जोत जेवांरा

             जेवरहा घर म बदना के दिन ले ही जेवांरा के जोरा करे के सुरू हो जथे। जेवांरा बोये के पाछू घर के कोनो मनौती पूरा होय के बाद या बदना बदे बर घलो जेवांरा बोथे। चइत-कुवार के महीना म मंदिर देवाला म जोत-जेवांरा बोय देखे पर मिलबेच करथे फेर हमर छत्तीसगढ़ के घरों म घलो जेवांरा बोय के पंरपरा हवय। जेवांरा बोइवया मन घर म कोनो देवी के मूर्ति के स्थापना नइ करय बल्कि अपन घर के मानता रूपी कुल दाई के अंगना म जोत बारथे अउ फुलवारी बोथे। इहां घरों-घर म देवी स्थान मिलथे फेर कहू मूर्ति रूप म नइ मिलय देखब म सिरिफ कुड़ही अउ कोनो घर म कटारी ह दिखथे। उही कुड़ही अउ कटारी ह कुटुम के देव-धामी आए। जग जेवांरा के बात होवय या कोनो उच्छाह मंगल अउ बिपत के बेरा ऊहचे हूम जग देके बदना बदथे। जेवरहा घर जेवांरा पाख के अगाहू समान के जोरा करे के सुरू हो जथे। कलस, बिरही, तेल,बाती, गुड़ी अउ सिंगार के समान ल नेवता देके बनवाय जाथे। कुम्हरा घर नेवता देके कलसा बनावाथे। कलसा बने के बाद कुम्हार ह बने के आरो करथे त घरवाले मन स्नान करके खुल्ला पावं रेंगत-रेंगत कुम्हार घर जाथे अउ चरिहा म बोह के रेगते घर आथे। घर के मुहाटी म पहुचथे तव घर के माइलोगन मन दुवारी म एक लोटा पानी ओछार के कलसा ला भितरी बलाथे। कोष्टा घर ले ओन्हा -कपड़ा अउ बाती मंगवाय के बखत घलो अइसने होथे। छत्तीसगढ़ म कोनो भी नवा जिनिस ला पबरित करके भितराय बर घर के मुहाटी म लोटा म पानी ओछारे के पंरपरा हवय। ये पंरपरा आज के नोहय तइहा ले चले आवथे। जेवांरा के सबो समान सकलाय के बाद नौ दिन गाए बर गांव के सेउक मन ल घलो नेवता देथे। जेवांरा के नेंग जोग ह सेउक मन के जासगीत बिगर पूरा नइ होवय। जइसे बर-बिहाव म सबो नेंग गीत ले चलथे ओइसने बरोबर जेवांरा म घलोक नवों दिन के अलग-अलग गीत ले सेवा गाए जाथे। जेवंरहा घर के चलागन अनुसार जेवांरा बोथे। कतको घर सेत पूजा कतकोन घर मारन के परंपरा म चलाथे। सेत पूजा म देवी म कोनो परकार के जीव के मारन नी होवय। दाई ल लिमवा अउ नरियरे ले मनाथे। जेवरहा घर म लिमवा अउ नरियर के बड़ महत्ता हे येला सेत पूजा वाला मन बोकरा-भेड़वा के सेती देथे। मारन वाला मन घलो अब  धीरे-धीरे सेत पूजा म देवी ल मनावत हवय।  रातिहा के फिलोय बिरही ल एक्कम के बिहनिया ले जेवांरा बोय बर जेवरहा घर म गांव के बइगा अउ सेउक मन सकलाथे। माता सेवा के गीत के संग जेवांरा ल कलस म बोये जाथे। कलस म जोत बारे जाथे। घर के चलागन अनुसार कतकोन घर दू ठिन कलस त काकरो घर तीन ठिन कलस मड़ाथे। माई कलस, सत्ती, खप्पर अउ माई दरबार म लगे फुलवरी के निसदिन पंडा अउ घर वाले मन संग गांव के सेउक मन सेवा गाथे। पंडा ह नौ दिन के उपास राखथे। पंचमी के दिन माई के अंगना ले पंडा मन गांव के देवी देवता के दरस करे बर निकलथे जेला पंडा निकालना कहिथे। पंडा सेउक मन संग गांव के मंदिर देवाला म हूम देवत, सबो जगा के पंडा मन एके जगा जुरियाथे। गांव के शितला दाई ठऊर ले बैरग घलो संभराके निकाले जाथे। इही दिन कलस अउ फूलवारी म ध्वजा जोतिया घलो चघाय जाथे। अष्टमी के हवन अउ नवमीं के दिन जेवांरा के विसर्जन के होथे। विसर्जन बर सरवर जावत माता ह अपन लंगूरें मन संग नाचत-गावत निकलथे। कतकोन झन मन देवता चढ़ के झुपत-झुपत माई ल सरवर अमराथे। देवता झुपइया मन अपन आस्था अउ भक्ति ल किसिम-किसिम ले देखाथे जेमा सांग, बाना, सोटा, बोड़ा लेवत झुमरत रिथे।
jayant sahu, raipur c.g.
 

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