जिही कारज बर अवतरिस घासीदास तिही म अरहजगे

              छत्तीसगढ़ के महान संत परंम पुज्य गुरू घासीदास ल सत सत नमन। सतनाम के अलख जगइया, जात पात के भेद मिटइया गरीब अउ दलित के तारण हारक बाबा ल आज वोकर जयंती के सती सोरियावथवं। काबर की सच्चा संत मन अइसने बेरा बखत म ही सुरता आथे। कतको संत मन के तो सुरताच नइ आवे। केहे के बेरा भले गरब से कहि देथन कि हमर छत्तीसगढ़ म बड़े-बड़े ऋषि मुनी अउ संत महात्मा मन जनम धरे हे फेर नाव लेके बेरा एको झन के नाव मुंह म नइ आवे। चेत हरा जथे अइसन बात नोहे कारण कुछ अऊ रिथे।
              गुरू घासीदास के बारे म कहे जाथे कि बाबा ह अपन समय के समाजिक आर्थिक विषमता, शोषण अउ जात-पात के लड़ाई लड़िन। वो समय संत ह सत मार्ग के जोन बिजहा अंचल म बगराए रिहीस वो बिजहा ह आज भी पेड़वा नइ बन पाय हे। कोनो जगा झाड़ी रूप म हे,कोनो तिर पाना फेकत हे,त कहु हर तो अभी जरई जमावत हे। कोन जनी कब विशाल पेड़ बनही मोला तो यहू संका हे कि पेड़ बन पाही की नही। काबर कि संत मन के अतका ज्ञान अउ उपदेश बाटे के बाद भी मनखे ह मनखे नइ बन पाय हे। हाड़ मास के काया म कुछू अऊ दिखथे।
                देखव न जिंही कारज बर घासीदास ह धरती म अवतार लेके आय रिहीस तिही म हमी ओला अरझा डरे हन। केहे के मतलब बाबा ह जाति धरम अउ उच निच के डबरा ल पाटे के परयास करिस, मानुस चोला के राहत ले मनखे ल मनखे बनाय के बनाय के कोशिश करिस। संत के प्रयास सार्थक घलो होगे रिहीस हमर सियान मन उंकर बताय रद्दा म चलके अपन घर संसार ल संवारत रिहीस। जइसे ही संत अउ सियान के मानुस चोला खपिस हमर बिच फेर जात-पात के डबरा खनागे।
                 संत ल सोरियाय के बेरा अपन-अपन धरम सुरता आथे अउ उही धरम के धरहा छुरी म चानी-चानी चनाके अलग थलग फेका जथन। घासीदास बर सतनामी समाज,कबीर साहेब बर कबीरहा मन,कर्मा भक्तिन बर तेली समाज,धीरे-धीरे सबो समाज के धर्म उपदेश अउ संत प्रकट हो जथे। ज्ञान के अखर बांचे म कोनो बुराइ नइये, जहां ले मिलय जइसे मिलय बटारेव। फेर ज्ञानी ध्यानी के सुरता करे के बेरा म एक चिनहीत समाज के उपर थोप देना ये बने बात नोहय। हमर छत्तीसगढ़ के संत महात्मा के नमन म तो सबो छत्तीसगढ़ीया के माथा झुकना चाही। खैर सबके अपन-अपन मानता अउ आस्था हे कोनो जोर जबरई नइ हे,काबर अपन ऊपर क्षेत्रियता के मुखौटा लगाहू,राष्ट्यिता के ढोंग लगाय खुश राहव।
           हहो संत मन घलो स्थानी प्रादेसिक राष्टिय अउ अंतरराष्टिय होगे हे। संत ह ज्ञान अउ उपदेश के बजाय मेंबर बनाय के मेसेज वाचन करथे। मनीआडर अउ ड्ाप्ट म दक्षिणा लेके डाक से आसिर्वाद भेजथे। अइसने धर्मिक संप्रदायिक सज्जन मन के ठोकपरहा गोठ के सेती हमर छत्तीसगढ़ के संत मन बेरा बखत के बेरा म ही सुरता आथे बाकी दिन ऑनलाइन डारेक्ट टू होम बाबा मन ह। अब तो सबो गांव घर म इही हाल हे मोर घर तो अऊ जादा इही पाय के कलेश काटे बर सत के ध्वजा धरे जोग लगाय हवं। जय सतनाम...  जय घासीदास...  जय छत्तीसगढ़...,

दहकत गोरसी म करा बरसगे


जड़काला के कारी रात जइसे-जइसे चड़हत जाथे जाड़ ह अऊ गेदराय परथे। धुप छांव ठंड गर्मी तो प्रकृति के नियम आय फेर ये दरी तो प्रकति ह अपन नियम के माई डाढ़ ल छूके अऊ ओ पार नाहकही तइसे लागथे। ये बखत कतका जाड़ परिस अउ कतका गर्मी रही येला प्रकृति के नारी छुवईया मन बने बताही। रेडियो अउ टी बी वाला मन ओकरे बात ल पतिया के सरी दुनिया म बात बगराथे। टी बी म संझा के समाचार सुन के मै मुड़ी गोड़ ले गरम ओनहा पहिरेव अउ रातपाली काम म जाय बर निकलेवं। गर्मी होवे चाहे ठंड खाय बर कमाय ल परथे।
             दस बजती रात म पुरा शहर कोहरा ले तोपा गे रिहीस। गली म एक्का दूक्का मनखे रेंगत रिहीस। हमर गली के आखरी कोन्टा म रिक्सा वाला के परिवार रिथे। कोनो दिखे न दिखे ओ मन हमेश उहीच मेर दिखथे। चारो कोना ले झिल्ली म घेराय घर। वहु झिल्ली म जगा-जगा भोंगरा हे। दूसर बर भले कुंदरा होही फेर उंकर बर तो घरे आय। झिल्ली के भोंगरा कोती ले सुरसुर-सुरसुर हावा पेलत रिहीस। हवा ह जादा पेले त घर ह ढकलाय लेवे। चारो परानी एकक कोनो म खड़े कुंदरा के ढेखरा ल धरे राहय। सियान ते सियान लइका मन घलो पातर-सितर कपड़ा पहिने रिहीस। उंकर मन के देह के गर्मी जड़काला के धुका ले जादा जबर रिहीस।
                  एक नजर मै अपन देह के गरम ओनहा ल देखवं अउ ओकर मनके आधा अंग म पहिरे चिथरा ल। उघरा अंग के रूवां ह खड़ा होगे रिहीस। ओमन ल देखवं त अइसे लागे मानो ओ चारो झन के जाड़ ह मोरे म ढकलागे हे, वोमन ल जाड़ थोरको नइ जनावथे। वाह प्रकृति एके दुनिया म कई किसम के मनखे बनाय हस। जड़काला के धुका म ओमन ल अपन ले जादा अपन घर ल बचाये के संसो हे। लेदे के हवा ह रूकिस त ओमन ल जाड़ के अहसास होइस। अब तन ल गरमाय के उदिम कराथावे। रिक्सा वाला ह अपन बर बिड़ी सुलगईस। ओकर गोसइन अउ दोनो लइका सड़क म आके पाना पतई बटोराथावे।
                  गांव होतिस त सुक्खा-सुक्खा लकड़ी के अलाव अउ पैरा के भुर्री बारतीस। शहर म गांव अइसन कहां पाबे। कागज अउ पान पतई ल बटोर के लइका मन आगी सिपचाईस। चारो परानी कुन-कुन ऑच तापे लागिस। आगी के धुगिया घर मालिक के खिड़खी ले घर भितरी ओइले लगगे। रिक्सा वाला के परिवार जेकर घर के परसाही म अपन डेरा जमाय रिहीस। ओकर घर ह आगी के धुंगिया ले धुंगियाए लगगे। मकान मालिक ह कांव-कांव करत घर ले निकलीस अउ रिक्सा वाला उपर खख्वागे। काकरो बात होय जी घर के रंग धुंगियाही त खिसीयाबे करही। रिक्सा वाला के कुंदरा ल डेकेल के उझार दिस। आंच तापे बर बारे आगी म पानी रूको दिस। बपरा गरीब का करे खाली जगा देख के रहे के डेरा बना डेरे रिहीस। किराय भाड़ा मे तो ले नइ रिहीस जेमा एको भाखा मुह उलातिस।
कलेचुप अपन डेरा डोंगरी ल उसाल के दुसर गली कोती चल दिस। ओमन ल तो कांही बात बानी नइ लागिस फेर मोर मन होवत रिहीस की ओ मालिक ल दु भाखा बोलवं। जड़काला के कटत ले ए मन ल राहन देतिस त ओकर का बिगड़ जतिस। आय असाड़ म तो चिरई के खोंधरा ल नइ उजारे फेर येतो मनखे के घर ल उजार दिस। मोर तन बदन ह रिस के मारे दाहकत गोरसी होगे रिहीस। एक मन काहय ओला दू थपरा लगा दवं दूसर मन काहय ओकर पांव धर के आसरा दे बर गेलउली करवं। फेर जेकर बर गेलउली करतेवं तेन मन तो अंते गली म चल दे रिहीस। मोर मन के दाहकत गोरसी म ओकर सादगी के सेती करा बरसगे। महू ह उंकर जाय के बाद अपन रातपाली के काम मे चलदेवं।
                    काम ले छुट के बिहनिया घर लहुटे के बेरा रद्दा भर उही रिक्सा वाला मन के बारे मे गुनत रेहेवं तभे ठुक ले उही रिक्सा वाला ल रिक्सा चलावत देख परेवं। ओकरे रिक्सा म बइठ के घर आएवं। रात कन के घटना के ओकर उपर कोनो असरे नइ दिखत रिहीस। हांसी खुशी ले अपन रोजी रोटी म मगन काए जाड़ अउ काए घाम। वो तो भुलागे अपन कारी रात के बात ल फेर मोर मन म कई ठीन सवाल उमड़थे का ओ जागा ओला सुकुन से रेहे ल मिलत होही, का इकर जिनगी अइसने पोहा जही, काकरो मजबुरी म घलो काबर इसानियत नइ जागे ? मन म दाहकत ये सवाल बर, कोन जानी कब जवाब के करा बरसही ?

