हमर छत्तीसगढ़ के राजभासा छत्तीसगढ़ी आए, ये बात आजो हमला गोहार पार-पार के बताये बर परत हवय। काबर के सहर म रिबे तव तो गमे नइ होवे के हमर महतारी भाखा का हरे। गांव म जाबे तव मन म बिस्वास होथे हां मय छत्तीसगढ़ म हाववं। अब गांव म तको ए जादा दिन नइ राहय काबर के अब ऊहो के लोगन ल तको तो आगू बढऩा हे तरक्की करना हाबे, बाबू साहेब बनना हाबे। अउ बाबू साहेब बने खातिर चाल-ढाल, रंग-रूप, पहनावा अउ बोली सहरी होना चाही। एहर गांव के सोच आए। ये सोच ह गांव म जनम नइ लेवथे, अइसन सोच ल दूसर जघा पैदा करके गांव पठोय जात हे। तभो चुप हे लोक संस्कृति के रखवार, भाखा के तारनहार मन।
अपन बात ल सोज-सोज कहवं त महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म पढ़ई-लिखई अउ प्रशासनिक कामकाज नइ होय के सेती ये सब होवथाबे। हिन्दी अउ आन भाखा के संग म छत्तीसगढ़ी के तुलना करे म छत्तीसगढ़ी ह सबोच म सजोर हाबे, कोनो बात म कम नइये। ये सब बात ल शासन के एक अंग राजभासा आयोग तको जानत हाबे। छत्तीसगढ़ी के परचार-परसार अउ ओकर ऊरउती के बुता करना आयोग के काम हाबे। फेर कोन जनी आयोग ह घलोक निजी संस्था बरोबर काबर काम करत हाबे ते!
आयोग के दू कार्यकाल नाहकगे। अबही तक के ओकर मनके एकेच बुता के बढ़ई करे बर परही ओहे सम्मेलन। हरेक बछर सम्मेलन करत हाबे, किताब छपात हाबे, गुनान करत हाबे। अतका दिन के आयोग के कार्यकाल म सुरू ले अब तक उही पहुना, उही वक्ता, उही स्रोता अउ उहीच गुनान के बिसे। केहे के मतलब ऐसो जोन बिसे राखे गे रिहिसे के छत्तीसगढ़ी ल कामकाज के भाखा कइसे बनाये जाए इही तो पउर साल तको रिहिस अउ परिहार साल तको रिहिस हाबे। माने उहीच-उहीच आदमी मन उहीच बिसे म गुनान करे बर हरेक साल जुरियाथे अऊ नतीजा कुछू नहीं तव अइसन गुनान के का फयदा जेकर कुछू सार नइ निकले। मोला तो एक सौ एक आना बिस्वास हे के आवइया बछर तको इहीच-इही मन फेर उहीच बिसे म गुनान करे खातिर सम्मोलन करही।
आयोग के सम्मेलन म एक बात तो हे के उहां चारो मुड़ा के साहित्यकार मन जुरियाथे। आना-जाना के पइसा मिलथे। रेहे खाय के बने बेवस्था रहिथे। फोकट म किताब अउ बेग मिलथे। दू दिनी सम्मेलन म बढि़य़ा महोल रिथे कलमकार मनके। वक्तामंच के पगरईत अउ गोठकार-वक्ता के नाव पुछे के जरूरत नइहे सबे जानेसूने रिथे। आधा इही पाके भाखा बर जबर बुता करइया मन दूरिहात हाबे। कहू आयोग ल ए बात के आपत्ति होही के ऊंकर छोड़ अऊ दूसर सियान नइये तव इहू बात उठथे के अतका दिन के कार्यकाल म ओकर का बड़ई करे के लइक कारज हाबे।
भाखा के परचार-परसार के बुता म लगे सियाने मन अपन परवार के लइका-सियान ल गिनय अउ बतावे के ओकर घर म कतका झिन छत्तीसगढ़ी म अउ कतका झिन आन भाखा गोठियाथे। छत्तीसगढ़ी ह कामकाज के भाखा काबर नइ बन पावथे कारन समझ म आ जही। जेन ल भी छत्तीसगढ़ी ले मया हावय ये बात कोति जरूर गुनान करै अउ अपनेच घर म देखय के छत्तीसगढ़ी के का महोल हवय। जेन जन आंदोलन छत्तीसगढ़ राज खातिर होइसे अब छत्तीसगढ़ी बर तको होना चाही। सासन या फेर आयोग उपर छोड़े ले अऊ कोनजनी कतका बछर अगोरा कराही, तेकर ले तो छत्तीसगढ़ी आंदोलन के संख बजाना बने होही।
अपन बात ल सोज-सोज कहवं त महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म पढ़ई-लिखई अउ प्रशासनिक कामकाज नइ होय के सेती ये सब होवथाबे। हिन्दी अउ आन भाखा के संग म छत्तीसगढ़ी के तुलना करे म छत्तीसगढ़ी ह सबोच म सजोर हाबे, कोनो बात म कम नइये। ये सब बात ल शासन के एक अंग राजभासा आयोग तको जानत हाबे। छत्तीसगढ़ी के परचार-परसार अउ ओकर ऊरउती के बुता करना आयोग के काम हाबे। फेर कोन जनी आयोग ह घलोक निजी संस्था बरोबर काबर काम करत हाबे ते!
