कहिनी- दुरपती


      गांव के लीला चौरा म संझउती होइस ताहन गजब भीड़ जुरिया जथे। लइका मन तो दिन बुड़े के पहिलीच ले अपन-अपन बर जगा पोगरा डरथे। संजकेरहे जेवन करके घलो आ जथे। भीतर कोती सब कलाकार मन संभरत हावे अउ बाहिर म देखइया मन के भीड़ जुरियात हावे। अब अगोरा हे त राम लीला सुरु होय के। 
लीला ल गांव के मनखे मन गंगा कस फरिहर अउ परयाग कस पावन मानथे। घरो घर ले आरती के थारी आथे। गांव के लीला चौरा म संउहत भगवान राम माता जानकी अउ बीर हनुमान बिराज मन होथे। मंगल आरती के संग सुरु होथे राम जी के लीला।
दुरपती ह रात कन के जेवन बना के अपन सहेली मन संग लीला देखे बर निकलथे।
ददा ह खिसिया के किथे - घर के बुता काम छुट जए ते छुट जए फेर तोर लीला हर झन छुटे। दे खाय बर ताहन जाबे।
दुरपती किथे - दाई करा मांग ले न गा। लीला सुरु होगे हम जाथन हमर सहेली मन अगोरत होही। साल ल ओड़हीस, बोरा धरिस अउ निकलगे। सबो सहेली एके जगा जुरिया के बइठथे।
लीला ल बड़ धियान से देखथे। लछमन के पाठ के बेरा तो दुरपती लिपकी घलो नइ मारे। ओकर सहेली मन ह गोठिवात रिहीस तेन मन ल चुप करा देथे। सहेली मन दुरपती के परेम ले अनजान नइ रिहीस। सबो झन जाने येहा लीला म रमायन देखे बर नइ आवे। येतो लीला म लछमन के पाठ करथे ते राधे ल देखे बर आथे।
राधे अउ दुरपती म अगास परेम रिहीस। राधे ह अपन पाठ म बुड़े रिहीस त दुरपती ह राधे के परेम म बुड़े रिहीस। जभे लीला सिरातिस तभेच दुरपती ह घर आतिस। अपन संग म अपन सेहली मन ल घलो बइठार के राखे राहय।
रात के लीला सिरावे ताहन बिहनिया राधे ह तरिया के पार म ओड़ा ल दे राहय। दुरपती ह थारी-बरतन धोय बर आवे। राधे ह बइला-भइसा धोवत बइठे राहे। अपन-अपन काम म दूनो रमे हे फेर दूनो के नजर ह एक दूसर म लगे हे। नजर ले नजर जुड़े इसारा-इसारा म गोठ बात होय।
राधे अउ दुरपती के मया ह गांव भर म आगी बरोबर गुंगवागे। दूनो के घर म उकर मया के सोर उडग़े। एके जात सगा के रिहीस। दूनो डहर के सियान मन आपस म मिल के लइका मन के खुसी के खातिर बिहाव करे के फैसला करिस अउ फलदान ल तुरते मड़ा दिस।
गांवे के सगा सोधर कतेक चोचला लगाही। वोकर चूलहा ल ए देखे, एकर चूलहा ल वो देखे। सगा मन अपन घर ले गोड़ धोके दुरपती घर आगे। सगा घर गोड़ धोय के जरुरते नइ हे। ए पारा ले ओ पारा जाए म कतेक धुररा उड़ही। फेर सगा घर गोड़ धोय के नेंग तो छुटे ल परही।
फलदान म कोनो बाहिर के सगा दिखबे नइ करे। राधे डहर ओकर लीला पालटी वाला अउ दुरपती कोती उकर घर के अउ दू चार झन सहेली भइगे। राम, लछमन, भरत, सतरोहन, रावन, मेंगनाथ, हनुमान, सीता, मंदोदरी, सुरपनखा, जोक्कड़ अउ संग म तबलची, बेंजो मास्टर, ढोलकाहा मन घलो पधारे रिहीस।
फलदान के बेरा लीला के महराज ह दोहा अउ चौपाई पढ़े- मंगल भवन अमंगल हारी, कबहू सुदसरत अजिर बिहारी राम सियाराम राम सियाराम जै जै राम। राधे दुरपती के फलदान होवे सबो संगी संग राम लीला मंडली ह आवे राम सियाराम जै जै राम।
