छत्तीसगढ़ी साहित्य में कहानी अउ निबंध

छत्तीसगढ़ राज म कला, साहित्य अउ संस्कृति के अदभुत समागम देखे कर मिलथे। इहां नाव अउ जाति ह लोगन के चिन्हारी नोहय बल्कि ओकर संस्कृति अउ परंपरा ह उंकर स्वांगे चिन्हारी बने हावय। इही चिन्हारी आज साहित्य सिरजन म लगे साधक मनके लेखन के आधार बनिस। नहीं ता अतका बछर बाद कोन गम पातिस के तइहा समे म छत्तीसगढ़ के लोगन मनके दसा-दिसा, रहन-सहन, रीत-रिवाज का रिहिसे? जबकि ओ बखत तो हमर साहित्य ह लेखन म नइ आये रिहिस हावय। हां लेकिन वाचिक परंपरा ह जबर रिहिसे, हरेक परंपरा ह कोनो न कोनो कथा कंथनी ले सुरू होथे अउ नहींते गायन के रूप म ओला धरनाहा राखे के उदिम हमर सियान मन करिन।

उही तइहा के सियान के मुअखरा साहित्य के सिरजन ल आज हमर राज के साहित्यकार मन लिखित रूप करत हावय। छत्तीसगढ़ी सहित्य के सिरजन सही माइने म अलग नवा छत्तीसगढ़ राज बने के बाद नंगत घऊंरे लागे हावय। छत्तीसगढ़ राज के उदय होय के कारण तको साहित्यिक आंदोलन ल ही माने जाथे। अब इहां के साहित्य लेखन ल एकदम नावा तको नइ केहे सकन काबर के छत्तीसगढ़ी म तको गाथा युग अउ भक्तियुग के बाद आधुनिक युग के परभाव सउहत देखे बर मिलथे।
छत्तीसगढ़ी साहित्य के परमानिकता के विषय म हमर तिर एकेच ठी थाती हावय हीरालाल काव्योपाध्याय के जोन ह 1890 म प्रकाशित होय हावय। हीरालाल काव्योपाध्याय के लिखे आखर के अंजोर न सिरिफ छत्तीसगढ़ बल्कि बंगाल अउ इग्लैंड तक तको पहुंचिस। छत्तीसगढ़ के जुन्ना साहित्यकार मन तको इही दिन-बादर 1890 ल छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन के प्रारंभिक काल माने हावय। येकर पहिली के छुटपुछ आरो म साहित्यकार मनके एकमत नइये।
छत्तीसगढ़ी साहित्य के गद्य विधा माने कहानी अउ निंबध के विषय म इतिहासकार अउ जुन्ना साहित्यकार मनके कथन हावय के ओ बखत के रचना मन म अब के मानक छत्तीसगढ़ी जइसे रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव के अलावा छत्तीसगढ़ी के उपबोली जइसे खल्टाही, सरगुजिहा, लरिया, सादरी कोरवा, हल्बी, भतरी, गोंडी, भूलिया, बिंझवारी के प्रभाव दिखय। कुछेक शब्द अवधी, बघेली, बुंदेली के ह घलोक छत्तीसगढ़ी साहित्य म दिखथे।
अब के समे म देखे जाए तव भले ही मानक छत्तीसगढ़ी अउ उपबोली मनके सबो विधा म बरोबर प्रभाव नी दिखे तभो ले नवा रचनाकार मन अपन-अपन अंचल के प्रतिनिधित्व करत साहित्य के सबो विधा म जबर लेखन करत हावय। गद्य विधा ल सजोर करत कहानी लिखइया मनके नाव ल सोरियाबोन तव सबले आगू डॉ. खूबचंद बघेल, शिवशंकर शुक्ला, लखनलाल गुप्त, सुकलाल पांडेय, कपिलनाथ कश्यप, डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा, पं॰ सीताराम मिश्र, केयूर भूषण, टिकेन्द्र टिकरिहा, परदेशीराम वर्मा, नारायणलाल परमार, डॉ॰ पालेश्वर शर्मा, राम कुमार वर्मा, डॉ॰ बिहारी लाल साहू, परमानंद वर्मा, पुनुराम साहू, दादूलाल जोशी, सुशील यदु, राजेन्द्र सोनी, चेतन भारती, पंचराम सोनी, डॉ. गोरेलाल चंदेल, डुमन लाल ध्रुव, हेमनाथ यदु, सुशील भोले, डॉ. बलदेव साव, मंगत रविन्द्र, श्रीमती सुधा वर्मा, हरप्रसाद निडर, चंद्रशेखर चकोर, किसान दीवान, दुर्गाप्रसाद पारकर आदि सहित अऊ केऊ झिन के कृति हमर आगू म हावय।

