छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य के चंदैनी शैली के संरक्षण म लोक प्रहसन के भूमिका

रेडियोवार्ता: अकाशवाणी केन्द्र रायपुर
छत्तीसगढ़ ल वइसे तो लोक कला अउ साहित्य के गढ़ केहे जाथे। इहां जतेक भी लोक जीवन म कला बगरे हे, साहित्य के जरई फोकियाए हे। ओमा हर प्रकार ले लोक जीवन के छइंहा दिखथे। या लोक कला के बारे म इही कई सकथन के लोक जनमानस जेकर प्रदर्शन करथे उही ह हमर लोक कला के रूप म आगू आथे। अउ संस्कृति ह लोक जीवन के अंग आय काबर की लोक ह जोन जीवन जीथे ओही ह ओकर संस्कृति आए। अबहो घलोक अब कहू हम अपन लोक कला अउ साहित्य ल लिखित रूप म संरक्षित राखे के बारे म विचार करबोन त ये करा जबर अड़चन इही आथे कि हम कतका ल लिख-लिख के राखे राहन। अउ का हम संरक्षण के बात करथन तव ओला लिखेच के गोठ काबर करथन। का संरक्षित करे के दूसर अऊ कोनो रद्दा नइ हो सके। जइसे हमर अंचल के लोक कलाकार मन अपन लोककला मंच के माध्यम ले इहां के लोक परंपरा अउ संस्कृति ल देखाथे। अगर हम वोकर कला ल देख के लिखे सकन तव तो ठीक हे, अउ नइ लिखेन तव का वोहा नंदा जही, अइसन बात नोहे। केहे के मतलब वोहा कभु नइ नंदावे। काबर कि हम अब अपन कला अउ संस्कृति ल जीयत हाबन।



आज जतेक भी लोककला ह अंतर्राष्ट्रीय अउ राष्ट्रीय मंच म प्रसिद्धी पाए हे वोकर कारण रिहिस के वोकर प्रदर्शन म विविधता रिहिस। समय के संग वोकर स्वरूप म नावा-नावा प्रयोग होवत गीस। इही नवा प्रयोग ले इलौता विधा चंदैनीच भर ह बांचगे हाबे। लोक नाट्य के दूसर विधा याने नाचा हम देखथन तव ओमा आनी-बानी के गीत अउ प्रहसन ह मिंझरगे हाबे। समय के संगे-संग नवा-नवा गीत-संगीत के समावेश होगे हाबे। अब अइसन चंदैनी विधा संग काबर नइ होइस ये हा चिंता अउ चिंतन करे के बात आए।
जइसे हम कोनो के मुंह ले सुनथन कि फलाना जगा चंदैनी होवत हाबे। तव सुनते साठ हमर मन म एके ठन चित्र दिखथे लोरिक-चंदा के। वास्तव म आज तक जतेक भी कलाकार मन ह चंदैनी विधा ल धरे हे, सुरू ले अब तक सिरिफ उहीच कथा-प्रहसन ल अनेक मंच म खेलत हे। देखइया मन तको उहीच-उही ल बार-बार देखत हे। अब ओमा के प्रहसन के बात करन अउ अन्य दूसर विधा ले ओकर तुलना करन, तव हम जान पाबो के ये लोरिक अउ चंदा प्रहसन ही चंदैनी शैली के बड़वार म अड़चन बनिस। ये विषय म अगर लोक कला अउ संस्कृतिकर्मी मन कइही कि चंदैनी म लोरिक चंदा किस्सा भर ल गाना हे तभे ओ चंदैनी शैली परिपूर्ण होही। कतको झिन के ये मानना हे कि लोरिक-चंदा ही चंदैनी आए। जबकि अइसन नइ हे। जे कलाकर साहित्यकार मन के ये मनना हे कि लोरिक चंदा अउ चंदैनी एक दूसर के परियाए आय तव ऐ मेरन वो बात के पै उघारना जरूरी हे कि अइसन बात रिहिस तव लोरिक चंदा ल लोकगीत, लोकभजन अउ बांस के कलाकार मन काबर गाये। लोरिक चंदा के उहीच किस्सा ल हम गीत नाटक अउ कथा-कंथली के माध्यम ले तको सुनथन। ये बात चिंतन करे के आय कि जब विधा के संरक्षण के बात करथन तव ये बात तको होना चाही के चंदैनी म तको आवत नावा प्रयोग, माने नावा प्रसंग ल लोक नाट्य चंदैनी शैली के संरक्षण म एक नव प्रयास के रूप म देखे जाना चाही। अउ ओकर भरपूर समर्थन होना चाही।




