कोरोना के सेती गांवबंदी



कोरोना वायरस अब अपन जनम भुइंया चीन के वुहान ले निकलगे हावय सरी दुनिया खुवार करे खातिर। कोनो नी जाने रे भाई कतका के जीव लेके आवत हावय। कोनो नी जाने रे भाई येकर दवई ल। बीमारी होही अउ पट ले मरबे अइसन तको तो नी हे रे भाई। अपन तो जाही अउ संग म जतका झिन सपेड़ा म आही, रपेट के ले जही। अलवा-जलवा झिन जान रे भाई तीन हजार किलोमीटर ले उड़ाके आये हाबे माने हाहाकार मचाके जाही। अइसन गोठबात संग कतकोन गांव के जागरूक लोगन मन गांवबंदी करे हावय। माने अपन गांव म अवइया रद्दा ल ही बंद कर दे हावय। अइसे नहीं के आड़ काट के चैन से सुते हावय बल्कि ओसरीपारी पाहरा तको देवत हावय। जय जय होवय अइसन सोचे बिचारे फइसला के। सबो बने बने रही तव जरूर मेहनत के फल मिलही अउ गांव का सरी जग ये चाइना के कोरोना बीमारी ले उबरही।

लोगन के मन म सवाल उमड़त हावय के ये बीमारी हमर कोती कइसे आइस। तव बात अइसे हे के कोरोना नाव के वायरस ले हमर देश म विदेश ले अवइया लोगन मन धरके लानिस। कोनो विदेश घुमे बर गे रिहिसे, कोनो पढ़े बर गे रिहिसे अउ कतकोन झिन मन रूपिया कमाये बर गे रिहिसे। अब ये बात सोचव की जेमन विदेश म रिहिन तेन मनला का जानबा नी रिहिसे के कोरोना महामारी सचरत हावय, कम पढ़े अप्पढ़ तो नोहय। सब के सब जानत रिहिसे के ये कोरोना बहुत ही जी लेवा बीमारी आए। इही पाके तो उहां ले धकर-लकर भागिस अउ अपन-अपन घर म आगे। उहां ले बांच के आये के बाद इहां उही लोगन मन जीव बांचगे ददा कहिके गली-गली छैलानी मारिस। इहां-उहां न जाने कहां-कहां वायरस ल बगरा दिस। जबकी ओमन ला कानोकान चेताये रिहिसे के कहूंच नी जाना हे अकेल्ला रहना हाबे। घेरे-बेरी हाथ धोना हे, ते जेकर तिर म जाबे तेकरो उपर ये वायरस खुसरही। 

पढ़े लिखे अड़हा मन के गलती के भुगतना अब सरी देश भुगतत हावय। देश म 21 दिन के कर्फ्यू लगे हावय। सरकार साफ-साफ चेताय हाबे के कोनो ल बाहिर नी निकलना हाबे। ये मामला म हमर छत्तीसगढ़ के गांव के लोगन म बने चेत करत हावय अपन-अपन गांव के मेड़ों में कांटा छरप के बाहिर के अवइया-जवइया ल रोकत हावय। बहुत अकन गांव के लोगन मन रद्दा म पेड़ गिरा के आन आदमी मनके अवइ ल रोकत हावय। गांव के जवान मन परहरा देवत हावय के कोनो गांव ले बाहिर न जा सके अउ न कोनो गांव भीतर आ सके। अइसने साव चेत राहव हो। गांव म निस्तारी करव। हांसी-खुशी ले दुबर दिन काटव। जेन होही बनेच होही इही आस राखे राहव।

कोरोना के रोना


कोरोना नाव के महामारी ह सरी दुनिया ल मउत के तमासा देखावत हावय। अबतक दुनिया के 200 देश म हाहाकार मचे हाबे। किथे के चीन के वुहान शहर म ये महामारी के जनम होहे। जानवर ले मनखे म आये ये कोरोना कोविड- 19 नाव के वायरस के अब तक कोनो ईलाज नी पाये हाबे। दुनिया भर के डाक्टर मन प्रयास म दिन रात लगे हावय। बड़ अंचभा के बात आए के सबले ज्यादा कोरोना के वायरस उही देश म जादा बगरिस जिहा साफ-सफई अउ आधुनिक चिकित्सा विकसीत हाबे। बताथे के येहा अतका खतरनाक वायरस आए के बगरत देरी नी लागय। पल भर म कहां ले कहां बगर जथे। 
बात सुरूआत के करन तव चीन देश के वुहान शहर ले जनवरी महीना के बात आए। अबतक कोरोना ह तीने महीना म ही दुनिया 200 देश ल अपने चपेट म ले डरे हावय। WHO के ताजा आकड़ा के मुताबिक आज 465,915 केस आगु आए हाबे। अउ 21,031 के मउत के पुष्टि तको हो चुके हावय। ये आंकड़ा तो WHO ल मिले पुख्ता जानकारी के आए, हो सकत हे येकर ले अउ केउ गुना मरीज के मउत होय होही !
कोरोना के सेती दुनिया के 20 देश ह लॉकडाउन होगे हावय माने कोनो ल कहुंचो नी जाना हाबे। सबो ल दुबक के घरे म रहना हाबे। भारत सरकार 24 मार्च ले पूरा देश म लॉकडाउन लागू करे हावय। अपन कोति ले सरकार तीन हफ्ता के टेम दे हावय मनखे मनला, ये बीच रूक जही बीमारी के फैलाव ह तो बने बात नहीं त चारो कोति मउत ही मउत दिखही। घर म रेहे ले भी ज्यादा जरूरी हे बाहिर के लोगन मन ले बचना हावय। कोन जनि कोन कहां ले आये होही ? ये जरूरी तो नही के अनजान आदमी ही बीमारी लानही, चिनजान के ह तको अनजाने म बीमारी लान देही। तव अइसन म साफ-सफाई के धियान रखना घातेच जरूरी होगे हावय। 
जब ले देश म 21 दिन लॉकडाउन के घोसना होय हाबे लोगन मन आनी-बानी के गोठ गोठियावत हाबे। फेर कोनो ह उखान के पूरा नी बांध सके। ये पार्टी, ओ पार्टी करे ले कोरोना का लुवाठ मरही। सबो ह सुनता बंधा के कोनो नेक उदीम करव तभे बुता बनही। गुनन त भले 21 दिन जिनगी ले जादा लंबा नी हे फेर रोज कमइया खवइया मनके का होही? अइसन बखत म बीमारी ले लड़े के संगे-संग जेन मनखे के कोनो दोस नी हे ओमन भूख झिन मरे इहू बात ह लॉकडाउन के करार ल पोट्ठाही। 

