छत्तीसगढ़ी भाषा में हाना (लोकोक्तियाँ) का प्रयोग

छत्तीसगढ़ी भासा ह व्याकरण के दृष्टि ले गजब समृद्ध हवय। 1885 म हीरालाल चन्नाहू ह छत्तीसगढ़ी व्याकरण के सिरजन करिन जेकर अंग्रेजी भासा म अनुवाद तको होवय रिहिसे। इही कृति खातिर हीरालाल जी ल कलकत्ता के एक संस्था कोति ले 1890 म काव्योपाध्याय सम्मान ले विभूषित करे गे रिहिस। तब ले अब तक छत्तीसगढ़ी ह देवनागरी लिपि म लिखे अउ पढ़े जावथाबे। अभिव्यक्ति के माध्यम म मौखिक परंपरा ह छत्तीसगढ़ म जादा सजोर होय हाबे। मौखिक या वाचिक परंपरा ह संस्कृति के सरेखा के अभिन्न अंग होथे। जेन लोक समुदाय ह लिखित भाषा के प्रयोग नइ करय ओकर सांस्कृतिक आधार कथा, गाथा, गीत, भजन, नाचा, प्रहसन अउ हाना आदि ह होथे। छत्तीसगढ़ म जब हम वाचिक परंपरा के बात करथन तब हमन ल लोकनाट्य नाचा ह सबले जादा कारगर दिखथे, हम नाचा ल लोक संस्कृति के ध्वज वाहक कही सकथन। 



लोक कथा के बात करे जाए जो ये हा हमर सांस्कृतिक दर्पण आए जेन ह नवा पीढ़ी ल कथा के काल अउ समय के माध्यम ले ओ बखत के संस्कृति अउ परंपरा ल लोक म संरक्षित राखे के बुता करथे। अइसने पंडवानी, भरथरी, चंदैनी, नाचा, देवार गीत, बांस गीत आदि मन अपन गायन शैली म तइहा ल वर्तमान म देखाय के जबर उदिम करथे। इही रकम ले छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोक गीत जइसे करमा, ददरिया, पंथी, सोहर, फाग, बिहाव गीत, गौरा गीत, जसगीत, सुवा, निर्गुणी भजन आदि ह लोककाव्य लोक-जीवन के हर्ष-विषाद, आस-विश्वास, आमोद-प्रमोद, रीति-नीति, श्रद्धा-भक्ति अउ राग-विराग के भाव ल अत्यंत सहजता ले जीवंत करथे।



वाचिक परम्परा ल समृद्ध बनाये म हाना के गजब योगदान हावय। हाना ह छत्तीसगढ़ के लोक-जीवन के नीति शास्त्र आए, जेन म कम से कम शब्द म बहुत ठोस अउ बड़े ले बड़े बात ल कहे के क्षमता होथे या ये काहन के गागर म सागर भरे के काम हाना म होथे। येकर कोनो लेखक या सर्जक नइ होवय लोगन गोठबात करते-करत टप ले कही परथे आन के ओढ़र म आन ल। लोक-जीवन म अनुभव के बल म ही लोकोक्ति या हाना बनथे। इहा ये बात जरूरी नइये कि कहने वाला या जेखर बर कहे जावथे ओमन कोनो भासा विद्धान होय। समे म बात के लाइन म लोगन अकरस ले कहीं परथे जेला सुनइया मन समझ तको जाथे। छत्तीसगढ़ म हजारों हाना प्रचलित हावय अउ कोन हाना ल कब कोन ह बनाये होही येकर कल्पना करना असंभव हवय। 



