सत्रह कलास पढ़े के बाद भी नइ जानेन अपन संविधान ल

देश भर म 26 नवंबर ल संविधान दिवस के रूप म मनाये जावत हाबे। भारत के संविधान ल 26 नवंबर 1949 के अंग्रीकृत करे गे रिहिस अउ येकर बाद 26 जनवरी 1950 के येहा पूर देश म लागू होइस। अब 65 बच्छर बीते के बाद संविधान के कतका बात ल हम सब जानथन येकर गुनान करबोन तव सौ म चार आना तको नइ जानन। हां अतकेच बात के जानबा हवय के हमर संविधान के निर्माता डॉ.भीमराव अंबेडकर जेन ल दुनिया बाबा साहेब के नाव ले जानथे। बाबा साहेब ह दुनिया के दुख तकलीफ ल झेलत ऊंच-नीच अउ जाति धरम के पीरा ल सहत हमर संविधान ल गढ़े हावय।

भारत के संविधान के जानकारी के मामला म का पढ़े-लिखे अउ का अनपढ़ सबो एकेच बरोबर। गांव अउ शहर के स्कूल म सत्रह बच्छर म सत्रह कलास पढ़ई कर डारेन तभो ले अंगठा छाप। कभू-कभू तो मन म आथे के कॉलेज ले मास्टर के डिग्री ले के बजाए संविधान के किताब म माथा खपाय रितेव तव आज कुछू काम के आदमी बन जाये रितेन।
जानकार मनके मुताबिक संविधान ह भारत के सबो नागरिक ल समानता अउ स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार दे हावय। ग्राम पंचायत, जनपद हो या नगर पालिका जोन हमला सुविधा देवत हावय वो कोनो जन प्रतिनिधि के दया अउ मेहरबानी नोहय, हमर अधिकार आए। 
हम अपन संविधान ल सर्वोपरि मानथन, ओकर एकक आखर कानून आए तब अगर भारत के एक भी आदमी संंंंग कहू असंवैधानिक बेवहार होवत हाबे या फेर ओला संविधान के अनुरूप मौलिक अधिकार नइ दे जावत हाबे तव येकर जिम्मेदारी काखर बनथे। लोक सभा, विधान सभा म चुन के अवइया नेता मन तको तो शपथ लेथे के देश विधान के अनुरूप काम करबो। एकता अउ अखंडता ल अक्षुण बनाये राखबोन। अउ ये सुनत-सुनत 65 बच्छर बितगे। प्रशासनिक अधिकारी मनला घलोक इही किरिया रिथे। तव फेर अब तक संविधान के सबो आखर आम जनता म परगट होत काबर नइ दिखे। घुम-फिर के फेर बात उहीच मेर आगे के ओ नेता मन कोन से हमर संविधान के बात ल जानथे जेकर किरिया खाये हाबय। अब सबो भारतीय ल भारत के संविधान पूरा पढ़े बर परही तभेच हम जान पाबोन के 65 बच्छर ले संविधान के पालन करे के फोकट किरिया खवइया मन बर संविधान म का का सजा के प्रावधान करे गे हावय। हम किथन के हमर वोट सबले बड़े ताकत आए फेर यहू ताकत ल तो देखते हाबन। वो पांच साल म एक पइत हमर आगू हाथ लमाथे अउ हमन अवरधा भर उकर आगू हाथ लमाये खड़े रिथन। अऊ कब तक अपने हक बर लुलवाबो संविधान पोथीच जाने।    
 - जयंत साहू
jayantsahu9@gmail.com
9826753304

जुआं,दारू 'दे-वारी'

मन ल भले अइसे लागथे के ए साल कुछ तिहार के रौनक कम हावय या फेर उच्छाह दिनों-दिन कम होवत हाबे। अइसन गांव कोति लागथे फेर जब सहर के लादिकपोटा, चपकिक-चपका भीड़ देखबे तव अइसे जनाथे मानो पउर साल ये साल जादा भीड़ हावय। ले अभिच्चे हमी मन ह रौनक कमतियावत हे काहत रेहेन अब भीड़ के मारे अकबका गेन। केहे के मतलब न तो रौनक कम होवय अउ न उच्छाह। सिरिफ तसमा(चश्मा) बदलथे अउ घड़ी के कांटा सरक-सरकके फेर उही मेर आथे। सबे तिहार के अपन-अपन मस्तियाए के सुरताल बने हावय उही म लोगन मस्त-मतंग रिथे। होली आगे तव नंगारा ठोको अउ नाचो, हरेली म गेड़ी चड़के झुमरव, बर-बिहाव, छट्टी-छेवारी सबे म ऊंकर(पियक्कड़) ओतकेच उमंग। हां जेन मन पीये-खाये नहीं तेने मन ल सब तिहार-बार मन फिक्का-फिक्का लागथे। दुनियां के मजा ले बर नइ जाने तेने मन तो तीज-तिहार के रौनक ल तको सरिफी म उड़ा देथे। अइसन गोठ सुन-सुन के अब चिड़चिड़ासी नइ लागय काबर के अब आदत परगे हावय। सुरू-सुरू म कोनो तिहार के दिन पियक्कड़ ह घर के दुवारी म गिलास अउ पानी मांगे न तव तन-बदन म आगी लग जाय। फेर का करबे, दे बर तको परय अपनेच रिस्तेदार मन ताए। खाली गिलास अउ एक लोटा पानी भर ल कइसे मड़ाबे, ठेठरी खुरमी के चखना घलोक दे बर परय। लागथे अब धीरे-धीरे अइसन चलागन बन जही के तिहार माने पीना-खाना मजा उड़ाना।      
एक ठी हाना हावय छत्तीसगढ़ी म- 'तेली घर तेल रिथे तव महल ल नइ पोतेÓ शायद मै ओही वाला तेली आवं। उही पाके कोनो तिहार के मजा ल नइ जान पायेव। आन तिहार म तो संगी मन संग संघर जथव फेर ये देवारी म तो एक ठिन खोली ह मोर बर मथुरा-कांशी हो जथे। पुन्नी मनाथे तव घर ले बाहिर के सुरूज ल देखथवं। मै नइ मनाहू तव तिहार आहिच नहीं अइसे तो नइहे, फेर का जइसे सब झिन मनाथे ओइसनेच तिहार मनाना जरूरी हावय?
देवारी ह आदिदेव महादेव अउ आदिशक्ति माता पार्वती के बिहाव के परब आए जेनला गउरा-गउरी के रूप म सुग्घर मनाथन। गउरा चौरा म गोड़-गोड़िन अउ बाजा रूंजी ले नेंग-जोंग अउ गीद सुनथन। येकर पहिली कातिक भर सुआ गीद के सुग्घर आनंद लेन। गउ माता के पूजा करबोन, राउत भाई मन सोहई पहिराही, काछन निकलही।  गोबरधन खुंदाही, एक दूसर के माथा म गोबर के टीका लगाके आसिस लेबो-देबो। मड़ईहा घर के मड़ई देव डीह किंजरही। अखरा डाढ़ म मातर जागही, सुग्घर अखाड़ा होही। बल-बुद्धि के आनी-बानी के खेल होही। ये सब म संघरबो तभे तो तिहार के मरम ल जानबोन। नहिंते भइगे हटरी के कुकरी-बोकरा, गोल बजार के फटाका। थप्पी-थप्पी नोट धरे मताये काट पत्ती, बोतल धर बाप-बेटा लेवे ढरका। अइसने अवइया पीढ़ी ल तको बताबो देवारी माने जुआं दारू दे-वारी।




- जयंत साहू
डूण्डा वार्ड-52, रायपुर
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