हॉसी मजाक तो होते रिथे फेर जइसन सगा रिहीस तइसन हासी मजाक चलीस। दुरपती अउ राधे के फलदान निपटगे। संझा होवथे किके सबे झन रेसल खोली म चल दिस। रात कन फेर लीला सुरु होइस। दुरपती ह अपन सहेली मन संग देखे बर बइठे हे।
राम के पाठ आथे त दुरपती के सहेली मन किथे मुड़ी ल ढांक न वो तोर कुराससुर ह आगे। दुरपती के दुपट्टा ल धरिस अउ मुड़ी ढांक दिस। लछमन के पाठ आवे त दुरपती ह लाज के मारे मुड़ी ल गडिय़ा लेवे। वोकर सहेली मन राम लीला देखे ल छोड़के दुरपती संग दिल्लगी लगाय।
सहेली मन के घेरी-बेरी के दिल्लगी म दुरपती ह खिसीयागे अउ रात के बेरा म लीला ल आधा छोड़के उठगे। अपन धुन म घर कोत रेगिस। घर के आगु म थोकुन कोलकी परथे। कोलकी ह कुलूप अंधियार रिथे। जइसे कोलकी मेर पहुचथे दू झन मंदहा मन मंद के नसा म बपरी ल बिलई कस झपट देथे।
राधे के पिरीत म मगन दुरपती ह घर आत रिहीस। का जानय बिचारी ह कलजुग के दुरयोधन मन मेडऱी मारे बइठे हे तेला। गजब चिख पुकार मचइस फेर कोनो मदद बर नइ अइस। लीला के पोंगा के गोहार म दुरपती के पुकार दबगे। द्वापर के दुरपती ल तो भगवान किसन बचा ले रिहीस। कलजुग के नारी ल कोन बचावे। तलफत केवंची करेजा कांपगे। निरदई राकछत मन मुरछा देह ल छोड़के भागगे।
आधा रात के लीला सिराइस त पारा के मन लहुटिस। अंधयारी कोलकी म काहरत जीव देखके सबो के सांस अरहजगे। लकर-धकर तिर म जरके माचिस बार के देखिस, सबके नजर म दुरपती हमागे। बपरी के हालत ल देख के सबो अनहोनी ल भांप डरिस।
धरा पछरा कपड़ा लपेट के असपताल लेगीस। कोनो झन जाने किके घर के मन चोरी लुका इलाज पानी कराइस। मु लूकावत अपने छइहा ल डर्रावत दुरपती ह चार दिन म घर आइस। गांव भर म बात बगरगे रिहीस। दुरपती के घर वाला मन अतियाचारी के नाव ल बकरे ल किहीस। फेर डर के मारे कोनो के नाव नइ बता सकिस।
लोक लाज के डर म दुरपती ह अपन जीव देबर एक दिन अपने देह म माटी तेल रुको डरिस। माचिस जियाते रिहीस ततके म ठुक ले राधे ह आगे। हाथ ले माचिस नंगा के फेकिस अउ दुरपती के हाथ थाम के किथे- ये विपदा के बेरा म घलो मे तोर सांग हवं, निच के छुये म तोर मास बस्सा नइ गे। वो अंधयारी रात ल तै सपना जान के भुला जा। तै जब किबे तब मे तोर संग बिहाव करे बर तियार हवं। फेर बदला म तोला ओकर नाव बताय ल परही। राधे ल संग म पाके दुरपती के बल बाडग़े। हिम्मत कर के मुह खोलिस। ठेठवार के दूनो दरवाहा टूरा के नाव ल बकरिस। बउराय बरन पारा मोहल्ला के मन दूनो टुरा ल नंगत छरीस। गांव के सियान मन पंचइत म फैसला कराबो कइके छोड़ा दिस नइते जीये ले डरतीस।
पंचइत बइठीस त ठेठवार ह अपन टूरा के करनी के समाज म माफी मंगिस। ठेठवार मुड़ी नवाय किथे टूरा मन ह गुनाह करे हे तेकर सजा भोगे बर तियार हन जेन भी पंचइत के फैसला होही हमला मंजूर हे।
