मंगनी जचनी

मंगनी जचनी
बाढ़हे-बाढ़हे नोनी बाबू, होगे पारा भर म देखनी।
पुस सिरागे मांग ह आगे, कब होही मंगनी जचनी।

काम बुता म चटपट-चटपट, गोठ बात बर हे चटरी।
चाल चलन म गउ बरोबर, रंग रूप म हे सोनपुतरी।।
संसो म परगे दाई-ददा, सगा अगोरय नोनी ठगनी।
कब होही मंगनी जचनी...

गांव म नइये कोनो कुंवारी, संगी सहेली के होगे पठौनी।
काकर संग करवं हांसी ठिठोली, जवानी परय जुझउनी।।
बिहाव के हरदी कोरा छोड़ाही, छुट जही बहिनी अघनी।
कब होही मंगनी जचनी....
 
नता गोतर म बात बगरगे, चिज-बस ल देख के सगा उतरगे।
जग म धनलोभिया सचरगे, एकरे सेती गरीबिन बेटी छुटगे।।
दुलौरिन बर गठरी जोरवं, खाके बासी नून चटनी।
कब होही मंगनी जचनी.....
बाढ़हे-बाढ़हे नोनी बाबू, होगे पारा भर म देखनी।
पुस सिरागे मांग ह आगे, कब होही मंगनी जचनी।