अंधरौटी

पूस के अंजोरी रात रिहिसे। तेन पाय के रात के घलोक बियारा ले बेलन अउ दउरी के आरो मिलत रिहिस। अरा ररा.... होर होर, हररे हररे। अदरा बराड़ी मन खदबीद-खदबीद पैर म रेंगत हावे। बइला मन बने ओरी-ओरी सियनहा के आरो म धान छरत हे। बराड़ी बछवा होय चाहे सगियान बइला, पैर म रंेगे ले काम। बने रेंगे ले चारेच भांवर म पैर हा कोड़ियाक लइक हो जथे। किसान मन पाई पिल्ला मिल के कोड़ा देथे ताहन फेर पैर म दउरी रेंगे लगथे। पूस के अंजोरी म बेरा-कुबेरा के संसो नी राहय,चारो मुड़ा अंजोर बगरे रिथे। चार महीना ले खेती म पछीना गारे हे तेकर सोन झराये अउ सकेले के सुख म सबो जांगर के पिरा बिसर जथे।
पंदरा दिन म छोटे अउ मंझोल किसान मन के मिंजई के बूता उरक जथे। फेर बड़का किसान के मिंजई हा छेरछेरा के आवत ले पूरथे। कहां चार अक्कड़ के जोतनदार अऊ कहां चालिस अक्कड़ के जोतनदार। दाउ के किसानी बनिहार भरोसा ताय। पूरन गौटिया हा ठउका इही दिन ल अगोरथे कि कब छोटे किसान मन के बूता उरके अउ मोर बाड़ा म आके भूति करय। चार सौ अक्कड़ के जोतनदार पूरन गौटिया के बाड़ा म चार गांव के भूतिहार बूता मन मिंजई के काम ल उरकाथे।
पुरखा पाहरो ले अइसने चले आवत हे। छोटे किसान आगू मिंजे तेकर पाछू गौटिया के बाड़ा म बनि कमाय बर जावे। अब गौटिया घर के सियानी पूरन गौटिया के हाथ हे। पूरन गौटिया पढ़े-लिखे अउ दान धरम वाला मनखे आए। बनिहार ल कभू बनिहार नइ जाने। कमईया मन के गजब गुन-गान करय।
पूरन गौटिया सबो भूतिहार मन के पिये खाय के जोरा करथे अउ रात दिन काम ल कराथे। गौटिया के चाल-चलन अउ बेवहार के सेती एको बनिहार मन आतर नी करत रिहिसे। चार गांव के भूतिहार मन के रोजी-पानी के सरोखा करे बर चार झीन दरोगा तको लगे रहाय।
आन साल ले ये दरी बनिहार मन ल आये म बड़ देरी होगे। आहे तेनो मन कमाय बर ना नूकून करे बर लगगे। आजे-आज काले-काल देखत-देखत पंदराही होगे। तब एक दिन पूरन गौटिया ह अपन चारों गांव के दरोगा मन ल बला के किथे- दरोगा ए पइत बनिहार कमती आए हे, का बात होगे। दरोगा किथे- बात कांही नी होय हे गौटिया, भूतिहार मन मोटागे हावे। एक रूपिया किलो के चाऊर अउ फोकट के नून। अपने खेती के सरेखा नी करे सकत हावे। पर बनि का करे सकही। बियारी के संसो नइये, पेट पोसत हे सरकार, खात-पियत जांगर गरूवागे, कोड़िहा होगे हे बनिहार।