छत्तीसगढ़ी म हाना ह आम बोलचाल के सबो विषय म प्रयोग म आथे। फेर सरी छत्तीसगढ़ म गांव के संस्कृति रचे बसे हावय ये पायके अइसे कही सकथन के गांव के रहन-सहन अउ रीति रिवाज ल लेके गजब अकन हाना केहे गे हावय। जेकर मरम ल ओरी-ओरी फरियात जाबो। 
मेहनत कस छत्तीसगढ़िया मन भाग्य म बिसवास नइ करय बल्कि अपन करम म भरोसा करथे। लोगन जानथे कि बने काम करबे त बने फल मिलबे करही, काम ले अजिरन होके भाग्य ल कोसना बेकार बिरथा होथे। तभे तो सियान मन केहे हाबे- ''चलनी म दूध दूहै, करम म दोस दवै।'' सीख अउ संदेश ले भरे ये हाना ल सुन के एक बात अऊ केहे जा सकतथे के छत्तीसगढ़ी हाना म लोक म उपयोग होवइया जिनिस मनके बड़ सुग्घर ढंग ले प्रयोग करे गे हावय जेखर से कोनो कम बुद्धि के मनखे तको आसानी ले समझ जाही। चलनी के उपयोग ह चाउर चाले म होथे अउ ओहा पूरा छेदा-छेदा रइथे तेन पाके कोनो जिनिस ल भरे नइ जा सकय। जब ओमा दूध दूहै के बात होवथे तव ये गुने के बात आये के दुध ह भला ओमा कइसे भराही, अब ये मउका म दुहइया हा अपन भाग्य ल दोस देही तब का फइदा। बल्कि ओ जगह अपन काम के शैली ल बदलही या फेर बने असन दुहना के उपयोग करे म लाभ होही।



कोनो भी समाज के बात होवय सब अपन-अपन अहम म जीथे वो किथे मोर बने, ए किथे मोर बने। कतकोन मन अपन ल बने कहाय बर आन के कमजोरी ल उजागर करथे। अइसन मन बर छत्तीसगढ़ी म हाना केहे गे हावय- ''अपन ला तोपै, पर के ला उघारै।'' ये हाना म बिगर कोनो लारी-लग्गा के सोज्झे अपने बात ल केहे गे हावय।
कतकोन अइसन आदमी घलोक होथे जेन मन जीवन म बने कारज करिन या गिनहा ये बात ल काखरो आगू म कहे ले बुरा मन जथे या नाराज हो जथे। वइमन मनखे ल हाना म केहे हावय-''करनी दिखै, मरनी के बेरा।'' ये हाना म हास्य घलोक हावय अउ संग म तीखा व्यंग्य तको करे गे हावय। जिनगी भर आदमी अपन काम के सही गलत के पै ल नइ देखै ओला भगवान देखा देथे आखरी बेरा म।
छत्तीसगढ़ म अधिकांश लोगन मन खेती किसानी म बुता करके अपन जीवन यापन करथे। परिवार के सबो सदस्य मन जुरमिल के काम ल उरकाथे। अउ जेन लइका ह काम ल छोड़के येती-ओती भागथे तिकर बर हाना केहे हावय-''काम बुता बर जांगर नहीं, दउरी बर बजरंगा।'' ये हाना म दउरी के बड़ सुग्घर उपयोग होय होबय, दउरी म फंदाय बइला ल सिरिफ गोल-गोल किंजरे भर के काम रिथे उपराहा म ओला पैरा अउ दाना खाये बर तको मिल जथे। इही बात ल धियान म राखत केहे गे हावय कि मेहनत के काम ल करे बर जी लुकाथे, जांकर पीरा के ओढ़र म मड़ाथे अउ जेन काम म सोज्झे किंजर-किंजर के खाना रिथे तेकर पर टन्नक हो जथे। हाना के भाव ल देखे जाए तव महतारी बाप मन अपन लोग लइका ल केहे हावय तेन पाके व्यंग्य म तको मया दिखत हाबे। ये हाना ल कोनो ल अकरस ले कहि देबे तभो रिस नइ करै अइसन मया छलत हाबे फेर ये सुनइया ल सीख तको देथे के काम बुता म चेत नइ करस तेन पाके तोला दउरी के बइला के संज्ञा देवत हाबे। 




