किसान ल भगवान भरोसा छोड़के उद्योगपति, बयपारी के तिमारदारी म सासन

बिपदा म चिनहाथे अपन अऊ बिरान

जीव ह तो सबो मनखे के एके समान हवय, फेर जब देह ले छुटथे न तब छोटे आदमी के छोटे अऊ बड़े हो जथे। उद्योगपति अउ बयपारी के मउत म सासन-प्रसासन सोक मनाथे। अऊ कहू कोनो किसान मरथे तव ऊंकर टोटा के एक बला उतरथे। अब ये बात अऊ उजागर होगे के किसान के नीति पूरा-पूरा किसान विरोधी हवय। एक मुड़िया ह दस मुड़िया कर बेवहार करत हाबे। विकास के नाव म छत्तीसगढ़िया मनला भरका ले निकाल के कुआं म बोजे के उदिम होवथाबे। किसान मन जब पीरा म गोहार पारथे तव मुखिया मन कान ल मुंद लेथे अऊ कहू उद्योगपति बयपारी मन छिकथे ततके म सासन-प्रसासन तिमारदारी म लग जथे।   

बीमारी रइही तभे तो बइद के जरूरत परही, गरीब रइही तभे तो गरीबी दूरिहाय के योजना बनही अऊ किसान भूख म मरही तभे तो अन्न खातिर नेता अफसर के पांव तरी गिरही। ये हाना अब असल जिनगी म परगट दिखत हाबे। किसान बनिहार के तो भुखमरी के दिन आगे। भगवान का रिसइस सरकार तको मुंह फेर लिस। बड़ सरम के बात आये के धमतरी, राजिम अउ रायपुर अंचल के किसान मनला पानी खातिर प्रदर्शन करना परत हाबे। ये वो अंचल आए जिहा जलरंग बांधा बंधाये हाबे। सरी छत्तीसगढ़ ल तरनतार करइया गंगरेल ले पानी छोड़े खातिर किसान अउ सासन के बीच तनातनि होवत हावय। जब सैकड़ो किसान मन नेता मन संग गंगरेल बांध के पानी छोड़य के मांग करत गंगरेल जावत रिहिस तव पुलिस ह किसान मनला गिरफ्तार कर लिस, मानो किसान मन देसद्रोही, अपराधी, चोर-लुटेरा होही। ठऊर-ठऊर म पुलिस बेरीकेट्स लगाके रद्दा ल छेके के उदीम करीस अउ किसान मनला गंगरेल पहंचे के पहिली छेक के जेल म ओइला दिस। प्रदेस के किसान नेता मनके मुताबिक पुलिस ह प्रदर्शन करत किसान मन ऊपर बल के प्रयोग करे हावय, देस के अन्नदाता उपर लउठी उबाये हाबे सरकार। सरकारे के इसारा म पुलिस ह किसान मनला रद्दा म छेकिन। 
किसान उपर सबले जादा जोर-जबरई अर्जुनी मोड़ म होय हाबे जिहा खुदे जिला के कलेक्टर अउ पुलिस अधीक्षक मोर्चा संभाले खड़े रिहिस। कलेक्टर अउ पुलिस अधीक्षक ह समझाय के कोसिस करिस फेर नइ माने म सैकड़ो किसान ल अर्जुनी मोड़ म गिरफ्तार कर ले गिस। 
किसान मन नासमझ नइये, उहू मन जानथे के बादर ले पानी नइ गिरना प्राकृतिक विपदा आए। हद तो तब हो जथे जब सरकार ह अपन अऊ बिरान चिनथे। किसान के कोनो समस्या होथे तव मनढेरहा काम करथे अउ उद्योगपति अउ बयपारी के कोनो अड़चन आथे तव तुरते सुते जठना ले काम के निपटारा कर देथे। 