पंचइत ह अपन फैसला सुनइस के आज ले तुहर गांव ले निकाला हे अपन घर दुवार ल छोड़ के तूमन ल जाय ल परही। अउ फेर लहुट के ये गांव म झन आहू। सरपंच अउ पंच के ये फैसला म सबे झन हामी भरीन। फेर दुरपती ल येहा मुंजूर नइ रिहीस।
दुरपती किथे- ये मन ल गंाव ले निकाला झन देव। इहा ले निकल के अउ कोनो गांव म जाके हांसी खुसी ले रही। अउ मउका पाके फेर कोना म नियत गड़ाही। ये सजा ह येकर मन बर काफी नइ हे।
गांव के मुखिया किथे - येमन ल का सजा दे जाय बेटी तही ह बता। तोर गुनेगार ल तही ह सजा दे।
दुरपती किथे- येमन ल गांवे म राहन दव। आज ले इकर पौनी पसारी बंद अउ गांव म रइ के भी गांव के समाज ले बाहिर रही। मेहा जेन अपमान के आगी म जरे हवं ओकर आंच इहू मन ल मिलना चाही। गांव म रही त रोज अपमान के अंगरा म जरही।
अउ एक ठन सजा मे सरी गांव ल देना चाहत हवं। जेन दारु के नसा म मोर गत बिगड़ीस। आज ले वो दारु के दूकान ल बंद करा दव मोर अतकचे बिनती हे। दुरपती के ये बिचार ह सबो ल बने लागिस। नियाव के तुरते अमल होगे। ठेठवार के टूरा मन ल उकर करनी के सजा मिलगे। जेन दारु के सेती घर परिवार के गत बिगड़थे नोनी बाबू मन बिगड़थे वो दारु के दूकान बंद होगे।
दुरपती के नियाव म करइया कइवरया दूनो ल सजा मिलगे। राधे के पांव परके दुरपती किथे मोला बल तोरे ले मिलिस। कहू तै मोला नइ अपनाए रितेस त आज मै अपमान के अंगरा म जर के भुंजा जाए रितेव। तूमन तो मोर भगवान आव।
अतका ल सून के राधे किथे अभी मे भगवान नइ हवं। लीला म बनथव। चल घर संझा होवथे लीला के तियारी करना हे। अभी तो लछमन ल सक्ती बान, मेंगनाथ वध, रावन दहन बांचे। अतके बेरा ठुक ले राधे के संगवारी मन सकल जथे आ किथे- रावन के मरे के बाद राम के राज तिलक होही अउ लीला सिराही ओकर बाद राधे अउ दुरपती के बिहाव होही। सबो झिन हांसत हांसत लीला के रेसल खोली कोति चल देथे, दुरपती अपन घर आ जाथे।

छत्तीसगढ़ म मातर परब

    तीज-तिहार अउ परब ह लोक अंचल ल अपन अलग चिन्हारी देवाथे। कोनो भी परदेश या क्षेत्र के संस्कृति ल जाने बर उहां के ग्रंथ पोथी ल खोधियाए के जरूरत नइ परय। सिरिफ उहां के आंचलिक लोक परब के मनइया मन संग संघर के उकर रित-रिवाज ल जानेच भर ले हम ऊकर लोक संस्कृति ल जान डरबोन। लोकांचल के संस्कृति ल जाने बर लोकांचल म रहे बसे बर ये सेती लागही काबर कि इहां के परब तिहार के विधि विधान अउ दिन बादर के बिसय म जोन ग्रंथ हमला देखे अउ पढ़े बर मिलथे वोमा आधुनिक्ता हमा गे हावय। ये नावा-नावा चलागन ल अनदेखा करके हमला पारंपरिक ल ही गठियाके संजोए राखना हे। ये सेती मूल परब अउ वोकर पाछू का कारण हवय येला जानेबर मुड़ा-मुड़ा म जाके सिरजन करे के जरूरत हाबय।