सुनइ तो अब इहू बात के आए हाबय के छत्तीसगढ़ म कोरोना के तीसरा स्टेज के लक्षण आगे हावय। तीसरा स्टेज वो हरय जेमा कोनो आन आदमी, जे कोरोना पाजेटिव रिथे ओकर संपर्क म आये ले तीसर ह संक्रमित हो जथे। ये बहुत ही खतरनाक स्थिति आए वुहान म बीमारी सचरिस, उंहा ले कोनो बीमारी धरे आइस अउ इहां बगरा दिस। सोचो अब हाथ ले हाथ अतका दिन म कतका हाथ म बगरगे होही। इही हाथ ले हाथ के कड़ी ल ही लॉकडाउन ह टोरही अउ सरी दुनिया ह कोरोना ले उबरही। बाद म भले बेरा के गोठ निकलही के कोरोना ल हमर छत्तीसगढ़ म कोन लानिस, का ओला जनबा नी रिहिसे? अभी तो भितरेच म राहव।

चंदैनी गोंदा म खुमान साव जी के भूमिका

लोकसंगीत के पुरोधा: खुमान लाल साव



जन मन के गीत ल जन-जन के अंतस म उतारने वाला महान संगीतकार खुमान साव अब हमर बीच नइ रिहिन। 5 सिंतबर 1929 के अवतरे खुमान लाल साव जी ह 90 बच्छर के उमर म 9 जून 2019 के ये दुनिया ल छोड़ दिस अऊ जावत-जावत हारमोनियम अउ तबला के संगत म सबला रोवावत कहिगे- 'माटी होही तोर चोला रे संगी, माटी होही तोर चोला...।' सिरतोन म ये चोला माटी के तो आए अउ सबला एक दिन दुनिया छोड़ उही माटी म जाना हावय। फेर ये नश्वर दुनिया म उंकरे अवई ह सार्थक होथे जेन जावत खानी अपन काम के बुति जबर नाम छोड़ जाथे। लोक संगीत के दुनिया म खुमान लाल साव जी एक अइसे नाम आए जेन ल जन-जन जानथे। 
साव जी ये मुकाम तक पहुंचे बर गजब मेहनत करे हावय, 14 बच्छर के नान्हे उमर म संगीत के लगन ह उनला नाचा पेखन ले जोड़ दिस। दाऊ मंदराजी के रवेली साज के अलावा अऊ कतकोन नाचा पार्टी, आर्केस्टा उक म अपन संगीत के धाक जमाईस। साव जी आन-आन संगीत समिति ले जुड़े बर तो जुड़िस फेर ओकर मन ह तो छत्तीसगढ़ के लोक संगीत बर कुछ ठोस काम करे बर मनन करते राहय, ठउका उही बखत दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ह उनला अपन संस्था म शामिल करिस अउ फेर ताहन शुरू होइस मिशन चंदैनी गोंदा। साव जी ह अपन बारे म कहाय कि जब मैं दाऊ रामचंद्र देशमुख जी संग जुरेव तव कई महीना ले अपन घर-दुवार, खेती-खार, परिवार सब ल छोड़के संगीत के कठिन साधना करेवं। 



14 बच्छर के उमर ले सुरू होय संगीत साधना के सफर ह अंतिम सांस तक जारी रिहिस। अऊ ये कला यात्रा म धुप छॉव सही कतकोन दुख-सुख उंकर आगू आइस जेकर ने लड़के छत्तीसगढ़ी लोककला मंच के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के बाद चंदैनी गोंदा के सियानी पागा बांधे दाऊ जी के सपना ल पूरे करे म कोनो कसर नइ छोड़िन। कला के प्रति समर्पण ल देखत लोक संगीतज्ञ खुमान साव जी ल हम छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति अउ साहित्य के क्रांति युग 1971 के आखरी महारथी कहि सकथन। अऊ अब उंकर जाए ले माने एक युग सिरागे। साव जी घलोक दाऊ रामचंद्र देशमुख के सानिध्य म छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के अस्तित्व अउ अस्मिता के बात अपन गीत-संगीत अउ गम्मत के माध्यम ले आम जनता के बीच राखे के प्रयास करय। गुनी जन मन कहिथे कि दाऊ रामचंद्र देशमुख के चंदैनी गोंदा सिरिफ सांस्कृतिक संस्था भर नइ रिहिस भलुक एक मिशन रिहिस छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया मनके अस्तित्व अउ अस्मिता जागाए के। जेमा खुमान लाल साव जी के भी अहम भूमिका रिहिसे। 


अतका साल बाद अब अइसे लगथे कि दाऊ जी के सपना ह साकार रूप लेवथे। गांव-गांव म छत्तीसगढ़ी कला, संस्कृति अउ साहित्य के संस्था बनगे हावय। अलग छत्तीसगढ़ राज बनगे। छत्तीसगढ़ी म गीत, गजल, कहानी, बियंग, उपन्यास सबे कुछ लिखे जावथे। वइसे दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल देखे के सौभाग्य तो नइ मिलिस हमला फेर जतका उनला पढ़े हाबन ते मुताबिक इहिच तो सपना रिहिस दाऊ जी के जेन ल पुरा करे खातिर खुमान साव जी ल अपन संग जोड़ के मिशन चंदैनी गोंदा के माध्यम ले छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति अउ साहित्य के अलख जगाइस। दाऊ जी के अधुरा सपना ल खुमान साव जी ह पूरा होवत अपन नजरभर देखे हावय अउ ओमन सरग म जाके ये सब बात ल उनला जरूर बताइन होही। 