गोबरहिन डोकरी

               गोधुली बेला म गांव डहर लहुटत बरदी। गांव भर के गरवा ल हांकत बरदिहा अउ बरदिहा के पाछु म गोबरहिन। येहा रोज के किस्सा आय। बिहनीयां ले बरदिहा मन गांव के गरवा ल दइहान म सकेले अउ अलग-अलग बरदी बना के चराय बर परिया कोती, बनडबरी कोती लेगथे। माई लोगिन मन गोबर बिने बर झऊंहा धर के निकलथे। गरवा के पाछु-पाछु उवत के बुड़त किंजरथे। जतके गरवा ततके गोबरहिन।           
               एकक चोता बर चिथो-चिथो होवत रिथे। रोज असन आजो जवान मोटयारी मन तो झऊंहा-झऊंहा गोबर ल मुड़ी म बोहे लिचलिच-लिचलिच आवथे। उकरे पाछु म सुकवारो डोकरी ह सपटा भर खरसी गोबर ल बोहे कोंघरे-कोंघरे आवथे। जीये बर खाय ल लागथे अउ खाय बर कमाय ल,बपरी डोकरी ह कमा-कमा के आधा उमर पोहा डरिस। ओकर आगु हंसइया न पाछु रोवइया। दाउ दरोगा घर लकड़ी छेना बेच बेच के जिनगी के गाड़ी घिरलावथे।
           आज डोकरी हा आधा झऊंहा गोबर ल पाइस ताहन लकर धकर घर आगे। कभु काल तो पाथे। झऊंहा ल बाहिर मे खपल के अछरा म पछीना ल पोछत भितर म खुसरिस। एक कुरिया के घर वहू बिन कपाट सकरी के। खटिया उधे रिहीस तेला गिराके बइठीस। थकहा जांगर एक सांहस हकन के सुरताइस।
             उठीस त मुंधियार हो गे रिहीस। चिमनी बार के आगी सिपचइस अउ अपन पुरती भात ल रांध घला डरीस। एक परोसना खाके आधा ल बासी बोर के खटिया म ढ़लंगे। डोकरी सुते सुते मने मन गुनंथें- कब तक अइसने जिनगी चलही ? दिन दुकाल के बेरा म कहां के बनी भुती मिलही। खेत खार परिया परगे। बुड़हत काल मे का खंती के ढेला उकलही ?
            सिरतोन बात ताय दिन दुकाल म सबेच ल तो काम चाही। असाढ़ म एक पानी के गिरे ले सबो झन धान ल बो डरीस। फेर आय असाढ़ म पानी निटोर दिस। बिन पानी के धान पान घलो खेत खार म आखी निटोर दिस। पानी बिन सबो के खेत सुखागे।
             फेर बड़े दाउ कुंवा बोर वाला ये गांव भर म उहीच भर गाड़ा गाड़ा धान लुइस। गांव के मन इही आसरा म रिहीस के दाउ घर बाड़ही मांग के चार महीना के भुख मरी ल काट लेबो अउ फेर साल के धान होही तेमा बड़े दाउ के चुकारा कर देबो। धीरे धीरे सबो के किसान के कोठी अटागे।
           सबो किसान एक दिन सुनता करके बड़े दाउ करा बाड़ही मांगे बर गीस। हाथ जोर के सबो झन बिनती करिस- मालिक हमर घर म एको बीजा चाउंर नइहे थोर बहुत साहमत करवं, हमरो फसल होही ताहन लहुटा देबो। बड़े दाउ ह तो निचट जिछुट्टा निकलीस। गजब कलप डरीस। तभो ले दुच्छा के दुच्छा लहुटा दिस।
           सबो गारी बखाना देवत ओकर घर ले निकलगे। जाही तिहा अपन खटिया म जोर के लेगही रोगहा ह अतेक धन दउलत ल अपन मुड़ेसा म जोरे बइठे हे। सियान मन तो कले चुप रइगे। जवान मन अतलंगहा होथे। जवानी जोसियागे। दाउ ह सोन के थारी म खाथे अउ गांव वाला मन के खाय बर दाना नसीब नइ होवथे।
                चार झन टूरा मन दाउ ले तंगागे। मांगे म नइ मिले त नंगाय ल परही अइसे बिचार लगाके रातकुन कुलुप अंधियार मे बड़े दाउ के बाड़ा म घुसरगे। दाउ के जोगासन म माड़े कुची ल धरिस अउ तिजउरी ल खोल के एक मोटरा सोने सोन के मोहर ल गठियाइस अउ पल्ला निकलगे।
 ओइलत खानी तो कोनो गम नइ पइस फेर भागे के बेरा पाहरादार मन देख डरीस। बाड़ा भर चोर चोर किहीके हो हल्ला होगे।
              चोरहा मन भागत भागत गोबर्हिन डोकरी के घर म लुकागे। येती बर दाउ के लठैत मन गांव भर म बगरगे। घरो घर तलासी सुरु होगे। येती बर इकर मन के जी थरथरागे पकड़ा जबो त मोहर जही अउ हमर मन के जान घलो जाही। उकर खुसूर फुसूर बड़बड़ाइ म सुकवारो डोकरी के निंद उमचगे। कोन कोन हव रे कइके हुत पारथे। चारो झन टूरा मन डोकरी के पांव म गिरगे। सबो बात ल फोरिहा के बताइस।
            डोकरी ल चोरहा टूरा मन उपर दया आगे। डोकरी किथे- मैं ह तहू मन ल बचाहू अउ ये मोहर ल घलो फेर मोर एक ठन सरत हे। चोरहा मन पुछिस का सरत हे। डोकरी किथे- पकड़ाहू त मै अउ बांच जाहू त ये मोहर ल गांव भर म बाट देहूं। चारो झन डोकरी के सरत ल मान के मोहर ल डोकरी ल धरा के अपन अपन घर कोती टरक दिस। मुंदराहा होइस ताहन डोकरी ह मोहर के गठरी ल परवा म टांग के झऊंहा धरिस अउ निकलगे अपन बुता म।
          पहरेदार मन डोकरी ल सियनहिन ए कहिके कांहि नइ किहीस। डोकरी ह झउंहा भर गोबर बिन के आगे। घर के परवा म खोचाय मोहर ल गोबर म गिलिया के सइत दिस। वोतके बेरा बड़े दाउ के लठियारा मन घलो-घरो घर तलासी लेवत डोकरी घर आगे।
           सबो समान ल छिही बिही करके खोजिन फेर नइ पाइस। लठियार मन के जाय के बाद डोकरी अपन बूता म लगगे। गिलीयाए गोबर ल धरके ओरी ओरी बियारा के भाड़ी म छेना थोप डरिस। चोरहा टूरा मन सोचते रइगे। मोहर काहां गायप होगे। मोहर कहू जाय फेर उकर तो जीव बांचगे। बड़े दाउ ह अपन पहरेदार मन ल खिसयावत घर लहुटगे। अउ फैसला करिस- मोहर ह गांव म काकरो घर नइ मिलीस फेर मोहर गांव ले बाहिर गे नइहे। धरे होही त देख देख के थोरे जिही। जिये बर चाउर दार बिसाय ल परही। कब तक बेचे बर नइ निकलही। गांव के बाहिर पहेरा लगा दव अवइया जवइया सबके तलासी करे बर।
              येती बर छेना सुखाइस ताहन गोबरहिन डोकरी ह अपन सरत के मुताबिक एकक ठन छेना गांव भर म बांट दिस। छेना देके बेरा डोकरी ह कान म फुसुर फुसुर करे। बड़े दाउ ह डोकरी ल छेना बाटत देखिस फेर वो का जानय कि छेना के भितरी म मोहर भरा हे तेला। गांव के मन मोहर बेचे बर बजार जाय अउ ए बात के पहरेदार मन घला गम नइ पाइस। वो मन सोचे छेना बेचे बर बजार जाथे।
            अइसन सियानी मति ले गांव भर बर दार चाउर के जुगाड़ होगे। चोरहा मन के संगे संग गांव वाले मन घलो डोकरी के अक्कल ले अपन जीव बचा लिस। एक ठन बुराइ ले गांव भर के भलाइ होगे। अब अवइया असाढ़ के आवत ले जिनगी चल जही। गोबर्हिन डोकरी जेकर माथा म दिन भर गोबर छबड़ाय राहय ओकर मति ल तो देख, दरिदरिन कस दिखे फेर गांव भर के दरिदरी ल दुरिहा दिस। गांव के मन डोकरी के जय जय गइस अउ दिन दुकाल ले निसफिकीर होगे।