छत्तीसगढ़ म काम बुता के आधार म उंकर बेड़ा खाप बने हावय जइसें लोहा के काम करइया लोहार, तेल पेरे के काम करइया तेली, कपड़ा लत्ता के काम करइया कोष्टा, माटी के बर्तन-भड़वा बनइया कुम्हार, सोना के काम करइया सोनार। कतकोन जातिगत अउ काम ल लेके तको हाना बने हावय-''खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना।'' येमा कड़ा व्यंग्य के भाव दिखथे जेमा सुनने वाला ल बुरा घलोक लगथे। जेन आदमी ह पर के उभरई म अपन सवांग बर आनी-बानी के जिनीस बिसाथे ऊंकर एक दिन खेती बिगड़ जथे माने बेचे के नौबत तको आ जथे। अउ आगू किथे के गांव म सही सुजानी बाम्हन नइ मिले ले गांव बिगड़ जथे। ये हाना ह लोगन ल संस्कारी बने रेहे के सीख दे गे हावय। इही म एक ठिन अउ हाना किथे के- ''खेती धन के नास, जब खेले गोसइयां तास।'' समाज के लोगन मन ल चेतावत सुजानी सियान किथे कि जब किसान ह तास खेलथे तव ओकर खेती धन के नास हो जथे। ये हाना ह सोज-सोज कहे गे हावय काबर के खेत ही किसान के सबले बड़े धन होथे अउ तास म हालाकी खेती ल दाव म नइ लगावे फेर गोसइया हा सवांगे तास खेले बर बइठे रही तव ओकर खेती के सरेखा कोन करही, खेत के काम बुता कइसे उरकही अउ अइसने-अइसने म वो मानुख आलसी हो जही। किसान के आलसी होय ले खेती धन तो बिगड़बे करही। अइसने मनखे मन बर तो ''जइसन बोही, तइसन लुही'' तको केहे गे हावय।
छत्तीसगढ़ म कृषि प्रधान अंचल आये इही सेती सबो घर काहीं न काहीं जिनिस के उत्पादन होथे माने ओकर घर सपुरन हाबे। तब जेकर घर जेन चीज हाबय ओमन उहीच-उहीच थोरहे बउरही। ये मेरन ये हाना आथे के-''तेली घर तेल रही तव माहल ल नइ पोतै।'' हाना ले दू बात सामने आथे के छत्तीसगढ़ म तेल निकाले के काम तेली मन करथे अउ दूसर बात ये के कोनो भी जिनिस के अति होय म ओकर व्यर्थ उपयोग नइ करे जाए। 
हमर अंचल म बेटी मन बर तको बड़ मार्मिक भाव लेके हाना केहे गे हावय। दाई-ददा बर ओकर दुलौरिन बेटी ह आन-बान अउ अभिमान होथे। बड़ दुलार ले नोनी ल ओकर मइके पठोथे तिजा-पोरा म पुछथे। जइसन बनथे तइसन मया के चिनहा भाई तको देथे। बेटी कहू भगवान घर ल चल दीस तव दाई-ददा उपर दुख के पहाड़ टूट जथे। तब महतारी बाप ल परिवार वाले सांत्वना देवत किथे-''दई लेगे लेगे, दमाद लेगे लेगे।'' ये हाना म दुख घलोक हे अउ सांत्वना के शब्द तको, काबर के बेटी पराया धन होथे। बाड़हे नोनी ल दमांद बिहा के लेग जथे। इही बात म दुख के भाव समेटत केहे गे हावय के बेटी ल तो बाप के घर ले जाना ही होथे, भगवान लेगय या दमांद। 
बहुत अकन हाना मन दू पद के तको होथे जेमा तुलना करे जाथे जइसे-
''तेल फूल म लइका बढ़य, पानी म बाढ़े धान।
खान पान म सगा कुटुम्ब, कर बइना बाढ़े किसान।।''
ये हाना म बड़ सुग्घर ढंग ले तुलनात्मक रुप म जिन्दगी के मरम ल बताये गे हावय। बने तेल फूल ले घर के लोग लइका बढ़थे अउ पानी ले बाढ़थे धान, घर के खान-पान ले सगा सोधर बाड़थे अइसने रकम ले किसान तको किसानी म जोंग देके कमाही तब ओकरो उरऊती ओही। 
''आषाढ़ करै गांव गौतरी, कातिक खेलय जुआं।
पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका लुआ।''
किसान बर असाढ़ के महीना ह बड़ महत्ता के होथे इही म तो किसान अपन खेती किसानी के काम बुता म फदके रिथे। काटा खुटी बिनना, खातु कचरा पालोना। मउका म बने पानी दमोरे ले बोवई के काम करना। अब अइसन म कोना गांव किंजरत हाबे तव तो गै ओकर किसानी। अऊ कातिक महीना धान लुवई के होथे। जेन मनखे कातिक के महीना म जुआं खेलत बइठे रिथे ओमन ल ये हाना ह व्यंग्य करत पूछथे के तोर खेत म कतका धान होइसे। एक प्रकार से हाना ह सीख के तको हाबे के एक किसान बर असाढ़ अउ कातिक के महीना ह कतका काम के होथे। 