अलग छत्तीसगढ़ राज बने के बाद कई बार चंदैनी गोंदा के कार्यक्रम देखे के अवसर मिलिस। गजब के प्रस्तुतिकरण रिथे, शहर म तो एके दू घंटा के होथे पर असल आनंद तो गांव के मंच म रातभर देखे ले आथे। लगभग 30-40 कलाकार के दल ल अतका साल तक चलाना साव जी के कुशल नेतृत्व क्षमता ल दर्शाथे। चंदैनी गोंदा के कार्यक्रम जेन भी गांव म लगे होही ओमन साव जी के बेवहार ले भी वाकिफ होही। गांव के लोगन जब कार्यक्रम लगाये बर जाथे तो साव जी आगूच म रट-रट माने सोज-सोज बात करय, अतका कन देबे, एदइसे-एदइसे कार्यक्रम होही अउ गांव म तै अइसन बेवस्था बनाके राखबे। साव जी साफ-साफ बात करय भले सामने वाला ल लगय के सियान ह कड़ा जुबान के हावय फेर साव जी तो साफ अउ नेक दिल के स्वाभिमानी व्यक्ति रिहिसे। उन जीवन म कभु अपन स्वाभिमान संग समझौता नइ करिन। स्वाभिमानी अउ सिद्धांतवादी साव जी अनुशासन के पक्का रिहिसे जेन गांव म भी कार्यक्रम लगय उहां कोनो भी विकट परिस्थिति होवय पहुंचय जरूर। चंदैनी गोंदा के अलावा अउ कोई संस्था छत्तीसगढ़ शायद ही होही जेमा 30-40 हजार के दर्शक जुटत होही। अतका भीड़ ल संभालना अउ रातभर मंच ले जोड़े रखना साव जी के कुशल निर्देशन क्षमता अउ प्रतस्तुतिकरण के ऊंचाई ल दर्शाथे। 21 वीं सदी के भारत म पुरातन छत्तीसगढ़ के लोकरंग के अमिट छाप छोड़ना चंदैनी गोंदा के मिशन अउ खुमान साव जी मेहनत ले ही साकार होइस। 
मिशन चंदैनी गोंदा के कारण ही आज छत्तीसगढ़ के लोक कला कहा ले कहा पहुंचगे हावय। केहे जाथे कि छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कला, संस्कृति अउ साहित्य ह तइहा समे ले अब तक वाचिक परंपरा म संरक्षित हावय। जुन्ना सियान मन भलुक आखर गियान कोति चेत नइ करिन फेर अपन परंपरा अउ संस्कृति के सरेखा करे के बड़ सुघ्घर उदिम करिन किस्सा-कहिनी अउ गीत-गाथा के रूप म अपन लोक कंठ म सहेजे के। पीढ़ी दर पीढ़ी उही लोक कला-संस्कृति अउ साहित्य ह आज मौखिक ले लिखित युग तक पहुंचगे हावय अउ ये समयांतराल म बखत के कतकोन धुर्रा माटी के लबादा ह उनला प्रभावित करे के कोशिश म लगे रिहिस तभे देवता सहीं छत्तीसगढ़ के माटी म दाऊ दुलार सिंह मंदराजी अउ दाऊ रामचंद्र देशमुख के बाना उचइया खुमान लाल साव जइसन व्यक्तित्व के जनम होइस। 



खुमान साव जी ह अपन जीवन भर लोक म बगरे गीत कर्मा, ददरिया, सुवा, गउरा-गउरी, भोजली, पंथी, फाग, जसगीत, बिहाव गीत, सोहर गीत के अलावा अऊ आन पारंपरिक गीत मनला संकलित करके ओला नवा साज संगत म पिरो के मौलिकता के संग लोकप्रिय बनाये के जबर बुता करे हावय। एक तरह से केहे जाए तव छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकगीत मन खुमान साव जी के संगीत ले नवा जीवन पाइस नहिते आधुनिकता के बरोड़ा अउ पाश्चात्य संगीत के प्रभाव ह जीलेवा हो जतिस। उकरे मेहनत के परसादे आज घर-घर म चंदैनी गोंदा के गाना बाजथे अउ ओकर गीत बिगर तो कोनो नेंग-जोग पूरा नइ होवय। 
बिहाव संस्कार के गीत ल ही देखव ना एक डहर दफड़ा, दमउ अउ मोहरी म चुलमाटी, तेलमाटी, मायन भड़उनी, टिकावन अउ बिदाई गीत बाजत रिथे अउ दूसर कोति दाई-माई, ढेड़हिन सुवासिन मन बिहाव के नेंग-जोग करत रिथे। छट्टी छेवारी आगे अब सोहर गाना हावय तव चंदैनी गोंदा के गीत बजाव। परंपरा के निर्वाह अउ धार्मिक  अनुष्ठान बर पंथी, गउरा गउरी, सुवा, जसगीत, फाग, राउत नाचा अऊ उच्छाह मंगल बर कर्मा, ददरिया के लोकधुन। चंदैनी गोंदा अउ खुमान साव के ओढ़र म आज भले हम लोकगीत के बात करत हन फेर येमा छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति अउ साहित्य तको समाय हाबे। कला संस्कृति संग साहित्य घलो मिशन चंदैनी गोंदा के हिस्सा रिहिसे। आज के समे म हमर युवा पीढ़ी ह मौखिक ले लिखित परंपरा म आगे हावय तव हमरो जिम्मेदारी बनथे कि अपन पुराखा के करनी करम के सरेखा करन जेकर ले हमर अवइया पीढ़ी तको 1927 अउ 1971 के छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति अउ साहित्य के पुरोधा मनके योगदान ल सुरता राखे राहय।  
- जयंत साहू, डूण्डा, रायपुर 
[9826753304]
 jayanysahu9@gmail.com

छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य के चंदैनी शैली के संरक्षण म लोक प्रहसन के भूमिका

रेडियोवार्ता: अकाशवाणी केन्द्र रायपुर
छत्तीसगढ़ ल वइसे तो लोक कला अउ साहित्य के गढ़ केहे जाथे। इहां जतेक भी लोक जीवन म कला बगरे हे, साहित्य के जरई फोकियाए हे। ओमा हर प्रकार ले लोक जीवन के छइंहा दिखथे। या लोक कला के बारे म इही कई सकथन के लोक जनमानस जेकर प्रदर्शन करथे उही ह हमर लोक कला के रूप म आगू आथे। अउ संस्कृति ह लोक जीवन के अंग आय काबर की लोक ह जोन जीवन जीथे ओही ह ओकर संस्कृति आए। अबहो घलोक अब कहू हम अपन लोक कला अउ साहित्य ल लिखित रूप म संरक्षित राखे के बारे म विचार करबोन त ये करा जबर अड़चन इही आथे कि हम कतका ल लिख-लिख के राखे राहन। अउ का हम संरक्षण के बात करथन तव ओला लिखेच के गोठ काबर करथन। का संरक्षित करे के दूसर अऊ कोनो रद्दा नइ हो सके। जइसे हमर अंचल के लोक कलाकार मन अपन लोककला मंच के माध्यम ले इहां के लोक परंपरा अउ संस्कृति ल देखाथे। अगर हम वोकर कला ल देख के लिखे सकन तव तो ठीक हे, अउ नइ लिखेन तव का वोहा नंदा जही, अइसन बात नोहे। केहे के मतलब वोहा कभु नइ नंदावे। काबर कि हम अब अपन कला अउ संस्कृति ल जीयत हाबन।



