जिनगी ले जिनगी जुरे हे

दुकान कोनो भी जगा राहय गिराहिक पहुची जथे। प्रचार प्रसार के जमाना हे तभे तो दिल्ली बम्बर्इ के दुकान के पता ल रइपुर के टी बी म देखाथे। पचास प्रतिशत डिस्कांउट अउ एक के संग एक फ्री स्कीम म तो मरघट के दुकान म मन माड़े भीड़ पेले परथे। चार ठन घर बसिस ताहन दुकान खुलत देरी नइ राहय। दुकान बनिस ताहन उधारी मगर्इया के आवत देरी नइ राहय। दुकानवाला घलोक कम नइये, एक के एक्कइस दाम लगाथे। बजार हाट म सही दाम म सही माल खरीदना सबाके के बस के बात नोहय। बनिया जानथे गिराहिक ल कतका बताना हे अउ कतका म बरोना हे। फेर मोल भाव करइया तो ब्रम्हा के बेटा अउ बनिया के बाप ए लेदे के भाव पटार्इच लेथे।
 इही मोल भाव के चक्कर म मै दुकान नइ जावं अउ चली देथव त ठगा के आथवं।
एक दिन आधा रात के मोर के मितान के फोन आइस किथे- मितान काकी हा अबक तबक जवर्इया हे। मे एकसर्वा मनखे कति कति काय काय करहा। मोला तो कुछू समझ नइ आवथे। तै झटकुन आ जते त कहु कोती लेगे लाने म सोहलियत हो जतिस।
मितान ह फोन करे रिहीस नही काहत घलो नइ बनिस। खभर पाके तुरते रेगेवं। मोर पहुचत ले फुलदार्इ भगवान घर रेंग दे रिहीस। मितान ह नानपन ले अपन दार्इ ल काकी काहय। बपरी फुलदार्इ ह मोला बड़ मया करे। जब जाववं तब अंगना म पहुचाववं। आजो अंगना म पहुचा गेव। फरक अतके रिहीस कि आगु काम बुता करत पहुचाववं अउ आज बांस के चइली म सुते चार हांथ तिखा ल ओड़हे हे। बोटबोटए आखी ल पोछत मितान संग ओकर काकी के आखरी दरस करेव।
 जेन फुलदार्इ के खांद म चड़ के गांव गली ल किंजरवं। उही महतारी बरोबर फुलदार्इ ल आज हमन अपन खांद म बोह के मरघट अमराबो। लेगे के फुलदार्इ के आखरी दरस करे बर पुरा गांव उमड़गे। थोरके म मितान मोर तिर म आगे किहीस चलना मितान अंतिम संस्कार के समान लाने बर जाबो। मै केहेवं सब सोधर ल छोड़ के तै कहा जाबे मितान मिही नेंग जोग के समान ल नान लेथवं। मै सोचत रेहेव दुकान गाव म होही फेर उहा तो मरघट म दुकान खुले राहय। किराना दुकान के समान ल घर पहुच सेवा सुने रेहेव फे उहा तो मरघट पहुच सुविधा रिहीस। एक तो जिनगी म कभु दुकान गे नइ रेहेव अउ जाबो करेवं त मरघट के दुकान।
 दुकानदार ह अंतिम संस्कार के समान ल दुकान म सजाए हमर दुख ले बेमतलब अपन मन पसंद गाना बजावत बइठे रिहीस। आसु ल पोछत मै दुकान डहर बड़हेव त दुकानदार के चेहरा खिलगे काबर कि ओला गिराहिक मिलगे। दुकानवाला के किस्मत घलो अजिब हे गांव म मनखे मरथे त ओकर धंधा पानी चलथे। सुत उठ के दुकानदार ह भगवान के पुजा पाठ करके बोहनी अगोरत होही। भगवान तो सबके सुनथे ओकरो सुनत होही। आज ओकर किसमत रिहीस कि फुलदार्इ के दिन पुरे रिहीस तेला भगवाने जाने। मरघट म मुर्दा जाथे त ओकर दुकान चलथे। दाना पानी तो सबो के लिखे हे। मरर्इया घर चुल्हा नइ बरय अउ दुकानवाला के बार्इ ह तेलर्इ बइठथे।
 गर्मी के महिना आय बेरा घड़ी घड़ी चड़हत रिहीस। लकर धकर समान के नाव ल बताएव। सबो समान ल निकाल के मड़ा दिस, मै भले पहिली बार समान ले बर गे रेहेव फेर ओकर तो रोज के उही काम आय। एको ठी समान के भाव नइ पुछेव। दुख के बेरा म काए भाव ताव करतेवं। सबो के एकÎा दाम पुछेव अउ पइसा देके समान धरे आगेवं। रद्दा भर दुकाने के बारे मे सोचत रेहेवं। कहु ये दुकान मरघट ल छोड़ के बिच बजार म होतिस त का होतिस।
दुकानवाला मन दुकान के दुवारी म ठाड़हे गिराहिक मन ल गोहार पारतिस- आवा... आवा... अंतिम संस्कार के समान ले लव, सस्ता ले सस्ता, छांट के लेला मोल भाव करके लेला। दस रूपिया जोड़ी कफन के कपड़ा, पांच म छै पाकिट सुंगध वाला अगरबत्ती अउ सबो समान ल मोरे दुकान म लिहा त एक घइला फोकट म। बने करे हे बपरा ह मरघट म एक बोलिया दुकान खोल के दुखी दंडी मन ल बजार के झमेला तो नइ होवे। काकरो घर कोनो बितही त ओकर समान बिकही।
 मने मन गुनत समान धरे मितान तिर गेवं त चिता रचागे रिहीस। सबो कोनो ओरी ओरी फुलदार्इ ल पानी देवत रिहीस। महु पांच मुठा पानी देवं अउ पांलगी करेव। मनखे कतको गरीबहा होवे फेर रिती रिवाज तो रिती रिवाज होथे। मितान अपन रिती रिवाज ले फुलदार्इ ल आगी दिस। सबो झन घर डहर लहुटेन। फुसुक-फुसुक रोवत मितान ल दिलासा देवत केहेव कि आना जाना तो सबो के लगे हे मितान तोर मन ल निच्च्ट अंधयारी म झन बुढ़ोबे। फुलदार्इ ह अब तोर कुटुम के देव धामी म जा मिंझरगे। उप्पर ले तोर बर सदा असिस बरसाही।
मोर एक मन तो मितान संग दुख म बुड़े रिहीस अउ दुसरर्इया मन रही रही के ओ दुकान वाला डहर जात रिहीस। ऐती फुलदार्इ के चिता के लकड़ी बरीस वोती दुकानवाली के चुल्हा गुंगवागे। मितान घर अब कोन जनी के दिन ले जेवन नइ बनय। अउ वोकर घर दार भात के हडि़या चड़गे। दुनिया के अइसन मरम ल मै पहिली बेर अनुभव करेवं। बिधाता ह सबे के सुध लेथ। कोनो ल दुख देथे त कोनो ल ओकर ले सुख देथे। सिरतोन कहवं त जिनगी ले जिनगी ला जोड़े हे बिधाता हा।

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