
आगे अन्नदान के महापरब छेरछेरा।।

मेहनत मोल्हा दान अमोल,
दिये हे देवता गठरी खोल।
मगई अउ देवई दूनो धरम,
पुस पुन्नी के गजब मरम।
गरीबहा बड़हर उमियाए पुरा।
आगे अन्नदान के महापरब छेरछेरा।।
        घर के मुहांटी खड़े गौटनिन,
        धर के सुपा-चरिहा भर धान।
        ठोमहा-खोचि सबो ह पावय,
        काकरो म नइये जिछुट्टई पीरा।
        मुठा-मुठा म नइ गवांवय हीरा।
        आगे अन्नदान के महापरब छेरछेरा।।
झोके बिगर टरय नही,
दान बर घलो घेखराही।
धरमिन थोरको चिचियाए नही,
परब बर माई कोठी उरकाही।
छेरछेरा के गीत गुंजय आरा पारा।
छेरिक छेरा छेर मड़ई के दिन छेरछेरा।
आगे अन्नदान के महापरब छेरछेरा।।
jayant sahu-9826753304
सबो संगवारी मन ला छेरछेरा के बधाई.......................................

अंधरौटी

पूस के अंजोरी रात रिहिसे। तेन पाय के रात के घलोक बियारा ले बेलन अउ दउरी के आरो मिलत रिहिस। अरा ररा.... होर होर, हररे हररे। अदरा बराड़ी मन खदबीद-खदबीद पैर म रेंगत हावे। बइला मन बने ओरी-ओरी सियनहा के आरो म धान छरत हे। बराड़ी बछवा होय चाहे सगियान बइला, पैर म रंेगे ले काम। बने रेंगे ले चारेच भांवर म पैर हा कोड़ियाक लइक हो जथे। किसान मन पाई पिल्ला मिल के कोड़ा देथे ताहन फेर पैर म दउरी रेंगे लगथे। पूस के अंजोरी म बेरा-कुबेरा के संसो नी राहय,चारो मुड़ा अंजोर बगरे रिथे। चार महीना ले खेती म पछीना गारे हे तेकर सोन झराये अउ सकेले के सुख म सबो जांगर के पिरा बिसर जथे।
पंदरा दिन म छोटे अउ मंझोल किसान मन के मिंजई के बूता उरक जथे। फेर बड़का किसान के मिंजई हा छेरछेरा के आवत ले पूरथे। कहां चार अक्कड़ के जोतनदार अऊ कहां चालिस अक्कड़ के जोतनदार। दाउ के किसानी बनिहार भरोसा ताय। पूरन गौटिया हा ठउका इही दिन ल अगोरथे कि कब छोटे किसान मन के बूता उरके अउ मोर बाड़ा म आके भूति करय। चार सौ अक्कड़ के जोतनदार पूरन गौटिया के बाड़ा म चार गांव के भूतिहार बूता मन मिंजई के काम ल उरकाथे।
पुरखा पाहरो ले अइसने चले आवत हे। छोटे किसान आगू मिंजे तेकर पाछू गौटिया के बाड़ा म बनि कमाय बर जावे। अब गौटिया घर के सियानी पूरन गौटिया के हाथ हे। पूरन गौटिया पढ़े-लिखे अउ दान धरम वाला मनखे आए। बनिहार ल कभू बनिहार नइ जाने। कमईया मन के गजब गुन-गान करय।
पूरन गौटिया सबो भूतिहार मन के पिये खाय के जोरा करथे अउ रात दिन काम ल कराथे। गौटिया के चाल-चलन अउ बेवहार के सेती एको बनिहार मन आतर नी करत रिहिसे। चार गांव के भूतिहार मन के रोजी-पानी के सरोखा करे बर चार झीन दरोगा तको लगे रहाय।