आज जतेक भी लोककला ह अंतर्राष्ट्रीय अउ राष्ट्रीय मंच म प्रसिद्धी पाए हे वोकर कारण रिहिस के वोकर प्रदर्शन म विविधता रिहिस। समय के संग वोकर स्वरूप म नावा-नावा प्रयोग होवत गीस। इही नवा प्रयोग ले इलौता विधा चंदैनीच भर ह बांचगे हाबे। लोक नाट्य के दूसर विधा याने नाचा हम देखथन तव ओमा आनी-बानी के गीत अउ प्रहसन ह मिंझरगे हाबे। समय के संगे-संग नवा-नवा गीत-संगीत के समावेश होगे हाबे। अब अइसन चंदैनी विधा संग काबर नइ होइस ये हा चिंता अउ चिंतन करे के बात आए।
जइसे हम कोनो के मुंह ले सुनथन कि फलाना जगा चंदैनी होवत हाबे। तव सुनते साठ हमर मन म एके ठन चित्र दिखथे लोरिक-चंदा के। वास्तव म आज तक जतेक भी कलाकार मन ह चंदैनी विधा ल धरे हे, सुरू ले अब तक सिरिफ उहीच कथा-प्रहसन ल अनेक मंच म खेलत हे। देखइया मन तको उहीच-उही ल बार-बार देखत हे। अब ओमा के प्रहसन के बात करन अउ अन्य दूसर विधा ले ओकर तुलना करन, तव हम जान पाबो के ये लोरिक अउ चंदा प्रहसन ही चंदैनी शैली के बड़वार म अड़चन बनिस। ये विषय म अगर लोक कला अउ संस्कृतिकर्मी मन कइही कि चंदैनी म लोरिक चंदा किस्सा भर ल गाना हे तभे ओ चंदैनी शैली परिपूर्ण होही। कतको झिन के ये मानना हे कि लोरिक-चंदा ही चंदैनी आए। जबकि अइसन नइ हे। जे कलाकर साहित्यकार मन के ये मनना हे कि लोरिक चंदा अउ चंदैनी एक दूसर के परियाए आय तव ऐ मेरन वो बात के पै उघारना जरूरी हे कि अइसन बात रिहिस तव लोरिक चंदा ल लोकगीत, लोकभजन अउ बांस के कलाकार मन काबर गाये। लोरिक चंदा के उहीच किस्सा ल हम गीत नाटक अउ कथा-कंथली के माध्यम ले तको सुनथन। ये बात चिंतन करे के आय कि जब विधा के संरक्षण के बात करथन तव ये बात तको होना चाही के चंदैनी म तको आवत नावा प्रयोग, माने नावा प्रसंग ल लोक नाट्य चंदैनी शैली के संरक्षण म एक नव प्रयास के रूप म देखे जाना चाही। अउ ओकर भरपूर समर्थन होना चाही।




जइसे के ये बात ल तो सबो कोनो मानथन कि इहां कथा-कंथली के कोनो कमी नइ हे। अउ इहां के लोक नाट्य के नाचा विधा हर ये मामला गजब धनी हे काबर के ओला तो अनेक प्रसंग मिले हे मंचन बर, ओला कोनो बंधन तको नइ हे कि इही लोक प्रहसन ल खेलतेच रहना हे। जइसे चंदैनी वाला मन खेलत आवथे- " जय महामाई मोहबा के वो, अखरा के गुरू बैताले ये मोर, चौसठ जोगनी पुरखा के वो, भुजा पर होई सहाई वो मोर, सिया रामा सिया रामा सिया रामा हो, बंशी के बजइया मन मोहना ये तोर।"
ये प्रसंग म राजा महर के बेटी राजकुमारी चंदा अउ लोरिक राऊत के प्रहसन निकलथे। एमा एक राजकुमारी ह गांव के चरवाहा संग प्रेम करथे। ओकर कारण, अनेक कथाकार मन अपन-अपन ढंग ले प्रस्तुत करथे। फेर सबो के कथा म इही समानता आथे कि लोरिक एक गांव के चरवाहा होय के संगे-संग एक वीर योद्धा तको रिहिस। लोरिक ह आदमखोर बघवा ल अकेल्ला मार गिराथे। चंदैनी के कलाकर मन चुकि एक मंच नाटक के रूप म प्रस्तुत करथे तेन पाय के ओकर प्रहसन ह हांसी-ठट्ठा के किस्सा ले सुरू होथे। आम जन मानस ह लोरिक-चंदा म चार पात्र ल मंच म देखथे, जेमा सूत्रधार बने लोरिक ह कथा ल आगू बढ़ावत, कथा ल गावत रिथे। ओकर बाद के तीन कलाकार जेन मन चंदैनी के जान आए वोमा हे राजकुमारी चंदा अउ लोरिक राउत के गोसइन दौना मांजर। तीसरइया म पारी आथे लोरिक के डोकरीदाई जेन चंदैनी म मल्लीन दाई के नाम से जाने जाथे। मल्लीन के संवाद ले लोगन म हास्य के उमंग छूटथे। तव राजकुमारी चंदा हा अपन मया ल पाये के नाना उदीम करथे। उहे दौना मांजर घरेलू औरत के किरदार म जीव पारथे। आज के लोक जन मानस ह चंदैनी म इही तीनो-चारो पात्र के माध्यम ले मल्लीन घर के पासा पाली खेलना, दौना मांजर अउ राजकुमारी चंदा के बीच झगरा। ये प्रकार ले अब तक चंदैनी म अतकेच किस्सा ल देखत-सुनत आए हाबन।




