भाग लछमी

एक गांव म धनीराम नाम के एक झन मुरहा पोट्रटा मनखे रिहीस। वोकर कर गावं म घर न खार म खेत, जिंहे मिलय दाना पानी तिंहे करे बसेरा। धनीराम के गरीबी ह अतेक दुबर होगे रिहीस कि वोहा भिख मांगे के सुरु कर दिस। कोनो दिन मिल जए त खा लय नइ मिले त लांघन रइ जए। कोनो कोनो दिन जादा मिल जए त चार झन बाट के खाय। झुठ लबारी अउ चोरी चमारी ले धनीराम दस हांथ दुरिहा राहय।

एक दिन भगवान बिसनू अउ लछमी दार्इ ह धरती तनि किंजरे बर आय रिहीस। धरती के नजारा देखत देखत लछमी दार्इ ह बिखमंगा धनीराम ल देख डरिस। भगवान बिसनू ल पुछथे ये कोने स्वामी। भगवान किथे ये धनीराम आय। तव माता किथे धनीराम के अइसन गत काबर कर देहव भगवान, बिचारा गरीब पेट भरे बर गली गली किंजरथे।

भगवान बिसनु किथे देवी वो बिचारा नोहय वो तो पुराना पापी ये। धनीराम ह अपन पाछु जनम म जइसन करम करे रिहीस तइसन फल पावथे।

किथे न '' करम प्रधान विश्व कही राखा अउ जो जस करम करही जस फल चाखा ''।

जतके कन येकर पुन रिहीस ततके कन येला सुख मिलीस अब आगु ये अपन भाग के ल खाही।

धनीराम के हालत देखके लछमी दार्इ ह करलइ मरथे। वोहा भगवान ल किथे स्वामी चलव न येकर मदद करथन। तब भगवान ह लछमी दाइ ल समझावत किथे तै ओकर उपर दया झन लछमी, तकदीर ले जादा अउ मेहनत ले कम कोनो ल नइ मिले।

ये दुनिया ह जब ले बने हे तब ले अंजोरी अंधियारी ह बरोबर चलत आवथे। धरम अउ आस्था के ये धरती म करम के बड़ महत्ता हे। भाग्य ल मानुस अपन पुर्व जनम ले लिखा के आय रिथे। अमीर गरीब, सुखी दुखी, जोगी भोगी सबो रकम के मनखे होथे।

लछमी दार्इ किथे पुर्व जनम ल छोड़ भगवान ए जनम के येकर दुख ल टार दे। ये का दुनिया ये स्वामी एकझन हर छकत ले खावथे, छलकत ले लुटावथे अउ दूसर ह पसिया पेज बर लुलवाथे। सबला बरोबर देतेव भगवान। तब भगवान बिसनू किथे मै तो सबला बरोबर दे रेहेव कोन ह कातका का पइस ये ओकर मेहनत अउ करम के बात हे येमा मे का कर सकथवं।

     भगवान बिसनू कतको समझा डरिस फेर माता ह मानबे नइ करिस। आखिर म भगवान ह धनीराम के मदद करे बर राजी होके धरती म आइस। धनीराम ल धनवान बनाय बर माता ह अपन गहना गुठा ल हेर के एक ठन मोटरी म बांधिस।

     सोना चांदि हिरा मोती ले भरे मोटरी ल धनीराम आवत रिहीस तिही रददा म मड़ा दिस। येती बर धनीराम ह भिख मांगे के नवा नवा उपाय सोचत रिहीस।

     वो सोचथे हाथ गोड़ वाला साबुत आदमी ल आज काल कम भिख देथे अउ खोरवा लुलवा मन ल जादा देथे। मोला भगवान खोरवा काबर नइ बनइस। भिख मांगे बर खोरवा के नाटक तो नइ करे ल परतीस। फेर सोचथे रोजे रोज खोरवा बनना ठीक नइहे एका दिन अंधवा कनवा घलो बनना चही। भगवान बिसनू अउ लछमी दाइ ह सबला लूका के देखत रिहीस। थोरकेच म धनीराम ह आखरी मुंद के अंधवा बनगे। अब लउठी के सहारा म टेकत टेकत रद्दा म रेंगथे।

     रेंगत रेंगत वो ह रद्दा परे गठरी म हपट के गिरगे। धनीराम खिसीया के उठीस अउ आखी मुंदेच मुंदे गहना के गठरी ल कोन आगु आगु म पथरा ढेला बांध के मड़ा देहे किके कस के एक लात मार देथे।