दरोगा के गोठ सुन के गौटिया ल अचंभो होगे। गौटिया चिन्ता म परके मने मन गुने लगगे। दरोगा गौटिया ल फिकर करत देख के किथे- तूमन संसो झीन करो गौटिया। इहां बनिहार नी आवत ते झन आवे हमन आन राज के बनिहार लानबो अउ काम ल फत परबो। गौटिया किथे- मोला मोर काम के संसो नइये दरोगा। मोला तो ये बनिहार मन के जिनगी के संसो हे। बनिहार मन अलाल अउ सुखियार हो जही तव दुनिया कइये चलही। मोर काम के फिकर नइये, काम करे बर तो कोनो कोत के बनिहार ल लान लेबो फेर चिन्ता मोर गवई-गांव के बनिहार मन के हावे। पर के आसरा म जिनगी जियई ह ओमन ल माहंगी परही। अपन काम बूता छोड़ना बने बात नोहे दरोगा, चलो तो गांव के बनिहार मन ल समझाबे। दरोगा मन तको किथे सिरतोन काहत हव गौटिया। चलव तूहर केहे ले उंकर चेत आही ते आ जही। गौटिया अउ चारों दरोगा गवई-गांव के बनिहार मन ले गोठबात करे बर गांव गीस।
सबले आगू गौटिया अपन जून्ना गांव चौरेंगा पहुंचिस। सबो मनखे गांवे म राहय। कोनो दुकान म ठाड़हे, कोनो तरिया पार म त कतकोन चवंरा म खड़खड़िया खेलत राहय। गौटिया ल देख के जेन मन पालगी करे बर ओरियाए तेने मन दूरिहाच ले गौटिया ला जोहर भेट अउ राम राम करे। अइसे बेवहार होइस जानो मानो गौटिया ह दरोगा के सगा आए अऊ ऊंकर बर कोनो अनचिनहार। बदले बेवहार ल देख के गौटिया दरोगा कोत ल देख के किथे- सिरतोन कहे दरोगा गवई-गांव के बनिहार मन सिरतोने म बदलगे हाबे। ये मन कोड़िहा होय के संगे-संग अपन संस्कार ल तको भुलागे हावय। गौटिया ह कोनो बनिहार ले कुछू नी बोलिस अउ उहा ले निकलगे।
चौरेंगा ले सोज निकलगे खारे-खार किरंदुल। किरंदुल के मोड़च म पहुंचे पाय राहय के ओति ले एक फटफटी म चार सवारी लड़बीड़-लड़बीड़ आवत राहय। गौटिया के तिर ले झपावत-झपावत भुलकिस। दरोगा ह देख के... देख के... देख के चला काहते हे। थोकन आगू म जाके चारों के चारों नरवा म झपागे। दरोगा मन जाके धरा पछरा उचइस। नंगत के मंद पिये राहय। दूरिहाच ले दारू-दारू माहत राहय। दरोगा मन चिंगी-चांगा उठाके बइठारिस। भुइया म पांव नी माड़त रिहिसे। लथरे परे।
गौटिया हा दरोगा ल पुछथे- ये मन ल चिनहत का दरोगा?
दरोगा किथे- हहो गौटिया ये मन किरंदुल के बनिहार कचरू, भगेला, पतालू अउ जनक के टूरा मन ताय।
गौटिया किथे- बनिहार के टूरा मन नवा फटफटी म दरोगा? दरोगा- हव। इहीच मन भर फटफटी वाला नहीं, सरी गांव के मन फटफटी वाला होगे हे।
गौटिया- अइसन कइसे होगे दरोगा, काही हंडा-उंडा तो नी पाये हे।
दरोगा- खेत ल बरोय हे चंडाल मन।
अतका बात ल सुन के गौटिया के मन अऊ उदास होगे, दरोगा ल किथे- चलव दरोगा अब गांव लहुटबो। ये मन तो हमर ले बड़का गौटिया होगे हे। घरे म जाके कुछू गुंताड़ा लगाबो।
चारों दरोगा के संग गौटिया ह उही मेर ले लहुटगे। अब गौटिया ह दरोगा मन के कहे मुताबिक आन राज के बनिहार लान के मिंजई-खुटई के काम ल उरकइस। सबो धान ल कोठी म छाब के धर दिस अउ अपन लोग-लइका सुद्धा परदेस चल दिस। गौटिया कहू जाय कहू आय कोनो ल फरक नी परिस। काबर की सबे के बियारी सरकारी चाऊर ले होवत हे। गौटिया ह परदेस का गिस अपन खेत-खार गांव कोति हिरक के नइ देखिस। चार सौ अक्कड़ दू फसली खेती ल छोड़ के गौटिया हा परदेस म सुख ले नइ हे फेर का करय बनिहार मन के सेती जाय बर परगे। दरोगा मन सोचिन हो सकथे गौटिया हा अभी रिस म गे हाबे। दिन म फेर आ जही। जोहत-जोहत जोजन परगे। गौटिया किसानी के दिन म तको नी अइस।
