पढ़े-लिखे अड़हा ले बने गांव के गड़हा


छत्तीसगढ़ ल तीज-तिहार के गढ़ केहे जाथे ये बात कहा-सुनी वाला नोहे बल्कि आंखन देखी आए। आज कतको कलमकार मन एक ले सेक छत्तीसगढ़ के महिमा लिखत रिथे बिगर कोनो ठोस परमान के। सिरिफ सुने-सुनाये बात ल लिख के ओला किताब तको छपा देथे। रिस तब लागथे जब गांव के कोनो सियान ह असल मरम ल बताथे तव ओला परमानित करे बर केहे जाथे। केहे तो ए जाथे के असल ल परमान के जरूरत नइ परय फेर अब जरूरत परत हाबे काबर के हमर तीज तिहार अउ संस्कृति के बारे म अतेक अकन लंद-फंद चलागन सुरू होगे हाबे जेला देख के हमी ल भोरहा हो जाथे के हम कोन राज म आगे हाबन। 
गांव के होय या साहर के, पढ़हंता मन कोनो परब ल मनाये के आगू ओकर विधी-विधान ल जाने बर ऐती-ओती के किताब ल पढ़थे। जबकि ओला अपन घर के सियान ले पुछना चाही के फलाना तिहार ल काबर मनाये जाथे अउ कइसे मनाये के परंपरा हाबे। कोनो ह अपन घर के सियान ल नइ पुछके लंद-फंद किताब ल पढ़ के ओला अपन संस्कृति मान लेथे अउ अपन परवार म तको उही चलागन सुरू कर देथे। अब तो अइसे जानबा होथे के कोनोच तिहार ह आरूग नइ बाचे हावय। सबो म खधवन मिंझरगे। कतको के नावे मिटागे हावय, बांचे हे तेन ह समझ म नइ आवे के ए कोन राज के परब आए। 
पहिली तो बाहरी लोगन मन हमर संस्कृति ल नकार दीस अउ हमरे घर म रहीके हमी मनला अपन रंग म रंगे के उदीम करीस। फेर जब-जब ओमन ल हमर से कोनो फायदा होवइया रिथे तब अपनो मन हमर रंग म रंगे के देखावा करथे। देखावा तो आए, ओमन हमर संस्कृति अउ परब ले सिरिफ अपन रोजी-रोटी चलाथे। हमर धरम अउ विस्वास के आड़ म अपन दुकान चलाथे। 
ये बात सऊहत देखे बर मिलत हाबे रायपुर के गोल बजार म। छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार ले जुरे सबो जिनिस ल आगू गवई-गांव के लोगन मन जाके बेचय ओकर मरम बतावे के का-का विधी ले येकर उपयोग करना हाबे। अब गांव-गवई के पसरा वाले मन के ठऊर म आन-आन मनके दुकान सजे हाबे। ओमन समाने भर ल जानथे अउ ओकर मरम पुछे म आन-तान बताथे। कतको मन तो अपने मुताबिक जिनिस ल तको धरा देथे अऊ हमरे सहिक कतकोन अड़हा मन बिसा घलो लेथन। बिसाये के बाद ओकरे सो पुछथन के येकर कइसे उपयोग करना हाबे। नइ जाने तभो ले कुछु भी आन-तान बताथे काबर के ओला तो अपन समान बेचना हाबे।
दोस बजार के नोहे, हमरे म सरी दोस भरे हाबे। कोनो ल अपन संस्कृति के बारे म बता नइ सकन। हमर से कोनो पुछते तव हमू मन किताब खोजथन। जबकि हमला मालूम हावय के हमर संस्कृति ह अलिखित हाबे। अपन घर के सियान ले जानकारी लेना छोड़के पर के सुने-सुनाए ल बताना ह जादा गर पउला होवथाबे। हमला अपन संस्कृति अउ रीति-रिवाज ल जानना घातेच जरूरी हाबे तभे हमर अस्तित्व बाचही। एकर बर सबले आगू तो किताब ल पढ़के हूमन-धूपन के काम ल बंद करे बर परही। किताबे पढ़इया मनके सेती तो हमर तिहार-बार के नाम बिगड़े हाबे। हरेली, कमरछट, सकट, पोरा, तीजा, दसराहा, सुरहुति, गोबरधन पूजा, मातर, होरी जइसन हमर छत्तीसगढ़ के परमुख तिहार के नाम आरूग नइ बाचिस तव रीत-रिवाज के का गोठ करबोन। 

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