अन्नदाता के आंखी म आंसू?

छत्तीसगढ़ म किसानी के परसादे अपन जीवनयापन चलइया किसान मन के संगे-संग भूमिहिन मजदूर मनके दशा अउ दिशा म अब तक अइसन कोनो खास बदलाव नइ दिखत हाबे जेन ला देखके सरकार ल नम्बर एक सरकार केहे जाए। फेर कोन जनी कोन से आंकड़ा ल देखा के येमन राष्ट्रीय पुरस्कार पा लेथे ते? दिनों-दिन खेती के रकबा कम होवथाबे। कतको के जमीन ह सरकारी तंत्र के बलि चड़गे त कतकोन के खेती ल बयपारी मन पइसा देखा के झटक लिन। 

खेत कमतियागे, पुरखा के काबिज जमीन म अब सरकार के कबजा होगे, उपजाऊ माटी म बड़े-बड़े कारखाना खुलत हाबे, बढ़हर बर सौ योजना अउ छोटे किसान मन एक योजना के लाभ ले खातिर एड़ी खुरचत हाबे, समर्थन मूल्य अउ बोनस के तो बाते छोड़ अऊ उपराहा म फसल बीमा के ओढ़र म सोज्झे बीमा कंपनी ल फायदा पहुंचवात हाबे। किसान मनके विकास ल रोके खातिर अतेक कानून बनगे के अब अन्नदाता के आंखी ले आंसू पोछइया तको नइ मिलत हाबे। जल, जंगल, जमीन के मालिक स्वयं राज सरकार अऊ विभाग के मुक्तियारी म प्रशासनिक अफसर मनके तानाशही ले भूमिहिन गरीब किसान के जीना दुबर होवथाबे। 

काननू के जानकार मन कानून म संशोधन करत काबिज भूमि ले बेदखल करना शुरू कर दे हावय, वनोपज म पाबंदी लगत हाबे। जल, जंगल अउ जमीन ल जीवकोपार्जन बर बउरना माने अपराध, अब के समे म सरकार ले अनुमति लेबे तभेच तोर जीवन चलही। सरकारी तंत्र ह भूमि कानून के अइसे तोड़ निकाले हाबे के कारखाना अउ उद्योगपति मन बर बने नियमावली ल किसान मनला देखा के डरवा देथे। विलासिता के संसाधन ल तको जनहित के नाम देके कृषि भूमि के कबाड़ा करे म भू-माफिया ले जादा तो सरकार खखाय रिथे। 

येकर सबूत रायपुर विकास प्राधिकरण के कमल विहार योजना सउहत हवय जेन ह सौकड़ों एकड़ कृषि भूमि ल किसान मनले नंगाके जबरन एनओसी लेके बैंक ले कर्जा ले डरिस, कृषि भूमि के डायर्वसन करवा डरिस अउ विकसित प्लाट तको बेचे के शुरू होगे। अब कमल विहार म किसान मनला मिलत हाबे कूल भूमि के सिरिफ 35 प्रतिशत हिस्सा, बाकि के 75 प्रतिशत विकास म सिरागे। माने तोरे जमीन म तिही किरायेदार। सबले बड़े बात ये हावय के कमल विहार म प्रभावित किसान मन कना बकायदा जमीन के किसान पुस्तिका रिहिसे।

एक एनओसी ले भूमि के मालिक मन तीसरा पक्षकार होगे अउ रायपुर विकास प्राधिकरण प्रथम पक्षकार के रूप म जमीन के खरीदी-बिक्री करत हाबे। जबकि कानून के जानकार मनके संगे-संग न्यायालय तको रायपुर प्राधिकरण के जमीन अधिग्रहण ल गलत बताये रिहिसे। इही हाल नया राजधानी क्षेत्रवासी मनके होवथाबे। जब सवांगे कानून ल ठेंगा देखा सकथे तव गरीब किसान मनके का औकात। किसान मनके भूमि ले तो अऊ जबर समस्या कृषि उपज के बाजार भाव के हाबे। किसान के बदकिस्मती देखव ऊंकर उपज के दाम एक बयपारी तय करथे। का अन्नदाता ल अपन मेहनत ले उपजाए अन्न के किमत तय के हक नइये? मंडी म बइठे बयपारी उपज ल औने-पौने भाव लगाके मांगत किथे अतका म देना हे त दे नहीं ते जा, सरो अपन खेत म फसल ल। कोनो तो अइसन बेवस्था बनाव के हमर किसान तको अपन उपज के दाम तय करत बयपारी ल लतिया सकय।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-07-2017) को "अद्भुत अपना देश" (चर्चा अंक 2680) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं