तीज-तिहार अउ परब ह लोक अंचल ल अपन अलग चिन्हारी देवाथे। कोनो भी परदेश या क्षेत्र के संस्कृति ल जाने बर उहां के ग्रंथ पोथी ल खोधियाए के जरूरत नइ परय। सिरिफ उहां के आंचलिक लोक परब के मनइया मन संग संघर के उकर रित-रिवाज ल जानेच भर ले हम ऊकर लोक संस्कृति ल जान डरबोन। लोकांचल के संस्कृति ल जाने बर लोकांचल म रहे बसे बर ये सेती लागही काबर कि इहां के परब तिहार के विधि विधान अउ दिन बादर के बिसय म जोन ग्रंथ हमला देखे अउ पढ़े बर मिलथे वोमा आधुनिक्ता हमा गे हावय। ये नावा-नावा चलागन ल अनदेखा करके हमला पारंपरिक ल ही गठियाके संजोए राखना हे। ये सेती मूल परब अउ वोकर पाछू का कारण हवय येला जानेबर मुड़ा-मुड़ा म जाके सिरजन करे के जरूरत हाबय।
छत्तीसगढ़ तो अइसन अंचल आए जिहां बारो महीना कोनो न कोनो तिहार आते रिथे। येकरे सेती तो छत्तीसगढ़ ल तीज-तिहार के गढ़ के रूप म अलगेच चिन्हारी मिले हाबय। अब जइसे देवारी तिहार के बारे गोठ करन तव आन राज के देवारी ह दू दिन या तीन दिन म उरक जथे फेर इहां के देवारी ह तो महीना भर पूर जथे। कुवांर म नव दिन के नवरात्रि तेकर पाछू दसमी म दसराहा। दसराहा के दिन ले देवारी के आरो हो जथे। कातिक म कुवांरी नोनी मन के बड़े फजर ले कातिक नहवई। तेकर पाछू जमदीया, सुरहुत्ती देवारी, गोबरधन पूजा अउ मातर। छत्तीसगढ़ म मातर के बाद गांव-गांव म मड़ई मेला के आरो मिले ल धर लेथे। मातर के दिन के मड़ई के तो अलगेच मजा हवय। छत्तीगसढ़ म मातर मनाय के परंपरा वोकतेच जुन्ना आय जतका यदुवंश अउ यदुवंशी सेना। मातर के बिसय म बहुत अकन कथा ह तो पौराणिक काल ये जूरे मिलथे। फेर येहा द्वापर युग ले जादा परमानित होथे। काबर कि गोबरधन पूजा, मातर, गइया मन ल सोहई बांधना ये सब ह भगवान श्री कृष्ण ले जुरे हावय। इही सेती मातर ल घलो उही काल के चलागन कहि सकत हन। फेर अब धीरे-धीरे समे अनुसार कातकोन तिहार के रूप ह बदलत हावय। तभो गांव-गांव के लोगन मन आजो उही जुन्ना पुरखा के चलागन ल संजोय राखे हवय। मातर के दिन पूजा-पाठ अउ विधि विधान ल मातर जगाना घलो किथे। मातर ल वइसे सबो गांव म नइ जगावय। जेन गांव म राउत ठेठवार रिथे तिहा जादा करके मातर होथे काबर कि ठेठवारे मन मातर जगाथे। कतको गांव जिहा मातर नइ होवय उहां के मन आन गांव मातर देखे बर जाथे। मातर देखे के ओखी गांव-गवई घूमे बर मिल जथे अउ नता-गोतर संगी साथी संग भेट घलो हो जथे। हमर गांव घर के नेवरनिन बेटी-माई मन मातर देखे के ओखी म अपन गांव के मातर ल छोड़ के आन गांव या माई-मइके मातर देखे बर जाथे। आन गांव म मातर देखे बर आए-जाए के कोनो रिवाज या नेवता-हिकारी वाला बात नइ राहय लोगन मन मनखुशी बर आथे-जाथे।