     गहना के गठरी ह डुलत डुलत भगवान मन करा जा के रुकथे। येला देख के भगवान बिसनू ह लछमी दाइ डइर ल देखके किथे देखे देवी वोकर भाग ल तोर गहना ल लात मार के तोरे करा फेक दिस।

     लछमी दार्इ भगवान ले किथे एक मउका अउ देबो स्वामी अब वोकर आगु म जाके ओकर मदद करबो। भगवान किथे ठीक हे चलव भेस बदल के ओकर आगु म।

     येती बर धनीराम घला भेस बदल डरे रिहीस। बइहा पगला ल जेने मेर पाथे तेने मेर सुते बइठे के जगा मिलथे। इही पाय के धनीराम ह बइहा पगला के भेस धरे रिहीस। पगला मन बरोबर रुख राइ झाड़ झरोखा जिही ल पावे तिही त लउठी म मारत पिटत रांय रांय रेगत राहय।

     वोतके बेरा भगवान बिसनु लछमी दाइ धनीराम के आगु म आके किथे धनीराम हमन तोर सहायता करे बर आय हन बेटा। धनीराम सोचिस फेर कोनो वोकर काम बाधा बिघन करे बर आय हे। मेहा भिख मांगे के जिही तरीका अपनाथवं तिही म कोनो ना कोना बाधा परिच जथे।

     वोतका बेरा पथरा म अरहज के गिरेवं अब तूमन आगेव बेटा। राहले तुहर मंजा बतावथवं। धनीराम के एड़ी के रिस तरवा म चड़गे। धर तो एमन ल रे किके लउठी ल उबाके किटकिट किटकिट दड़थे। वो का जाने एमन सउहत भगवान बिसनू अउ माता लछमी हरे किके। बिसनू भगवान ह धरा पछरा भाग के किथे ये भाग्य लछमी तहू भाग नही ते धनीराम ह लउठी म बजेड़ डरही।

     धनीराम घला पाछू पाछू दउड़त किथे भाग लछमी ... भाग लछमी ..... भाग लछमी...।

     अब तक तो लछमी दार्इ ल समझ म आगे रिहीस भाग के खेल ह। धनीराम ल अपन हाल म छोड़ के भगवान बिसनू अउ माता लछमी दूनो झन चल दिस अपन लोक म।

भूमि अधिग्रहण- हमर तीन पिढी के घुरवा गै

आदमी कर जिही रिही तेकरे तो संसो करही भर्इ, जेकर करा खेती खार हे तेमन ल अपन-अपन खेत के संसो अब बइसाखू ह तो बपरा गरीब आदमी गांव के नानकुन घर के छोड़े अउ काहीच नइ हे। अब भुमि अधिग्रहण वाला मन गांव के सर्वे करिस की काकर कर कतका जमीन हे ओकर मुआवजा देबो किके। सबे अपन-अपन खेत खार के कागत पुरजा ल धर के लिखावत गिस। अब बइसाखू बिचारा का करे ओकर करा तो पुरखौती कांहिच नइ हे। घर के छोडे अऊ उपराहा कुछु हे त वोहे वोकर तरिया पार के घुरवा।
 वो घुरवा कब के हेबे तेन ल तो बइसाखू घलो नइ जानय। फेर जब ले होस संभाले हे तब ले उही घुरवा म अपन बेड़ा भर के कचरा फेकत आवथे। ओ घुरवा बर कम झगरा नइ होय हे। दू साल पहिली पंचइत भवन बनाबो किके सरपंच ह ओकरे घुरवा बर बानी लगाय रिहीस। जेन बखत सरपंच ह घुरवा ल पटवाय बर बनिहार पठोइस बइसाखू ह अगवाके घुरवा म सुत गे अउ गरज के किहीस लेव अब महु ल इही घुरवा म पाट दव। हमर तीन पिढ़ी इही घुरवा म राख माटी फेकत-फेकत उंकर मांदी के पतरी फेकागे। अब मोरो आस रिहीस कि मोर मरनी के मांदी के पतरी इही घुरवा म फेकाय। अब तो घुरवाच नइ रिही तेकर ले मोला जिते जियत इही घुरवा म पाट दव। पंचइत भवन छोडि़स तव पानी टंकी बनही किके नेव खोदवात रहिस अहु दरी नेव म जाके सुतिस त ओकर घुरवा बाचिस। आखिर एके ठन तो बइसाखू के पुरखौती चिनहा हे कइसे छोड़ देतिस। आखिर म पचइते ओकर घुरवा ल छोडि़स अब नया राजधानी वाला मनके सपेड़ा परे हे।