अइसने समय के महत्ता बतावत एक ठी अउ हाना हावय-''डार के चूके बेंदरा अऊ बेरा के चूके किसान'' जइसे बेंदरा ह पेड़ के डारा ले कुदत बखत चूक जथे अउ भुइंया म गिर जथे वोइसन बरोबर किसान के तको बेरा के चुके ले ओकर फसल म गिरावट आथे माने किसानी म एक-एक समय गजब अनमोल होथे।
बहुत अकन हाना म ऐतिहासिक अउ धार्मिक तिरिथ बरत मनके तको नाम अउ महिमा के उल्लेख मिलथे जइसे- ''गोकुल के बिटिया, मथुरा के गाय, करम छांड़े त अंते जाय।'' ये हाना म गोकुल अउ मथुरा के नाव के उल्लेख होय हाबे। नाम के मरम अइसे हावय के जेकर कना सबो जिनिस हावय रहे बसे के तेकर बावजूद ओला अंते जाना परय त अइसन मानखे के दुरभाग आए। 
''घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध'' कतकोन अइसे लोगन घलोक होथे जेन मन अपने बीच के जानकार मनखे के कदर नइ करय अउ आन गांव के बइद ल राई टारे बर बला लेथे। अलस मरम ये हावय के हाना ले लोगन सीखय के गांव-घर म तको जानकार मनखे रिथे तेकरो आदर करना चाही, ये जरूरी तो नइये के आन गांव ले आही तिहिच ह अमग गियानी होही।
इही बात म बल देवत एक ठिन अउ हाना हवय-''अपन मरे बिन सरग नइ दिखय'' ये हाना के प्रयोग कथा कहानी म जादा देखे बर मिलथे काबर के इहां मउत अउ सरग के बात होवथाबे। कोनो मनखे जब आन आदमी के बात ल नइ मानय अऊ बर बरजोरी करके उहिच अनित ल कर देथे जेकर भुगतना ल आन ह भुगतत हावय तब किथे के तै नइ मानेस अब तहू भुगत। छत्तीसगढ़ी म कोनो अप्रशिक्षित आदमी कना कही सलाह लेवइया मन बर बड़ सुघ्घर हाना हावय-''अड़हा बइद परान घाती'' मतलब कोनो ल जर धरे हाबे अउ वोला कहू अड़हा बइद कर धरके लेगे तव तो बीमारी कमतीय ल छोड़ अऊ बाड़ जही, पराने छूट जही। वइसे तो ये हाना ह सुने म बीमार मनखे अउ अढ़हा बइद के उल्लेख हावय फेर येकर उपयोग अप्रशिक्षित आदमी ले काम करइया सबो जगह आसानी ले बोले जाथे।  




अब के समय म अइसन हाना ह बोलचाल म भले नइ आवय फेर लोकांचल ले नंदाय नइये। लिपिबद्ध नइ होय के बावजूद कलाकार मनके मूख ले जन मानस म बगरत हाबे। येकर सबले बड़े उदाहरण नाचा आए। नाचा म दू जोक्कड़ रिथे, एक झिन लेड़गा-भकला अउ दूसर ह बने चेतलग। गम्मत सुरू करे के पहिली ओमन हाना भांजरा ले दर्शक म हास्य भरे के प्रयास करथे। चेतलग जोक्कड़ ह हाना भरथे तव दूसर ह आन मतलब निकाल के लोगन ल हंसाय के बुता करथे तब ओला  हाना के सही अरथ बताये जाथे।  जइसे ये हाना-''ठाडे खेती गाभिन गाय जब आये तभे पतियाय'' म बात बहुत गंभीर हावय के खेत म फसल तो बोवाय हाबे, अब फसल ल देख के कतका होही येकर सही-सही हिसाब बताना बड़ मुस्किल हावय, जब सामने आही तभे ओकर भेद ह खुलही। मुस्किल अउ अटपटहा असन हाना के बाद नाचा म आसान अउ सोज-सोज अपन बात ल रखने वाला हाना ल गम्मत म कहे जाथे जइसे- आज के बासी काल के साग, अपन घर म काके लाज। कउवा के रटे ले बइला नइ मरय। जादा मीठा म कीरा परथे। देह म नइ ए लत्ता, जाए बर कलकत्ता। खातू परै त खेती, नइ त नदिया के रेती। खेती अपन सेती। उप्पर म राम-राम तरी म कसाई। छानी म होरा भूँज। तीन पईत खेती, दू पईत गाय। भाठा के खेती, अड़ चेथी के मार। धान-पान अऊ खीरा, ये तीनों पानी के कीरा। जब आये बरात तब ओसाये कपास। 
वर्तमान समय के छत्तीसगढ़ी गीत मन म हाना के प्रयोग अब देखे बर नइ मिलत हाबे लेकिन तइहा के पारंपरिक ददरिया म दू पद वाले हाना के प्रयोग गजब होय हाबे। जइसे- बराती बर पतरी नही, बजनिया बर थारी। मँही मागे बर जाय अव ठेकवा ल लुकाय। फोकट के पाईस मरत ले खाईस। सबे कुकुर गंगा नहाये बर जाहि त पटरी ला कोन चाटही। कब बबा मरही, त कब बरा चुरही। 