नरई के नसबंदी

गांव म धान लुवर्इ के काम सुरू होगे हे,खेती खार कमतियागे हाबे ते पाय के बनिहार भुतिहार के संसो नइये। एक झन खोजे बर जाबे तव चार झन मिल जथे। एसोच भर आय ताहन पउर बर बनिहार भुतिहार के जरूरते नइ परे। खेते नइ रही तव कहां के बनी अउ कहां के भुतिहार। फेर बनिहार मन ल घलो काम के संसो नइये काबर कि जेन जगा खेत हे ओ जगा बड़े बड़े माहल बनही अउ बाहिर ले बड़का-बड़का सेठ मन आही। सेठइन मन घर के काम बुता ल तो करे नही तव इही गांव के खेत कमइया मन उकर घर जाके झाड़ू पोछा करही। बर्तन मांजही ओकर कपड़ा ओनहा धोही। खेत रहीस त ठसन रिहीस किसान कहावे,धरती के असल बेटा कहावे अब तो कोनो गत नइ रइगे। साहर वाला मन वोमन ल नवा नाम देहे ''लेबर''।

 देस परदेस सबो कोती इहीच हाल हे, विकास के नाम अब खेती खार के दोहन होवथे सड़क बनाय बर बनगे हाबे तव चौडीकरण, आफिस बनाय बर नही तव नेता अउ अफसर के बसुंदरा बनाय बर धनहा डोली संग कुकृत्य करे जावथे। कृषि भुमि ल आवासी म परिवर्तित करके उपजाउ माटी उपर अत्याचार करके महल खड़े करत हाबे। ये सब काम खुले आम होवथे तभो ले पंच परमेश्वर टोपा बांधे बइठे हे। का खेती खार के बंदरबाट करे म परमेश्वर(शासन) के घलो हाथ हे ? यदि नही तो खेती खार ल बचाय बर कोनो सार्थक पहल काबर नइ होवथे ? 

जेन चक (खार) के लुवत ले पंदराही अठोरिया हो जाए वो हा दुये दिन म लुवागे। येहा कृषि विभाग के उन्नत तकनीक के कमाल नोहय बल्की जमीन दलाल मन के कमाल आय। चरिहा-चरिहा पइसा कुड़हो के किसान मन ल हिरो डरे हे। किसान मन अब अपने खेत के नरर्इ के नसबंदी कराय बर दलाल मन के दुवारी जावथे। नरर्इ के नसबंदी सुन के अचरज होवथे होही लेकिन ये बात सत्य हे। बनिहारिन मन खेत लुवत लुवत काहथे कि एसोच भर अउ ताहन पउर बर इहां काही नइ उपजय काबर कि दुलसिया भउजी ह नसबंदी करइस तइसने बरोबर एकरो हो जही। नरर्इ के नसबंदी होय ले खेत परिया पर जही अउ ताहन दलाल मन कृषि ल आवासी म परिवर्तित करके नक्सा पास कराही अउ मकान बना लिही। जब ये बात बनिहारिन के समझ आगे तव परमेश्वर के समझ काबर नइ आवथे या समझ के भी बेसमझी हे तेन ल उही जाने। लोग लइका के बड़वार ल रोके बर नसबंदी कराय जाथे वोइसने बरोबर पैदावार के रोके खातिर नरर्इ के नसबंदी होवथे। कृषि वैज्ञानिक मन तो सपना म घलो नइ सोचे रिहीस होही की नरर्इ के नसबंदी हो सकत हे। खैर ये तो उंकर विषय नोहय काबर कि ओमन अउ वोकर विभाग तो दूसर काम म व्यस्त हे।
कृषि मंत्रालय तो उन्नत बीज,उन्नत तकनीक अउ रोग रार्इ के उपचार अउ वोकर नियंत्रण के राग अलापत हे। जब खेते नइ रही तव ये सब कोन काम के। फसल अउ पैदावार के ल छोड़ के पहिली खेत के संरक्षण कर कुछ काम करव। कृषि मंत्रालय का सिरिफ काठा धरे धान नापे बर बइठे हे। बेरा के राहत खेत ल राष्टीय धरोहर के रूप म संरक्षित कर लेना चाही नही त एक दिन कृषि वैज्ञानिक मन के प्रयोग करे के पुर्ती घलो खेत नइ बाचही। खेत के बंदरबाट करइया मन उपर तो कोनो विभाग के लगाम नइये अब आखरी म कृषि मंत्रालय भर दिखत हे हो सकथे उही ह संज्ञान म लेके खेती ल बचाय के कुछु उदीम करही।

भाग लछमी

एक गांव म धनीराम नाम के एक झन मुरहा पोट्रटा मनखे रिहीस। वोकर कर गावं म घर न खार म खेत, जिंहे मिलय दाना पानी तिंहे करे बसेरा। धनीराम के गरीबी ह अतेक दुबर होगे रिहीस कि वोहा भिख मांगे के सुरु कर दिस। कोनो दिन मिल जए त खा लय नइ मिले त लांघन रइ जए। कोनो कोनो दिन जादा मिल जए त चार झन बाट के खाय। झुठ लबारी अउ चोरी चमारी ले धनीराम दस हांथ दुरिहा राहय।