आन साल ले ये दरी बनिहार मन ल आये म बड़ देरी होगे। आहे तेनो मन कमाय बर ना नूकून करे बर लगगे। आजे-आज काले-काल देखत-देखत पंदराही होगे। तब एक दिन पूरन गौटिया ह अपन चारों गांव के दरोगा मन ल बला के किथे- दरोगा ए पइत बनिहार कमती आए हे, का बात होगे। दरोगा किथे- बात कांही नी होय हे गौटिया, भूतिहार मन मोटागे हावे। एक रूपिया किलो के चाऊर अउ फोकट के नून। अपने खेती के सरेखा नी करे सकत हावे। पर बनि का करे सकही। बियारी के संसो नइये, पेट पोसत हे सरकार, खात-पियत जांगर गरूवागे, कोड़िहा होगे हे बनिहार।
दरोगा के गोठ सुन के गौटिया ल अचंभो होगे। गौटिया चिन्ता म परके मने मन गुने लगगे। दरोगा गौटिया ल फिकर करत देख के किथे- तूमन संसो झीन करो गौटिया। इहां बनिहार नी आवत ते झन आवे हमन आन राज के बनिहार लानबो अउ काम ल फत परबो। गौटिया किथे- मोला मोर काम के संसो नइये दरोगा। मोला तो ये बनिहार मन के जिनगी के संसो हे। बनिहार मन अलाल अउ सुखियार हो जही तव दुनिया कइये चलही। मोर काम के फिकर नइये, काम करे बर तो कोनो कोत के बनिहार ल लान लेबो फेर चिन्ता मोर गवई-गांव के बनिहार मन के हावे। पर के आसरा म जिनगी जियई ह ओमन ल माहंगी परही। अपन काम बूता छोड़ना बने बात नोहे दरोगा, चलो तो गांव के बनिहार मन ल समझाबे। दरोगा मन तको किथे सिरतोन काहत हव गौटिया। चलव तूहर केहे ले उंकर चेत आही ते आ जही। गौटिया अउ चारों दरोगा गवई-गांव के बनिहार मन ले गोठबात करे बर गांव गीस।
सबले आगू गौटिया अपन जून्ना गांव चौरेंगा पहुंचिस। सबो मनखे गांवे म राहय। कोनो दुकान म ठाड़हे, कोनो तरिया पार म त कतकोन चवंरा म खड़खड़िया खेलत राहय। गौटिया ल देख के जेन मन पालगी करे बर ओरियाए तेने मन दूरिहाच ले गौटिया ला जोहर भेट अउ राम राम करे। अइसे बेवहार होइस जानो मानो गौटिया ह दरोगा के सगा आए अऊ ऊंकर बर कोनो अनचिनहार। बदले बेवहार ल देख के गौटिया दरोगा कोत ल देख के किथे- सिरतोन कहे दरोगा गवई-गांव के बनिहार मन सिरतोने म बदलगे हाबे। ये मन कोड़िहा होय के संगे-संग अपन संस्कार ल तको भुलागे हावय। गौटिया ह कोनो बनिहार ले कुछू नी बोलिस अउ उहा ले निकलगे।
चौरेंगा ले सोज निकलगे खारे-खार किरंदुल। किरंदुल के मोड़च म पहुंचे पाय राहय के ओति ले एक फटफटी म चार सवारी लड़बीड़-लड़बीड़ आवत राहय। गौटिया के तिर ले झपावत-झपावत भुलकिस। दरोगा ह देख के... देख के... देख के चला काहते हे। थोकन आगू म जाके चारों के चारों नरवा म झपागे। दरोगा मन जाके धरा पछरा उचइस। नंगत के मंद पिये राहय। दूरिहाच ले दारू-दारू माहत राहय। दरोगा मन चिंगी-चांगा उठाके बइठारिस। भुइया म पांव नी माड़त रिहिसे। लथरे परे।
गौटिया हा दरोगा ल पुछथे- ये मन ल चिनहत का दरोगा?