    छत्तीसगढ़ तो अइसन अंचल आए जिहां बारो महीना कोनो न कोनो तिहार आते रिथे। येकरे सेती तो छत्तीसगढ़ ल तीज-तिहार के गढ़ के रूप म अलगेच चिन्हारी मिले हाबय। अब जइसे देवारी तिहार के बारे गोठ करन तव आन राज के देवारी ह दू दिन या तीन दिन म उरक जथे फेर इहां के देवारी ह तो महीना भर पूर जथे। कुवांर म नव दिन के नवरात्रि तेकर पाछू दसमी म दसराहा। दसराहा के दिन ले देवारी के आरो हो जथे। कातिक म कुवांरी नोनी मन के बड़े फजर ले कातिक नहवई। तेकर पाछू जमदीया, सुरहुत्ती देवारी, गोबरधन पूजा अउ मातर। छत्तीसगढ़ म मातर के बाद गांव-गांव म मड़ई मेला के आरो मिले ल धर लेथे। मातर के दिन के मड़ई के तो अलगेच मजा हवय। छत्तीगसढ़ म मातर मनाय के परंपरा  वोकतेच जुन्ना आय जतका यदुवंश अउ यदुवंशी सेना। मातर के  बिसय म बहुत अकन कथा ह तो पौराणिक काल ये जूरे मिलथे। फेर येहा द्वापर युग ले जादा परमानित होथे। काबर कि गोबरधन पूजा, मातर, गइया मन ल सोहई बांधना ये सब ह भगवान श्री कृष्ण ले जुरे हावय। इही सेती मातर ल घलो उही काल के चलागन कहि सकत हन। फेर अब धीरे-धीरे समे अनुसार कातकोन तिहार के रूप ह बदलत हावय। तभो गांव-गांव के लोगन मन आजो उही जुन्ना पुरखा के चलागन ल संजोय राखे हवय। मातर के दिन पूजा-पाठ अउ विधि विधान ल मातर जगाना घलो किथे। मातर ल वइसे सबो गांव म नइ जगावय। जेन गांव म राउत ठेठवार रिथे तिहा जादा करके मातर होथे काबर कि ठेठवारे मन मातर जगाथे। कतको गांव जिहा मातर नइ होवय उहां के मन आन गांव मातर देखे बर जाथे।  मातर देखे के ओखी गांव-गवई घूमे बर मिल जथे अउ नता-गोतर संगी साथी संग भेट घलो हो जथे। हमर गांव घर के नेवरनिन बेटी-माई मन मातर देखे के ओखी म अपन गांव के मातर ल छोड़ के आन गांव या माई-मइके मातर देखे बर जाथे। आन गांव म मातर देखे बर आए-जाए के कोनो रिवाज या नेवता-हिकारी वाला बात नइ राहय लोगन मन मनखुशी बर आथे-जाथे।
    छत्तीसगढ़ ह आदिकाल ले आदिशक्ति अउ शिव के उपास हे। तेकरे सेती इहां के संस्कृति ह आदिमसंस्कृति आए। ठउर-ठउर म शिव अउ सती ह बुढ़ी माई अउ बुढ़हा देव के रूप म बिराजे हवय। छत्तीसगढ़ म देवारी ह मूल रूप से गउरा अउ गउरी के बिहाव के परब आए। जेला गोड़-गोडिऩ मन बड़ उच्छाह मंगल ने मनाथे। देवारी ह राउतों मन के प्रमुख तिहार आए। राउत मन गांव के गाय-गरवा के पूजा अर्चना करके गोबरधन खुंदवाथे अउ गोबर के टीका लगाथे जेमा गांव के सबो समाज के मनखे मन सामिल होथे। बरदीहा मन अपन-अपन टेन के गरवा ल सोहई बांधथे। पाहटिया ह अपन मालिक ठाकुर घर के गरवा ल सोहई पहिराथे। मातर ह दिनमान के तिहार आए ये दिन ठेठवार मन बड़े फजर ले दइहान म खुड़हुर गडिय़ा के सुरू करथे। गांव के दइहान म बाजा-रूंजी संग ठेठवार मन खुड़हुर ल गडिय़ाए बर लेगथे। खुड़हुर आय बर तो देव आय फेर कोनो मूर्ति या शिला रूपी म नइ राहय। मानता रूपी देव आए जोन लकड़ी के रूप म रिथे। सियान मन बताथे कि ठेठवार मन खुड़हुर ल हरेक साल नइ बनाय ओकर अवरधा भर पुरोथे। उहीच ल सिरजा-सिरजा के हर साल दइहान म गडिय़ाथे।