छत्तीसगढ़ ह आदिकाल ले आदिशक्ति अउ शिव के उपास हे। तेकरे सेती इहां के संस्कृति ह आदिमसंस्कृति आए। ठउर-ठउर म शिव अउ सती ह बुढ़ी माई अउ बुढ़हा देव के रूप म बिराजे हवय। छत्तीसगढ़ म देवारी ह मूल रूप से गउरा अउ गउरी के बिहाव के परब आए। जेला गोड़-गोडिऩ मन बड़ उच्छाह मंगल ने मनाथे। देवारी ह राउतों मन के प्रमुख तिहार आए। राउत मन गांव के गाय-गरवा के पूजा अर्चना करके गोबरधन खुंदवाथे अउ गोबर के टीका लगाथे जेमा गांव के सबो समाज के मनखे मन सामिल होथे। बरदीहा मन अपन-अपन टेन के गरवा ल सोहई बांधथे। पाहटिया ह अपन मालिक ठाकुर घर के गरवा ल सोहई पहिराथे। मातर ह दिनमान के तिहार आए ये दिन ठेठवार मन बड़े फजर ले दइहान म खुड़हुर गडिय़ा के सुरू करथे। गांव के दइहान म बाजा-रूंजी संग ठेठवार मन खुड़हुर ल गडिय़ाए बर लेगथे। खुड़हुर आय बर तो देव आय फेर कोनो मूर्ति या शिला रूपी म नइ राहय। मानता रूपी देव आए जोन लकड़ी के रूप म रिथे। सियान मन बताथे कि ठेठवार मन खुड़हुर ल हरेक साल नइ बनाय ओकर अवरधा भर पुरोथे। उहीच ल सिरजा-सिरजा के हर साल दइहान म गडिय़ाथे।
दिन म फेर ठेठवार मन बाजा-रूंजी धर के मातर जगाय बर निकलथे। ठेठवार राउत मन संग गांव के आन समाज के लइका सियान मन मातर देखे बर निकलथे। दोहा पारत-पारत गांव के ठाकुर पारा ल नेवता देवत तको आथे। ठेठवार मन संग गांव के लइका सियान सबो दइहान आथे। दइहान आके ठेठवार मन खुड़हुर के पूजा करथे। संग म अपन-अपन घर के भइसी ल तको दइहान म लाने रिथे जेला खुड़हुर के गोल-गोल किंजारथे। संग म राउत मन दोहा पारत नाचत-कुदत किंजरत रिथे। ये दिन राउत अउ बजनिया मन विशेष सिंगार म रिथे। अपन पारंपरिक पहनावा ले येमन गांव वाले ले अलगेच दिखथे। मुड़ी म बड़का पागा, अंग म ऑगरखा छिटही-बुंदही सलुखा, कउड़ी जड़े कमर पट्टा अउ पाव म घुंघरू तको पहीरे रिथे। आजकाल तो गांव-गांव म राउत नाच के नर्तक दलो तको होगे हाबे। फेर आगू अइसन अलग से नर्तक दल नइ रिहिस। सबो राउत मन नाचे अउ काछन निकले। सबो झिन सुघ्घर पारंपरिक पोषाक पहिने बाजा संग रेरी पार के काछन चखथे। इकर मन के काछन के रेरी अउ बाजा के ओरो म भइसी मन गदबदा जथे अउ खुड़हुर के गोल भदभीद-भदभीद किंजरथे। खुड़हुर पूजा करे के पाछू दइहाने म कोहड़ा ढूलोथे अउ भइसी मन ल दइहाने म सोहई बांधथे। दइहान भर भरे मनमाड़े भीड़ ह मातर देखे बर जुरियाय रिथे जेमन राउत मन के दोहा अउ नाच के मजा लेवत रिथे। वइसे तो दइहान म गांव भर के लोगन मन जुरियाए रिथे फेर नाचथे-कुदथे सिरिफ राउते मन भर ह अउ दिगर समाज के मन ओमेरन दर्शक रिथे। कोहड़ा ढूलोय अउ सोहई बांधे के बाद ठेठवार मन दइहान म सकलाय सबो लइका सियान मन ल दूध बांटथे। सियान मन बताथे के आगू समे म गांव के ठाकुर मन मातर देखे बर जावय त अपन-अपन घर ले चाउर धर-धर के जावय। ये चाउर ल उहचे दइहाने म तसमई बनाय, बनाके उहे खाय। अब धीरे-धीरे दइहान म तसमई बनई बंद होगे हाबय। एक्का दूक्का गांव म तसमई बनावत होही। फेर दूध बाटे के परंपरा ह बंद नइ होय हवय। अभी तक ये परंपरा चलते हावय। लोगन मन मातर ठऊर म दूध झोके बर जाथे। ठेठवार मन पान-परसाद के रूप म गिलास-गिलास दूध बड़ खुशी-खुशी बाटथे।