दरोगा किथे- हहो गौटिया ये मन किरंदुल के बनिहार कचरू, भगेला, पतालू अउ जनक के टूरा मन ताय।
गौटिया किथे- बनिहार के टूरा मन नवा फटफटी म दरोगा? दरोगा- हव। इहीच मन भर फटफटी वाला नहीं, सरी गांव के मन फटफटी वाला होगे हे।
गौटिया- अइसन कइसे होगे दरोगा, काही हंडा-उंडा तो नी पाये हे।
दरोगा- खेत ल बरोय हे चंडाल मन।
अतका बात ल सुन के गौटिया के मन अऊ उदास होगे, दरोगा ल किथे- चलव दरोगा अब गांव लहुटबो। ये मन तो हमर ले बड़का गौटिया होगे हे। घरे म जाके कुछू गुंताड़ा लगाबो।
चारों दरोगा के संग गौटिया ह उही मेर ले लहुटगे। अब गौटिया ह दरोगा मन के कहे मुताबिक आन राज के बनिहार लान के मिंजई-खुटई के काम ल उरकइस। सबो धान ल कोठी म छाब के धर दिस अउ अपन लोग-लइका सुद्धा परदेस चल दिस। गौटिया कहू जाय कहू आय कोनो ल फरक नी परिस। काबर की सबे के बियारी सरकारी चाऊर ले होवत हे। गौटिया ह परदेस का गिस अपन खेत-खार गांव कोति हिरक के नइ देखिस। चार सौ अक्कड़ दू फसली खेती ल छोड़ के गौटिया हा परदेस म सुख ले नइ हे फेर का करय बनिहार मन के सेती जाय बर परगे। दरोगा मन सोचिन हो सकथे गौटिया हा अभी रिस म गे हाबे। दिन म फेर आ जही। जोहत-जोहत जोजन परगे। गौटिया किसानी के दिन म तको नी अइस।
चारों गांव के दरोगा मन कर गौटिया के संदेसा अइस- ''दरोगा मन ल मोर जय जोहर अउ आसिरवाद, मै इहां बने-बने हाबवं। गांव के देबी-देवता के असिस ले तहू मन बनेच बने होहू। मै अपन खेती-खार घर दुवार ल तूहरे मारफत छोड़ के परदेस आय हवं। घर ल बने जतन के राखहू अउ दाई-ददा के फोटू म रोज दीया ल बरहू। कोठी म मुसवा झीन झपाया, बने तोप ढांक के राखे रहू। दरोगा तुहर ले एके ठिन अरजी हावय मोर आय बिगर खेत म एको बीजा अन झन बोहू। न धान, न गहू, न ओनहारी। साग-भाजी लगाय के तो नामे झीन लेहू। मोर धनहा ल पटपर भांठा होवन दव। मोर अतकेच कहना हे। आगू के सोर खबर ल आके सुनाहूं, राम राम।ÓÓ अतका बात ल गौटिया ह पाती म लिखे चारों गांव के दरोगा मन ल पठोय राहय।
गौटिया के कहे मुताबिक चारों गांव के दरोगा मन ओकर खेत म एको बीजा नइ बोइस। चर-चर गांव के खेती भर्री भांठा होगे। अब जेन कुआं बोरिंग तरिया आठो काल लबालब राहे तेन मन चार महीना म सुक्खा परगे। गांव के मन संसो म परगे। एक रूपिया के चाऊर अउ फोकट के नून के परसादे थोरे जिनगी चलथे। जेवन तिपोय पर आगी पानी लागथे। चार कावंरा लिले बर साग-भाजी तको होना। गौटिया के जेन बारी ले सबो के साग-भाजी चले तेन गौटिया बारी तो पटपर भांठा होगे हे। बाहिर-बाहिर ले साग-भाजी आवथे। एक रूपिया के चाऊर बर दू कोरी के साग बिसावथे। पांच कोरी के तेल म साग भुंजत हे। काबर की बिगर तेल के साग तको तो नी मिठावत हे, मुहंू चिकनागे हाबे। पानी बर आधा कोस रेंग के जावत हे।
दिनों-दिन गांव वाला मन के दिन दुबर होय लगगे। सियान मन संसो म बुड़गे। कोनो चीज ल बरो के काहीं बिसा लेतिस, ऊहू तो नइ हे। खेती तो पहिलीच ले बेचागे हाबे। खड़खड़ी फटफटी ल कोन लिही। उज्जट घर ल बेंचही त रिही कामा। सबो ल काम बूता के संसो होगे। कोनो सहर जाथे त कोनो आन राज म काम खोजे बर जाथे। फेर जाय के पहिली सबो झीन दरोगा के दुवारी जा जाके गौटिया के सोर संदेसा लेवेे। कब आही, कब आही किके दिन गनऊल होगे।