अब कलाप्रेमी मन ल तको पारंपरिक के साथ-साथ ओमा कुछ अऊ देखे-सुने के चुलुक लागत हे। फेर चंदैनी शैली म कुछू अऊ उपराहा करे के गुंजाइसे नइ दिखे। अइसन म अब चंदैनी के तर्ज म दूसर कोनो प्रहसन आथे त वोहा निश्चित ही चंदैनी बर अमृत समान होही। छत्तीसगढ़ राज निर्माण के बाद अब चंदैनी के संरक्षण बर तको बहुत काम होवथे। ये जानके खुशी अऊ बाढ़थे कि प्रयोग म चंदैनी के प्रस्तुतीकरण माने ओकर गीत-संगीत ल मुख्य आधार मान के, प्रहसन माने कथा म आन कथा ल समोख के चंदैनी ल फेर हरियाए के मउका देवत हे। अंचल म अनेक लोक कथा हे जोन ल चंदैनी के तर्ज म पिरो के प्रस्तुती करे के सुरूवात तको होगे हाबे। अभी तक चंदैनी के पच्चासो दल सक्रीय हे जेन मन सिरिफ लोरिक अउ चंदा के प्रसंग के सेती अधिक मंचीय प्रस्तुती नइ दे पावत हे। आज जबकि दूसर विधा मन म अतेक विविधता आगे हे तव चंदैनी संग ये तो होनेच रिहिस। 
अब अंचल के लोक कला मर्मज्ञ चकोर के प्रयास ले चंदैनी शैली ल फेर नवा दिशा दे के उदीम होवथाबे। लोरिक-चंदा बरोबर टेकहराजा के प्रसंग ल अब वोमन मंच म खेलत हे- " आगुच सुमिरौ में पंच देवा, फेर जे दे जनम परान। सुमिरन करवं में ह पाली पहर, ये दे दिये हे जेन गियान। सुमिरन करवं में ह कुल देवता, दया मया जेन ले लें।। सुमिरन करंव में ह डिहसरी, कुवां डबरी नरवा खेव। डोंगरगढ़ के देवी बमलाई मोर, कुदरगढ़िन माई। खल्लारी गोहरावौं बरन-बरन, गोहरावौ दंतेश्वरी दाई। भोरमदेव ल पठोयेंव नेवता, नेवता नीक राजीम धाम। बारसूर सिरपूर पठोयेंव, बदौ जेकर नाम रे संगवार रे मोर..." अइसन वंदना के बाद सुरू होथे टेकहाराजा प्रहसन ह। टेकहाराजा के प्रहसन सिरसागढ़ राज्य के राजा धनराज अउ रानी पवांरा के इकलौता पुत्र मनसुख के जीवन चरित्र ऊपर केंद्रित हे। टेकहाराजा ह बड़ जिद्दी प्रवृत्ति के रिहिस जेन काम ल करे बर जोंग दय उहीच काम ल फत पारे, इही पाय के ओकर नाम टेकहाराजा परगे। कथा म आगू बताथे कि एक दिन टेकहाराजा हा अपन प्रजा के दुख-दरद जाने बर अपन राज्य म भ्रमण करे बर निकलथे। ओ कोति ढालू अउ केवंरा नाव के प्रेमी-प्रेमिका अपन मन के गोठ गोठियाए बर उही लच्छूखेव म मिले बर आय रिहिस। अइसने बाते-बात म ढालू ह अपन केवंरा ल चार चरितर के बात बताथे। 
  • पहिली बात- अपन के जहिजाद कोनो ल होय कभूच नइ धराना चाही। 
  • दूसर- अपन के माहंगी जीनिस अनचिनहार ल कभूच झन धराय।
  • तीसर- नीच बिचार, नीच बेवहार नइते नीच बुता करइया के चाकरी कभूच नइ करना चाही।
  • चौथा- बिहाव होय सगियान नारी ल जादा दिन ले मइके म झन राखय। 

ये चारो बात ल ढालू ह अपन केवंरा ल बताथे फेर ओला टेकहाराजा तको सुन डारथे अउ राजा ह अपन नाम के मुताबिक चारो बात के थाह ले बर निकल जथे। ओरी-ओरी सबो बात के परछो लेथे। चारो बात ह सिरतोन हो जथे। अइसन ढंग ले ये कथा ह प्रहसन के रूप म लोगन ल भरपूर मनोरंजन के संगे-संग समाज म गियान के अंजोर तको बगराइस। चंदैनी के अइसने दूसर प्रहसन आथे खोखन खल्लू के झूला-झांझरी म। जेन म एक चतुर ठग ह कइसे ढंग ले लोगन ल अंध विश्वास के जाल म फांस के धोखाधड़ी करथे। भोला-भाला मानुख मन के संगे-संग बने साव मनखे तको ठगी के सिकार हो जथे। ये मेरन प्रहसन के मूल उद्देश्य ल अउ किस्सा ल बताना ये पाय के जरूरी हे काबर की हमन चंदैनी के संरक्षण अउ संवर्धन के गोठ करत हन।




आज छत्तीसगढ़ अंचल म लोक कथा के अकूत भंडार हे। जेन प्राय: वाचिक परंपरा म फलत-फूलत हे। वर्तमान संदर्भ म कुछ-कुछ अब प्रकाशित घलव होय लगे हवै। एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी लोक कथा गायन के परंपरा के गति ह अब धिरलगहा हो चुके हे। जेखर गजब अकन कारण हे। मूल करण पारंपरिक जाति मन के परिवार के भरण पोषण अउ स्वयं के अस्तिव ल बचाए रखे खातिर लगातार जूझई। आधुनिकता अउ सिनेमा के चलत पारंपरिक लोक कला द्वारा उकर रोजी-रोटी जुटाय म असमर्थ होना, जेला सबो जानथे। इही पाय के आज कलाकार मन तको उही कला कोति लोरघत हे जेन कोति जादा आमदनी होथे या जेन विधा म काम करे से उंखर रोजी रोटी चल सके। चंदैनी के पिछवाय के एक ठिनकारण इहू रिहिस। अब जबकि चंदैनी शैली के उन्नयन बर नवा काम होवथे ओकर गीत-संगीत अउ मंचन ल आरूग रख के सिरिफ ओकर कथा ल परिवर्तित करके जुन्नाए तन म नवा सवांगा पहिराके फेर चंदैनी ल जन जन म लोकप्रिय बनाय जा सकत हे।