चारों गांव के दरोगा मन कर गौटिया के संदेसा अइस- ''दरोगा मन ल मोर जय जोहर अउ आसिरवाद, मै इहां बने-बने हाबवं। गांव के देबी-देवता के असिस ले तहू मन बनेच बने होहू। मै अपन खेती-खार घर दुवार ल तूहरे मारफत छोड़ के परदेस आय हवं। घर ल बने जतन के राखहू अउ दाई-ददा के फोटू म रोज दीया ल बरहू। कोठी म मुसवा झीन झपाया, बने तोप ढांक के राखे रहू। दरोगा तुहर ले एके ठिन अरजी हावय मोर आय बिगर खेत म एको बीजा अन झन बोहू। न धान, न गहू, न ओनहारी। साग-भाजी लगाय के तो नामे झीन लेहू। मोर धनहा ल पटपर भांठा होवन दव। मोर अतकेच कहना हे। आगू के सोर खबर ल आके सुनाहूं, राम राम।ÓÓ अतका बात ल गौटिया ह पाती म लिखे चारों गांव के दरोगा मन ल पठोय राहय।
गौटिया के कहे मुताबिक चारों गांव के दरोगा मन ओकर खेत म एको बीजा नइ बोइस। चर-चर गांव के खेती भर्री भांठा होगे। अब जेन कुआं बोरिंग तरिया आठो काल लबालब राहे तेन मन चार महीना म सुक्खा परगे। गांव के मन संसो म परगे। एक रूपिया के चाऊर अउ फोकट के नून के परसादे थोरे जिनगी चलथे। जेवन तिपोय पर आगी पानी लागथे। चार कावंरा लिले बर साग-भाजी तको होना। गौटिया के जेन बारी ले सबो के साग-भाजी चले तेन गौटिया बारी तो पटपर भांठा होगे हे। बाहिर-बाहिर ले साग-भाजी आवथे। एक रूपिया के चाऊर बर दू कोरी के साग बिसावथे। पांच कोरी के तेल म साग भुंजत हे। काबर की बिगर तेल के साग तको तो नी मिठावत हे, मुहंू चिकनागे हाबे। पानी बर आधा कोस रेंग के जावत हे।
दिनों-दिन गांव वाला मन के दिन दुबर होय लगगे। सियान मन संसो म बुड़गे। कोनो चीज ल बरो के काहीं बिसा लेतिस, ऊहू तो नइ हे। खेती तो पहिलीच ले बेचागे हाबे। खड़खड़ी फटफटी ल कोन लिही। उज्जट घर ल बेंचही त रिही कामा। सबो ल काम बूता के संसो होगे। कोनो सहर जाथे त कोनो आन राज म काम खोजे बर जाथे। फेर जाय के पहिली सबो झीन दरोगा के दुवारी जा जाके गौटिया के सोर संदेसा लेवेे। कब आही, कब आही किके दिन गनऊल होगे।
अब ओखरो मन के आंखी के अंधरौटी म बगबग ले अंजोर होगे राहय। चारो गांव के बनिहार मन गुने लागे। हमरे करनी के सेती गौटिया हा उदास होके परदेस गे हाबे। आन के तान होगे। अबतो हमु मन सुखी होगेन सोचत रेहेन, फेर ये बात ल भुलागे रेहेन के पर के आंखी के सुख हा रतिहच भर रहिथे। पहट होथे सुख ह लिला जथे। हमी मन अपन जांगर म कीरा पार के ये दिन लाने हन। एक रूपिया के चाऊर के लोभ म परके आज सरी जिनीस ल बिसा-बिसा के खावत हन।