जइसे के ये बात ल तो सबो कोनो मानथन कि इहां कथा-कंथली के कोनो कमी नइ हे। अउ इहां के लोक नाट्य के नाचा विधा हर ये मामला गजब धनी हे काबर के ओला तो अनेक प्रसंग मिले हे मंचन बर, ओला कोनो बंधन तको नइ हे कि इही लोक प्रहसन ल खेलतेच रहना हे। जइसे चंदैनी वाला मन खेलत आवथे- " जय महामाई मोहबा के वो, अखरा के गुरू बैताले ये मोर, चौसठ जोगनी पुरखा के वो, भुजा पर होई सहाई वो मोर, सिया रामा सिया रामा सिया रामा हो, बंशी के बजइया मन मोहना ये तोर।"
ये प्रसंग म राजा महर के बेटी राजकुमारी चंदा अउ लोरिक राऊत के प्रहसन निकलथे। एमा एक राजकुमारी ह गांव के चरवाहा संग प्रेम करथे। ओकर कारण, अनेक कथाकार मन अपन-अपन ढंग ले प्रस्तुत करथे। फेर सबो के कथा म इही समानता आथे कि लोरिक एक गांव के चरवाहा होय के संगे-संग एक वीर योद्धा तको रिहिस। लोरिक ह आदमखोर बघवा ल अकेल्ला मार गिराथे। चंदैनी के कलाकर मन चुकि एक मंच नाटक के रूप म प्रस्तुत करथे तेन पाय के ओकर प्रहसन ह हांसी-ठट्ठा के किस्सा ले सुरू होथे। आम जन मानस ह लोरिक-चंदा म चार पात्र ल मंच म देखथे, जेमा सूत्रधार बने लोरिक ह कथा ल आगू बढ़ावत, कथा ल गावत रिथे। ओकर बाद के तीन कलाकार जेन मन चंदैनी के जान आए वोमा हे राजकुमारी चंदा अउ लोरिक राउत के गोसइन दौना मांजर। तीसरइया म पारी आथे लोरिक के डोकरीदाई जेन चंदैनी म मल्लीन दाई के नाम से जाने जाथे। मल्लीन के संवाद ले लोगन म हास्य के उमंग छूटथे। तव राजकुमारी चंदा हा अपन मया ल पाये के नाना उदीम करथे। उहे दौना मांजर घरेलू औरत के किरदार म जीव पारथे। आज के लोक जन मानस ह चंदैनी म इही तीनो-चारो पात्र के माध्यम ले मल्लीन घर के पासा पाली खेलना, दौना मांजर अउ राजकुमारी चंदा के बीच झगरा। ये प्रकार ले अब तक चंदैनी म अतकेच किस्सा ल देखत-सुनत आए हाबन।




अब कलाप्रेमी मन ल तको पारंपरिक के साथ-साथ ओमा कुछ अऊ देखे-सुने के चुलुक लागत हे। फेर चंदैनी शैली म कुछू अऊ उपराहा करे के गुंजाइसे नइ दिखे। अइसन म अब चंदैनी के तर्ज म दूसर कोनो प्रहसन आथे त वोहा निश्चित ही चंदैनी बर अमृत समान होही। छत्तीसगढ़ राज निर्माण के बाद अब चंदैनी के संरक्षण बर तको बहुत काम होवथे। ये जानके खुशी अऊ बाढ़थे कि प्रयोग म चंदैनी के प्रस्तुतीकरण माने ओकर गीत-संगीत ल मुख्य आधार मान के, प्रहसन माने कथा म आन कथा ल समोख के चंदैनी ल फेर हरियाए के मउका देवत हे। अंचल म अनेक लोक कथा हे जोन ल चंदैनी के तर्ज म पिरो के प्रस्तुती करे के सुरूवात तको होगे हाबे। अभी तक चंदैनी के पच्चासो दल सक्रीय हे जेन मन सिरिफ लोरिक अउ चंदा के प्रसंग के सेती अधिक मंचीय प्रस्तुती नइ दे पावत हे। आज जबकि दूसर विधा मन म अतेक विविधता आगे हे तव चंदैनी संग ये तो होनेच रिहिस। 
अब अंचल के लोक कला मर्मज्ञ चकोर के प्रयास ले चंदैनी शैली ल फेर नवा दिशा दे के उदीम होवथाबे। लोरिक-चंदा बरोबर टेकहराजा के प्रसंग ल अब वोमन मंच म खेलत हे- " आगुच सुमिरौ में पंच देवा, फेर जे दे जनम परान। सुमिरन करवं में ह पाली पहर, ये दे दिये हे जेन गियान। सुमिरन करवं में ह कुल देवता, दया मया जेन ले लें।। सुमिरन करंव में ह डिहसरी, कुवां डबरी नरवा खेव। डोंगरगढ़ के देवी बमलाई मोर, कुदरगढ़िन माई। खल्लारी गोहरावौं बरन-बरन, गोहरावौ दंतेश्वरी दाई। भोरमदेव ल पठोयेंव नेवता, नेवता नीक राजीम धाम। बारसूर सिरपूर पठोयेंव, बदौ जेकर नाम रे संगवार रे मोर..." अइसन वंदना के बाद सुरू होथे टेकहाराजा प्रहसन ह। टेकहाराजा के प्रहसन सिरसागढ़ राज्य के राजा धनराज अउ रानी पवांरा के इकलौता पुत्र मनसुख के जीवन चरित्र ऊपर केंद्रित हे। टेकहाराजा ह बड़ जिद्दी प्रवृत्ति के रिहिस जेन काम ल करे बर जोंग दय उहीच काम ल फत पारे, इही पाय के ओकर नाम टेकहाराजा परगे। कथा म आगू बताथे कि एक दिन टेकहाराजा हा अपन प्रजा के दुख-दरद जाने बर अपन राज्य म भ्रमण करे बर निकलथे। ओ कोति ढालू अउ केवंरा नाव के प्रेमी-प्रेमिका अपन मन के गोठ गोठियाए बर उही लच्छूखेव म मिले बर आय रिहिस। अइसने बाते-बात म ढालू ह अपन केवंरा ल चार चरितर के बात बताथे। 
  • पहिली बात- अपन के जहिजाद कोनो ल होय कभूच नइ धराना चाही। 
  • दूसर- अपन के माहंगी जीनिस अनचिनहार ल कभूच झन धराय।
  • तीसर- नीच बिचार, नीच बेवहार नइते नीच बुता करइया के चाकरी कभूच नइ करना चाही।
  • चौथा- बिहाव होय सगियान नारी ल जादा दिन ले मइके म झन राखय। 