गाथा गायन म तको घातेच अकन हाना आथे जइसे- ''दाई देखे ठऊरी डऊकी देखे मोटरी।'' ये हाना म महतारी ह अपन औलाद के पेट के भात के थैली ल देखथे के मोर दुलरवा बेटा हा कमाय ल गे रिहिस दई खाय-पिये रिहिसे के नहीं, बने पानी पसिया मिलिस के नहीं। उही मेर ओकर घरवाली ह अपन पति के मोटरी ल देखथे के मोर आदमी ह कतका रूपिया कमा के लाने हावय। थोर बहुत बचाय हाबे के सबो ल फूक डारे हाबे। ये नानकून हाना के अतेक जबर मरम ल जब कोनो गाथा गायक ह अरथ ल बतावत गाथे तव सुनत दाई माई मनके आंखी म आंसू भर जथे। अइसने एक ठिन हाना हावय- ''बिआवत दुख बिहावत दुख।'' औलाद ल पैदा करे के पीरा ल एक महतारी के अलावा कोनो आन ह नइ जान सकय, अपन गरभ म नौ महीना राखे अउ ओकर सेवा जतन करे के पीरा हा महतारी बर नानकून आय फेर ओकर बिहाव के बेरा के पीरा ह ओकर बर दुख के पहाड़ हो जथे। बेटी ह बिहा के अपन पति घर चल देथे अउ बेटा के बिहाव करे म ओहा अपन गोसइन के हो जथे येकरे सेती केहे के गे हावय के बिआवत दुख बिहावत दुख। छत्तीसगढ़ म जतेक भी जीवन के सार ल बताने वाला हाना हावय ओमन ल हम किस्सा कहिनी मन म सुनते रिथन जइसे- उपास न धास फरहार बर लपर-लपर। चमगेदरी घर सगा गेस, तंहु लटक महु लटकहू। कंहा जाबे मोर बोरे बरा किंजर-फिर के आबे मोरे करा। जाने बर ना ताने बर, बड़का नांगर फांदे बर। जेखर नौ सौ गाय ते हर मही मांगे जाए। दार भात घर गोसइयां खाए, अपजस ले के पहुना जाए। घर के पिसान कुकुर खाए, परथन बर मांगे जाए। घर गोसइयां ल पहुना डेरवाए। एक झन लइका बर गांव भर टोनही। चार बेटवा राम के, कौड़ी के ना काम के। जिहां जिहां दार भात, तिहां तिहां माधो दास। खांध म लइका, गांव म गोहार। खाए बर भाजी अऊ बताए बर बोकरा।




ये जम्मो हाना मन अब हमन ल अपन अंचल के लोक जीवन ल समझे म मददगार साबित होवथाबे। आगू हमर पुरखा मन का गुनय, का चीज ल मन करय, काला बने मानय अउ काला गिनहा। छत्तीसगढ़ के हाना म प्रयोग होय आखर ह यहू बात बताथे के कोन-कोन से जिला म कते जिनिस के उच्चरण कइसे होथे। काबर के इहां कोस-कोस म पानी अउ बानी बदले के बात होय हाबे तव हाना मन ही मौखिक ले लिखित तक आये म जइसे के तइसे सबुत माढ़हे हावय। वर्तमान समय म इही हाना ही हमर साहित्य ल अउ ठोसलगहा बनाही। बोलचाल म बात ल प्रभावशाली तो बनाबे करथे संगे-संग बोलइया बर सभ्यता अउ लिखइय के आखर म मिठास तको भरथे।
 दस्तावेजीकरण-
-जयंत साहू
9826753304
jayantsahu9@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. गजब सुग्घर जानकारी जयन्त भाई। अइसने ददरिया के बारे म घरो कुछ जानकारी मिल जतिस तक बने रतिस। धन्यवाद ।

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  2. बहुत अच्छी जानकारी
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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