मातर ह दूज के दिन होथे ते पाय के लोगन म अब भाई दूज के रूप म घलो मनाय के चलागन सुरू होगे हावय। छत्तीसगढ़ के संदर्भ म केहे जाय त इहां दूज के दिन मातर के परंपरा हाबय। मातर के महत्ता ह अतकेच म नइ सिरावय। बल्कि पूजा पाठ अउ दूध बाटे के बाद तो मातर के अखाड़ा सुरू होथे। असल बात कहा जाए तव राउत मन के छोड़े दिगर समाज के मन अखाड़ाच देखे बर जुरियाथे। अखाड़ा ह असल म राउत मन के शौर्य कला के प्रदर्शन आए। अखाड़ा ल मूलरूप से राउते मन खेलथे अब धीरे-धीरे दिगर समाज के मन घलो सिखके अखरा के मैदान म उतरथे। अखाड़ा ल लोगन मन गुरू-चेला परंपरा ले सिखथे। येमन पुरखौती धन मान के बड़ जतन के अपन अवइया पीढ़ी ल अखाड़ा सिखोथे। अखाड़ा म मुख्य रूप ले लउठी भांजे के करतब के संगे-संग तलवार चालथे अउ भावंरा या भन्नाटी घलोक चलाथे। येकर छोड़े अब तो अखाड़ा म अऊ गजब अकन शस्त्र सामिल होगे होबे। अखाड़ा म बल अउ बुद्धि दूनो के उपायोग होथे। काबर की कहू थोरको उच-निच होइस ते लउठी ह अपनेच उपर कचरा जथे। अइसने तलवार अउ खडग़ भांजे के बेरा घलो सावधानी बरतथे। भवंरा घुमाए बर तो अऊ जबर बुद्धि के जरूरत परथे। मातर के दिन अखरा डाड़ म चलत करतब म लोगन मन उदुप नइ उतरे बल्कि सिखेच मनखे मन ह अखरा म उतरथे। इही सब कला के प्रदर्शन ल देखे बर दुरिहा-दुरिहा गांव के लोगन मन जुरियाथे।
मातर के दिन जोन अखरा विद्या के प्रदर्शन होथे एकर बिसय म किवदंती हावय कि ये राउत मन जोन अखाड़ा खेलथे वोहा द्वापर कालिन कला आए। वो समय भगवान कृष्ण ह यादव सेना के गठन करे रिहिस अउ गांव के चरवाहा मन ल सकेल के अखरा विद्या सिखोय रिहिस। भगवान कृष्ण ह बखत म आत्मरक्षा अउ कुल के रक्षा करे बर यादव मन के सेना बनाय रिहिन। अइसे घलो कहे जाथे के विदूर कका ह यादव वंश के रक्षा बर अउ भगवान के उपर अवइया विपदा ला अपन दम म टारे बर गुप्त विद्या सिखोय रिहिस। जोन आजो अखरा विद्या के रूप म हावे। मातर के दिन यादव मन के अखाड़ा ल उही यादव सेना के शौर्य कला के प्रतिक माने जाथे। मातर के अखाड़ा म एक बात अउ आजकाल देखे बर मिलथे कि अब अखरा विद्या ल सबो समाज के लोगन मन अपनावत हाबय। अब अखरा विद्या ह कला देखाय भर तक सिमित नइ भलुक येहा अपन-अपन शक्ति प्रदर्शन घलो होगे हावय। करतब देखाय के संगे-संग द्वंद युद्ध कौशल के घलो प्रदर्शन होथे। दइहान के ये करतब ह उवत के बुड़त दिन भर चलथे। अखरा देखइया मन बर गांव म मेला-मड़ई सहिक हाट बजार लगे रिथे। कतकोन गांव म मातर के दिन मड़ई तको भराथे। मातर मड़ई के रूप म कतकोन गांव म जबर जलसा के आयोजन घलोक होथे। जिहां आन-आन गांव के अखाड़ा खेलइया मन जुरियाथे। दिन के उतरे ले मातर अउ अखरा डाड़ के करतब भले बंद होथे फेर मेला ह रात के गढ़हावात ले चलते रिथे। कोनो-कोनो गांव म मातर दिन के मड़ई घलो होथे। दिन म मातर अउ रात के नाचा गम्मत के मजाच अलगे होथे। देवारी के मातर माने के बाद ओरी-ओरी सबों गांव मड़ईहा मन उमिया जथे अउ ओसरी पारी ये गांव ले वो गांव के मड़ई ओरिया जथे। यहू कहे जा सकथे कि गांव मन म मड़ई ह मातर माने के बादे सुरू होथे। येकरे सेती लोगन मन देवारी अउ मातर के बड़ अगोरा करथे।
