छत्तीसगढ़ी लोकगाथा

छत्तीसगढ़ी रेडियो वार्ता || विषय- छत्तीसगढ़ी लोकगाथा || समय- 12 मिनट
छत्तीसगढ़ के लोक जनमानस म गजब अकन लोकगाथा प्रचलित हावय। आज जतके कन लोकगाथा लिपिबद्ध होय हाबे ओकर ले केऊ आगर ह मुअखरा लोक कंठ म समाये हाबे। चूंकि लोकगाथा के कोनो एक रचनाकार नइ होवे वो तो समकालिक परिशिष्ट म स्वमेंव उध्रित होथे। लोक गाथा के सिरजन के विषय म अनेक विद्वान मन अपन-अपन अनुमान बताथे फेर  कोनो ह एकर सही परमान नइ देवय की ओकर सिरजन कब होय हाबे। लोकगाथा के कथानक मन गजब लंबा होथे अउ लोकगाथा के लंबा होय के कारण तत्कालीन परिवेश अउ लोक व्यवहार आए। जेन व्यक्ति नहीं बल्कि सकल समाज के प्रतिनिधित्व करथे। छत्तीसगढ़ अंचल के लोकगाथा मन सिरिफ मनोरंजन के काम भर नइ करे भलुक सामाजिक कुप्रथा, रीति रिवाज के बोध के संगे-संग लोक साहित्य अउ संस्कृति के सरेखा तको करथे।

अब आव कुछ छत्तीसगढ़ी लोकगाथा मन ल अलग-अलग खंड म बांट के विस्तार ले वर्णन करथन। तव सबले पहिली सोरियाथन नारी प्रधान लोकगाथा मन ल जेमा दसमत कइना, नगेसर कइना, चंदा ग्वालिन, बिलासा केवटिन, अहिमन रानी, फूलकुंवर, रेवा रानी, केवला रानी, बहादुर कलारिन या कलार सुंदरी जइसन गाथा ल छत्तीसगढ़ म प्रमुखता ले गाये जाथे। ये सबो गाथा मन ले नारी शक्ति के अपने रूप के दर्शन होथे। अइसने प्रेम प्रधान लोकगाथा हावय जेमा ढोला मारू, लोरिक चंदा, रहिमन रानी, काम कंदला, सुतनुका-देवदीन, लीलागर, बोधऊ उक के प्रेम के किस्सा गजब सुने बर मिलथे। अब देखव आगू वीराख्यान लोकगाथा जेमा आल्हा, गोपाल राय, हीराखान, बीरसिह पवाड़ा, पंडवानी, रायसिह पवाड़ा, बीर बंधु आदि गाथा प्रमुखता ले गाये जाथे। इही रकम ले छत्तीसगढ़ म अध्यात्मिक लोकगाथाएं घलोक गाये जाथे जेमा भरथरी, गोपी चंदा, सरवन कुमार के किस्सा लोक म गजब प्रचलित हावय।

नारी प्रधान लोकगाथा म दसमत कइना के किस्सा ल इहां के कतकोन कलाकार मन अब मंच म तको गाये के शुरू कर दे हावय। कलाकार मन साज संगत के संग गजब सुघ्घर दमसत कइना के किस्सा ल गावत बताथे के ये भोजनगर के राजा भोज के किस्सा आए। राजा भोज के सात झिन बेटी रथे जेमा सबले छोटे बेटी के नाम रथे दसमत। एक दिन राजा अपन सातो बेटी ल बलाके एक सवाल पुछथे कि- बेटी तुमन काकर करम के खाथव, काकर करम के लेथव नाव। बारी-बारी ले छै बेटी मन किथे की पिताजी हमन तोरे करम के खाथन अउ तोरे करम के लेथन नाव। आखिर में दसमत कइना के पारी ल आथे त ओ कइथे कि पिता जी मै अपन करम के खाथवं अउ अपने करम के लेथव नाव। राजा भोज दसमत के बात सुनके गुस्सा जथे। मने मन गुनथे अउ किथे मैं देखिहवं तोर करम ल। राजा अपन सैनिक मनला बलाके दसमत बर अइसन वर तलाश करे बर किथे जेकर कर खाय बर अन्न झिन राहय, पहिरे बर ओन्हा झिन राहय अउ रहे बर घर झिन राहय। राजा के बात मानके सैनिक मन वइसनेच निच्चट गरीब आदमी ल पकड़ के लानथे अउ राजा ह अपन बेटी के बिहाव ल ओकर संग करा देथे। राजकुमारी दसमत अपन करम के लेखा मानके ओ गरीब आदमी संग चल देथे।