                  बइसाखू मुंह फारे देखत हे कि कोनो ह संग देतिस त यहू दरी जी परान देके अपन घुरवा ल बचाय के उदिम करतेव। फेर का करबे कोनो ह अपन पुरखौती चिनहा ल बचाय बर उदिमो नइ करत हे। गांव के पचइत ए ते पाय के बाचगे अब सरकार ले थोरहे बांचही। अरे सरकार तो जेकर करा लिखा पढ़ी के कागत हे, रजिस्टी वाला जमीन हे तेहू तक ल नइ छोड़त हे। अउ फेर बइसाखू कर तो कांही कागत पुरजा नइ हे। ओला तो मुआवजा घलो नइ मिलय गै तीन पिढ़ी के घुरवा।
अतका म एक बात तो साफ होगे कि दुनिया म जतका भी संसाधन हे सब सरकार के आय। ओ मन जिहा चाहय जब चाहय अपन कब्जा जमा सकथे। जे दिन तक सरकार के नजर नइ परे राहय लोगन ओकर उपयोग करथे। जिही दिन सरकार के नजर म आगे माने सरकार के होगे। हमर खेत राजस्व विभाग के आय, खेती म पानी पलोथन तेन ह नाहर डिपाटमेंट के आय, नांगर बक्खर म उपयोग करथन तेन बइला भइसा ह पशु पालन विभाग के आय, खेती किसानी के बिजहा अउ खातु ह खादय बीज निगम के आय। कर लेके बेरा सरकार किथे तुहरे सोहलयित बर आय त फेर आज किसान मन के जीवकोपार्जन के आधार ल नंगावत हे तव कहा हे ये विभाग।
अभी सुनर्इ आहे कि नया राजधानी म प्रभातित गांव वाला मनके व्यस्थापन बर मकान बने के सुरू होगे हे। पक्का मकान बिजली पानी चकाचक घर बनाके देवथे। एमन घर तो बनावथे पर का उइसेन गांव फेर बसा पही। गांव ल उजारना बहुत आसान हे बसाना नामुंकिन। गांव ह मकान अउ उहा के रहवासी मन के बसेरा ले नइ बसे बलिक सभ्यता अउ संस्कृति के रतियाए ले बसथे।


गांव उजार के गांव बसाने वाला मन जोन मकान बनावथे वोहा तो कोनो प्रकार से लगय नही कि ये गांव वाला बर बनावत हे। मकान म एक कोठा होना, एक परसार होना, चुल्हा बारे बर रंधनी खोली होना। धान धरे बर कोठी होना, छेना धरे बर पटाव होना। नहाय बर घर तिर म तरिया होना, बाहिर बÍा अउ निसतारी बर जगा होना। सबे घर के अपन कुल देवता होथे तेकर बर देवता खोली होना। देवता ल अइसने विराज मन घलो नइ करे सकय मान गवन करके आसन देबर परथे। एकर अलावा चरयारी चिज घलो लागही जइसे होले डउर, खैरखा डांढ़, खल्लरी मंदिर, शितला, ठाकुर देव, बरम बबा, परेतिन दार्इ, साहड़ा देव। नया जगह म तो येमे से एको ठिन के चिनहा नइ दिखे तव गांव के व्यवस्थान कइसे होही तेला उही मन जाने।


गांव उजारने वाला मन ल तो इही लागथे कि ओमन सिरिफ मकाने भर ल ए मेर ले ओमेर करत हे लेकिन गांव छोड़ने वाला से पुछव कि ओमन का का छोड़के जावथे। मुआवजा हर चिज के नइ हो सके।
धन्य हे बइसाखू भइया जोन घुरवा ल बचाय बर अपन जीव ल होम देवे। आज जब दस-दस बीस-बीस अक्कड़ के जोतन दार मन ल रूपिया गनत देखथवं तो मोला गर्व होथे बइसाखू भइया उपर कि ओमन अपन घुरवा गतर बर लड़ मरय। आज लोगन लड़त हाबे मुआवजा के राशि बड़वाय बर। अरे उही दिन बइसाखू सही सबो कोनो अपन-अपन खेती खार, घर दुवार ल पुरखा के चिनहा जान के सरकार ल धुतकारे रितेव त आज ये दिन देखे ल नइ परतिस।