तइहा के कहानी के कथानक अउ भाषा शैली कइसन रिहिस होही ये बात के गुनान करत कुछ बड़े कहानीकार मनके कहानी ल अब ओसरी पारी ओरियाके मरम ल जाने के बखत हावय। सबसे पहिली शिवशंकर शुक्ल जी के कहानी ‘फिरंतिन’ ल देखन। शिवशंकर शुक्ल जी छत्तीसगढ़ी के बड़े नाम आए, ओमन के उपन्यास ल लोगन मन छत्तीसगढ़ी के पहिली उपन्यास तको मानथे। शिवशंकर शुक्ला जी ह फिरंतिन कहानी म मोसी दाई के मया के भाव उजागर अइसन ठंग ले लिखे हावय के। एक दिन रतिहा जब फिरंतिन ल सुते छोड़के रजवा ह घर ले निकर गिस। दूसरे दिन मुंधियार फिरंतिन ह रजवा के मांची ल खाली देखते बक्क खागे। अंगना म निकर के देखिस त उहां रजवा ह नइ रहय। बिहनियां गांव म किंजर-किंजर के एक-एक झिन मनखे ल पूछिस, तभ्भो ले ओखर कोनों आरो नइच्च मिलिस। काबर करम के छंडहिन ह ओला बूता बर तियारतेंव, कहूं अइसने गोठ ल नइ चलातेंव त वो ह अपन दाई ल अधवार मा छोड़ के कभू नइ जातिस। वो ह अपने ल जी मारके बखान लेवय। कोन कुबेरा म मेंहा अपने बेटा ल बूता बर कहेंव। नइ कहितेंव त नइ जातिस कहूं। अइसन भाव लेके रचनाकार ह फिरंतिन के ओड़र म समाज म नवा संदेश देवत हावय के सबो मोसीदाई ल बेकार नइ होवय। बियाय लइका नइ राहय तभो ले पर के लइका बर पीरा ल उमड़थे।
अइसने श्यामलाल चतुर्वेदी ह अपन कहानी ‘सतवंतिन सुकवारा’ म गांव के गरीब के दसा अउ ओकर बेवहार ल बताये हावय। किथे के- चैतु हर घूमारे के मशीन के चक्का ल, अउ सुकवारा हर ओनहा ल खिलय। चिरहा फटहा के पइसा नइ लेवय सुकवारा। ओला पइसा लेहे बर जोजियावै तब कहय भगवान हर मोरे करम ल फुटहा बनाये रहिसे तइसने ओनहा मन फटहा हे। जतके ओला जोर देके खिल दैहों तब सबके देखइया भगवान ह कभ्भू न कभ्भू मोरो फटहा करम ल जोरही। नवा कुरथा के काज बटन लगाय बर अपने अबके सउत अउ पहिली के देरानी ल सिखो डारिस सुकवारा ह। अइसन रकम ले ये कहानी म गरीब ह गरीब के कइसे मदद करथे इही भाव ल बताथे। संगे-संग ये कहानी ह रायपुर अउ बिलासपुर के छत्तीसगढ़ी के फरक ल तको उजागर करत हावय।

