नाचा: नचकारिन के मोंजरा अउ शेरों-शायरी

नाचा म अतेक अकन विशेषता हवय के शोध करइया मन ले पूरा युनिवर्सिटी(university)खचाखच हो जही। अबतक छत्तीसगढ़ के नाचा उपर म कोन-कोन ह पीएचडी(ph.d) करे हावय तेकर पूरा-पूरा जानकारी नइये फेर एशिया के सबले बड़का संगीत विश्वविद्यालय म (indira kala sangeet vishwavidyalaya) गजब झिन मन लोककला ले डॉक्टरेड के उपाधी पाये हावय। कतकोन के नाचा उपर शोध के काम चलते हावय। 
खड़े साज ले नाचा के शुरूआत होय रिहिसे किथे तइहा समे म। हमन तो खड़े साज के समे म पैदा नइ होय रेहेन। अब के नाचा देखथन तब जोन हमर आगू म होथे अऊ जोन हो चुके हावय तेकर कल्पना करत तुलना करन तब हमर पाहरो के हिसाब ले वोला परिवर्तन केहे जाही काबर के हम आज के स्वरूप ल देखत हाबन। सियान मनके पाहरो म का होवत रिहिस, येला उहीच मन जानही। केहे के मतलब का नंदाय हावय अऊ का-का नवा सवांगा म आए हाबे तेकर फरक ल जेन दोनो जुग ल देखे हाबय तेकर कना गोठियाये ले ही पै उघरही। इही सेती नाचा के कलाकार के जीवनी(Family life of artists), नाचा के संगीत(music), पहनावा(costume), नाचा के प्रमुख वाद्य(Instrument), नाचा के पात्र(Character) आदि के विषय म अलग-अलग शोध करे के जरूरत हवय। 
गांव कोति अभी घलोक नाचा के लोकप्रियता खतम नइ होय हावय। मंगल उच्छाह के बेला म रातभर नाचा के प्रोग्राम चलत रिथे। फेर रायपुर शहर म नाचा नहीं के बरोबर होथे। पाछु दिन शहर के रंगकर्मी निसार अली के सियानी म नाचा के कार्यशाला के आयोजन संस्कृति विभाग परिसर म राखे गे रिहिसे। शहर के आम जनता म तो ज्यादा रूची नइ दिखिस फेर खास दर्शक मनके रोजेच हुजूम लगे राहय। सबोच ह निसार अली के काम के बड़ई करिन। ओमन नाचा के सरी विधा के जानकारी लोगन ल देवाय के उदीम बेरा-बेरा म करते रिथे। कुछ दिन बाद 'रंग हबीब' के नाव ले फेर वृंदावन हॉल म नाचा देखे के अवसर मिलिस मउका रिहिसे नाचा ल देश-विदेश के कला जगत के फिलिंग म पहुंचइया हबीब तनवीर के जनम दिन के। जइसे के हम आगू गोठियाये रेहेन के दू आखर के नाचा ह डबरा अउ तरिया नहीं बल्कि विकराल सागर आए इही पाके एकक विधा उपर चर्चा करना ही ज्यादा उचित होही। आन के जुबानी गम्मत, पहनावा, संगीत उक के बारे म सुनतेच रिथन। अब हम सिरिफ नचकारिन (Dancer) अउ ऊंकर मोंजरा के विषय म गोठ करबोन।
...'अई इहां के रहइया नोहय... धमतरी तिर कुरूद ओकर गांव, तिर म बलाके दस के नोट दिस अऊ दसरू मंडल ओकर नाव।'
...'हां तो ये श्रीमान जी है रायपुर वाले श्री कार्तिक राम साहू जी, इनकी तरफ से हमारी पार्टी को पचास रूपये की सम्मान राशी मिली है हम उनका अपनी पार्टी की ओर से शुक्रियादा करते है...करते है...करते है...।'
डांसर मन शायरी बोलथे तव उंकर अंजाद गजब के होथे। ओमन ला चार-चार लाइन के गजब अकन शेर याद रिथे। ये बात अलग हे के रचना काखर आए तेन उहू मनला मालूम नइ राहय।