एक दिन भगवान बिसनू अउ लछमी दार्इ ह धरती तनि किंजरे बर आय रिहीस। धरती के नजारा देखत देखत लछमी दार्इ ह बिखमंगा धनीराम ल देख डरिस। भगवान बिसनू ल पुछथे ये कोने स्वामी। भगवान किथे ये धनीराम आय। तव माता किथे धनीराम के अइसन गत काबर कर देहव भगवान, बिचारा गरीब पेट भरे बर गली गली किंजरथे।

भगवान बिसनु किथे देवी वो बिचारा नोहय वो तो पुराना पापी ये। धनीराम ह अपन पाछु जनम म जइसन करम करे रिहीस तइसन फल पावथे।

किथे न '' करम प्रधान विश्व कही राखा अउ जो जस करम करही जस फल चाखा ''।

जतके कन येकर पुन रिहीस ततके कन येला सुख मिलीस अब आगु ये अपन भाग के ल खाही।

धनीराम के हालत देखके लछमी दार्इ ह करलइ मरथे। वोहा भगवान ल किथे स्वामी चलव न येकर मदद करथन। तब भगवान ह लछमी दाइ ल समझावत किथे तै ओकर उपर दया झन लछमी, तकदीर ले जादा अउ मेहनत ले कम कोनो ल नइ मिले।

ये दुनिया ह जब ले बने हे तब ले अंजोरी अंधियारी ह बरोबर चलत आवथे। धरम अउ आस्था के ये धरती म करम के बड़ महत्ता हे। भाग्य ल मानुस अपन पुर्व जनम ले लिखा के आय रिथे। अमीर गरीब, सुखी दुखी, जोगी भोगी सबो रकम के मनखे होथे।

लछमी दार्इ किथे पुर्व जनम ल छोड़ भगवान ए जनम के येकर दुख ल टार दे। ये का दुनिया ये स्वामी एकझन हर छकत ले खावथे, छलकत ले लुटावथे अउ दूसर ह पसिया पेज बर लुलवाथे। सबला बरोबर देतेव भगवान। तब भगवान बिसनू किथे मै तो सबला बरोबर दे रेहेव कोन ह कातका का पइस ये ओकर मेहनत अउ करम के बात हे येमा मे का कर सकथवं।

     भगवान बिसनू कतको समझा डरिस फेर माता ह मानबे नइ करिस। आखिर म भगवान ह धनीराम के मदद करे बर राजी होके धरती म आइस। धनीराम ल धनवान बनाय बर माता ह अपन गहना गुठा ल हेर के एक ठन मोटरी म बांधिस।

     सोना चांदि हिरा मोती ले भरे मोटरी ल धनीराम आवत रिहीस तिही रददा म मड़ा दिस। येती बर धनीराम ह भिख मांगे के नवा नवा उपाय सोचत रिहीस।

     वो सोचथे हाथ गोड़ वाला साबुत आदमी ल आज काल कम भिख देथे अउ खोरवा लुलवा मन ल जादा देथे। मोला भगवान खोरवा काबर नइ बनइस। भिख मांगे बर खोरवा के नाटक तो नइ करे ल परतीस। फेर सोचथे रोजे रोज खोरवा बनना ठीक नइहे एका दिन अंधवा कनवा घलो बनना चही। भगवान बिसनू अउ लछमी दाइ ह सबला लूका के देखत रिहीस। थोरकेच म धनीराम ह आखरी मुंद के अंधवा बनगे। अब लउठी के सहारा म टेकत टेकत रद्दा म रेंगथे।

     रेंगत रेंगत वो ह रद्दा परे गठरी म हपट के गिरगे। धनीराम खिसीया के उठीस अउ आखी मुंदेच मुंदे गहना के गठरी ल कोन आगु आगु म पथरा ढेला बांध के मड़ा देहे किके कस के एक लात मार देथे।

     गहना के गठरी ह डुलत डुलत भगवान मन करा जा के रुकथे। येला देख के भगवान बिसनू ह लछमी दाइ डइर ल देखके किथे देखे देवी वोकर भाग ल तोर गहना ल लात मार के तोरे करा फेक दिस।

     लछमी दार्इ भगवान ले किथे एक मउका अउ देबो स्वामी अब वोकर आगु म जाके ओकर मदद करबो। भगवान किथे ठीक हे चलव भेस बदल के ओकर आगु म।

     येती बर धनीराम घला भेस बदल डरे रिहीस। बइहा पगला ल जेने मेर पाथे तेने मेर सुते बइठे के जगा मिलथे। इही पाय के धनीराम ह बइहा पगला के भेस धरे रिहीस। पगला मन बरोबर रुख राइ झाड़ झरोखा जिही ल पावे तिही त लउठी म मारत पिटत रांय रांय रेगत राहय।

     वोतके बेरा भगवान बिसनु लछमी दाइ धनीराम के आगु म आके किथे धनीराम हमन तोर सहायता करे बर आय हन बेटा। धनीराम सोचिस फेर कोनो वोकर काम बाधा बिघन करे बर आय हे। मेहा भिख मांगे के जिही तरीका अपनाथवं तिही म कोनो ना कोना बाधा परिच जथे।

     वोतका बेरा पथरा म अरहज के गिरेवं अब तूमन आगेव बेटा। राहले तुहर मंजा बतावथवं। धनीराम के एड़ी के रिस तरवा म चड़गे। धर तो एमन ल रे किके लउठी ल उबाके किटकिट किटकिट दड़थे। वो का जाने एमन सउहत भगवान बिसनू अउ माता लछमी हरे किके। बिसनू भगवान ह धरा पछरा भाग के किथे ये भाग्य लछमी तहू भाग नही ते धनीराम ह लउठी म बजेड़ डरही।

     धनीराम घला पाछू पाछू दउड़त किथे भाग लछमी ... भाग लछमी ..... भाग लछमी...।

     अब तक तो लछमी दार्इ ल समझ म आगे रिहीस भाग के खेल ह। धनीराम ल अपन हाल म छोड़ के भगवान बिसनू अउ माता लछमी दूनो झन चल दिस अपन लोक म।

भूमि अधिग्रहण- हमर तीन पिढी के घुरवा गै

आदमी कर जिही रिही तेकरे तो संसो करही भर्इ, जेकर करा खेती खार हे तेमन ल अपन-अपन खेत के संसो अब बइसाखू ह तो बपरा गरीब आदमी गांव के नानकुन घर के छोड़े अउ काहीच नइ हे। अब भुमि अधिग्रहण वाला मन गांव के सर्वे करिस की काकर कर कतका जमीन हे ओकर मुआवजा देबो किके। सबे अपन-अपन खेत खार के कागत पुरजा ल धर के लिखावत गिस। अब बइसाखू बिचारा का करे ओकर करा तो पुरखौती कांहिच नइ हे। घर के छोडे अऊ उपराहा कुछु हे त वोहे वोकर तरिया पार के घुरवा।
 वो घुरवा कब के हेबे तेन ल तो बइसाखू घलो नइ जानय। फेर जब ले होस संभाले हे तब ले उही घुरवा म अपन बेड़ा भर के कचरा फेकत आवथे। ओ घुरवा बर कम झगरा नइ होय हे। दू साल पहिली पंचइत भवन बनाबो किके सरपंच ह ओकरे घुरवा बर बानी लगाय रिहीस। जेन बखत सरपंच ह घुरवा ल पटवाय बर बनिहार पठोइस बइसाखू ह अगवाके घुरवा म सुत गे अउ गरज के किहीस लेव अब महु ल इही घुरवा म पाट दव। हमर तीन पिढ़ी इही घुरवा म राख माटी फेकत-फेकत उंकर मांदी के पतरी फेकागे। अब मोरो आस रिहीस कि मोर मरनी के मांदी के पतरी इही घुरवा म फेकाय। अब तो घुरवाच नइ रिही तेकर ले मोला जिते जियत इही घुरवा म पाट दव। पंचइत भवन छोडि़स तव पानी टंकी बनही किके नेव खोदवात रहिस अहु दरी नेव म जाके सुतिस त ओकर घुरवा बाचिस। आखिर एके ठन तो बइसाखू के पुरखौती चिनहा हे कइसे छोड़ देतिस। आखिर म पचइते ओकर घुरवा ल छोडि़स अब नया राजधानी वाला मनके सपेड़ा परे हे।