लखनलाल गुप्त ह अपन रचना ‘सुवा हमार संगवारी’ म सुवा पोसे के केऊ ठी कारन बताव किथे के हमर छत्तीसगढ़ घलाव म सुवा के रंग-रंग के कथा कहानी सुनेबर मिलथयं इहां के सुवा गीत ल आप पढ़िहौ तो दंग रहि जाहव। उन का काम नइ करे हे। कहां-कहां संदेसा नइ पहुंचाये हे। सुवा राजा मनके संगवारी राहय अउ रानी मनके सहचर के काम करय। वो अवइया नइते दुर्भाग्य के चिन्हारी दे देत रहिन। हमर इहां के लोककथा म किसिम-किसिम के गोठ बात सुवा के मिलथय। एखरे सेती हमर छत्तीसगढ़ म सुवा हा बड़ मयारूक पक्षी के रूप म घरोघर पोसथय। जेखर घर म बाल बच्चा नइ राहय उन मन तो जरूर सुवा रखथंय। अउ ओखर से किसिक-किसिम के ठिठोली कर करके खेलथंय अउ अपन समय बीताथंव अऊ तो अऊ सुवा ल संतान कस मान लागथंय। ये भाव आए लखनलाल गुप्त जी के छत्तीसगढ़ी रचना के।
अब डॉ. पालेश्वर शर्मा के कहानी ‘तिरिया जनम झनि देय’ म नारी मनके दसा अउ दिसा के बखान करत समाज ल तको बताये के प्रयास करे हावय के हमर समाज म नारी मनके कतका सम्मान अउ आदर के भाव हावय। छत्तीसगढ़ म नारी मन कभू अपन घर-दुवार, सास-सुसर ल छोड़ा के पति संग अकेल्ला रहे के बात ल बेवहार म नइ लानय भलूक संयुक्त परिवार म सुनता ले रहे के पक्षधर होथे। जेन घर म नारी के सियानी रिथे तेन तो अऊ जबर उदाहरण आए पुरूष प्रधान समाज बर। इहां आजीविका के आधार खेती हरे अऊ एक एकेल्ला नारी तको खेती किसानी करके अपन लोग लइका पालन-पोसन कर लेथे। ये रकम ले रचनाकार ह नारी मनला समाज म सम्मान देवाय के संग आत्म विस्वासी अउ नारी परानी कइसे घर चलाथे इहू बात के जबर उदाहरण रखथे।

हर पुरखा कलमकार केयूर भूषण तो गद्य विधा के माई मुड़ी आए जोन स्वतंत्रता आंदोलन म भाग लिन अउ केऊ ठी रचना ल जेल भीतरी ल तको करिन हावय। कतको ह प्रकाशित होइस अउ कतकोन तो हस्तलिखित प्रतिलिपि के रूप मे धरनाहा रखाय हावे। उंकर रचना ‘आंसू म फिले अंचरा’ ह पढ़इया-लिखइया लइका मनके स्कूल अउ कालेज के दिन ल लिखथे के कतको हुसियार लइका काबर नइ होये, पहली साल ह उंकर लटेपटे म निभथे। बड़ चउज करथें। जुन्ना लइका मन, नवा लइका मन ल रोवा के छोड़थे। कोनों कहिथे हमला सलाम करके जा। तब कोनो कहिथे गीत गा के बता। कतको झन जुन्ना छोकरी मन तो नवा छोकरी मनके मुंह म काजर नहीं तो केरवस पोछ देथे। अइसे ठोलहीं के आंखी ले आंसू निकले के डउल हो जाथे। फेर धीरे-धीरे हुसियार छोकरा-छोकरी मन के जुत्था बने लगथे। रचनाकार के ये भाव ह नवा पीढ़ी ल शिक्षा ले अपन रद्दा चतवारे के संगे-संग जेन बिपत सुरू म आथे तेकर बरन करे हावय।
अब छत्तीसगढ़ी साहित्य के गद्य विधा म महिला मनके नाव सोरियावन तो कुछेक नाम ही आगू आथे। जेमा एक बड़े नाम हवय डॉ. सत्यभामा आडिल जेखर कहानी ‘रमिया अउ केतकी’ ह अपन पात्र मन के माध्यम ले तत्कालीन परिदृश्य ल देखाय के उदीम करत हावय। रमिया केतकी बिहाव के लइक होगे। दुनो के रूपरंग सोन जइसे जग-जग ले। उंखर भरे जोबन ल देख के सबो उखरे डाहर खिंचावत आवयं। समय अपन रंग देखइस। धान कटई, मिंजई खतम होगे, तहां ले बर बिहाव खातिर, सब कमइया किसान मन, लड़का-लड़की खोजे बर निकलगे। इहां गांव के काम बूता उरके के बाद बिहाव के गोठ कहे हावय अउ कतका सुघ्घर नोनी के सुंदरता के बखान करे हावय। आगू लिखे हावय के बछर ऊपर बछर बीतगे, रमिया घलो एक बेटा के महतारी बनगे। पिपरदेव म अंचरा के धागा चढ़ायेबर गिस। तब ले लेके आज तक कसही अउ फूंड़र गांव के संग-संग आगू पिछू के गांव के मन घलो पिपरदेव के पूजा करन लगिन। हर बछर अपन-अपन गांव के तरिया तीर म नवा रूख राई रोपत गिन। कहुं नीम, कहुं बरगद, कहुं पिपर अब तो आमा, संतरा, जाम के रूख म सबो के बारी बखरी भरगे, हरियर लागथे। रमिया अउ केतकी के कथा घर-घर सुनाके, गांव वाले मन रूख राई ल पूजन लागिस। अइसे ढंग ले रचनाकार ह अपन कहानी म प्रकृति ल पूजा के रूप म समोखे हावय के पढ़इया तको रूख राई के जतन करे के सुरू कर देथे।

