अपन तन के पछीना ओगरा के जग बर बियारी के जोखा करइया किसान मन अब धोखा के सिकार होगे। किसान मनला सरकार ह सुरूच ले टुहू देखा-देखा के राखिस। चुनई के बखत अपन घोसना पाती म पसर-पसर घोसना करके मुठा म देवथे। आस तो अतेक के नइ रिहिसे, फेर जतेक सरकार ह घोसना पाती म लिखिन ओतका देना ओकर फरज बनथे। का सोच के ओमन घोसना करिस, अब दे बर का होवत हे तेन ला उही मन जाने।
छत्तीसगढ़ के मुखिया ल लोगन मन चाऊर वाले बाबा के नाव ले जाने, काबर के ओकर करज ह नेक रिहिसे। गरीब-बनिहार मनके पीरा ल समझे अउ मलहम तको लगावे। गरीब मन ला एक रूपिया दू रूपिया किलो म चाऊर देके सरकार ह गरीब के हितवा तो बनके फेर ओकर ये कारज ह अब लोगन के समझ म आवथाबे के ये चुनई जीत के सत्ता पायके पैतरा रिहिसे। काबर के चाऊर कांड के तको फरीफरकत होगे। चुनई के उरकते गरीब के रासन कारड कटागे। सत्यापान अउ जांच के नाव लेके गरीब मन अपन काम-बुता ल छोड़के सरकारी दफ्तर के चकर काटत हाबे। जब रासन कारड ल काटेच बर रिहिसे तव चुनई के आगू धकाधक बनईस काबर?
किसान ह घलोक कम धोखा नइ खइस, बपरा मन करजा ले लेके आन बछर ले आगर खेती म रूपिया लगईस। जेकर कर जादा भुइया नइये तेनो मन पर के खेत ल रेगहा-अधिया म लेके खेती करिन। जेन मन खेती ल रेगहा-अधिया या फेर खेत बनिहार भरोसा कमवात रिहिसे तनो मन बने जिकर करके खेती म पछीना ओगार के गाड़ा-गाड़ा धान लुइस। अब सोसायटी म धान बेचे के बखत अइस तव पंजीयन अउ अक्कड़ म दस कोंटल के करारी होगे। अक्कड़ म दस कोंटल का हिसाब लगागे सरकार ह अतके धान ल खरीदे के घोसना करे हाबे तेन ल उही मन जाने। एक डहर तो सरकारे ह सेखी मारत हाबे के ये पइत किसान मनके पैदावार बाढ़हे हाबे। जब सरकार कर आकड़ा हाबे के किसान मन के ओतकेच रकबा म फसल के पैदावार बढ़िस। त फेर अक्कड़ पाछु दसे कोंटल तय करना का बने बात आय।
जेकर उपर सरकार ल कड़ा कार्यवाही करना चाही ओकरे कोति हुकारू भर देथे। पऊर साल किसान मनके कतको ठऊर के धान ह माड़े-माड़े जरई धर लिस, कतको धान पानी बरसात म परे रिहिसे। सरेखा करे बर चेत नइ करिस। कतकोन राईस मिल वाला मन चाऊर जमा नइ करिस। जमा करिस तेने मन गिनहा। अइसन राईस मिल वाला मन ल सरकार नोटिस भर देवथे। काहते भर हाबे कार्रवाही करे जाही फेर कब करही तेन ल उही मन जाने। गरीब, किसान अउ बनिहार उपर कार्यवाही करे बखत एको घड़ी सोचय नहीं, न सरकार सोचे न अफसर, अपने मन मुताबिक फइसला सुना देथे। देखव न अब धान खरीदी के मामला ल किसान मन ले ओतके धान खरीदत हाबे जतकाके ओमन करजा करे हाबे, माने किसान मनके बेचे धान ह ओकर खातु-कचरा के पुरती हो जही। अब किसान मन ये गुनान म हाबे के आगू के निस्तारी कइसे चलही। काबर के किसान मन करा रूपिया के पेड़वा नइये जेला टोरके अपन अटाला चलाही। बर-बिहाव करे के हाबे, नोनी-बाबू बर कपड़ा ओनहा, घर-दुवार ल चतवारे के हाबे, लइका ल पढ़ाना-लिखाना हाबे। सबो बर कोरी-कोरी रूपिया लागही। सरकारे सोचे कोरी भर के धान म किसान कइसे खरचा चलाही। आखिर म ओमन ला दलाल अउ कोचिया के दुवारी म जायेच बर तो परही।
* जयंत साहू*
छत्तीसगढ़ के मुखिया ल लोगन मन चाऊर वाले बाबा के नाव ले जाने, काबर के ओकर करज ह नेक रिहिसे। गरीब-बनिहार मनके पीरा ल समझे अउ मलहम तको लगावे। गरीब मन ला एक रूपिया दू रूपिया किलो म चाऊर देके सरकार ह गरीब के हितवा तो बनके फेर ओकर ये कारज ह अब लोगन के समझ म आवथाबे के ये चुनई जीत के सत्ता पायके पैतरा रिहिसे। काबर के चाऊर कांड के तको फरीफरकत होगे। चुनई के उरकते गरीब के रासन कारड कटागे। सत्यापान अउ जांच के नाव लेके गरीब मन अपन काम-बुता ल छोड़के सरकारी दफ्तर के चकर काटत हाबे। जब रासन कारड ल काटेच बर रिहिसे तव चुनई के आगू धकाधक बनईस काबर?