                  बइसाखू मुंह फारे देखत हे कि कोनो ह संग देतिस त यहू दरी जी परान देके अपन घुरवा ल बचाय के उदिम करतेव। फेर का करबे कोनो ह अपन पुरखौती चिनहा ल बचाय बर उदिमो नइ करत हे। गांव के पचइत ए ते पाय के बाचगे अब सरकार ले थोरहे बांचही। अरे सरकार तो जेकर करा लिखा पढ़ी के कागत हे, रजिस्टी वाला जमीन हे तेहू तक ल नइ छोड़त हे। अउ फेर बइसाखू कर तो कांही कागत पुरजा नइ हे। ओला तो मुआवजा घलो नइ मिलय गै तीन पिढ़ी के घुरवा।
अतका म एक बात तो साफ होगे कि दुनिया म जतका भी संसाधन हे सब सरकार के आय। ओ मन जिहा चाहय जब चाहय अपन कब्जा जमा सकथे। जे दिन तक सरकार के नजर नइ परे राहय लोगन ओकर उपयोग करथे। जिही दिन सरकार के नजर म आगे माने सरकार के होगे। हमर खेत राजस्व विभाग के आय, खेती म पानी पलोथन तेन ह नाहर डिपाटमेंट के आय, नांगर बक्खर म उपयोग करथन तेन बइला भइसा ह पशु पालन विभाग के आय, खेती किसानी के बिजहा अउ खातु ह खादय बीज निगम के आय। कर लेके बेरा सरकार किथे तुहरे सोहलयित बर आय त फेर आज किसान मन के जीवकोपार्जन के आधार ल नंगावत हे तव कहा हे ये विभाग।
अभी सुनर्इ आहे कि नया राजधानी म प्रभातित गांव वाला मनके व्यस्थापन बर मकान बने के सुरू होगे हे। पक्का मकान बिजली पानी चकाचक घर बनाके देवथे। एमन घर तो बनावथे पर का उइसेन गांव फेर बसा पही। गांव ल उजारना बहुत आसान हे बसाना नामुंकिन। गांव ह मकान अउ उहा के रहवासी मन के बसेरा ले नइ बसे बलिक सभ्यता अउ संस्कृति के रतियाए ले बसथे।


गांव उजार के गांव बसाने वाला मन जोन मकान बनावथे वोहा तो कोनो प्रकार से लगय नही कि ये गांव वाला बर बनावत हे। मकान म एक कोठा होना, एक परसार होना, चुल्हा बारे बर रंधनी खोली होना। धान धरे बर कोठी होना, छेना धरे बर पटाव होना। नहाय बर घर तिर म तरिया होना, बाहिर बÍा अउ निसतारी बर जगा होना। सबे घर के अपन कुल देवता होथे तेकर बर देवता खोली होना। देवता ल अइसने विराज मन घलो नइ करे सकय मान गवन करके आसन देबर परथे। एकर अलावा चरयारी चिज घलो लागही जइसे होले डउर, खैरखा डांढ़, खल्लरी मंदिर, शितला, ठाकुर देव, बरम बबा, परेतिन दार्इ, साहड़ा देव। नया जगह म तो येमे से एको ठिन के चिनहा नइ दिखे तव गांव के व्यवस्थान कइसे होही तेला उही मन जाने।


गांव उजारने वाला मन ल तो इही लागथे कि ओमन सिरिफ मकाने भर ल ए मेर ले ओमेर करत हे लेकिन गांव छोड़ने वाला से पुछव कि ओमन का का छोड़के जावथे। मुआवजा हर चिज के नइ हो सके।
धन्य हे बइसाखू भइया जोन घुरवा ल बचाय बर अपन जीव ल होम देवे। आज जब दस-दस बीस-बीस अक्कड़ के जोतन दार मन ल रूपिया गनत देखथवं तो मोला गर्व होथे बइसाखू भइया उपर कि ओमन अपन घुरवा गतर बर लड़ मरय। आज लोगन लड़त हाबे मुआवजा के राशि बड़वाय बर। अरे उही दिन बइसाखू सही सबो कोनो अपन-अपन खेती खार, घर दुवार ल पुरखा के चिनहा जान के सरकार ल धुतकारे रितेव त आज ये दिन देखे ल नइ परतिस।

नंगाई अउ महगाई ले तो बने, बेइलाज ही मर जावं

धरमराज आज के एक वचन दे..,
गरीब ल बिमारी झन दे।
देना हे त जिनगी दे अवरधा भर..,
नही तव राहन दे।
वो कोती महगार्इ हे
ये तनी नंगार्इ
अइसन ले भला तो
बेइलाज ही मरन दे..।।


          मनखे के देह म उच-निच तो होते रिथे जर कभु जर बुखार त कभु खांसी खोखी। मरइया बर बड़े-बड़े बिमारी का नानकुन ह घलो ओखी हो जथे। एकरे सेती देह म कुछु जनाथे तव दऊड़ के अस्पताल कोती आथे। अम्मर खाके कोनो नइ आय हे का अमीर का गरीब सबला एक दिन मरना हे फेर जतन पानी अउ इलाज बने रिथे त अपन अवरधा भर जीये के आस रिथे।
          आज अस्पताल के हालत देखबे त एक डहर महगार्इ अउ दूसर डहर नंगार्इ हे अइसन म गरीब मन बिमारी के इलाज कराय बर अस्पताल के दुवारी जाय के बजाय यमराज के दुवार जाना जादा सोहलियत समझथे। अतेक नवा-नवा तकनीक अउ कोरी खौरखा अस्पताल के राहत म लोगन के अइसन सोच के कोनो तो कारण होही। डाक्टर मन हरेक बिमारी के इलाज करे के दावा करथे, दावा तो अइसे करथे जानो मानो यमराज उंकरे दब म हेबे। रावण ल बाली ह अपन खखौरी म दबाय रिहीस वोइसने बरोबर पराबेट अस्पताल वाला मन यमराज ल अपन खखौरी म दबाय रिथे। जब तक ले उंकर आगु म पइसा कुड़होत रिबे यमराज दब म रही। जहां पइसा कऊड़ी कम होइस तहां यमराज निकल के गरीब के परान ल हर लेथे।
          पराबेट के महगार्इ ल देखत सरकार ह सरकारी अस्पताल म गरीब मन के रोग रार्इ टारे बर बड़भारी खर्चा करके दवर्इ बुटी अऊ सेवादार राखे हे। ये अस्पताल मन ह सेवा ले जादा गड़बड़ी, अधरसÍी काम, मनमौजी अउ आय दिन हड़ताल के कारन जादा चर्चा म रिथे। इहां के काम काज ल देखबे तव ये यमलोक ले कम नइ जनाय। सबो मनखे मन अपन-अपन करम के लेखा जोखा ल धरे एति ले ओति होवत रिथे। घंटा पाहर के काम बर महिना पंद्राही ले जोहत रहिथे।
          आय दिन उहा नवा नवा पंचन होथे ओ दिन झन महतारी ह आटो म जचकी होगे हे। सात सौ बिस्तर के अस्पताल म का ओकर बर ठउर नइ रिहीस। जीव के डर तो सबो ल रिथे का अमीर का गरीब बपरी ह जी के डर म काहरत जीव बचाय बर अस्पताल जाबो करिस त उहू ह फत नइ परिस। न घर म न अस्पताल म, न बेड म न खटिया म, भितरी म न बाहिर म नरसिम्हा बरोबर दुवार म लइका अवतरगे।
          दरद म काहरत महतारी के चिचियाइ ल अवइया जवइया बिलमइया सबो ह सुनिस, नइ सुनिस तव सिरिफ अस्पताल के करमचारी अउ डाक्टर। चार पइसा कम लागही किके बपरी ह पराबेट ल छोड़के सरकारी म आय रिहीस। आजकल पराबेट म लइका बियाना छोटे मोटे बात नोहे आठ ले पंद्रह हजार खर्चा आथे। खौर भगवान सब बनाथे बनगे तव बनगे बिगड़तिस त उंकर का जातिस जेकर जातिस तेकर जातिस।
          इंकर उपर्इ अतकेच भर नोहे येमन तो उपद्रो ले नंगर्इ कर देथे। बड़े डाक्टर मन नवसिखिया मन के भरोसा तव यहू नवसिखिया मन आय दिन हड़ताल म कुद परथे। मरीज मन तालाबेली होत रिथे अउ ये मन अपन मांग ल मनाय बर घेखरर्इ करथे। कोनो ल काके संसो त येमन ल अपन नौकरी अउ तनख फिकर रिथे। मसीन अउ गोली दवर्इ के बात ह तो ये फाइल ले ओ फाइल म समटा जथे। अस्पताल ह कोनो काम के नइये अइसे बात नोहे, निति अउ विचार तो कमाल के हे लेकिन अमल मे लावे तब तो। जतका नाम जस करके कमाय रिथे ततका ल तो असाढ़ के मोरी म उलद डारथे।
         कहि देबे त रिस करथे फेर देख के घलो कइसे आंखी मुंद लेबो। मरीज मन ह अपने सुते के पलंग ल ढकेल के अपरेसन खोली म लेगथे किके कोनो सुने होहू मै तो अपन आखी म देखेहवं। मै पुछेव कस जी तै दुच्छा पलंग ल काबर लेगत हस अउ येमा के मरीज काहां हे। ओ हा जवाब दिस- अरे भर्इ मिही तो मरीज आवं अपन आंखी के आपरेसन कराय बर आपरेसन खोली जाथवं। पलंग म मिही सुत जहू त ढकेलही कोन। ये जवाब ले मोर मन म कर्इ ठन सवाल खड़ा होइस फेर अइसन जवाब सुने के बाद का अऊ कुछू देखे सुने के हिम्मत होही ?