ये चारो बात ल ढालू ह अपन केवंरा ल बताथे फेर ओला टेकहाराजा तको सुन डारथे अउ राजा ह अपन नाम के मुताबिक चारो बात के थाह ले बर निकल जथे। ओरी-ओरी सबो बात के परछो लेथे। चारो बात ह सिरतोन हो जथे। अइसन ढंग ले ये कथा ह प्रहसन के रूप म लोगन ल भरपूर मनोरंजन के संगे-संग समाज म गियान के अंजोर तको बगराइस। चंदैनी के अइसने दूसर प्रहसन आथे खोखन खल्लू के झूला-झांझरी म। जेन म एक चतुर ठग ह कइसे ढंग ले लोगन ल अंध विश्वास के जाल म फांस के धोखाधड़ी करथे। भोला-भाला मानुख मन के संगे-संग बने साव मनखे तको ठगी के सिकार हो जथे। ये मेरन प्रहसन के मूल उद्देश्य ल अउ किस्सा ल बताना ये पाय के जरूरी हे काबर की हमन चंदैनी के संरक्षण अउ संवर्धन के गोठ करत हन।




आज छत्तीसगढ़ अंचल म लोक कथा के अकूत भंडार हे। जेन प्राय: वाचिक परंपरा म फलत-फूलत हे। वर्तमान संदर्भ म कुछ-कुछ अब प्रकाशित घलव होय लगे हवै। एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी लोक कथा गायन के परंपरा के गति ह अब धिरलगहा हो चुके हे। जेखर गजब अकन कारण हे। मूल करण पारंपरिक जाति मन के परिवार के भरण पोषण अउ स्वयं के अस्तिव ल बचाए रखे खातिर लगातार जूझई। आधुनिकता अउ सिनेमा के चलत पारंपरिक लोक कला द्वारा उकर रोजी-रोटी जुटाय म असमर्थ होना, जेला सबो जानथे। इही पाय के आज कलाकार मन तको उही कला कोति लोरघत हे जेन कोति जादा आमदनी होथे या जेन विधा म काम करे से उंखर रोजी रोटी चल सके। चंदैनी के पिछवाय के एक ठिनकारण इहू रिहिस। अब जबकि चंदैनी शैली के उन्नयन बर नवा काम होवथे ओकर गीत-संगीत अउ मंचन ल आरूग रख के सिरिफ ओकर कथा ल परिवर्तित करके जुन्नाए तन म नवा सवांगा पहिराके फेर चंदैनी ल जन जन म लोकप्रिय बनाय जा सकत हे।

- जयंत साहू 
ग्राम-डूण्डा, पोस्ट-सेजबहार, रायपुर छ.ग.
 मो. 9826753304

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