छत्तीसगढ़ तो अइसन अंचल आए जिहां बारो महीना कोनो न कोनो तिहार आते रिथे। येकरे सेती तो छत्तीसगढ़ ल तीज-तिहार के गढ़ के रूप म अलगेच चिन्हारी मिले हाबय। अब जइसे देवारी तिहार के बारे गोठ करन तव आन राज के देवारी ह दू दिन या तीन दिन म उरक जथे फेर इहां के देवारी ह तो महीना भर पूर जथे। कुवांर म नव दिन के नवरात्रि तेकर पाछू दसमी म दसराहा। दसराहा के दिन ले देवारी के आरो हो जथे। कातिक म कुवांरी नोनी मन के बड़े फजर ले कातिक नहवई। तेकर पाछू जमदीया, सुरहुत्ती देवारी, गोबरधन पूजा अउ मातर। छत्तीसगढ़ म मातर के बाद गांव-गांव म मड़ई मेला के आरो मिले ल धर लेथे। मातर के दिन के मड़ई के तो अलगेच मजा हवय। छत्तीगसढ़ म मातर मनाय के परंपरा वोकतेच जुन्ना आय जतका यदुवंश अउ यदुवंशी सेना। मातर के बिसय म बहुत अकन कथा ह तो पौराणिक काल ये जूरे मिलथे। फेर येहा द्वापर युग ले जादा परमानित होथे। काबर कि गोबरधन पूजा, मातर, गइया मन ल सोहई बांधना ये सब ह भगवान श्री कृष्ण ले जुरे हावय। इही सेती मातर ल घलो उही काल के चलागन कहि सकत हन। फेर अब धीरे-धीरे समे अनुसार कातकोन तिहार के रूप ह बदलत हावय। तभो गांव-गांव के लोगन मन आजो उही जुन्ना पुरखा के चलागन ल संजोय राखे हवय। मातर के दिन पूजा-पाठ अउ विधि विधान ल मातर जगाना घलो किथे। मातर ल वइसे सबो गांव म नइ जगावय। जेन गांव म राउत ठेठवार रिथे तिहा जादा करके मातर होथे काबर कि ठेठवारे मन मातर जगाथे। कतको गांव जिहा मातर नइ होवय उहां के मन आन गांव मातर देखे बर जाथे। मातर देखे के ओखी गांव-गवई घूमे बर मिल जथे अउ नता-गोतर संगी साथी संग भेट घलो हो जथे। हमर गांव घर के नेवरनिन बेटी-माई मन मातर देखे के ओखी म अपन गांव के मातर ल छोड़ के आन गांव या माई-मइके मातर देखे बर जाथे। आन गांव म मातर देखे बर आए-जाए के कोनो रिवाज या नेवता-हिकारी वाला बात नइ राहय लोगन मन मनखुशी बर आथे-जाथे।
छत्तीसगढ़ ह आदिकाल ले आदिशक्ति अउ शिव के उपास हे। तेकरे सेती इहां के संस्कृति ह आदिमसंस्कृति आए। ठउर-ठउर म शिव अउ सती ह बुढ़ी माई अउ बुढ़हा देव के रूप म बिराजे हवय। छत्तीसगढ़ म देवारी ह मूल रूप से गउरा अउ गउरी के बिहाव के परब आए। जेला गोड़-गोडिऩ मन बड़ उच्छाह मंगल ने मनाथे। देवारी ह राउतों मन के प्रमुख तिहार आए। राउत मन गांव के गाय-गरवा के पूजा अर्चना करके गोबरधन खुंदवाथे अउ गोबर के टीका लगाथे जेमा गांव के सबो समाज के मनखे मन सामिल होथे। बरदीहा मन अपन-अपन टेन के गरवा ल सोहई बांधथे। पाहटिया ह अपन मालिक ठाकुर घर के गरवा ल सोहई पहिराथे। मातर ह दिनमान के तिहार आए ये दिन ठेठवार मन बड़े फजर ले दइहान म खुड़हुर गडिय़ा के सुरू करथे। गांव के दइहान म बाजा-रूंजी संग ठेठवार मन खुड़हुर ल गडिय़ाए बर लेगथे। खुड़हुर आय बर तो देव आय फेर कोनो मूर्ति या शिला रूपी म नइ राहय। मानता रूपी देव आए जोन लकड़ी के रूप म रिथे। सियान मन बताथे कि ठेठवार मन खुड़हुर ल हरेक साल नइ बनाय ओकर अवरधा भर पुरोथे। उहीच ल सिरजा-सिरजा के हर साल दइहान म गडिय़ाथे।