- जयंत साहू 
ग्राम-डूण्डा, पोस्ट-सेजबहार, रायपुर छ.ग.
 मो. 9826753304

छत्तीसगढ़ी लोकगाथा

छत्तीसगढ़ी रेडियो वार्ता || विषय- छत्तीसगढ़ी लोकगाथा || समय- 12 मिनट
छत्तीसगढ़ के लोक जनमानस म गजब अकन लोकगाथा प्रचलित हावय। आज जतके कन लोकगाथा लिपिबद्ध होय हाबे ओकर ले केऊ आगर ह मुअखरा लोक कंठ म समाये हाबे। चूंकि लोकगाथा के कोनो एक रचनाकार नइ होवे वो तो समकालिक परिशिष्ट म स्वमेंव उध्रित होथे। लोक गाथा के सिरजन के विषय म अनेक विद्वान मन अपन-अपन अनुमान बताथे फेर  कोनो ह एकर सही परमान नइ देवय की ओकर सिरजन कब होय हाबे। लोकगाथा के कथानक मन गजब लंबा होथे अउ लोकगाथा के लंबा होय के कारण तत्कालीन परिवेश अउ लोक व्यवहार आए। जेन व्यक्ति नहीं बल्कि सकल समाज के प्रतिनिधित्व करथे। छत्तीसगढ़ अंचल के लोकगाथा मन सिरिफ मनोरंजन के काम भर नइ करे भलुक सामाजिक कुप्रथा, रीति रिवाज के बोध के संगे-संग लोक साहित्य अउ संस्कृति के सरेखा तको करथे।

अब आव कुछ छत्तीसगढ़ी लोकगाथा मन ल अलग-अलग खंड म बांट के विस्तार ले वर्णन करथन। तव सबले पहिली सोरियाथन नारी प्रधान लोकगाथा मन ल जेमा दसमत कइना, नगेसर कइना, चंदा ग्वालिन, बिलासा केवटिन, अहिमन रानी, फूलकुंवर, रेवा रानी, केवला रानी, बहादुर कलारिन या कलार सुंदरी जइसन गाथा ल छत्तीसगढ़ म प्रमुखता ले गाये जाथे। ये सबो गाथा मन ले नारी शक्ति के अपने रूप के दर्शन होथे। अइसने प्रेम प्रधान लोकगाथा हावय जेमा ढोला मारू, लोरिक चंदा, रहिमन रानी, काम कंदला, सुतनुका-देवदीन, लीलागर, बोधऊ उक के प्रेम के किस्सा गजब सुने बर मिलथे। अब देखव आगू वीराख्यान लोकगाथा जेमा आल्हा, गोपाल राय, हीराखान, बीरसिह पवाड़ा, पंडवानी, रायसिह पवाड़ा, बीर बंधु आदि गाथा प्रमुखता ले गाये जाथे। इही रकम ले छत्तीसगढ़ म अध्यात्मिक लोकगाथाएं घलोक गाये जाथे जेमा भरथरी, गोपी चंदा, सरवन कुमार के किस्सा लोक म गजब प्रचलित हावय।

नारी प्रधान लोकगाथा म दसमत कइना के किस्सा ल इहां के कतकोन कलाकार मन अब मंच म तको गाये के शुरू कर दे हावय। कलाकार मन साज संगत के संग गजब सुघ्घर दमसत कइना के किस्सा ल गावत बताथे के ये भोजनगर के राजा भोज के किस्सा आए। राजा भोज के सात झिन बेटी रथे जेमा सबले छोटे बेटी के नाम रथे दसमत। एक दिन राजा अपन सातो बेटी ल बलाके एक सवाल पुछथे कि- बेटी तुमन काकर करम के खाथव, काकर करम के लेथव नाव। बारी-बारी ले छै बेटी मन किथे की पिताजी हमन तोरे करम के खाथन अउ तोरे करम के लेथन नाव। आखिर में दसमत कइना के पारी ल आथे त ओ कइथे कि पिता जी मै अपन करम के खाथवं अउ अपने करम के लेथव नाव। राजा भोज दसमत के बात सुनके गुस्सा जथे। मने मन गुनथे अउ किथे मैं देखिहवं तोर करम ल। राजा अपन सैनिक मनला बलाके दसमत बर अइसन वर तलाश करे बर किथे जेकर कर खाय बर अन्न झिन राहय, पहिरे बर ओन्हा झिन राहय अउ रहे बर घर झिन राहय। राजा के बात मानके सैनिक मन वइसनेच निच्चट गरीब आदमी ल पकड़ के लानथे अउ राजा ह अपन बेटी के बिहाव ल ओकर संग करा देथे। राजकुमारी दसमत अपन करम के लेखा मानके ओ गरीब आदमी संग चल देथे।

दसमत अपन पति संग गरीबी के जीवन गुजारत रिथे। एक दिन दसमत अपन पति ले पुछथे के तुमन तो रोज अतेक काम बुता करथव तभो ले गरीब के गरीबेच हव। आखिर का काम करथव तुमन। तब ओकर पति बताथे के हमन साहूकार बर पथरा फोड़ के जोगनी धरथन। दसमत किथे के एको ठिन जोगनी लाबे तो महूं देखहू। दूसर दिन एक ठिन जोगनी धर के घर लानथे। दसमत देखके दंग रही जथे। ओ तो हीरा आए अनमोल हीरा। तुरते दसमत ह अपन पति ल लेके ओ साहूकार कना जाथे अउ हीरा म हिस्सा मांगथे। अब हीरा पाये के बाद दसमत मनके गरीबी दूरिहा जथे। दसमत अब तो अपन पिता राजा भोज ले घलो जादा अमीर होगे। ये लोकगाथा ह एक नारी के आत्म सम्मान, राजा के अंहकार के पतन अउ गरीब के शोषण ल उजागर करत हाबे। लोकगाथा के अंत म नारी ह अपन पति के खातिर सति हो जथे, काबर के ओकर पति ह अपने पत्नी के इज्जत के रक्षा खातिर परान गवाए रिथे। दसमत कइना के ये गाथा ल परमुख रूप ले देवार कलाकार मन गाथे। श्रीमती रेखा देवार येकर सिद्धहस्त कलाकार हाबे।

अब अहिमन रानी के कथा ल देखथन त दुरूग राज के राजकुमारी के बिहाव सारंगढ़ राज के बीरसिंह के साथ होथे। वीरसिह शंकालू प्रवित्ति के रिहिसे। नानकून बात म वो अपनेच पत्नी ल मारे बर लग जथे। अहिमन रानी के ये गाथा म अपन सास के अवेहलना के दुष्परिणाम भोगत देखाय हाबे संगे-संग पतिव्रत धर्म के सेती फेर जीवन मिल जथे। अहिमन रानी के कथा म एक प्रसंग आथे जेमा राजा घोड़ा चोरी हो जथे। जेकर वापसी बर पासा पाली के खेल खेलना अउ अपन सरी गहना ल हार जाना बताये हाबे। बाद अहिमन के मुह बोले भाई ल ओला ओकर गहना ल वापस कर देथे। उही गहना के सेती अहिमन के पति राजा बीरसिंह भाई बहिनी के नता ल आन जानके अपन पत्नी उपर भरम जथे और ओला मार परथे। अंत म ओकर मुंह बोला भाई के सेती फेर ओमन संघर जथे।