आनंद अउ परमानंद

                                     दुनिया म हर घड़ी एक नवा जी के जनम होथे। इही ह चरावर जीव जगत के नियम आए। अइसन नइ होतिस त ये दुनिया म कांहिच नइ होतिस। एक महतारी ह अबक तबक चिचीयावत रिहीस असहनिय दरद म। अउ ये दरद म घलो मां बने के सुख के अहसास होवत रिहीस। जीव ह मुं सो आय लेवे त अइसे लागे जानो मानो महतारी ह लइका नइ बियावथे बल्की नरक भोगत हेे। फेर एक पल म ये पिरा ह खुसी म बदलगे जब अपन गरब ले अवतरे लइका ल मां ह एक नजर देखीस। ओ समय महातरी के ये जीवन के आनंद ल कोनो दुसर जीव कलपना घलोक नइ कर सकय आखर म गढ़ना तो दूर के बात ये।
               हांथ के मुंठा म भाग रेखा ल दबाय नान्हे लइका ह महतारी के कोरा मे किलकारी लेवथे। जब ओ मुठा ह छरियाही त काकर भाग म का निकलही तेन ल तो न लइका जाने अउ न महतारी जाने। फेर जनम होहे तेला तो उमर भर दुनिया ल झेले ल परही। सुख म राहय चाहे दुख म,राजा होवे चाहे रंक। सबला जुझना हे जीवन के आनंद बर। आज गली खोर म किंजरत कतको अइसन जीव देखे ल मिलथे जोन जीयत तो हे फेर जीवन म आनंद नइ हे। लोगन किथे घलो की जे दिन संसारी परानी आनंद ल पा लिही वो दिन तो जीव परमानंद के हो जही।
            जीव के आनंद अउ परमानंद के अनुभुति बर कुछ लोगन के जीवन यापन के सजीव चित्रण देखत मै दंग रही गेवं। संझा चार बजे के बेरा म रइपुर रेलवाही म ठाढ़हे रेहेवं। हमर नाटक मंडली के सबो सदस्य एके जघा जुरियाय रेल के अगोरा करत रेहेन। चिरो-बोरो कांव कांव म घलो सब अपन अपन गोठ बात म मगन हे। हमु मन एक कोरी तीन अक झन रेहे होबोन जेमा सात झन नारी परानी घलो रिहीस,ते पाय के हमर मन के हांसी दिल्लगी अलग चलत रिहीस। रेल तीस मिनट देरी म अवइया रिहीस जाना तो हे चाहे कतको बेर आवे। फेर ये बेरा के बिलमर्इ बड़ आनंद देवत रिहीस हांसी ठिठोली ले कटत रिहीस। तभे हमर आगु एक झन अस्सी पच्यासी बरस के डोकरी डब्बा ल हलावत मांगे बर आगे। मेहा बाजू वाला कोती टरकायेवं। बाजू वाला ह अपन बाजू वाला डहर टरकर्इस। हमर मन के गोठ बात चलते हे अउ वो डोकरी ह अइसे तइसे करके पंदरा झन करा किंजर डरिस। एको पइसा नइ पाइस। पंदरा जगा डोकरी ल नाचत देख-देख के हमला का आनंद अइस येला तो हमू नइ जानन। फेर हांसी मजाक ले टेम पास होवत रिहीस।
             ये टेम पास म डोकरी के तरवा के एको ठन लकिर नइ टेड़गइस। उहीच के उही मुं धरे हे। न असकटार्इस, न खिसीयाइस, न मुसकाइस, न कंझाइस पथरा कस जीव ठाड़हे रिहीस। आखिर म एक झन नोनी ह अपन पर्स ले एक के सिक्का निकाल के डोकरी के डब्बा म डारिस। डोकरी के मांथा के रेखा ठक ले टेढ़गा के जीव होय के अहसास करइस। ओकर थोथना के भाव देख के महू ल थोर थोर अहसास होइस की हमन तो सिरीफ आनंद लेवत रेहेन। वहू म एक भिखारन कर। भिख मांगत-मांगत डोकरी ह हमर सही कोन जनी अउ कतका झन ल आनंद देवात रिहीस होहीं वहू म बिना मांगे। फेर आखीर म जब सिक्का ह ओकर डब्बा म गिरथे त वो तो परमानंद ल ता लेथे। काबर की इही सिक्का ह तो आज के आनंद अउ परमानंद आय।