विकास-विकास के चारों मुड़ा फुटहा नंगारा बाजत हाबे। आए दिन कोनो न कोनो उद्योगपति कारखाना खातिर आवथे। सरकार बला-बलाके कारखाना लगवावत हाबे। कइथे इहां के अर्थव्यवस्था सुधरही, सबला रोजगार मिलही। तइहा समे ल देखे जाए तव छत्तीसगढ़ म न तो बेरोजगारी रिहिस न भुखमरी। इहां के किसान अपन म मगन सुख ले जिनगी जियत रिहिस। 
अलग राज बने के बाद अचानक बेरोजगारी, गरीबी अउ भुखमरी के योजना सुरू होगे। सरी राज म एक रूपिया दू रूपिया के चाऊर बांटे के बुता सुरू होगे। फोकट बरोबर सबो कोनो झोकत गिन। फेर कोनो ये नइ किहिस के हमन किसान आन, कोनो मेर जमीन देदे खेती करे खातिर, जमीन म खेती करबोन अउ अपन पांव म खड़ा होबो। अपन मेहनत ले रोटी खाबो। 
एक रूपिया दू रूपिया किलो के चाऊर खाना हमर स्वाभिमान गिराये के उदीम आए। आन राज के मन इही बात म हमर हांसी तको उड़ावत होही अउ सोचत होही के वास्तव म उहा भयंकर गरीबी हाबे। उहां के मन जादा महंगा के चाऊर ल नइ बिसा सके तेन पाके दू रूपिया के चाऊर खाथे। जादा होगे तव दस रूपिया। 
सोचव तो का वास्तव म हमर छत्तीसगढ़ म अतेकपान गरीबी हावय के हम दू अउ दस रूपिया ले आगर के चाऊर नइ बिसा सकन? का अतेक बिकराल रत्नगरभा छत्तीसगढ़ के किसान मनके अवकात दू रूपिया के हावय? 
सदा किसान मनला छोटे आदमी अऊ बनिहार जानिस नेता अउ अफसर मन। उद्योगपति अउ बयपारी ल घर म बलाके बइठारथे, खवाथे। लेकिन किसान ल कोनो नेता के घर म घुसरे के आगू अरजी दे बर परथे। मुलाकात होही त आवेदन मांगही, आवेदन मांगिस माने तोर काम लटकगे। कमती पढ़े-लिखे किसान-बनिहार मन यहू तो नइ जाने के कोन काम म कोन ल आवेदन देना हाबे। इही बात के फइदा सबो उठावत हाबे। सरकार तको तो किसान मनके सिधवापन के फइदा उठावत हाबे। पचास ठन योजना म एक ठन योजना बनथे किसान के हित म। 
ये सिटी ओ सिटी, फलाना विहार ढेकाना विहार ये विकास होवथाबे छत्तीसगढ़ के। मुड़ी ले पागा गिरत महल खड़ा होवत हाबे। चकाचक सड़क बनत हाबे, बिगर गड्डा वाले। सोचव तो ये सब कहां बनत हाबे, किसान के खेत म। किसानी होतिस तेन माटी म कांक्रीट के जंगल लगत हावय। बड़े-बड़े रूख राई ल चक-चक काट के गमला म दूबी बोवत हाबे। ये सब खेल खेती के भुइंया म होवत हाबे। अऊ इही सबके सजा देवत हाबे आज प्रकृति ह। हरियाली दुरिहागे, बरखा रिसागे। जीव जनावर सब हलाकान हवय। 
अतका होवय के बाद घलोक नेता अउ अफसर मन छत्तीसगढ़ के विकास के सम्मान झोके बर दिल्ली दरबार जाथे। ओ नेता-अफसर मन ल कभू कोनो ये सम्मान तो देतिस के कोन विभाग ह कतका किसान मनके खेती के भुइंया ल अधिग्रहित करे हाबे। कोन विभाग ह किसान के कतका मुआवजा ल दबाए हाबे यहू म सम्मान देना चाही। 
* जयंत साहू*


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