गवई-गांव के हाल ल देख के दरोगा ह गौटिया ल पाती पठोइस- ''गौटिया अउ गउटनीन दाई ल दरोगा के परनाम। हमर हालचाल तो आप मन जानतेच हव। तुहरे परसादे हांसी खुशी ले हाबन। तुमन तो चिट्ठी पाती बर मना करे रेहेव फेर ए कोति के हालत ल देख के बरजोरी करत हवं। चारों मुड़ा तूहर जाय के चिन्ता छाय हे अउ आय के फिकर हे। बनिहार मन के मालिक बने के सपना हा महंगाई अंगरा म लेसागे हाबे। आगू बनिहारे रिहिस अब तो कंगला होगे हे। नान-नान बात म तको हड़िया कुड़ेरा बेचे के दिन आगे हे। दारू बर धोवा चाऊर नी बाचत हे। घर के लजवंतिन ह चेंदरा ल पहिने गिंजरत हे गौटिया। आखरी आस तोरे लगाय हे कि गौटिया आही तभे हमर ये दुख के दिन बिसरही। रोज तोर आये के सोर संदेसा लेवत हे गवई-गांव के मनखे मन। जेन मन इज्जत ले अपन खेत म काम बूता करे तेन मन आज पर घर के झुठा-काठ धोय-मांजे पर चेरिया बने हे। घर के डउका लइका के गारी नइ सुने हे तेन मन गली-गली ठोसरा सुनत हे। आ जाव गौटिया अब गांव के सुख ल फेर लान दव। ऐ पाती म अतकेच कन, तुहर दरोगा।ÓÓ
दरोगा के लिखे पाती ल पढ़ के गौटिया के मन रो परिस। अउ गांव वाला मन के फछतावा के आंसु हा गौटिया के आंखी ले तको टपकगे। उही घड़ी अपन सुवारी दूनों जोरिस जंगारिस अउ गांव लहुटगे। गांव आके गौटिया अपन घरों म नइ निंगे रिहिस अउ गवई-गांव वाला मन के रेला लगगे। अपन-अपन ले छिमा मागे- हमन तो अनबुद्धि आन गौटिया तिही हमर सियान आस हमन ला छिमा करदे। हमर ये कोड़िहा जांगर ल फेर बनि भूति मा लगा। तूमन गांव का छोड़ेवं हमर तो सरी जिनीस बेचागे। गौटिया हा गवई-गांव वाला मन ल समझवत किहिस- महू ह तूहर ले दूरिहा के सुख नइ पायेवं। मै तो अपन खेती खार के दूरदसा बिगाड़े फैसला छाती म पथरा मड़ाके करे रेहेवं। आज बड़ खुसी होवथे तुमन ल फेर एके जगा जुरियाए देखके।
संसो झन करा फेर हमर दिन लहुटही। मै तुमन ल बनिहारे नइ मानवं तुमन तो धरती सिंगार आव। तुहरे मेहनत ले ये धरती ह सरग लागथे। मै सरकार कोती ले मिलइया एक रूपिया के चाऊर फोकट के नून के दुसमन नइ हवं, मै तो अलाली अउ फोकटइहा उदाली के दुसमन रहेवं। अउ तुमन काम बूता करना छोड़ दे रेहेव तेकरे सेती तुहर जिनगी नरक होगे रिहिसे। गौटिया हा सबो के मुड़ म फेर हाथ राखिस अउ दरोगा ल किथे- दरोगा जा तो नांगर ल निकाल आज ले फेर हमर भांठा म सुख के सोना बोये बर जाना हे। गौटिया के आरो पाके दरोगा संग सबे गांववाला मन अपन-अपन नांगर बखर ल फेर खेत म लेगिन अउ हांसी खुसी काम बुता म लगे।

1 टिप्पणी:

  1. डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' . आप के बहुत बहुत धन्यवाद.
    धन भाग कि मोर लेख ह चर्चामंच के चर्चा म आइस.

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