दसमत अपन पति संग गरीबी के जीवन गुजारत रिथे। एक दिन दसमत अपन पति ले पुछथे के तुमन तो रोज अतेक काम बुता करथव तभो ले गरीब के गरीबेच हव। आखिर का काम करथव तुमन। तब ओकर पति बताथे के हमन साहूकार बर पथरा फोड़ के जोगनी धरथन। दसमत किथे के एको ठिन जोगनी लाबे तो महूं देखहू। दूसर दिन एक ठिन जोगनी धर के घर लानथे। दसमत देखके दंग रही जथे। ओ तो हीरा आए अनमोल हीरा। तुरते दसमत ह अपन पति ल लेके ओ साहूकार कना जाथे अउ हीरा म हिस्सा मांगथे। अब हीरा पाये के बाद दसमत मनके गरीबी दूरिहा जथे। दसमत अब तो अपन पिता राजा भोज ले घलो जादा अमीर होगे। ये लोकगाथा ह एक नारी के आत्म सम्मान, राजा के अंहकार के पतन अउ गरीब के शोषण ल उजागर करत हाबे। लोकगाथा के अंत म नारी ह अपन पति के खातिर सति हो जथे, काबर के ओकर पति ह अपने पत्नी के इज्जत के रक्षा खातिर परान गवाए रिथे। दसमत कइना के ये गाथा ल परमुख रूप ले देवार कलाकार मन गाथे। श्रीमती रेखा देवार येकर सिद्धहस्त कलाकार हाबे।

अब अहिमन रानी के कथा ल देखथन त दुरूग राज के राजकुमारी के बिहाव सारंगढ़ राज के बीरसिंह के साथ होथे। वीरसिह शंकालू प्रवित्ति के रिहिसे। नानकून बात म वो अपनेच पत्नी ल मारे बर लग जथे। अहिमन रानी के ये गाथा म अपन सास के अवेहलना के दुष्परिणाम भोगत देखाय हाबे संगे-संग पतिव्रत धर्म के सेती फेर जीवन मिल जथे। अहिमन रानी के कथा म एक प्रसंग आथे जेमा राजा घोड़ा चोरी हो जथे। जेकर वापसी बर पासा पाली के खेल खेलना अउ अपन सरी गहना ल हार जाना बताये हाबे। बाद अहिमन के मुह बोले भाई ल ओला ओकर गहना ल वापस कर देथे। उही गहना के सेती अहिमन के पति राजा बीरसिंह भाई बहिनी के नता ल आन जानके अपन पत्नी उपर भरम जथे और ओला मार परथे। अंत म ओकर मुंह बोला भाई के सेती फेर ओमन संघर जथे।

अब प्रेम प्रधान लोकगाथा म लोरिक चंदा के किस्सा ल फरिहाथन। लोरिक चंदा म लोरिक राउत अउ राजकुमारी चंदा के प्रेम के किस्सा गाये जाथे। लोरिक अहिर समाज के बलखर युवा रिथे जेन बघवा ल तको मारे रिथे। तइहा समे म राजकुमारी चंदा के बिहाव राजा बिरबावन संग होय रिथे। जब गवना के बेरा आथे तव राजा ल कोढ़ के बिमारी रिथे। गवना कराये खातिर राजा ह लोरिक ल बिरबावन बनाके भेज देथे। ओ कोति राजकुमारी चंदा ह लोरिक ल ही अपन मन मंदिर म बसा लेथे। लोरिक के बिहाता पत्नी के नाम हे दौना मांजर राहय। लोरिक के मया म राजकुमारी ह ओकर घर मल्लीन दाई के ओड़र म मिले बर जाथे। लोरिक अउ चंदा ल मिलत दौना मांजर देख डारथे। चंदा अउ दौना म झगरा होथे। चंदा ह लोरिक ल बारा साल बर भगा के ले जथे। अइसन रकम ले ये लोरिक चंदा के ये किस्सा म प्रेम के संग हास्य और वीरता के भाव तको देखे ल मिलथे। लोरिक चंदा के किस्सा ल कतकोन नाचा गम्मत वाले मन तको देखाथे अउ चंदैनी दल मन तो लोरिक चंदा प्रसंग ल ही प्रमुखता ले देखाथे जेमा रामाधार साहू एक बड़े नाम हावय।