जिनगी ले जिनगी जुरे हे

दुकान कोनो भी जगा राहय गिराहिक पहुची जथे। प्रचार प्रसार के जमाना हे तभे तो दिल्ली बम्बर्इ के दुकान के पता ल रइपुर के टी बी म देखाथे। पचास प्रतिशत डिस्कांउट अउ एक के संग एक फ्री स्कीम म तो मरघट के दुकान म मन माड़े भीड़ पेले परथे। चार ठन घर बसिस ताहन दुकान खुलत देरी नइ राहय। दुकान बनिस ताहन उधारी मगर्इया के आवत देरी नइ राहय। दुकानवाला घलोक कम नइये, एक के एक्कइस दाम लगाथे। बजार हाट म सही दाम म सही माल खरीदना सबाके के बस के बात नोहय। बनिया जानथे गिराहिक ल कतका बताना हे अउ कतका म बरोना हे। फेर मोल भाव करइया तो ब्रम्हा के बेटा अउ बनिया के बाप ए लेदे के भाव पटार्इच लेथे।
 इही मोल भाव के चक्कर म मै दुकान नइ जावं अउ चली देथव त ठगा के आथवं।
एक दिन आधा रात के मोर के मितान के फोन आइस किथे- मितान काकी हा अबक तबक जवर्इया हे। मे एकसर्वा मनखे कति कति काय काय करहा। मोला तो कुछू समझ नइ आवथे। तै झटकुन आ जते त कहु कोती लेगे लाने म सोहलियत हो जतिस।
मितान ह फोन करे रिहीस नही काहत घलो नइ बनिस। खभर पाके तुरते रेगेवं। मोर पहुचत ले फुलदार्इ भगवान घर रेंग दे रिहीस। मितान ह नानपन ले अपन दार्इ ल काकी काहय। बपरी फुलदार्इ ह मोला बड़ मया करे। जब जाववं तब अंगना म पहुचाववं। आजो अंगना म पहुचा गेव। फरक अतके रिहीस कि आगु काम बुता करत पहुचाववं अउ आज बांस के चइली म सुते चार हांथ तिखा ल ओड़हे हे। बोटबोटए आखी ल पोछत मितान संग ओकर काकी के आखरी दरस करेव।
 जेन फुलदार्इ के खांद म चड़ के गांव गली ल किंजरवं। उही महतारी बरोबर फुलदार्इ ल आज हमन अपन खांद म बोह के मरघट अमराबो। लेगे के फुलदार्इ के आखरी दरस करे बर पुरा गांव उमड़गे। थोरके म मितान मोर तिर म आगे किहीस चलना मितान अंतिम संस्कार के समान लाने बर जाबो। मै केहेवं सब सोधर ल छोड़ के तै कहा जाबे मितान मिही नेंग जोग के समान ल नान लेथवं। मै सोचत रेहेव दुकान गाव म होही फेर उहा तो मरघट म दुकान खुले राहय। किराना दुकान के समान ल घर पहुच सेवा सुने रेहेव फे उहा तो मरघट पहुच सुविधा रिहीस। एक तो जिनगी म कभु दुकान गे नइ रेहेव अउ जाबो करेवं त मरघट के दुकान।
 दुकानदार ह अंतिम संस्कार के समान ल दुकान म सजाए हमर दुख ले बेमतलब अपन मन पसंद गाना बजावत बइठे रिहीस। आसु ल पोछत मै दुकान डहर बड़हेव त दुकानदार के चेहरा खिलगे काबर कि ओला गिराहिक मिलगे। दुकानवाला के किस्मत घलो अजिब हे गांव म मनखे मरथे त ओकर धंधा पानी चलथे। सुत उठ के दुकानदार ह भगवान के पुजा पाठ करके बोहनी अगोरत होही। भगवान तो सबके सुनथे ओकरो सुनत होही। आज ओकर किसमत रिहीस कि फुलदार्इ के दिन पुरे रिहीस तेला भगवाने जाने। मरघट म मुर्दा जाथे त ओकर दुकान चलथे। दाना पानी तो सबो के लिखे हे। मरर्इया घर चुल्हा नइ बरय अउ दुकानवाला के बार्इ ह तेलर्इ बइठथे।
 गर्मी के महिना आय बेरा घड़ी घड़ी चड़हत रिहीस। लकर धकर समान के नाव ल बताएव। सबो समान ल निकाल के मड़ा दिस, मै भले पहिली बार समान ले बर गे रेहेव फेर ओकर तो रोज के उही काम आय। एको ठी समान के भाव नइ पुछेव। दुख के बेरा म काए भाव ताव करतेवं। सबो के एकÎा दाम पुछेव अउ पइसा देके समान धरे आगेवं। रद्दा भर दुकाने के बारे मे सोचत रेहेवं। कहु ये दुकान मरघट ल छोड़ के बिच बजार म होतिस त का होतिस।
दुकानवाला मन दुकान के दुवारी म ठाड़हे गिराहिक मन ल गोहार पारतिस- आवा... आवा... अंतिम संस्कार के समान ले लव, सस्ता ले सस्ता, छांट के लेला मोल भाव करके लेला। दस रूपिया जोड़ी कफन के कपड़ा, पांच म छै पाकिट सुंगध वाला अगरबत्ती अउ सबो समान ल मोरे दुकान म लिहा त एक घइला फोकट म। बने करे हे बपरा ह मरघट म एक बोलिया दुकान खोल के दुखी दंडी मन ल बजार के झमेला तो नइ होवे। काकरो घर कोनो बितही त ओकर समान बिकही।
 मने मन गुनत समान धरे मितान तिर गेवं त चिता रचागे रिहीस। सबो कोनो ओरी ओरी फुलदार्इ ल पानी देवत रिहीस। महु पांच मुठा पानी देवं अउ पांलगी करेव। मनखे कतको गरीबहा होवे फेर रिती रिवाज तो रिती रिवाज होथे। मितान अपन रिती रिवाज ले फुलदार्इ ल आगी दिस। सबो झन घर डहर लहुटेन। फुसुक-फुसुक रोवत मितान ल दिलासा देवत केहेव कि आना जाना तो सबो के लगे हे मितान तोर मन ल निच्च्ट अंधयारी म झन बुढ़ोबे। फुलदार्इ ह अब तोर कुटुम के देव धामी म जा मिंझरगे। उप्पर ले तोर बर सदा असिस बरसाही।
मोर एक मन तो मितान संग दुख म बुड़े रिहीस अउ दुसरर्इया मन रही रही के ओ दुकान वाला डहर जात रिहीस। ऐती फुलदार्इ के चिता के लकड़ी बरीस वोती दुकानवाली के चुल्हा गुंगवागे। मितान घर अब कोन जनी के दिन ले जेवन नइ बनय। अउ वोकर घर दार भात के हडि़या चड़गे। दुनिया के अइसन मरम ल मै पहिली बेर अनुभव करेवं। बिधाता ह सबे के सुध लेथ। कोनो ल दुख देथे त कोनो ल ओकर ले सुख देथे। सिरतोन कहवं त जिनगी ले जिनगी ला जोड़े हे बिधाता हा।