...'छोटे से दिल में अरमान कोई रखना,
दुनिया की भीड़ में पहचान कोई रखना, 
अच्छे नहीं लगते जब रहते हो उदास, 
अपने होठे पे सदा मुस्कान वही रखना।'
... 'तोड़ दो ना वो कसम जो खाई है,
कभी कभी याद कर लेने में क्या बुराई है,
याद आप को किये बिना रहा भी तो नहीं जाता,
दिल में जगा आपने ऐसी जो बनाई है।'
...'बड़ी हसीन थी जिन्दगी,
जब ना किसी से मोहब्बत ना किसी से नफरत थी,
जिन्दगी में एक मोड़ ऐसा आया मोहब्बत उससे हुई,
और नफरत सारी दुनिया से हो गयी।'
...'दिल का हाल बताना नहीं आता,
किसी को ऐसे तड़पाना नहीं आता,
सुनना चाहते हैं आपकी आवाज,
मगर बात करने का बहाना नहीं आता।'
डांसर मन मोंजरा लेके बाद पइसा देवइया के नाव ल अपन अंदाज म अइसे लेथे के पइसा देवइया के दिल खुस हो जथे। शेरों-शायरी के संग मोंजरा देवइया के फरमाइस तको आथे जेन ला डांसर मन पूरा करथे। 
'...मैने प्यार तुम्ही से किया है... मैने दिल भी तुम्ही को दिया है'
'...कोयल सी तेरी बोली, कू कू कू, नैन तेरे कजरारे'
'...चाँदी की दीवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया
इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन तोड़ दिया'
'...दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके
सबको हो रही है, खबर चुपके चुपके'
'...दिल में तुझे बिठाके,  कर लूँगी मैं बन्द आँखें
पूजा करूँगी तेरी,  हो के रहूँगी तेरी'
'...मैं क्या करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया
हाय, हाय बुड्ढा मिल गया
मैं गुड़िया हसीन मेरी मोरनी सी चाल है
सर में सफ़ेद उसके दादा जी सा बाल है
बिगड़ेगा हर काम मुझे बुड्ढा मिल गया
मैं क्या करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया'
हम इहा फिल्मी गीत के पंक्ति नइ लिखत हाबन बल्कि ये ह नोट के बदला म डांसर मनके मुख ले निकले गीत आए। मंच म नारी संवागा करे पुरूष कलाकार, माने नाचा के डांसर मन दर्शक मनक बीच जाके मोंजरा झोकथे। येमन मंच म एकेच झिन नइ राहय बल्कि तीन-चार झिन रिथे अउ दर्शक कोति बरोबर नजर राखे रिथे के कोनो कोति ले रूपिया देखाही ताहन टप ले दऊड़ के जाना हवय किके। एक डांसर बीच म गाना ल छोड़के मोंजरा लिये खातिर जाथे तव दूसर डांसर गीत ल पूरा करत रिथे। मोंजरा वाली के मंच म आते ही गीत रूकथे अउ ओमन मोंजरा देवइया के नाव लेके शुक्रियादा करथे। नाचा के डांसर मनला सबो प्रकार के गीत मनके जानकारी होथे जुन्ना फिल्मी गीत के संगे-संग जोन भी नवा फिलिम या ओ बखत जोन चलत रिथे तेकरो गीत ओमन ल गाए बर आथे। ओमन शायरी तको गजब के बोलथे। एक नाचा के डांसर के गाये गीत म मूल गीत ले अलगेच प्रस्तुतिकरण होथे तभो ले ओमा मीठास रिथे। शायरी म व्याकरण अउ भाषा के कमी ल आंचलिकता के खुशबू ह दूर कर देथे। अनपढ़ कलाकार मनला गीत अउ शायरी ह मुखग्र होना, फिल्मी गीत, डिस्को, भजन अउ कव्वाली के संगे-संग लोकगीत के समझ अउ गायकी के पकड़ रखना ममूली बात नोहय। दस रूपिया के सम्मान राशी देके डांसर मनले मनपदंस गीत सुनना हमर लिये साहज बात आए फेर कभू-कभू डांसर मन असहज हो जथे जब ओमन के पाला कोनो शराबी अउ उपई दर्शक ले पड़थे। तिर म बलाके आन-तान कहि देथे, अलकरहा गीत के फरमाईस कर देथे। जइसे के हिन्दी फिलिम 'खलनायक' के सुपर हिट गीत कहे जाने वाला 'चुनरी के नीचे क्या है... चोली के पीछे क्या है।' के दौर म गजब चले रिहिसे। हजारों के भीड़ म एकाते अइसन दर्शक मिलथे जोन अभद्र व्यवहार करथे। 
मोंजरा लेना अउ देना लाखों नाचा के दिवाना मनके लिये सम्मान राशी आए, ऊंकर कला के प्रोत्साहन आए। नाच के पइसा कमाना, दर्शक के थइली ले पइसा झोरना मोंजरा के उद्देश्य नइ राहय। अब बात नाचा के मोंजरा लेवई-देवई के मउका के करे जाए तव नाचा म गम्मत शुरू करे के पहिली सिरिफ डांसर मन कोति ले करे जाथे। सुघ्घर नव युवती के सिंगार करे युवक कलाकार मन नृत्य अउ गीत के अइसे अद्भुत समां बांध देथे के दर्शक बइठे ठउर ले उठे नइ सकय। इहां ये बात बताना जरूरी हावय के डांसर मन कोनो गम्मत के पात्र होथे तव ओमन मोंजरा नइ लेवय। थ्येटर कलाकार बरोबर अपन पात्र म रमे रिथे। नाचा के शुरूआते म ज्यादा चलथे मोंजरा लेवई अउ देवइ के कार्यक्रम। डांसर मन मंच म जादा समय लेवत हावय येकर मतलब ये होथे के मंच के भीतर म कोनो गम्मत के तियरी होवत हाबे। इही पाके डांसर मन मंच म दर्शक ल बांधे राखे रिथे। जइसे ही कोनो गम्मत सुरू होथे ये डांसर मन मोंजरा अउ गीत फरमाइस ल बंद कर देथे अउ रम जथे गम्मत म।
जयंत साहू, रायपुर
jayantsahu9@gmail.com
9826753304