अइसने रकम ले परमानंद वर्मा के कहानी के कथानक तको सीधा सरल फेर गंभीर बात करथे। कहानी ‘तोर सुरता’ एक मया के बानगी आए। वइसे तो मै गुन के खरीददार नोहवं अउ ना बाजार म खरीददारी करे बर निकले हौ? अइसे तो बजार म एकर जइसे कतको मूरत बिकथे अउ खरीददार मन खरीद के ले जाथे। फेर मै ना ये मूरत ल खरीदना चाहत हौ अउ ना घर ले जाय के इच्छा हे। मैं तो देवी के रूप म पूजा करना चाहत हवं अउ उही तो करथवं। एला मैं कोनो पाप नइ मानो। फेर मोर माने नइ माने ले का फरक पड़ना हे। कानून अउ नीतिशास्त्र के पंडित मन के अदालत म तो एला अपराध अउ पाप के दर्जा दे जाही। ओकर मन के हिसाब से तो फेर कसूरवार हौ। ककरो बहू-बेटी ऊपर गलत निगाह रखना तो पाप हे। अउ पापी बर दंड के विधान हे। तब तो अपराधी ठहरेवं। अइसन ठोस बात ल जब एक बड़े कलमकार ह लिखथे तव ओमा सिरिफ मन-चाहत भर नहीं भलूक आस्था के भाव दिखथे। वहू ल रचनाकार किथे के काकरो बहू-बेटी बर अइसन सोचना तको पाप आए। कहानी के ये भाव युवा मनला सीख के संगे-संग आरूग मया म चिभोरे के दम तको रखथे। येमा एक बात के अऊ देखे भर मिलिस, लेखन म भासा शैली अउ शब्दावली जेन निमगा रायपुरिहा छत्तीसगढ़ी म रिहिसे। 
अइसने एक झीं अऊ कहानीकार हावय मंगत रवीन्द्र। जेखर रचना म कथानक ठेठ गांव के होथे अउ पात्र मन कोनो न कोनो माध्यम ले सादा जीवन उच्च विचार के बेवहार ल जीथे। कहू-कहू तो धर्म, दर्शन के मरम ल रचनाकार अपन कृति म समोखे के सुघ्घर उदीम करथे। जइसे देखव कहानी ‘संवरा’ के ये भाव ल। हमर छत्तीसगढ़ ककरो मान करे म पाछू नइ रहे। दोना पतरी म भात ल परोस के लोटा म पानी पियाथे। छत्तीसगढ़ के मनखे, लोटा म पानी देथे। खटिया-पिड़हा म बइठार के चरनामृत ल लेथे। सुसर आइस घर म, गोड़ लगरे रात के, ढोंक ठोंक के तरिया नहवाइस एही बेटा बाप के। घमंड फुग्गा तो आय, कतका बेरा ओसकही पता नइ चले। ज्ञानीक जी मनटुटहा फिरत हे। सांप चाबे सांप के मुंह दुच्छा, आज ज्ञानी के घमंड चूर-चूर होगे।
अइसने रकम के गोठ हरप्रसाद निडर जी तको किथे के छत्तीसगढ़ हर हमर दई ये अउ छत्तीसगढ़ी ह बहिनी, फेर दूनों के मरजाद छत्तीसगढ़िया मन के पागा घलो ये। पागा ल बिना दागी के अदक धौरा रहना चाही, तभे तो मुड़ म जुगजुग ले फबही। बड़ बात तो लिखत हावंय, चाहे कसनो बनय, फेर गवाईहां छत्तीसगढ़ी ह तो असल ये। असल म नकल के गेरू झन घोंसयं, अइसना म असल छत्तीसगढ़ी नंदा जही अउ नकल म रंग चढ़ जही। ये संसो आए एक रचनाकार के जेन छत्तीसगढ़ी म होवत आनतान लेखन के विरोध करत हावय। जब हम छत्तीसगढ़ी साहित्य के बात करथन तो ओमा आरूग पर होना घातेच जरूरी हावय। देखव हरप्रसाद निडर के कहानी ‘ठड़गी’ ल जेमा ओमन कथे- रमला के बिहाव होय तीस बरिस ले आगर होगे हे, फेर ओकर लइका नइ होय हे, तेकर सेती घर-परवार, पारा-गली के मन ओला ठड़गी कथे। रमला के गोसईया रमला ल अपन जीव ले बहुते मया करथे, फेर का करै मयाराम के दई ह ओला निसदिन ठेला मारै के हमर डीह म दीया बरैया एको झन पुतरी नइये, कहां लंग के सरपदोखही ल हमन पतोहू पायेन के हमर कुल ह अंधियार होगे। ये कहानी म ठड़गी के दुख जेला ठगड़ी तको कथे के पीरा ल बताये हाबय रचनाकार ह कि कइसे-कइसे तना सुने ल परथे। संगे-संग एमा गारी बखाना के मर्यादित रूप के प्रयोग होय हाबे। कतकोन शब्द हमर अंचल म अइसने घलोक हावय जेन ल बोलचाल म भले कहि दे जाथे। फेर ओकर भाव ल बने नी माने जाये। हरप्रसाद निडर के कहानी मन म आरूग अउ ठेठ शब्द के भंडार देखे बर मिलथे। 