अब प्रेम प्रधान लोकगाथा म लोरिक चंदा के किस्सा ल फरिहाथन। लोरिक चंदा म लोरिक राउत अउ राजकुमारी चंदा के प्रेम के किस्सा गाये जाथे। लोरिक अहिर समाज के बलखर युवा रिथे जेन बघवा ल तको मारे रिथे। तइहा समे म राजकुमारी चंदा के बिहाव राजा बिरबावन संग होय रिथे। जब गवना के बेरा आथे तव राजा ल कोढ़ के बिमारी रिथे। गवना कराये खातिर राजा ह लोरिक ल बिरबावन बनाके भेज देथे। ओ कोति राजकुमारी चंदा ह लोरिक ल ही अपन मन मंदिर म बसा लेथे। लोरिक के बिहाता पत्नी के नाम हे दौना मांजर राहय। लोरिक के मया म राजकुमारी ह ओकर घर मल्लीन दाई के ओड़र म मिले बर जाथे। लोरिक अउ चंदा ल मिलत दौना मांजर देख डारथे। चंदा अउ दौना म झगरा होथे। चंदा ह लोरिक ल बारा साल बर भगा के ले जथे। अइसन रकम ले ये लोरिक चंदा के ये किस्सा म प्रेम के संग हास्य और वीरता के भाव तको देखे ल मिलथे। लोरिक चंदा के किस्सा ल कतकोन नाचा गम्मत वाले मन तको देखाथे अउ चंदैनी दल मन तो लोरिक चंदा प्रसंग ल ही प्रमुखता ले देखाथे जेमा रामाधार साहू एक बड़े नाम हावय।

अइसनेहे एक अउ प्रेम प्रधान गाथा हावय ढोला मारू के। जेमा राजा ढोला लाल अउ रानी मारू के प्रेम के गाथा ल छत्तीसगढ़ में ढोला मारू के संगे-संग रेवा परेवा के नाम से तको जाने जाथे। ये छत्तीसगढ़ के अइसन लोकगाथा आए जेला आन राज म तको गाये जाथे। छत्तीसगढ़ म 'ढोला-मारू' राजस्थान म 'ढोला-मारू रा दूहा' ब्रज म 'मदारी को ढोला' आदि नाव ले जाने जाथे। गाथा अनुसार नरवर गढ़ के कछवाहा राजा नल के पुत्र के नाम सलह कुमार रिहिसे जेन बाद म ढोला लाल के नाम से प्रसिद्ध होइस। जब उंकर बिहाव होइसे ओ बखत ढोला के उमर तीन साल अउ मारू के उमर ढेड़ साल रिहिस। ढोला अउ मारू के बिहाव के प्रसंग के बाद रेवा नाम के जादुगरनी के प्रसंग आथे। रेवा जादुगरनी ह ढोला उपर मोहित हो जथे। ओहा एक दिन ढोला ल परेवा बनाके अपन संग ले जथे। अइसन ढंग ले ये गाथा ल लोक कलाकार मन सो सुने म बड़ रोचक लागथे। आज के समे म श्रीमती सुरूज बाई खांडे के बाद अब श्रीमती रेखा जलक्षत्रि अउ रजनी रजक येकर प्रमुख कलाकार हावय जेन मन ये किस्सा ल जीवित राखे हावय। 
अब गोठ करबोन वीराख्यानक लोकगाथा मनके जेमा सबले पहिली नाव आथे आल्हा-उदल के। आल्हा उदल के किस्सा में विरता अउ साहस के कई प्रसंग सुनाये जाथे। वीर पुरूष ह समाज म नारी के सम्मान अउ न्याय खातिर लड़थे। ये गाथा ल अइसन रकम ले गाये जाथे कि सुनइया मन के मन म जोस जाग जथे अपन मातृभूमि खातिर। आल्हा अउ उदल दूनो भाई गजब पराक्रमी रिहिन ओमन अपन मातृभूमि के रक्षा खातिर पृथ्वीराज संग भयंकर युद्ध करिस। ये गाथा म अनठावन लड़ाई के वर्णन हाबे। आल्हा खंड काव्य के गायन छत्तीसगढ़ के बाहिर घलोक होथे। जेन प्रकार ले वेदव्यास जी महाभारत महाकाब्य के रचना करिस, महर्षि बाल्मीकि ह रामायण के। ओइसने रकम ले जगनिक ह आल्हा काब्य के रचना करे हावय।

अब सोरियाथन लोकगाथा पंडवानी ल। पंडवानी ह हमर छत्तीसगढ़ के अमुल्य धरोहार आए। जेन ल दू शैली म गाये जाथे एक कपालिक अउ दूसर वेदमति। माने कपालिक म कथा के संग काल्पनिकता प्रयोग करे जाथे अउ वेदमति म सिरिफ वेद सम्मत गाथा के गायन होथे। पंडवानी के कलाकार मन हाथ म तंबूरा अउ करतान धरे पांडव मनके किस्सा ल सुनाथे। छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य पंडवानी गायक मन म सबले पहिली नाव आथे झाड़ूराम देवांगन, पद्मश्री पुनाराम निषाद, पद्मभूषण डॉ. तीजन बाई, चेतन देवांगन, प्रभा यादव, मीना साहू, प्रभा यादव, रितु वर्मा, शांति बाई चेलक अउ उषा बारले आदि के नाम विख्यात हावय। पंडवानी म महाभारत के मूलकथा ल आंचलिक भाखा म एक दिन, दू दिन, तीन दिन, सात दिन अउ नौ दिन तक घलोक सुनाये जाथे। पंडवानी गायक मन ल भजनहा तको केहे जाथे जेमन सबलसिंह चौहान के लिखे कथा के गायन 18 पर्व म बांट के करथे।पंडवानी में प्रमुख रूप ले आदि पर्व, सभा पर्व, उद्यम पर्व, भीषम पर्व, द्रोण पर्व, करन पर्व, शैल पर्व, तिलक पर्व, अश्वमेघ पर्व, स्वर्ग रोहन पर्व, मूसल पर्व, द्रोपदी स्वंबर, दुशासन वध, कीचक वध, अर्जुन शिव तपस्या, कुंती-गांधारी के शिव पूजा, अभिमन्यु विवाह, देवासुर संग्राम, भरत वंश की कथा, कर्ण जन्म, गीता उपदेश आदि कथा प्रसंग के गायन होथे।