तिहरहा खरचा ले कोठी सिहरगे

एक तिहार के सगा झरन नइ पाये के ठउका दुसर तिहार लकठा जथे। अभी भइगे ओरी-ओरी तिहारे मनई चलत हाबे। काम बुता कहुं जाए तिहार मनाना जरूरी होगे हावय काबर के परोसी मनावत हावय। तिहार मनई म तो हमर छत्तीसगढ़ अऊ सबले अउवल होगे हाबे। हरेक पाख म एक ठिन तिहार धमक जथे। आज तो खरचा के गोठ करेच बर परही भले लोगन गंगु तेली काहय। थइली भरन नइ पावे खरचा पहिलिच ले, लागथे इही सब खरचा उठाये बर सियान मन बड़े-बड़े कोठी बनाये हाबे। पाख-पाख म तिहार तभो ले लोगन म भारी उच्छाह हाबे। आन काम बर एकात कन कंझाही, काय घेरी-बेरी किके। फेर तिहार बर थोरको नइ असकटावे। ये तिहार ओ तिहार ह बपरी माईलोगिन मन ला जियानथे अऊ बपरा कोठी ल। आदमी का एक दिन के तिहार ल तको हफ्ताभर मान देथे। यहू बात वाजिब हावय के इही तिहार मन तो हमर पहिचान आए। परब ले ही लोकांचल ह अलग चिन्हारी पाथे, आन प्रदेश के आगू हमर नाक ल ऊंचा करथे। सब कना हमन अपन लोक संस्कृति अउ परंपरा के डिंग मारथन। होली ले हरेली तक कुद-कुद के खायेच बर तो शायद कोठी ल भरे रिथे जांगर टोर मेहनत करके। कृषि प्रधान अंचल म खेती ले जुरे परब मन बेरा-बेरा म आके मेहनत करइया के जांगर ल सुकून देथे अउ इही बहाना नता रिस्तेदार ले मेल-मुलाकात तको होथे। इही पाके हम तिहार मनाये के कदापि विरोध नइ करन फेर लोगन आज जोन तिहार के ओढ़र म बाजार के संस्कृति ल आत्मसात कारत हाबे ओकर विरोध करना जरूरी हावय। तइहा म हमर सियान मन तको तिहार मनात रिहिन फेर अतेक देखावा नइ रिहिसे। सादगी ले सुंदर परंपरा के निर्वाह करय। आजकल के परब-तिहार के जोश अउ उंमग सिरिफ एक दिखावा होगे हाबे। लोक परब म पूरा-पूरा बाजार के कब्जा होवथाबे इही पाके अब लोक ह विलोप होके 'बजरहा परबÓ के रूप ले डारे हवय। तीज-तिहार के गढ़ कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ के 'बजरहा परबÓ के फायदा बाजार ह उठावत हाबे। तइहा के सियान मनके तिहार जोंगे के पै आन रिहिसे। अब बैपारी मन तय करथे तिहार के मरम ला, कोन से तिहार म का करना चाही? कइसे मनाये ले देवता परसन होथे अउ कोन मुहरत म खरीदारी करना चाही। एक बैपारी ह दुकान के बिक्री ल देख के तिहार के रौनक ल बताथे के तिहार कइसे बुलकिस। बैपारी मन अपन फायदा बर लोक परंपरा के मुह ल मोड़ दिस। आज बाजार म जाके देखे जाव तव जेन मन छत्तीसगढ़िया मनके संस्कृति अउ परब के जिनिस के दुकान सजाये हाबे ओमन स्वयं आन राज के संस्कृति ल मानथे। छैमसी परब के संस्कृति ल मानने वाले मन कइसे पाख-पाख म तिहार मनइये के ढोंग करत परे के कोठी उरकावत हावय। एक घड़ी चेत करके देखव तो के हमन तो तिहार मनई म फदके हाबन तव फेर जेन आदमी मन दुकान खोले बइठे हाबे तेन मन कोने? हां ठउका चिनहे ओमन बैपारी आए। अब बैपारी के केहे मुताबिक तिहार मनाना हे या जुन्ना सियान के मुताबिक येला लोगन ल सोचना हाबे। हम कंजुसई अउ खरचा म कटौती के गोठ नइ करत हाबन काबर के छत्तीसगढ़िया मन करा तो अनधन के भंडार भरे हवय। मेहनत करइया के जांगर जिंदाबाद, बउरे ले बटलोही के पेंदी खियाथे फेर हमन तो कोठी-डोली वाले आन। सिरिफ फोकट के देखावा ले दुरिहा रहना हाबे, अपन संस्कृति अउ परंपरा ले परब मनाना हाबे बिना काकरो नकल करें।   
                        
 * जयंत साहू*
JAYANT SAHU
-DUNDA, RAIPUR CG-492015
jayantsahu9@gmail.com
9826753304