दिन म फेर ठेठवार मन बाजा-रूंजी धर के मातर जगाय बर निकलथे। ठेठवार राउत मन संग गांव के आन समाज के लइका सियान मन मातर देखे बर निकलथे। दोहा पारत-पारत गांव के ठाकुर पारा ल नेवता देवत तको आथे। ठेठवार मन संग गांव के लइका सियान सबो दइहान आथे। दइहान आके ठेठवार मन खुड़हुर के पूजा करथे। संग म अपन-अपन घर के भइसी ल तको दइहान म लाने रिथे जेला खुड़हुर के गोल-गोल किंजारथे। संग म राउत मन दोहा पारत नाचत-कुदत किंजरत रिथे। ये दिन राउत अउ बजनिया मन विशेष सिंगार म रिथे। अपन पारंपरिक पहनावा ले येमन गांव वाले ले अलगेच दिखथे। मुड़ी म बड़का पागा, अंग म ऑगरखा छिटही-बुंदही सलुखा, कउड़ी जड़े कमर पट्टा अउ पाव म घुंघरू तको पहीरे रिथे। आजकाल तो गांव-गांव म राउत नाच के नर्तक दलो तको होगे हाबे। फेर आगू अइसन अलग से नर्तक दल नइ रिहिस। सबो राउत मन नाचे अउ काछन निकले। सबो झिन सुघ्घर पारंपरिक पोषाक पहिने बाजा संग रेरी पार के काछन चखथे। इकर मन के काछन के रेरी अउ बाजा के ओरो म भइसी मन गदबदा जथे अउ खुड़हुर के गोल भदभीद-भदभीद किंजरथे। खुड़हुर पूजा करे के पाछू दइहाने म कोहड़ा ढूलोथे अउ भइसी मन ल दइहाने म सोहई बांधथे। दइहान भर भरे मनमाड़े भीड़ ह मातर देखे बर जुरियाय रिथे जेमन राउत मन के दोहा अउ नाच के मजा लेवत रिथे। वइसे तो दइहान म गांव भर के लोगन मन जुरियाए रिथे फेर नाचथे-कुदथे सिरिफ राउते मन भर ह अउ दिगर समाज के मन ओमेरन दर्शक रिथे। कोहड़ा ढूलोय अउ सोहई बांधे के बाद ठेठवार मन दइहान म सकलाय सबो लइका सियान मन ल दूध बांटथे। सियान मन बताथे के आगू समे म गांव के ठाकुर मन मातर देखे बर जावय त अपन-अपन घर ले चाउर धर-धर के जावय। ये चाउर ल उहचे दइहाने म तसमई बनाय, बनाके उहे खाय। अब धीरे-धीरे दइहान म तसमई बनई बंद होगे हाबय। एक्का दूक्का गांव म तसमई बनावत होही। फेर दूध बाटे के परंपरा ह बंद नइ होय हवय। अभी तक ये परंपरा चलते हावय। लोगन मन मातर ठऊर म दूध झोके बर जाथे। ठेठवार मन पान-परसाद के रूप म गिलास-गिलास दूध बड़ खुशी-खुशी बाटथे।
मातर ह दूज के दिन होथे ते पाय के लोगन म अब भाई दूज के रूप म घलो मनाय के चलागन सुरू होगे हावय। छत्तीसगढ़ के संदर्भ म केहे जाय त इहां दूज के दिन मातर के परंपरा हाबय। मातर के महत्ता ह अतकेच म नइ सिरावय। बल्कि पूजा पाठ अउ दूध बाटे के बाद तो मातर के अखाड़ा सुरू होथे। असल बात कहा जाए तव राउत मन के छोड़े दिगर समाज के मन अखाड़ाच देखे बर जुरियाथे। अखाड़ा ह असल म राउत मन के शौर्य कला के प्रदर्शन आए। अखाड़ा ल मूलरूप से राउते मन खेलथे अब धीरे-धीरे दिगर समाज के मन घलो सिखके अखरा के मैदान म उतरथे। अखाड़ा ल लोगन मन गुरू-चेला परंपरा