                                        
अब पारी हावय आध्यात्मिक लोकगाथा भरथरी के। भरथरी म उज्जैन के राजा भर्तहरि के जीवन चरित्र के गायन करे जाथे। येमा राग, विराग के अंतर्द्वन्द अउ तर्क-वितर्क के द्वंद्व ले जुरे राजा भरथरी के नीति, श्रृंगार, वैराग्य के अध्यात्मिक कथा हावय। छत्तीसगढ़ म भरथरी के किस्सा ल तको अलग-अलग खंड म बांट के गाये जाथे। भरथरी के प्रसिद्ध गायिका श्रीमती रेखादेवी जलक्षत्री अउ श्रीमती सुरूज बाई खांडे ह राजा भरथरी के गाथा ल जनम से लेके विवाह अउ वैराज्ञ तक नौ खण्ड म सुनाथे। बताथे कि राजा भरथरी अउ रानी सामदेवी के बिहाव के रात ही ओकर पलंग टूट जथे। जेला देखके रानी हांस परथे। तब राजा ह पलंग टूटे के कारन ल रानी ले पुछथे। रानी किथे के मोर बहिनी पिंगला येकर कारन ल जानथे। राजा ह पिंगल ल बलाके पुछथे तव वो बताथे के पूर्व जन्म म तुमन महतारी बेटा रेहेव इही पाके ये पलंग ह टूटे हावय। अतका ल सुनके राजा दुखी हो जथे। येकर बाद आगू के प्रसंग म राजा के शिकार के किस्सा आथे जेमा ओमन एक काला मिरगा के शिकार कर देथे। एक काला मिरगा के छै आगर छै कोरी मिरगीन मन राजा ल श्राप दे देथे। राजा श्राप ले मुक्ति खातिर गुरू गोरखनाथ के शरण म चल देथे। गोरखनाथ बाबा कहिथे के तोला अपने महल म भिक्षा मांगे बर जाना हावय अउ अपन रानी ल मां कहिके पुराना हाबे। अइसन ढंग ले भरथरी गाथा म राजा के जीवन के अनेक घटना ल बताये जाथे।

अइसने रकम ले सरवन गाथा तको हावय। सरवन कुमार के गाथा ह रामचरित मानस ले लिये गे हावय। येहू गाथा ल छत्तीसगढ़ के अलावा आन राज के मन तको गाये जाथे। ये गाथा म संतान बर माता-पिता के सेवा ल ही सबसे बड़े धर्म बताये गे हावय। ये कथा सुरू होथे अंधरी अंधरी माता-पिता ले जेकर ऐकच झिन औलाद रिथे सरवन कुमार। सरवन कुमार के पत्नी ह कुलक्षणी रिहिसे। सास ससुर के थोरकोच जतन नइ करत रिहिसे। अतेक दोगलई करे के ओकर भोजन रांधे के बर्तन म तको दू खंड रिहिसे। एकेच बर्तन ल दू किसम के चुरय। एक भाग म 'खीर' त दूसर भाग म 'महेरी'। अपन मन खीर खावय अउ सास ससुर न महेरी। ये बात के पता जब सरवन कुमार ल होथे त ओहा बहुत दुखी होथे अउ अपन पत्नी ल निकाल के माता-पिता ल तिरथ कराये के संकल्प लेके लकड़ी के कांवर बनाथे। सरवन कुमार अपन अंधी-अंधा मां-बाप ल कांवर म बइठार के तिरथ करे बर निकलथे। एक दिन प्रयाग जाये के रद्दा म ओमन ल पियास लागथे तव सरवन कुमार अपन माता पिता ल उही जंगल म छोड़ के सरयू नदी पानी लाने बर जाथे। ओ कोति राजा दशरथ शिकार करे बन निकले रिथे। ये कोति सरवन कुमार पानी के तुमड़ी ल नदी बुड़ोथे त ओ कोति राजा दशरथ पशु पानी पियथे समझके शब्दभेदी बान छोड़ देथे। बान लगते ही सरवन कुमार घायल होके गिर जथे। राजा दशरथ मनखे के आरो पाके दौउड़थे तव देखथे कि बान लगे सरवन कुमार आखरी सास लेवथे। राजा ल जबर दुख हो जथे, ये कोति सरवन मरगे ओ कोति ओकर मां-बाप पियास मरत हाबे। राजा दशरथ पानी लेके जब अंधरी अंधरा कना जाथे अउ पुरा घटना ल बताथे तव ओहू मन राजा ल श्राप देके अपन परान तियाग देथे। राजा दशरथ पछतावत-पछतावत तीनों झिन के अंतिम संस्कार करथे।

अइसन ढंग ले छत्तीसगढ़ म कतकोन लोक गाथा गाये जाथे जोन इहां के सांस्कृतिक विरासत के संगे-संग इहां के लोक जीवन म समाज के कुप्रथा अउ रूढ़ि वादी रीति रिवाज उपर कटाक्ष तको करथे। कतकोन लोकगाथा मन के गायन गुड़ी म नइ होय के सेती विलुप्त तको होवत होवय। हमर आगू के सियान मन मुअखरा जाने फेर नवा पीढ़ी मन सरेखा नइ करिन तेन पाके कतकोन मन के नावे भर बांचे हावय। कुछ लोकगाथा मन ज्यादा गुड़ी म गाये बजाये के सेती विकृत तको होवत हावय माने ओमा आधुनकिता के प्रभाव देखे बर मिलत हावय। अइसन म हमर जुन्ना तइहा के लोकगाथा मन ला लिपिबद्ध करके सरेजे के जबर उदीम करे के घातेच जरूरत हावय।
ब्लॉगर के गोठ- ब्लॉग म संकलित एदे लेख ल कतकोन झिन बड़का कलाकार, साहित्यकार अउ पत्रकार मनके वाचिक अउ लिखित तथ्य ल आधार बनाके गढ़े गे हावय जेन म मानवीय भूल हो सकत हावय। क्षमा सहित आप मनके मया आसिस के अगोरा म... जयंत साहू