आयोग के दू कार्यकाल नाहकगे। अबही तक के ओकर मनके एकेच बुता के बढ़ई करे बर परही ओहे सम्मेलन। हरेक बछर सम्मेलन करत हाबे, किताब छपात हाबे, गुनान करत हाबे। अतका दिन के आयोग के कार्यकाल म सुरू ले अब तक उही पहुना, उही वक्ता, उही स्रोता अउ उहीच गुनान के बिसे। केहे के मतलब ऐसो जोन बिसे राखे गे रिहिसे के छत्तीसगढ़ी ल कामकाज के भाखा कइसे बनाये जाए इही तो पउर साल तको रिहिस अउ परिहार साल तको रिहिस हाबे। माने उहीच-उहीच आदमी मन उहीच बिसे म गुनान करे बर हरेक साल जुरियाथे अऊ नतीजा कुछू नहीं तव अइसन गुनान के का फयदा जेकर कुछू सार नइ निकले। मोला तो एक सौ एक आना बिस्वास हे के आवइया बछर तको इहीच-इही मन फेर उहीच बिसे म गुनान करे खातिर सम्मोलन करही।
आयोग के सम्मेलन म एक बात तो हे के उहां चारो मुड़ा के साहित्यकार मन जुरियाथे। आना-जाना के पइसा मिलथे। रेहे खाय के बने बेवस्था रहिथे। फोकट म किताब अउ बेग मिलथे। दू दिनी सम्मेलन म बढि़य़ा महोल रिथे कलमकार मनके। वक्तामंच के पगरईत अउ गोठकार-वक्ता के नाव पुछे के जरूरत नइहे सबे जानेसूने रिथे। आधा इही पाके भाखा बर जबर बुता करइया मन दूरिहात हाबे। कहू आयोग ल ए बात के आपत्ति होही के ऊंकर छोड़ अऊ दूसर सियान नइये तव इहू बात उठथे के अतका दिन के कार्यकाल म ओकर का बड़ई करे के लइक कारज हाबे।
भाखा के परचार-परसार के बुता म लगे सियाने मन अपन परवार के लइका-सियान ल गिनय अउ बतावे के ओकर घर म कतका झिन छत्तीसगढ़ी म अउ कतका झिन आन भाखा गोठियाथे। छत्तीसगढ़ी ह कामकाज के भाखा काबर नइ बन पावथे कारन समझ म आ जही। जेन ल भी छत्तीसगढ़ी ले मया हावय ये बात कोति जरूर गुनान करै अउ अपनेच घर म देखय के छत्तीसगढ़ी के का महोल हवय। जेन जन आंदोलन छत्तीसगढ़ राज खातिर होइसे अब छत्तीसगढ़ी बर तको होना चाही। सासन या फेर आयोग उपर छोड़े ले अऊ कोनजनी कतका बछर अगोरा कराही, तेकर ले तो छत्तीसगढ़ी आंदोलन के संख बजाना बने होही।
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