नानपन म पंच-परमेसर वाला पाठ पढ़े रेहेन। मन म तको इही भरम रिहिस के जेन ह गांव अउ समाज के सियानी करथे तेकर मन म कोनो परकार के दूवाभाव नइ होवे, सबो ल एकेच लउठी म हॉकथे। अब तइहा के बात ल बइहा लेगे। भले हमर देस प्रजातंत्रिक काहवत हावय फेर जब देस म चलत कानून बेवस्था ल देखबे तब असली मरम समझ म आथे। जेन समाज के कोनो आदमी ह बड़े नेता या अफसर हाबे उहीच समाज के जादा सुनई होथे। सबो बड़का नेता या फेर अफसर मन अपने-अपने आदमी कोति जादा लोरहकथे।
कोनो मंत्री या विधायक कना कुछू काम लेके जाबे तब तोर काम पूरा कराये के पहिली ये देखे जाही के तै कोन पारटी के आदमी हरस। अगर कोनो पारटी के नइ रिबे त कोन ल वोट दे हावय ये बात के पता कराये जाही। वोट दे हावय त काम होही, नहीं त लगावत रहा चक्कर। अफसर के घलोक उही हाल हे। तोर आवेदन म लिखाए नाव अउ जाति देख के काम ल सरकाय जाही।
छत्तीसगढ़िया आदमी मनके काम इही पाके जलदी नइ सरके काबर के सबो बड़का पद म तो बाहिर के लोगन मन बइठे हाबे। हमन तो नावे देख के छंटा जाथन। ओमन भले हमर राज म नौकरी करत हाबे फेर ओकरो भीतर तो अपन अउ बिरान के भाव हाबे।
सासन अउ परसासान के करसतानी के कतकोन अइसे परमान हाबे जेकर ले ये उजागर होथे के वोमन मूल छत्तीसगढ़िया संग भेदभाव करथे। एक नजर मूल छत्तीसगढ़िया के रेहे अउ जीवन यापन के साधन के बारे म सोचे जाए के किसान ल का चाही, खेत या फेर कारखाना?
आए दिन कोनो न कोनो बड़का कारखाना मालिक मन छत्तीसगढ़ म कारखाना लगाये बर जमीन मांगथे। सरकार ह एक पांव म खड़े रिथे उकर मदद करे खातिर। गरीब किसान मन आंदोलन करथे। धरना करथे, चक्का-जाम करथे। ऊंकर विरोध करथे। सरकार के कोनो आदमी किसान के संग खड़ा नइ होवय। सरकार वाले मन एक जुट हो जथे। किसान के आवाज ल दबा देथे। काबर के सत्ता म कोनो किसान नेता नइये। सबके सब बयपारी के समरथक अउ मददगार हो जथे।
ताजा परमान देखव कमल विहार के। सुरू म कतका विरोध करिन किसान मन। धरना दीस, ज्ञापन सउपिस। आखिर म सरकार के जीत होगे। अब किसान मन परसासन के मन मरजी ले हलाकान, कमल विहार के अपन जमीन ल बेचत हाबे। सरकार तको तो इही चाहत रिहिस के किसान उहां ले भाग जावय।
किसान उपर कार्यवाही करे बर सोचे-विचारे के जरूरत नइ परे सासन-परसासन ल। फेर उद्योगपति अउ बयपारी मन उपर कार्यवाही करत बखत दस बार सोचथे। नोटिस दे देके कतको मामला ल रफा-दफा तको कर देथे। येकर कारन इही हावय के उकर मनके ताकत कोनो अऊ हाबे। राज्य अउ केंद्र के सरकार म उकर बड़का-बड़का चिन-पहिचान के, नता रिस्तेदार मन बइठे हाबे।
अइसन दुवाभाव तब तक चलही जब तक के छत्तीगसढ़िया मन म एक जुटता नइ होही। सत्ता म एके दू झिन छत्तीसगढ़िया के आये ले काम नइ बने, सरकार के कमान छत्तीसगढ़िया के हाथ म होना चाही। अइसन दिन तभे आही जब छत्तीसगढ़िया के स्वाभिमान जागही।
* जयंत साहू *
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