अइसनेहे एक अउ प्रेम प्रधान गाथा हावय ढोला मारू के। जेमा राजा ढोला लाल अउ रानी मारू के प्रेम के गाथा ल छत्तीसगढ़ में ढोला मारू के संगे-संग रेवा परेवा के नाम से तको जाने जाथे। ये छत्तीसगढ़ के अइसन लोकगाथा आए जेला आन राज म तको गाये जाथे। छत्तीसगढ़ म 'ढोला-मारू' राजस्थान म 'ढोला-मारू रा दूहा' ब्रज म 'मदारी को ढोला' आदि नाव ले जाने जाथे। गाथा अनुसार नरवर गढ़ के कछवाहा राजा नल के पुत्र के नाम सलह कुमार रिहिसे जेन बाद म ढोला लाल के नाम से प्रसिद्ध होइस। जब उंकर बिहाव होइसे ओ बखत ढोला के उमर तीन साल अउ मारू के उमर ढेड़ साल रिहिस। ढोला अउ मारू के बिहाव के प्रसंग के बाद रेवा नाम के जादुगरनी के प्रसंग आथे। रेवा जादुगरनी ह ढोला उपर मोहित हो जथे। ओहा एक दिन ढोला ल परेवा बनाके अपन संग ले जथे। अइसन ढंग ले ये गाथा ल लोक कलाकार मन सो सुने म बड़ रोचक लागथे। आज के समे म श्रीमती सुरूज बाई खांडे के बाद अब श्रीमती रेखा जलक्षत्रि अउ रजनी रजक येकर प्रमुख कलाकार हावय जेन मन ये किस्सा ल जीवित राखे हावय। 
अब गोठ करबोन वीराख्यानक लोकगाथा मनके जेमा सबले पहिली नाव आथे आल्हा-उदल के। आल्हा उदल के किस्सा में विरता अउ साहस के कई प्रसंग सुनाये जाथे। वीर पुरूष ह समाज म नारी के सम्मान अउ न्याय खातिर लड़थे। ये गाथा ल अइसन रकम ले गाये जाथे कि सुनइया मन के मन म जोस जाग जथे अपन मातृभूमि खातिर। आल्हा अउ उदल दूनो भाई गजब पराक्रमी रिहिन ओमन अपन मातृभूमि के रक्षा खातिर पृथ्वीराज संग भयंकर युद्ध करिस। ये गाथा म अनठावन लड़ाई के वर्णन हाबे। आल्हा खंड काव्य के गायन छत्तीसगढ़ के बाहिर घलोक होथे। जेन प्रकार ले वेदव्यास जी महाभारत महाकाब्य के रचना करिस, महर्षि बाल्मीकि ह रामायण के। ओइसने रकम ले जगनिक ह आल्हा काब्य के रचना करे हावय।