किसान ह घलोक कम धोखा नइ खइस, बपरा मन करजा ले लेके आन बछर ले आगर खेती म रूपिया लगईस। जेकर कर जादा भुइया नइये तेनो मन पर के खेत ल रेगहा-अधिया म लेके खेती करिन। जेन मन खेती ल रेगहा-अधिया या फेर खेत बनिहार भरोसा कमवात रिहिसे तनो मन बने जिकर करके खेती म पछीना ओगार के गाड़ा-गाड़ा धान लुइस। अब सोसायटी म धान बेचे के बखत अइस तव पंजीयन अउ अक्कड़ म दस कोंटल के करारी होगे। अक्कड़ म दस कोंटल का हिसाब लगागे सरकार ह अतके धान ल खरीदे के घोसना करे हाबे तेन ल उही मन जाने। एक डहर तो सरकारे ह सेखी मारत हाबे के ये पइत किसान मनके पैदावार बाढ़हे हाबे। जब सरकार कर आकड़ा हाबे के किसान मन के ओतकेच रकबा म फसल के पैदावार बढ़िस। त फेर अक्कड़ पाछु दसे कोंटल तय करना का बने बात आय।
जेकर उपर सरकार ल कड़ा कार्यवाही करना चाही ओकरे कोति हुकारू भर देथे। पऊर साल किसान मनके कतको ठऊर के धान ह माड़े-माड़े जरई धर लिस, कतको धान पानी बरसात म परे रिहिसे। सरेखा करे बर चेत नइ करिस। कतकोन राईस मिल वाला मन चाऊर जमा नइ करिस। जमा करिस तेने मन गिनहा। अइसन राईस मिल वाला मन ल सरकार नोटिस भर देवथे। काहते भर हाबे कार्रवाही करे जाही फेर कब करही तेन ल उही मन जाने। गरीब, किसान अउ बनिहार उपर कार्यवाही करे बखत एको घड़ी सोचय नहीं, न सरकार सोचे न अफसर, अपने मन मुताबिक फइसला सुना देथे। देखव न अब धान खरीदी के मामला ल किसान मन ले ओतके धान खरीदत हाबे जतकाके ओमन करजा करे हाबे, माने किसान मनके बेचे धान ह ओकर खातु-कचरा के पुरती हो जही। अब किसान मन ये गुनान म हाबे के आगू के निस्तारी कइसे चलही। काबर के किसान मन करा रूपिया के पेड़वा नइये जेला टोरके अपन अटाला चलाही। बर-बिहाव करे के हाबे, नोनी-बाबू बर कपड़ा ओनहा, घर-दुवार ल चतवारे के हाबे, लइका ल पढ़ाना-लिखाना हाबे। सबो बर कोरी-कोरी रूपिया लागही। सरकारे सोचे कोरी भर के धान म किसान कइसे खरचा चलाही। आखिर म ओमन ला दलाल अउ कोचिया के दुवारी म जायेच बर तो परही।
* जयंत साहू*
jayant |
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, कविता रावत जी.
हटाएंधन्यवाद, डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक जी
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