तिहरहा खरचा ले कोठी सिहरगे

एक तिहार के सगा झरन नइ पाये के ठउका दुसर तिहार लकठा जथे। अभी भइगे ओरी-ओरी तिहारे मनई चलत हाबे। काम बुता कहुं जाए तिहार मनाना जरूरी होगे हावय काबर के परोसी मनावत हावय। तिहार मनई म तो हमर छत्तीसगढ़ अऊ सबले अउवल होगे हाबे। हरेक पाख म एक ठिन तिहार धमक जथे। आज तो खरचा के गोठ करेच बर परही भले लोगन गंगु तेली काहय। थइली भरन नइ पावे खरचा पहिलिच ले, लागथे इही सब खरचा उठाये बर सियान मन बड़े-बड़े कोठी बनाये हाबे। पाख-पाख म तिहार तभो ले लोगन म भारी उच्छाह हाबे। आन काम बर एकात कन कंझाही, काय घेरी-बेरी किके। फेर तिहार बर थोरको नइ असकटावे। ये तिहार ओ तिहार ह बपरी माईलोगिन मन ला जियानथे अऊ बपरा कोठी ल। आदमी का एक दिन के तिहार ल तको हफ्ताभर मान देथे। यहू बात वाजिब हावय के इही तिहार मन तो हमर पहिचान आए। परब ले ही लोकांचल ह अलग चिन्हारी पाथे, आन प्रदेश के आगू हमर नाक ल ऊंचा करथे। सब कना हमन अपन लोक संस्कृति अउ परंपरा के डिंग मारथन। होली ले हरेली तक कुद-कुद के खायेच बर तो शायद कोठी ल भरे रिथे जांगर टोर मेहनत करके। कृषि प्रधान अंचल म खेती ले जुरे परब मन बेरा-बेरा म आके मेहनत करइया के जांगर ल सुकून देथे अउ इही बहाना नता रिस्तेदार ले मेल-मुलाकात तको होथे। इही पाके हम तिहार मनाये के कदापि विरोध नइ करन फेर लोगन आज जोन तिहार के ओढ़र म बाजार के संस्कृति ल आत्मसात कारत हाबे ओकर विरोध करना जरूरी हावय। तइहा म हमर सियान मन तको तिहार मनात रिहिन फेर अतेक देखावा नइ रिहिसे। सादगी ले सुंदर परंपरा के निर्वाह करय। आजकल के परब-तिहार के जोश अउ उंमग सिरिफ एक दिखावा होगे हाबे। लोक परब म पूरा-पूरा बाजार के कब्जा होवथाबे इही पाके अब लोक ह विलोप होके 'बजरहा परबÓ के रूप ले डारे हवय। तीज-तिहार के गढ़ कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ के 'बजरहा परबÓ के फायदा बाजार ह उठावत हाबे। तइहा के सियान मनके तिहार जोंगे के पै आन रिहिसे। अब बैपारी मन तय करथे तिहार के मरम ला, कोन से तिहार म का करना चाही? कइसे मनाये ले देवता परसन होथे अउ कोन मुहरत म खरीदारी करना चाही। एक बैपारी ह दुकान के बिक्री ल देख के तिहार के रौनक ल बताथे के तिहार कइसे बुलकिस। बैपारी मन अपन फायदा बर लोक परंपरा के मुह ल मोड़ दिस। आज बाजार म जाके देखे जाव तव जेन मन छत्तीसगढ़िया मनके संस्कृति अउ परब के जिनिस के दुकान सजाये हाबे ओमन स्वयं आन राज के संस्कृति ल मानथे। छैमसी परब के संस्कृति ल मानने वाले मन कइसे पाख-पाख म तिहार मनइये के ढोंग करत परे के कोठी उरकावत हावय। एक घड़ी चेत करके देखव तो के हमन तो तिहार मनई म फदके हाबन तव फेर जेन आदमी मन दुकान खोले बइठे हाबे तेन मन कोने? हां ठउका चिनहे ओमन बैपारी आए। अब बैपारी के केहे मुताबिक तिहार मनाना हे या जुन्ना सियान के मुताबिक येला लोगन ल सोचना हाबे। हम कंजुसई अउ खरचा म कटौती के गोठ नइ करत हाबन काबर के छत्तीसगढ़िया मन करा तो अनधन के भंडार भरे हवय। मेहनत करइया के जांगर जिंदाबाद, बउरे ले बटलोही के पेंदी खियाथे फेर हमन तो कोठी-डोली वाले आन। सिरिफ फोकट के देखावा ले दुरिहा रहना हाबे, अपन संस्कृति अउ परंपरा ले परब मनाना हाबे बिना काकरो नकल करें।   
                        