इही रकम ले कहानीकार किसान दीवान के रचना हर तको आंचलिक शब्दावली के कोठी रिथे। भले ओमन छोटे-छोटे कहानी गढ़थे फेर पढ़इया ल आनंद देथे। ‘टेंकहा बेंगवा’ म ओमन लिखथे के एक ठन तरिया म आनी बानी के कीरा मकोरा, मछरी जोंख अउ बेंगवा राहय। मजा मारत बिधुन होके जीयंत खात रिहिन। दुख-पीरा नांव नीही। उहंचे एक ठन बेंगचुल मूंगा कस चिकचिकी हरियर अउ ठस्सा राहय। पिला, बकेना, पठरू, बेंदरा, कुकुर, बिलई, बाघ भालू सबे जीव परानी मन नान्हेपन म घात मन मोहना होथंय। तइसने वहू राहय। घात उदबिरिस अउ टेंकहा-जिद्दी। महतारी के बरजना सुन के अऊ टेचराही देखावय। आन के तान करय। उद्दाबादी जावय। अइसन सुघ्घर कहानी के भाव ह लोगन ल प्रकृति के तिर लेगे के उदीम करथे। गांवखेरा के लोगन के मन बिलमथे अइसने कहानी मन म अउ फेर किसान दीवान के रचना मन तो कम शब्द म अपन बात ल फरी फरा कर देथे।
छत्तीसगढ़ी साहित्य के गद्य विधा म कहानी तो छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद गजब घउरे हावय जेन म लघुकथा, लोककथा, नाटक, उपन्यास अउ बियंग के रचनाकार मनके सूची गजब लंबा हावय। अभी छोट हावय तो थोकिन छत्तीसगढ़ी के निबंध लेखक मनके नावसूची ह। कुछेक साहित्यकार मन सबो विधा म लेखन करत हावय। अउ जब प्रकाशन के बेरा आथे तव सबो ल एके किताब म समोख देथे ते पाके उंकर नाव ह निबंध लेखन के मूल विधा म उल्लेखित नइ हो पावय। तइहा ले केयूर भूषण, टिकेन्द्र टिकरिहा, डॉ. गोरेलाल चंदेल, पंचराम सोनी, पुनूराम साहू, डॉ बलदेव साव आदि रचनाकार मन तो सबो गद्य विधा ल सजोर करे म अपन योगदान दे हावय। अब प्रकाशित कृति अउ सरलग सहराये के लइक बुता ल सोरियाबोन तव आज गद्य लेखन के निबंध विधा म श्रीमती सुधा वर्मा के किताब ‘परिया धरती के सिंगार’ अउ ‘तरिया के आंसू’ हमर करा हावय। ये दूनो कृति म उंकर एक से सेख निबंध पढ़े बर मिलथे। परिया धरती के सिंगार ह मानूख ल प्रकृति ले जोड़े के प्रयास करथे। ओमन किथे के मय प्रकृति म विरचन करथवं। पर्यावरण मोर मन म बहुत असर करथे। तेज आंधी म हवा के पीरा, पेड़, पौधा के दरद अउ समुद्र के हलचल के भितरी खुसरके ओला अनुभव करथवं। जब-जब ये दुख पीरा के अनुभव होथे मोर कलम चले लग जाथे। दुख-पीरा ही नहीं खुसी के अनुभव घलो होथे। उही अनुभव उही पीरा ह मोर आखर म ढलके निबंध के रूप लेथे। इही क्रम एक नवोदित लेखिका म श्रीमती किरण शर्मा के किताब ‘छत्तीसगढ़ के अंगना म बगरत चिन्हारी’ ह तको प्रकाशित कृति के रूप म हमर तिर हावय। जेमा लेखिका ह अपन अंतस के भाव ल समोखे हावय। 
निबंध लेखन के विधा म वर्तमान म सुशील भोले के कृति ‘भोले के गोले’ घलोक प्रकाशित होय हाबे। सुशील भोले वइसे तो सबो विधा म लेखन करथे फेर लोगन मन उंकर छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के गोठ ल बने पसंद करथे। भोले के रचना म छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के पीरा, साहित्यकार मनके पीरा अउ छत्तीसगढ़ी भासा बर अगाध मया दिखथे। ओमन किथे के वाजिब म छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति एक मौलिक संस्कृति आय, जेला हम सृष्टिकाल के या युग निर्धारण के हिसाब ले काहन त सतयुग के संस्कृति कहि सकथन। इहां कतकोन तिहार अउ परब हे, जे ए देश के अऊ कोनो भाग म न तो जिये जाए अउ न मनाए जाय।

