गांव के लीला चौरा म संझउती होइस ताहन गजब भीड़ जुरिया जथे। लइका मन तो दिन बुड़े के पहिलीच ले अपन-अपन बर जगा पोगरा डरथे। संजकेरहे जेवन करके घलो आ जथे। भीतर कोती सब कलाकार मन संभरत हावे अउ बाहिर म देखइया मन के भीड़ जुरियात हावे। अब अगोरा हे त राम लीला सुरु होय के।
लीला ल गांव के मनखे मन गंगा कस फरिहर अउ परयाग कस पावन मानथे। घरो घर ले आरती के थारी आथे। गांव के लीला चौरा म संउहत भगवान राम माता जानकी अउ बीर हनुमान बिराज मन होथे। मंगल आरती के संग सुरु होथे राम जी के लीला।
दुरपती ह रात कन के जेवन बना के अपन सहेली मन संग लीला देखे बर निकलथे।
ददा ह खिसिया के किथे - घर के बुता काम छुट जए ते छुट जए फेर तोर लीला हर झन छुटे। दे खाय बर ताहन जाबे।
दुरपती किथे - दाई करा मांग ले न गा। लीला सुरु होगे हम जाथन हमर सहेली मन अगोरत होही। साल ल ओड़हीस, बोरा धरिस अउ निकलगे। सबो सहेली एके जगा जुरिया के बइठथे।
लीला ल बड़ धियान से देखथे। लछमन के पाठ के बेरा तो दुरपती लिपकी घलो नइ मारे। ओकर सहेली मन ह गोठिवात रिहीस तेन मन ल चुप करा देथे। सहेली मन दुरपती के परेम ले अनजान नइ रिहीस। सबो झन जाने येहा लीला म रमायन देखे बर नइ आवे। येतो लीला म लछमन के पाठ करथे ते राधे ल देखे बर आथे।
राधे अउ दुरपती म अगास परेम रिहीस। राधे ह अपन पाठ म बुड़े रिहीस त दुरपती ह राधे के परेम म बुड़े रिहीस। जभे लीला सिरातिस तभेच दुरपती ह घर आतिस। अपन संग म अपन सेहली मन ल घलो बइठार के राखे राहय।
रात के लीला सिरावे ताहन बिहनिया राधे ह तरिया के पार म ओड़ा ल दे राहय। दुरपती ह थारी-बरतन धोय बर आवे। राधे ह बइला-भइसा धोवत बइठे राहे। अपन-अपन काम म दूनो रमे हे फेर दूनो के नजर ह एक दूसर म लगे हे। नजर ले नजर जुड़े इसारा-इसारा म गोठ बात होय।
राधे अउ दुरपती के मया ह गांव भर म आगी बरोबर गुंगवागे। दूनो के घर म उकर मया के सोर उडग़े। एके जात सगा के रिहीस। दूनो डहर के सियान मन आपस म मिल के लइका मन के खुसी के खातिर बिहाव करे के फैसला करिस अउ फलदान ल तुरते मड़ा दिस।
गांवे के सगा सोधर कतेक चोचला लगाही। वोकर चूलहा ल ए देखे, एकर चूलहा ल वो देखे। सगा मन अपन घर ले गोड़ धोके दुरपती घर आगे। सगा घर गोड़ धोय के जरुरते नइ हे। ए पारा ले ओ पारा जाए म कतेक धुररा उड़ही। फेर सगा घर गोड़ धोय के नेंग तो छुटे ल परही।
फलदान म कोनो बाहिर के सगा दिखबे नइ करे। राधे डहर ओकर लीला पालटी वाला अउ दुरपती कोती उकर घर के अउ दू चार झन सहेली भइगे। राम, लछमन, भरत, सतरोहन, रावन, मेंगनाथ, हनुमान, सीता, मंदोदरी, सुरपनखा, जोक्कड़ अउ संग म तबलची, बेंजो मास्टर, ढोलकाहा मन घलो पधारे रिहीस।
फलदान के बेरा लीला के महराज ह दोहा अउ चौपाई पढ़े- मंगल भवन अमंगल हारी, कबहू सुदसरत अजिर बिहारी राम सियाराम राम सियाराम जै जै राम। राधे दुरपती के फलदान होवे सबो संगी संग राम लीला मंडली ह आवे राम सियाराम जै जै राम।
हॉसी मजाक तो होते रिथे फेर जइसन सगा रिहीस तइसन हासी मजाक चलीस। दुरपती अउ राधे के फलदान निपटगे। संझा होवथे किके सबे झन रेसल खोली म चल दिस। रात कन फेर लीला सुरु होइस। दुरपती ह अपन सहेली मन संग देखे बर बइठे हे।
राम के पाठ आथे त दुरपती के सहेली मन किथे मुड़ी ल ढांक न वो तोर कुराससुर ह आगे। दुरपती के दुपट्टा ल धरिस अउ मुड़ी ढांक दिस। लछमन के पाठ आवे त दुरपती ह लाज के मारे मुड़ी ल गडिय़ा लेवे। वोकर सहेली मन राम लीला देखे ल छोड़के दुरपती संग दिल्लगी लगाय।
सहेली मन के घेरी-बेरी के दिल्लगी म दुरपती ह खिसीयागे अउ रात के बेरा म लीला ल आधा छोड़के उठगे। अपन धुन म घर कोत रेगिस। घर के आगु म थोकुन कोलकी परथे। कोलकी ह कुलूप अंधियार रिथे। जइसे कोलकी मेर पहुचथे दू झन मंदहा मन मंद के नसा म बपरी ल बिलई कस झपट देथे।