 * जयंत साहू*
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अस्पताल म गोड़ मड़ाय के ठउर नइये, दवई दुकान कचाकच


सम्मत के जर आए धन खान-पान के असर ते जेन अस्पताल म जाबे तिहेच मनमाड़े भीड़ पेले रिथे। अस्पताल ल ठउर-ठउर म खोले डॉक्टर मन गरीब ल देखते ही ठोमहा-ठोमहा दवई ल देके खून जांच, पेशाब जांच, अऊ ऐ जांच ओ जांच के पर्ची थमहा देथे। अस्पताल तो अब अइसे होगे हाबे जानो-मानो चाय-पान के दुकान, हरेक गली म एक ठन मिलही। आन देश के मन किथे के इहां के लोगन मन गरीबी अउ बीमारी म ज्यादा मरथे। ए सोचे के बात आए के अतेक बड़े-बड़े अस्पताल अउ डाक्टर होय के बावजूद बीमारी म लोगन मरत हावय। अरबों-खरबों रूपिया गवां के गरीब मन खातिर सरकार ह कल्याणकारी योजना चलावत हावय, तभो भूख ले कइसे मर जथे अऊ जेन गरीब भूख ले बांचगे वो बपरा ह नानकून बीमारी म मर जथे। जब आदमी के काल आथे तव ओला मउत ले कोनो नइ बचा सकय। फेर अब जबकि चिकित्सा विज्ञान ह अपनेच मुंह ले आगर के घाघर गोठियावथाबे के हमर कना हरेक बीमारी के दवई हाबे त ये बात कोति घलोक सोचे पर परथे के का ओ दवई के असर अमीर अउ गरीब उपर आने-आने होथे। कतकोन शहर म तो समे म उपचार अउ दवई-बुटी के बने बेवस्था होय के बाद घलोक बीमारी अउ बीमरहा मनके संख्या दिनों-दिन बाड़त काबर हावय। पहिली घलोक बीमारी होवत रिहिसे, उपचार तको होवय। समे के मुताबिक धीरे-धीरे उपचार के तरीका ह बदलत हावय। अब जेन झिन डाक्टर ते ठिन दवाई, उहू म जीव बांच जही येकर कोनो गारेंटी नइये। आदमी मरे चाहे बांचे डाक्टर के पूरा फीस देना जरूरी हावय। मरीज मरगे त ओकर घरवाले मन अस्पताल के पूरा खर्चा देही तभे लाश ल उठाही, अइसन हवय अब के उपचार व्यावस्था अउ डॉक्टर मनके नीति। 
सरकार किथे इलाज के आभाव म काकरो मउत नइ होना चाही, सबला बने उपचार मिलय। फेर इहां तो बने इलाज सिरिफ बड़हर बर हावय। जेकर कना रूपिया पइसा हावय ओमन बड़े से बड़े बीमारी ले उबर जथे अऊ जेकर कना इलाज कराय बर पइसा नइये ओमन सर्दी-खासी म तको ढलंग जथे। माने तोर करा पइसा हवय तव सब इलाज होही वरना भगवाने जाने तोर का होही? आयुर्वेद, योग, यूनानी, प्राकृतिक चिकित्सा, सिद्धा, होम्योपैथी, स्थानीय वनौषधि, जड़ी-बूटी अउ योग विज्ञान ले आगु लोगन के उपचार होवय। अब सबले ज्यादा ऐलोपैथी के बोलबाला हावय। आदमी के दिनचर्या म शामिल होगे हावय दवई ह। ए गोली मनके पहुंच दवई दुकान ले गांव के किराना दुकान तक होगे हावय। दुनिया म अइसन कोनो आदमी नइ बांचे होही जेन बिन दवई खाये जियत होही। लइका ह महतारी के गरभ म रिथे तभेच ले ओला विटामिन, प्रोटिन अउ कैल्शियम के टेबलेट के आदत हो जाये रिथे, तब बाहिर आये के बाद कइसे ओ लइका ह बिगर गोली दवई के भला-चंगा रइही। बात-बात म डॉक्टर अउ दवई के देखे तो अइसे लागे लागथे मानो दवई बनइया अउ डॉक्टर मन मिलके हर आदमी ल गोली-दवई के आदी बनावत हावय। दुबर-पातर ल मोटाय के दवई, मोट-डाट ल पतराये के। बाल झड़ाय के, जगाये के। बीमारी के हउ्वा ले आज देश म गोली-दवई के बाजार अतेक फूलत-फलत हावय के जेन ल कुछूच बीमारी नइये तेनो हा मोला कुछू बीमारी झिन होतिस भगवान किके बने-बने रेहे के दवई ल खावत हाबे।  
 ( जयंत साहू )
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