इही रकम ले चंद्रशेखर चकोर के निबंध तको छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति, कला अउ कलाकार मनके दरद ल उजागर करथे। चंद्रशेखर चकोर ह नानपन ले ही लोक खेल कोति सूर लगाये ओकर संरक्षण अउ संवर्धन बर प्रयासरत रिहिन हावय। ओमन लोकखेल ले उरऊती खातिर कतकोन निबंध के रचना करे हावय जेन देश के कतकोन पत्र-पत्रिका म प्रकाशित होय हावय।  
छत्तीसगढ़ी साहित्य के गद्य विधा म एक अउ बड़े नाम हावय डुमनलाल ध्रुव। जिखर रचना स्कूल अउ कॉलेज के पाठ्यक्रम म समोखे जाथे। डुमनलाल ध्रुव के संगे-संग बीआर साहू, डॉ. जीवन यदु, विनयशरण सिंह, पाठक परदेशी, मंगत रवींद्र, अउ डॉ. मांगीलाल यादव सरीख जुन्ना छत्तीसगढ़ी लेखक मन लइका मन बर पाठ्यक्रम लिखके नवा पीढ़ी ल तको छत्तीसगढ़ी साहित्य ने जोरे के जबर उदीम करे हावय।
आज अतेक बच्छर बाद भी अब जबकि हम सब लिखे-पढ़े ल जानथन तभो ले अपने लोक साहित्य म रम नइ पावत हावन। इही पाके जादा से जादा ठोस अउ वाजिब बात के लेखन होना चाहि। साहित्य ल समाज के दरपन किथे तव ये दरपन ल घलोक साफ सुथरा राखे के उदीम वर्तमान समाज ल करे बर परही तभेच हमर लोक साहित्य के भूत, भविष्य अउ वर्तमान संरक्षित रही पाही।
नोट-: ये लेख ह अनेक बड़का साहित्यकार मनके समिलहा लिखित विचार के संकलन आए जेमा अऊ सुधार के जरूरत हावय। अलग-अलग काल म अऊ कतकोन साहित्यकार मनके नाव येमा जोड़े ल परही जानकारी मुताबिक। - जयंत साहू, डूण्डा रायपुर छत्तीसगढ़  9826753304

1 टिप्पणी:

  1. रामनाथ साहू के पांच छत्तीसगढ़ी उपन्यास -कका के घर , भुइयाँ, माटी के बरतन , जानकी अउ पखरा ले उठे आगी हे । दु कहानी संग्रह -गति मुक्ति अउ दूध पूत हे अउ दु नाटक - जागे जागे सुतिहा गो ! अउ हरदी पींयर झांगा पागा हे भाई ।
    वोकरो नांव ल तोर आलेख म जोड़ दे ।

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