अब सोरियाथन लोकगाथा पंडवानी ल। पंडवानी ह हमर छत्तीसगढ़ के अमुल्य धरोहार आए। जेन ल दू शैली म गाये जाथे एक कपालिक अउ दूसर वेदमति। माने कपालिक म कथा के संग काल्पनिकता प्रयोग करे जाथे अउ वेदमति म सिरिफ वेद सम्मत गाथा के गायन होथे। पंडवानी के कलाकार मन हाथ म तंबूरा अउ करतान धरे पांडव मनके किस्सा ल सुनाथे। छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य पंडवानी गायक मन म सबले पहिली नाव आथे झाड़ूराम देवांगन, पद्मश्री पुनाराम निषाद, पद्मभूषण डॉ. तीजन बाई, चेतन देवांगन, प्रभा यादव, मीना साहू, प्रभा यादव, रितु वर्मा, शांति बाई चेलक अउ उषा बारले आदि के नाम विख्यात हावय। पंडवानी म महाभारत के मूलकथा ल आंचलिक भाखा म एक दिन, दू दिन, तीन दिन, सात दिन अउ नौ दिन तक घलोक सुनाये जाथे। पंडवानी गायक मन ल भजनहा तको केहे जाथे जेमन सबलसिंह चौहान के लिखे कथा के गायन 18 पर्व म बांट के करथे।पंडवानी में प्रमुख रूप ले आदि पर्व, सभा पर्व, उद्यम पर्व, भीषम पर्व, द्रोण पर्व, करन पर्व, शैल पर्व, तिलक पर्व, अश्वमेघ पर्व, स्वर्ग रोहन पर्व, मूसल पर्व, द्रोपदी स्वंबर, दुशासन वध, कीचक वध, अर्जुन शिव तपस्या, कुंती-गांधारी के शिव पूजा, अभिमन्यु विवाह, देवासुर संग्राम, भरत वंश की कथा, कर्ण जन्म, गीता उपदेश आदि कथा प्रसंग के गायन होथे।

                                        
अब पारी हावय आध्यात्मिक लोकगाथा भरथरी के। भरथरी म उज्जैन के राजा भर्तहरि के जीवन चरित्र के गायन करे जाथे। येमा राग, विराग के अंतर्द्वन्द अउ तर्क-वितर्क के द्वंद्व ले जुरे राजा भरथरी के नीति, श्रृंगार, वैराग्य के अध्यात्मिक कथा हावय। छत्तीसगढ़ म भरथरी के किस्सा ल तको अलग-अलग खंड म बांट के गाये जाथे। भरथरी के प्रसिद्ध गायिका श्रीमती रेखादेवी जलक्षत्री अउ श्रीमती सुरूज बाई खांडे ह राजा भरथरी के गाथा ल जनम से लेके विवाह अउ वैराज्ञ तक नौ खण्ड म सुनाथे। बताथे कि राजा भरथरी अउ रानी सामदेवी के बिहाव के रात ही ओकर पलंग टूट जथे। जेला देखके रानी हांस परथे। तब राजा ह पलंग टूटे के कारन ल रानी ले पुछथे। रानी किथे के मोर बहिनी पिंगला येकर कारन ल जानथे। राजा ह पिंगल ल बलाके पुछथे तव वो बताथे के पूर्व जन्म म तुमन महतारी बेटा रेहेव इही पाके ये पलंग ह टूटे हावय। अतका ल सुनके राजा दुखी हो जथे। येकर बाद आगू के प्रसंग म राजा के शिकार के किस्सा आथे जेमा ओमन एक काला मिरगा के शिकार कर देथे। एक काला मिरगा के छै आगर छै कोरी मिरगीन मन राजा ल श्राप दे देथे। राजा श्राप ले मुक्ति खातिर गुरू गोरखनाथ के शरण म चल देथे। गोरखनाथ बाबा कहिथे के तोला अपने महल म भिक्षा मांगे बर जाना हावय अउ अपन रानी ल मां कहिके पुराना हाबे। अइसन ढंग ले भरथरी गाथा म राजा के जीवन के अनेक घटना ल बताये जाथे।