अब ओखरो मन के आंखी के अंधरौटी म बगबग ले अंजोर होगे राहय। चारो गांव के बनिहार मन गुने लागे। हमरे करनी के सेती गौटिया हा उदास होके परदेस गे हाबे। आन के तान होगे। अबतो हमु मन सुखी होगेन सोचत रेहेन, फेर ये बात ल भुलागे रेहेन के पर के आंखी के सुख हा रतिहच भर रहिथे। पहट होथे सुख ह लिला जथे। हमी मन अपन जांगर म कीरा पार के ये दिन लाने हन। एक रूपिया के चाऊर के लोभ म परके आज सरी जिनीस ल बिसा-बिसा के खावत हन।
गवई-गांव के हाल ल देख के दरोगा ह गौटिया ल पाती पठोइस- ''गौटिया अउ गउटनीन दाई ल दरोगा के परनाम। हमर हालचाल तो आप मन जानतेच हव। तुहरे परसादे हांसी खुशी ले हाबन। तुमन तो चिट्ठी पाती बर मना करे रेहेव फेर ए कोति के हालत ल देख के बरजोरी करत हवं। चारों मुड़ा तूहर जाय के चिन्ता छाय हे अउ आय के फिकर हे। बनिहार मन के मालिक बने के सपना हा महंगाई अंगरा म लेसागे हाबे। आगू बनिहारे रिहिस अब तो कंगला होगे हे। नान-नान बात म तको हड़िया कुड़ेरा बेचे के दिन आगे हे। दारू बर धोवा चाऊर नी बाचत हे। घर के लजवंतिन ह चेंदरा ल पहिने गिंजरत हे गौटिया। आखरी आस तोरे लगाय हे कि गौटिया आही तभे हमर ये दुख के दिन बिसरही। रोज तोर आये के सोर संदेसा लेवत हे गवई-गांव के मनखे मन। जेन मन इज्जत ले अपन खेत म काम बूता करे तेन मन आज पर घर के झुठा-काठ धोय-मांजे पर चेरिया बने हे। घर के डउका लइका के गारी नइ सुने हे तेन मन गली-गली ठोसरा सुनत हे। आ जाव गौटिया अब गांव के सुख ल फेर लान दव। ऐ पाती म अतकेच कन, तुहर दरोगा।ÓÓ
दरोगा के लिखे पाती ल पढ़ के गौटिया के मन रो परिस। अउ गांव वाला मन के फछतावा के आंसु हा गौटिया के आंखी ले तको टपकगे। उही घड़ी अपन सुवारी दूनों जोरिस जंगारिस अउ गांव लहुटगे। गांव आके गौटिया अपन घरों म नइ निंगे रिहिस अउ गवई-गांव वाला मन के रेला लगगे। अपन-अपन ले छिमा मागे- हमन तो अनबुद्धि आन गौटिया तिही हमर सियान आस हमन ला छिमा करदे। हमर ये कोड़िहा जांगर ल फेर बनि भूति मा लगा। तूमन गांव का छोड़ेवं हमर तो सरी जिनीस बेचागे। गौटिया हा गवई-गांव वाला मन ल समझवत किहिस- महू ह तूहर ले दूरिहा के सुख नइ पायेवं। मै तो अपन खेती खार के दूरदसा बिगाड़े फैसला छाती म पथरा मड़ाके करे रेहेवं। आज बड़ खुसी होवथे तुमन ल फेर एके जगा जुरियाए देखके।
संसो झन करा फेर हमर दिन लहुटही। मै तुमन ल बनिहारे नइ मानवं तुमन तो धरती सिंगार आव। तुहरे मेहनत ले ये धरती ह सरग लागथे। मै सरकार कोती ले मिलइया एक रूपिया के चाऊर फोकट के नून के दुसमन नइ हवं, मै तो अलाली अउ फोकटइहा उदाली के दुसमन रहेवं। अउ तुमन काम बूता करना छोड़ दे रेहेव तेकरे सेती तुहर जिनगी नरक होगे रिहिसे। गौटिया हा सबो के मुड़ म फेर हाथ राखिस अउ दरोगा ल किथे- दरोगा जा तो नांगर ल निकाल आज ले फेर हमर भांठा म सुख के सोना बोये बर जाना हे। गौटिया के आरो पाके दरोगा संग सबे गांववाला मन अपन-अपन नांगर बखर ल फेर खेत म लेगिन अउ हांसी खुसी काम बुता म लगे।