कहिनी - मईके के सुरता

फूफू के लिगरी म सातो ह भार्इ मन करा बांटा मांगे बर उमियागे। पंचइत सकेल के अपन ददा के जहिजात म हिसा मांगिस। नित नियाव म लड़के सातो ह अपन ददा के जहिजाद मे हिसा पा लिस। फेर बपरी के जीयत भर बर मइके के मया छुटगे। आगी लगे अइसन नियाव म जोन मया ल टोरथे। कीरा परय ऊकर मति म जेमन धन के पाछु मया जोरथे।
 बिहाव के पाछु बेटी मार्इ ल मइके ले एक लोटा पानी के आस रइथे। तिजा पोरा अउ मातर मड़र्इ म नेवता हिकारी के अगोरा रइथे। तथे तो मइके के कुकुर ल घलो ससुरार म भार्इ बरोबर मान गवन करथे। सातो ह मुहांटी म बइठे बइठे अपन तिजा लेवइया के अगोरा करत बइठे हे। येहु साल आय के आस तो नइ हे फेर का करबे सातो के मन मानबे नइ करय।
 अपन दुवार म बइठे सातो ह सबो के लेगर्इया ल आवत देखत हे। सातो के मन के लालच के तेलर्इ म मइके के सुरता डबके लगथे। सुरता म चुरत मन फुसुक फुसुक रो परथे। गोहार पार के रोए म ओकरे फधित्ता होही। बपरी ल कोनो पुछ परही त का बताही। फूफू ह अपन लालच बर सातो के मति बिगाड़े रिहीस। भार्इ-बहिनी अउ ननंद-भउजी के नता म जोझा पारे रिहीस। सातो ह मने मन अपन करम ल कोसत आजो तिजा लेवर्इया अगोरत हे।
 सातो ह नहां खोर के बिहनीया ले तियार होगे। अलवा जलवा मुड़ी कोरे लकर धकर नंदिया खड़ के पिपराही म आके बइठे हे। अवइया जवइया मन ल टुकुर देखत हे। भादो के महीना म नंदिया ह मुड़ भर बोहावत रिहीस। नंदिया नरवा ह कातको जोझा पारे तिजा मनर्इया मन तो जा के रही। देवता बरोबर डोंगहार ह सबे झन ल ए पार ले ओ पार नहकावत हे। बांस भर पानी म तउरत डोंगा म सवार तिझयारिन मन ल देख देख के सातो के मन निचट उदास होगे हे।
 पछतावा के आसु ले बोट बोटाय सातो के आखी म नंदिया के ओ छोर ले डोंगा चड़हत अपन भार्इ दिखीस। पिपराही ले रटपटा के उठीस अउ चुंदी मुड़ी ल संवारत नंदिया कोती दऊड़गे। सातो के हांसी खुसी के ठिकाना नइ हे। नंदिया के छोर म खड़े अपन भार्इ के अगोरा करत पउर साल के तिजा ल सोरियावत हे।
 सातो के दादा ह अपन बड़े बेटा पुनऊ ल किथे- सातो ल तिजा लाने बर आठे मान के चल देबे रे। आंहू किही त संग म लान लेबे। निंदर्इ कोड़र्इ के दिन घलो चलत हे। दमांद कर जादा जोर-जबरर्इ झन करबे। अब आज काल तो सब पोरा मान के आथे जाथे। नंदिया नरवा के कारो बार अगवाके रेंग जबे।
 उंचकहा मुंहा पुनऊ अधरसÍी सुनिस। आठे मान के कांहा आठे के एक दिन अगाहू रेंग गे। पुनऊ ल सातो घर जाय बर पुचपुचाए। बारी म बोवाए खीरा ल झोला भर टोरिस। करेला अउ डोड़का के एकक ठन मोटरी गठिया के निकलगेेे सातो घर जाए बर।
पुनऊ अउ सातो के नानपन के हांसी दिल्लगी ह बर बिहाव होय के बाद घलो नर्इ छुटे रिहीस। संगे बर बिहाव होइस संगे दोनो के गवन पठौनी होगे। सातो के ददा ह गांव के बड़का किसान रिहिस। घर म चिज बस कांही के खंगता नइ रिहीस। गांव म ऊंकरे सुती चले ते पाय के पुनऊ ह थोकिन अड़दली रिहीस।
 ददा ह जाय ल केहे हे किके बारी ले घर नइ अइस मोटरी धरे सोज सातो घर रेंग दिस। घर ले बता के जातिस त भउजी ह रोटी पीठा जोरतिस। ददा ह बारी म गोठियइस सातो घर जाबे किके। पुनऊ ह कोनो ल आरो करे बिगर मोटरी भर साग भाजी धरके निकलगे। पुनऊ ह पैडगरी रद्दा म अकेल्ला रेगंत झोला के खीरा ल खावत खावत जावत रिथे। नंदिया खड़ के पहुचत ले झोला ल अपने ह अधिया डरथे। सातो ल देहू किके आधा झोला खीरा ल बचाय घाट म पहुचे हे। किंजर किंजर के डोंगा देखत हे। काम कमर्इ के दिन म डाेंगा घलो कम चलत रिहीस। एके ठन डाेंगा वाला रिहीस। उहू ह वो पार खड़े रिहीस।
 कांहा डाेंगा अगोरत रइहा किके पुनऊ ह मुड़ भर बोहावत नंदिया ल तऊर के नाहक गे। दूनो हाथ म एकक ठन मोटरी ल धरे हे। खीरा के झोला ल टोटा म अरोय हे। पार म नाहक के सबो समान ल टमडि़स। करेला अउ डोड़का के मोटरी तो बने रिहीस फेर खीरा ह बोहा गे रिहीस। पुनऊ ह सालेच के झोला भर खीरा धरके निकलथे। कोनो साल अपने ह खाते खात सिरवा डरथे। त कोनो साल नंदिया म बोहा जथे। सातो ह करेला अउ डोड़कच पाथे।
 कच्चा-कच्चा कुरता ल पहिने पुनऊ ह सातो घर पहुचीस। भार्इ ल देखके सातो ह मगन होगे। लोटा भर पानी दिस अउ पावं परिस। सुख्खा गमछा म मुड़ी कान ल पोछीस। पुनऊ ह मोटरी ल लमावत किथे- येदे बहिनी करेला अउ डोड़का लाने हवं। सातो किथे- खीरा घलो तो फरे होही भार्इ। खीरा काबर नइ लानेस। अतका ल सुन के पुनऊ ह दुच्छा झोला ल लमा देथे। दुच्छा झोला ल देख के सबो झन कठल के हांसथे।
 अपन भार्इ के सुध म मगन हे सातो। खुशी के आसु ल पोछथे अउ हांसत हांसत किथे- यहू साल एको ठन नइ बचाय भार्इ। कइसे पुनऊ भार्इ कलेचुप काबर हस। जब आथस तब दुच्छा झोला देखाथस। कहां करथस मोर बाटा के खीरा ल। सातो के गोठ ल सुन के डोंगा ले उतरत अनगइहा सगा ह सातो ल किथे- कोन ल काहत हस वो। मै तो तोला नइ चिनहत हवं। अतका ल सुन के सातो के मन के भरम टुटगे। सातो ह अनचिनहार ल अपन भार्इ जान के गजब आस लगा डरे रिहीस। बपरी ह निरास होके आसु ल पोछत फेर पिपराही म लहुटगे।
 सातो के मन म का बितीस होही जब अनचिनहार ल भार्इ जान के मया लड़ावत रिहीस। उहू अनगइहा ह नइ चिनहवं कइ दिस। एक घांव बहिनी की देतीस त ओकर का बिगड़ जतीस। सातो अपन मन मढ़ावत किसमत ल कोसत हे। आखिर गलती तो ओकरो कोती ले होए हे। सबो बने बने चलत रिहीस। एक दिन अचानक सातो के ददा बितगे। ददा के बिते के पाछु पुनऊ ह बहिनी ल बेटी बरोबर मया दुलार करे। तिजा पोरा म पुछे-गउछे। भउजी घलो सातो ल नोनी ले आगु एक भाखा नइ बोलत रिहीस। आगु के आगु ओकर बर लुगरा पाटा लेवत रिहीस। इही बात ह पुनऊ के फूफू ल नइ सुहइस। पुनऊ करा अपन भार्इ के जहिजाद म हिसा मांगे बर आगे। पुनऊ मन एक भार्इ एक बहिनी हे ओइसने ओकर ददा मन घलो एक भाइ एक बहिनी रिहीस। झगरा लड़के फूफू ह अपन नता तो टोरिस संग म सातो ल घलो जुझो दिस।
 फूफू ह घेरी बेरी सातो घर जाके ओकर भउजी के लिगरी लगावत काहय- सातो तोर भउजी ह सबे चिज बस ल अपन मइके म लेग लेग के जोरत हे। तोर भाइ ह सिधवा हे अउ भउजी चाल बाज। चिज बस के राहत ले पुछत हे। सिरावन तो दे कुकुर नइ पुछे तोला। फूफू ह तो अपने घर के आए अउ भाउजी ह पर घर ले आए हे। इही सोच के सातो ह घलो फूफू के बात म आगे अउ जुरे पंचइत म बाटा बर खड़ा होगे।
 सातो मने मन गुनत हे। बाटा नइ मांगे रइतेवं त आज मोरो भार्इ लेगे बर आए रितीस। भउजी ह तिजा के जोरा करतिस। गुनते गुनत सातो ल पिपराही म बइठे बिहनीया ले संझा होगे रिहीस। सातो ह अपन मन ल मारत घर आए बर उठिस। रोनमुहा मु धरे घर जाना बनो नोहे किके सातो ह नंदिया के तिर म गिस। माड़ी भर म उतर के ठोमहा म पानी लेके मुह ल धोइस।
 नंदिया भीतर ले मुह धो के लहुटत रिहीस तभे सातो के पांव कुछु जिनीस अभरीस। हांथ ल बुड़ो के टमड़ीस त सातो ल दू ठन मोटरा मिलीस। मोटरा भीतर म करेला अउ डोड़का बंधाय रिहीस। दोनो मोटरा ल धर के सातो पार म आवत रिहीस तभे आगु म एक ठन दुच्छा झोना बोहावत रिहीस। दुच्छा झोला अउ मोटरी ल पाके सातो के खुसी के ठिकाना नइ रिहीस। भार्इ नइ अइस त का होगे। भार्इ के चिनहा ह आगे। मइके के सुरता म उदास मन ल मढ़ावत सातो ह अपन घर लहुटगे। मइके के सुरता देवावत दुच्छा झोला अउ मोटरी ल देख देखके सातो ह पोरा अउ तिजा मनइस।