अइसने रकम ले सरवन गाथा तको हावय। सरवन कुमार के गाथा ह रामचरित मानस ले लिये गे हावय। येहू गाथा ल छत्तीसगढ़ के अलावा आन राज के मन तको गाये जाथे। ये गाथा म संतान बर माता-पिता के सेवा ल ही सबसे बड़े धर्म बताये गे हावय। ये कथा सुरू होथे अंधरी अंधरी माता-पिता ले जेकर ऐकच झिन औलाद रिथे सरवन कुमार। सरवन कुमार के पत्नी ह कुलक्षणी रिहिसे। सास ससुर के थोरकोच जतन नइ करत रिहिसे। अतेक दोगलई करे के ओकर भोजन रांधे के बर्तन म तको दू खंड रिहिसे। एकेच बर्तन ल दू किसम के चुरय। एक भाग म 'खीर' त दूसर भाग म 'महेरी'। अपन मन खीर खावय अउ सास ससुर न महेरी। ये बात के पता जब सरवन कुमार ल होथे त ओहा बहुत दुखी होथे अउ अपन पत्नी ल निकाल के माता-पिता ल तिरथ कराये के संकल्प लेके लकड़ी के कांवर बनाथे। सरवन कुमार अपन अंधी-अंधा मां-बाप ल कांवर म बइठार के तिरथ करे बर निकलथे। एक दिन प्रयाग जाये के रद्दा म ओमन ल पियास लागथे तव सरवन कुमार अपन माता पिता ल उही जंगल म छोड़ के सरयू नदी पानी लाने बर जाथे। ओ कोति राजा दशरथ शिकार करे बन निकले रिथे। ये कोति सरवन कुमार पानी के तुमड़ी ल नदी बुड़ोथे त ओ कोति राजा दशरथ पशु पानी पियथे समझके शब्दभेदी बान छोड़ देथे। बान लगते ही सरवन कुमार घायल होके गिर जथे। राजा दशरथ मनखे के आरो पाके दौउड़थे तव देखथे कि बान लगे सरवन कुमार आखरी सास लेवथे। राजा ल जबर दुख हो जथे, ये कोति सरवन मरगे ओ कोति ओकर मां-बाप पियास मरत हाबे। राजा दशरथ पानी लेके जब अंधरी अंधरा कना जाथे अउ पुरा घटना ल बताथे तव ओहू मन राजा ल श्राप देके अपन परान तियाग देथे। राजा दशरथ पछतावत-पछतावत तीनों झिन के अंतिम संस्कार करथे।

अइसन ढंग ले छत्तीसगढ़ म कतकोन लोक गाथा गाये जाथे जोन इहां के सांस्कृतिक विरासत के संगे-संग इहां के लोक जीवन म समाज के कुप्रथा अउ रूढ़ि वादी रीति रिवाज उपर कटाक्ष तको करथे। कतकोन लोकगाथा मन के गायन गुड़ी म नइ होय के सेती विलुप्त तको होवत होवय। हमर आगू के सियान मन मुअखरा जाने फेर नवा पीढ़ी मन सरेखा नइ करिन तेन पाके कतकोन मन के नावे भर बांचे हावय। कुछ लोकगाथा मन ज्यादा गुड़ी म गाये बजाये के सेती विकृत तको होवत हावय माने ओमा आधुनकिता के प्रभाव देखे बर मिलत हावय। अइसन म हमर जुन्ना तइहा के लोकगाथा मन ला लिपिबद्ध करके सरेजे के जबर उदीम करे के घातेच जरूरत हावय।
ब्लॉगर के गोठ- ब्लॉग म संकलित एदे लेख ल कतकोन झिन बड़का कलाकार, साहित्यकार अउ पत्रकार मनके वाचिक अउ लिखित तथ्य ल आधार बनाके गढ़े गे हावय जेन म मानवीय भूल हो सकत हावय। क्षमा सहित आप मनके मया आसिस के अगोरा म... जयंत साहू



3 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. डॉ. रूपचंद शास्त्री 'मयंक' सर जी सादर धन्यवाद। गुरूवर, ऐसे ही आशीष बनाये रखें।

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  2. मेरे छत्तीसगढ़ी आलेख 'छत्तीसगढ़ की प्रतिनिधी लोकगाथाओं' को आपने स्थान देखकर जो मान बढ़ाया है इसके लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
    आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी, रविन्द्र सिंह यादव जी, स्वेता सिन्हा जी,
    कुलदीप ठाकुर जी और यशोदा अग्रवाल जी आप सभी को मेरा सादर प्रणाम।

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