जड़काला के कारी रात जइसे-जइसे चड़हत जाथे जाड़ ह अऊ गेदराय परथे। धुप छांव ठंड गर्मी तो प्रकृति के नियम आय फेर ये दरी तो प्रकति ह अपन नियम के माई डाढ़ ल छूके अऊ ओ पार नाहकही तइसे लागथे। ये बखत कतका जाड़ परिस अउ कतका गर्मी रही येला प्रकृति के नारी छुवईया मन बने बताही। रेडियो अउ टी बी वाला मन ओकरे बात ल पतिया के सरी दुनिया म बात बगराथे। टी बी म संझा के समाचार सुन के मै मुड़ी गोड़ ले गरम ओनहा पहिरेव अउ रातपाली काम म जाय बर निकलेवं। गर्मी होवे चाहे ठंड खाय बर कमाय ल परथे।
दस बजती रात म पुरा शहर कोहरा ले तोपा गे रिहीस। गली म एक्का दूक्का मनखे रेंगत रिहीस। हमर गली के आखरी कोन्टा म रिक्सा वाला के परिवार रिथे। कोनो दिखे न दिखे ओ मन हमेश उहीच मेर दिखथे। चारो कोना ले झिल्ली म घेराय घर। वहु झिल्ली म जगा-जगा भोंगरा हे। दूसर बर भले कुंदरा होही फेर उंकर बर तो घरे आय। झिल्ली के भोंगरा कोती ले सुरसुर-सुरसुर हावा पेलत रिहीस। हवा ह जादा पेले त घर ह ढकलाय लेवे। चारो परानी एकक कोनो म खड़े कुंदरा के ढेखरा ल धरे राहय। सियान ते सियान लइका मन घलो पातर-सितर कपड़ा पहिने रिहीस। उंकर मन के देह के गर्मी जड़काला के धुका ले जादा जबर रिहीस।
एक नजर मै अपन देह के गरम ओनहा ल देखवं अउ ओकर मनके आधा अंग म पहिरे चिथरा ल। उघरा अंग के रूवां ह खड़ा होगे रिहीस। ओमन ल देखवं त अइसे लागे मानो ओ चारो झन के जाड़ ह मोरे म ढकलागे हे, वोमन ल जाड़ थोरको नइ जनावथे। वाह प्रकृति एके दुनिया म कई किसम के मनखे बनाय हस। जड़काला के धुका म ओमन ल अपन ले जादा अपन घर ल बचाये के संसो हे। लेदे के हवा ह रूकिस त ओमन ल जाड़ के अहसास होइस। अब तन ल गरमाय के उदिम कराथावे। रिक्सा वाला ह अपन बर बिड़ी सुलगईस। ओकर गोसइन अउ दोनो लइका सड़क म आके पाना पतई बटोराथावे।
गांव होतिस त सुक्खा-सुक्खा लकड़ी के अलाव अउ पैरा के भुर्री बारतीस। शहर म गांव अइसन कहां पाबे। कागज अउ पान पतई ल बटोर के लइका मन आगी सिपचाईस। चारो परानी कुन-कुन ऑच तापे लागिस। आगी के धुगिया घर मालिक के खिड़खी ले घर भितरी ओइले लगगे। रिक्सा वाला के परिवार जेकर घर के परसाही म अपन डेरा जमाय रिहीस। ओकर घर ह आगी के धुंगिया ले धुंगियाए लगगे। मकान मालिक ह कांव-कांव करत घर ले निकलीस अउ रिक्सा वाला उपर खख्वागे। काकरो बात होय जी घर के रंग धुंगियाही त खिसीयाबे करही। रिक्सा वाला के कुंदरा ल डेकेल के उझार दिस। आंच तापे बर बारे आगी म पानी रूको दिस। बपरा गरीब का करे खाली जगा देख के रहे के डेरा बना डेरे रिहीस। किराय भाड़ा मे तो ले नइ रिहीस जेमा एको भाखा मुह उलातिस।
कलेचुप अपन डेरा डोंगरी ल उसाल के दुसर गली कोती चल दिस। ओमन ल तो कांही बात बानी नइ लागिस फेर मोर मन होवत रिहीस की ओ मालिक ल दु भाखा बोलवं। जड़काला के कटत ले ए मन ल राहन देतिस त ओकर का बिगड़ जतिस। आय असाड़ म तो चिरई के खोंधरा ल नइ उजारे फेर येतो मनखे के घर ल उजार दिस। मोर तन बदन ह रिस के मारे दाहकत गोरसी होगे रिहीस। एक मन काहय ओला दू थपरा लगा दवं दूसर मन काहय ओकर पांव धर के आसरा दे बर गेलउली करवं। फेर जेकर बर गेलउली करतेवं तेन मन तो अंते गली म चल दे रिहीस। मोर मन के दाहकत गोरसी म ओकर सादगी के सेती करा बरसगे। महू ह उंकर जाय के बाद अपन रातपाली के काम मे चलदेवं।
काम ले छुट के बिहनिया घर लहुटे के बेरा रद्दा भर उही रिक्सा वाला मन के बारे मे गुनत रेहेवं तभे ठुक ले उही रिक्सा वाला ल रिक्सा चलावत देख परेवं। ओकरे रिक्सा म बइठ के घर आएवं। रात कन के घटना के ओकर उपर कोनो असरे नइ दिखत रिहीस। हांसी खुशी ले अपन रोजी रोटी म मगन काए जाड़ अउ काए घाम। वो तो भुलागे अपन कारी रात के बात ल फेर मोर मन म कई ठीन सवाल उमड़थे का ओ जागा ओला सुकुन से रेहे ल मिलत होही, का इकर जिनगी अइसने पोहा जही, काकरो मजबुरी म घलो काबर इसानियत नइ जागे ? मन म दाहकत ये सवाल बर, कोन जानी कब जवाब के करा बरसही ?
पेट के आगी जब्बर होथे, जब ओ हां भकभकाथे तब काहीं जाड़,घाम पियास नई लागए। दुनिया इही रीत हे, जे्खर मेरन धन हे त धनाधन हे अउ नइ हे ते कंगला के कंगला। जिनगी ला चलाए बर रोवई-धोवई के बजाए अपन बल भर जांगर चलावत मानी रिक्शावाला के सम्बेदना से भरे कहिनी बने लागिस।
जवाब देंहटाएंगाड़ा गाड़ा बधई,मोर मन के लईक लिखाए हे।
chhattisgarhi ma aisne kalam k jrwt he,,,,bdhai he bhai
जवाब देंहटाएंआप जइसे पारखी मन के सेती तो हमर असन कलम घोरइया मन आगु आ पाय हन।
जवाब देंहटाएंसादर नमन...!