ले सिखथे। येमन पुरखौती धन मान के बड़ जतन के अपन अवइया पीढ़ी ल अखाड़ा सिखोथे। अखाड़ा म मुख्य रूप ले लउठी भांजे के करतब के संगे-संग तलवार चालथे अउ भावंरा या भन्नाटी घलोक चलाथे। येकर छोड़े अब तो अखाड़ा म अऊ गजब अकन शस्त्र सामिल होगे होबे। अखाड़ा म बल अउ बुद्धि दूनो के उपायोग होथे। काबर की कहू थोरको उच-निच होइस ते लउठी ह अपनेच उपर कचरा जथे। अइसने तलवार अउ खडग़ भांजे के बेरा घलो सावधानी बरतथे। भवंरा घुमाए बर तो अऊ जबर बुद्धि के जरूरत परथे। मातर के दिन अखरा डाड़ म चलत करतब म लोगन मन उदुप नइ उतरे बल्कि सिखेच मनखे मन ह अखरा म उतरथे। इही सब कला के प्रदर्शन ल देखे बर दुरिहा-दुरिहा गांव के लोगन मन जुरियाथे।
मातर के दिन जोन अखरा विद्या के प्रदर्शन होथे एकर बिसय म किवदंती हावय कि ये राउत मन जोन अखाड़ा खेलथे वोहा द्वापर कालिन कला आए। वो समय भगवान कृष्ण ह यादव सेना के गठन करे रिहिस अउ गांव के चरवाहा मन ल सकेल के अखरा विद्या सिखोय रिहिस। भगवान कृष्ण ह बखत म आत्मरक्षा अउ कुल के रक्षा करे बर यादव मन के सेना बनाय रिहिन। अइसे घलो कहे जाथे के विदूर कका ह यादव वंश के रक्षा बर अउ भगवान के उपर अवइया विपदा ला अपन दम म टारे बर गुप्त विद्या सिखोय रिहिस। जोन आजो अखरा विद्या के रूप म हावे। मातर के दिन यादव मन के अखाड़ा ल उही यादव सेना के शौर्य कला के प्रतिक माने जाथे। मातर के अखाड़ा म एक बात अउ आजकाल देखे बर मिलथे कि अब अखरा विद्या ल सबो समाज के लोगन मन अपनावत हाबय। अब अखरा विद्या ह कला देखाय भर तक सिमित नइ भलुक येहा अपन-अपन शक्ति प्रदर्शन घलो होगे हावय। करतब देखाय के संगे-संग द्वंद युद्ध कौशल के घलो प्रदर्शन होथे। दइहान के ये करतब ह उवत के बुड़त दिन भर चलथे। अखरा देखइया मन बर गांव म मेला-मड़ई सहिक हाट बजार लगे रिथे। कतकोन गांव म मातर के दिन मड़ई तको भराथे। मातर मड़ई के रूप म कतकोन गांव म जबर जलसा के आयोजन घलोक होथे। जिहां आन-आन गांव के अखाड़ा खेलइया मन जुरियाथे। दिन के उतरे ले मातर अउ अखरा डाड़ के करतब भले बंद होथे फेर मेला ह रात के गढ़हावात ले चलते रिथे। कोनो-कोनो गांव म मातर दिन के मड़ई घलो होथे। दिन म मातर अउ रात के नाचा गम्मत के मजाच अलगे होथे। देवारी के मातर माने के बाद ओरी-ओरी सबों गांव मड़ईहा मन उमिया जथे अउ ओसरी पारी ये गांव ले वो गांव के मड़ई ओरिया जथे। यहू कहे जा सकथे कि गांव मन म मड़ई ह मातर माने के बादे सुरू होथे। येकरे सेती लोगन मन देवारी अउ मातर के बड़ अगोरा करथे।
जयंत साहू ग्राम-डुण्डा, पोस्ट सेजबाहर रायपुर, छत्तीसगढ़ |
Sahu ji! Hamar 36garh ma jon Teej-Tihar ke Parmpara habe Au ahi hamar parmpara ha hamar 36garh ke Pahichan hare..Apke jankari ha hamla apan 36garh la jane me Abbad sahayk habe...aisne haman la jankari devat rahu...Jai Johar ga bade Bhaiya.
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