टेक्स के बदला बीमारी !

 का गांव का सहर सबो कोति पिवरी के कहर ले लोगन थर्राय हाबे। जानकार मन के मुताबिक पिवरी(पीलिया)ह खराब खाना अउ पानी ले होथे। अबही जेन कोति ले पिवरी सचरे के जादा आरो मिलत हे वोहे बड़का-बड़का सहर के कालोनी अउ बस्ती। ये उही पारा बस्ती आए जिहा के लोगन मन राजधानी के निगम के पानी ले अपन निसतारी करथे। इहां के लोगन मन हरके बछर सरकार ल निसतारी के मोल तको चुकोथे माने सरकार ल जल-मल कर देथे। अब प्रसासन के ये कहना कि लोगन मन जतर-कतर खावत पियत रिथे तेन पाए के पिवरी होय हाबे, अइसन कहइया मन ल सोचना चाही के वो बपरा मन कहां के पानी ले निसतारी करत हाबे। निगम के पानी ल सरी जनता बऊरत हाबे। अउ घर के आगू-पाछू ले बोहइया नाली के सफई के जुमेदारी तको निगम हे हावय। आखिर कोन बात के टेक्स लेथे सरकार?
जानकार मन के मुताबिक पिवरी ह खराब खान-पान ले सचरइया रोग आए। येकर जानबा मानुख ल 15-20 दिन म होथे। भूख नइ लागे, भात-बासी म रूवाप नइ राहय। उल्टी, मुड़ पीरा, कमजोरी आ जथे। कोथा-कोथा पीराथे अउ आंखी के संगे-संग देह ह पिवरा दिखथे। पिवरी के जानबा होय के बाद तुरते अस्पताल म इलाज कराना चाही। कतकोन मन गांवखरा दवई तको करथे।
गांवखरा दवई के उपर लोगन के विसवास ये पाए के हाबे कि आगू के समे म डाक्टर नइ रेहे ले इही गांवखरा दवई खाए ले पिवरी उड़ा जावत रिहिस। गांवखरा दवई बने काट नइ करे अइसे बात नइहे, बात समे के हाबे। अब जगा-जगा अस्पताल हे। गरीब मन बर खैराती अउ रूपिया वाला मन के परावेट अस्पताल। गांवखरा दवई के जानकार मन सिरागे हाबे अऊ लूट-खरोट वाला मन दुकान खोले बइठे हाबे। जीव बचाय बर तो सरी उदिम होथे, रोग लगे हाबे तव काट तो खोजे बर परही। फेर सियानी इही किथे रोग के कारन ल आगू काटे जाए।
जीलेवा पिवरी के सचरई ल देख के अब डाक्टरो मन काहत हावय कि खान-पान म बने जिकर करके धियान धरव। बात सिरतोन तको हे काबर कि जिनगी अमोल हे अउ हमर जीव बर हमी ल संसो करे बर परही। अब प्रसासन-सासन के गतर ल देखत इही सोला बात आए कि साव चेत करे ले ही देह बने रिही।
मंत्री-संत्री मन जेन कोति ले पिवरी के आरो पाथे तेने कोति राजनीति के रोटी सेके बर मसक देथे। होना जाना कुछू नही बड़े-बड़े भासन देके आ जथे। एक दूसर के मुड़ी म दोस ल थोपत रिथे। बिमरहा मन दुख भोगत अस्पताल म परे हाबे। घरवाला मन संसो फिकर म झुंझवाए रिथे। अऊ ये कोति अफसर, नेता सेखियावत जांच ऊपर जांच, धरना परदसन अउ कार्यवाही करे के ढोंग सुरू कर देथे।
सोचे के बात आय कि जेकर बुता हे सबर दिन पानी अउ नाली के जांच करे के वोमन अब जांचत हाबे। बीमारी सचरे के आगू कहां गे रिहिस हाबे। बीमारी सचरे के बाद सिविर लगा के जगा-जगा पानी के जांच के करना, लोगन मन के डाक्टरी जांच करवाना। पियास लागे के बाद कुआं कोड़ई ह पढ़े-लिखे अउ जुमेदार मनखे मन के काम नोहे। प्रसासन करा सबो सुविधा हाबे रोज पानी के जांच कर सकत हे, नाली के सफाई कर सकत हे अउ सबले बड़े बात उही मन काहत हे कि खराब खाना नइ खाना चाही तव जगा-जगा म खुले खाए-पिये के जिनिस के दुकान के जांच होना चाही। साल भर के टेक्स झोके हव तो साल भर ये बुता काबर नी होवे। जागरूक जनता ह समय म सरकार ल टेक्स चुहाय हाबे। तव का पिवरी ले मरइया जनता ल सरकार कोति ले ये बीमारी इनाम समझे जाए, आखिर जनता के मउत के जुमेदार कोन हे?
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01 anjore

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