राधे के पिरीत म मगन दुरपती ह घर आत रिहीस। का जानय बिचारी ह कलजुग के दुरयोधन मन मेडऱी मारे बइठे हे तेला। गजब चिख पुकार मचइस फेर कोनो मदद बर नइ अइस। लीला के पोंगा के गोहार म दुरपती के पुकार दबगे। द्वापर के दुरपती ल तो भगवान किसन बचा ले रिहीस। कलजुग के नारी ल कोन बचावे। तलफत केवंची करेजा कांपगे। निरदई राकछत मन मुरछा देह ल छोड़के भागगे।
आधा रात के लीला सिराइस त पारा के मन लहुटिस। अंधयारी कोलकी म काहरत जीव देखके सबो के सांस अरहजगे। लकर-धकर तिर म जरके माचिस बार के देखिस, सबके नजर म दुरपती हमागे। बपरी के हालत ल देख के सबो अनहोनी ल भांप डरिस।
धरा पछरा कपड़ा लपेट के असपताल लेगीस। कोनो झन जाने किके घर के मन चोरी लुका इलाज पानी कराइस। मु लूकावत अपने छइहा ल डर्रावत दुरपती ह चार दिन म घर आइस। गांव भर म बात बगरगे रिहीस। दुरपती के घर वाला मन अतियाचारी के नाव ल बकरे ल किहीस। फेर डर के मारे कोनो के नाव नइ बता सकिस।
लोक लाज के डर म दुरपती ह अपन जीव देबर एक दिन अपने देह म माटी तेल रुको डरिस। माचिस जियाते रिहीस ततके म ठुक ले राधे ह आगे। हाथ ले माचिस नंगा के फेकिस अउ दुरपती के हाथ थाम के किथे- ये विपदा के बेरा म घलो मे तोर सांग हवं, निच के छुये म तोर मास बस्सा नइ गे। वो अंधयारी रात ल तै सपना जान के भुला जा। तै जब किबे तब मे तोर संग बिहाव करे बर तियार हवं। फेर बदला म तोला ओकर नाव बताय ल परही। राधे ल संग म पाके दुरपती के बल बाडग़े। हिम्मत कर के मुह खोलिस। ठेठवार के दूनो दरवाहा टूरा के नाव ल बकरिस। बउराय बरन पारा मोहल्ला के मन दूनो टुरा ल नंगत छरीस। गांव के सियान मन पंचइत म फैसला कराबो कइके छोड़ा दिस नइते जीये ले डरतीस।
पंचइत बइठीस त ठेठवार ह अपन टूरा के करनी के समाज म माफी मंगिस। ठेठवार मुड़ी नवाय किथे टूरा मन ह गुनाह करे हे तेकर सजा भोगे बर तियार हन जेन भी पंचइत के फैसला होही हमला मंजूर हे।
पंचइत ह अपन फैसला सुनइस के आज ले तुहर गांव ले निकाला हे अपन घर दुवार ल छोड़ के तूमन ल जाय ल परही। अउ फेर लहुट के ये गांव म झन आहू। सरपंच अउ पंच के ये फैसला म सबे झन हामी भरीन। फेर दुरपती ल येहा मुंजूर नइ रिहीस।
दुरपती किथे- ये मन ल गंाव ले निकाला झन देव। इहा ले निकल के अउ कोनो गांव म जाके हांसी खुसी ले रही। अउ मउका पाके फेर कोना म नियत गड़ाही। ये सजा ह येकर मन बर काफी नइ हे।
गांव के मुखिया किथे - येमन ल का सजा दे जाय बेटी तही ह बता। तोर गुनेगार ल तही ह सजा दे।
दुरपती किथे- येमन ल गांवे म राहन दव। आज ले इकर पौनी पसारी बंद अउ गांव म रइ के भी गांव के समाज ले बाहिर रही। मेहा जेन अपमान के आगी म जरे हवं ओकर आंच इहू मन ल मिलना चाही। गांव म रही त रोज अपमान के अंगरा म जरही।
अउ एक ठन सजा मे सरी गांव ल देना चाहत हवं। जेन दारु के नसा म मोर गत बिगड़ीस। आज ले वो दारु के दूकान ल बंद करा दव मोर अतकचे बिनती हे। दुरपती के ये बिचार ह सबो ल बने लागिस। नियाव के तुरते अमल होगे। ठेठवार के टूरा मन ल उकर करनी के सजा मिलगे। जेन दारु के सेती घर परिवार के गत बिगड़थे नोनी बाबू मन बिगड़थे वो दारु के दूकान बंद होगे।
दुरपती के नियाव म करइया कइवरया दूनो ल सजा मिलगे। राधे के पांव परके दुरपती किथे मोला बल तोरे ले मिलिस। कहू तै मोला नइ अपनाए रितेस त आज मै अपमान के अंगरा म जर के भुंजा जाए रितेव। तूमन तो मोर भगवान आव।
अतका ल सून के राधे किथे अभी मे भगवान नइ हवं। लीला म बनथव। चल घर संझा होवथे लीला के तियारी करना हे। अभी तो लछमन ल सक्ती बान, मेंगनाथ वध, रावन दहन बांचे। अतके बेरा ठुक ले राधे के संगवारी मन सकल जथे आ किथे- रावन के मरे के बाद राम के राज तिलक होही अउ लीला सिराही ओकर बाद राधे अउ दुरपती के बिहाव होही। सबो झिन हांसत हांसत लीला के रेसल खोली कोति चल देथे, दुरपती अपन घर आ जाथे।
Bahot badhiya bhai..aisne Vichar ke jarurat he aaj hamar samaj aur desh la.
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