    दिन म फेर ठेठवार मन बाजा-रूंजी धर के मातर जगाय बर निकलथे। ठेठवार राउत मन संग गांव के आन समाज के लइका सियान मन मातर देखे बर निकलथे। दोहा पारत-पारत गांव के ठाकुर पारा ल नेवता देवत तको आथे। ठेठवार मन संग गांव के लइका सियान सबो दइहान आथे। दइहान आके ठेठवार मन खुड़हुर के पूजा करथे। संग म अपन-अपन घर के भइसी ल तको दइहान म लाने रिथे जेला खुड़हुर के गोल-गोल किंजारथे। संग म राउत मन दोहा पारत नाचत-कुदत किंजरत रिथे। ये दिन राउत अउ बजनिया मन विशेष सिंगार म रिथे। अपन पारंपरिक पहनावा ले येमन गांव वाले ले अलगेच दिखथे। मुड़ी म बड़का पागा, अंग म ऑगरखा छिटही-बुंदही सलुखा, कउड़ी जड़े कमर पट्टा अउ पाव म घुंघरू तको पहीरे रिथे। आजकाल तो गांव-गांव म राउत नाच के नर्तक दलो तको होगे हाबे। फेर आगू अइसन अलग से नर्तक दल नइ रिहिस। सबो राउत मन नाचे अउ काछन निकले। सबो झिन सुघ्घर पारंपरिक पोषाक पहिने बाजा संग रेरी पार के काछन चखथे। इकर मन के काछन के रेरी अउ बाजा के ओरो म भइसी मन गदबदा जथे अउ खुड़हुर के गोल भदभीद-भदभीद किंजरथे। खुड़हुर पूजा करे के पाछू दइहाने म कोहड़ा ढूलोथे अउ भइसी मन ल दइहाने म सोहई बांधथे। दइहान भर भरे मनमाड़े भीड़ ह मातर देखे बर जुरियाय रिथे जेमन राउत मन के दोहा अउ नाच के मजा लेवत रिथे। वइसे तो दइहान म गांव भर के लोगन मन जुरियाए रिथे फेर नाचथे-कुदथे सिरिफ राउते मन भर ह अउ दिगर समाज के मन ओमेरन दर्शक रिथे। कोहड़ा ढूलोय अउ सोहई बांधे के बाद ठेठवार मन दइहान म सकलाय सबो लइका सियान मन ल दूध बांटथे। सियान मन बताथे के आगू समे म गांव के ठाकुर मन मातर देखे बर जावय त अपन-अपन घर ले चाउर धर-धर के जावय। ये चाउर ल उहचे दइहाने म तसमई बनाय, बनाके उहे खाय। अब धीरे-धीरे दइहान म तसमई बनई बंद होगे हाबय। एक्का दूक्का गांव म तसमई बनावत होही। फेर दूध बाटे के परंपरा ह बंद नइ होय हवय। अभी तक ये परंपरा चलते हावय। लोगन मन मातर ठऊर म दूध झोके बर जाथे। ठेठवार मन पान-परसाद के रूप म गिलास-गिलास दूध बड़ खुशी-खुशी बाटथे।
    मातर ह दूज के दिन होथे ते पाय के लोगन म अब भाई दूज के रूप म घलो मनाय के चलागन सुरू होगे हावय। छत्तीसगढ़ के संदर्भ म केहे जाय त इहां दूज के दिन मातर के परंपरा हाबय। मातर के महत्ता ह अतकेच म नइ सिरावय। बल्कि पूजा पाठ अउ दूध बाटे के बाद तो मातर के अखाड़ा सुरू होथे। असल बात कहा जाए तव राउत मन के छोड़े दिगर समाज के मन अखाड़ाच देखे बर जुरियाथे। अखाड़ा ह असल म राउत मन के शौर्य कला के प्रदर्शन आए। अखाड़ा ल मूलरूप से राउते मन खेलथे अब धीरे-धीरे दिगर समाज के मन घलो सिखके अखरा के मैदान म उतरथे। अखाड़ा ल लोगन मन गुरू-चेला परंपरा ले सिखथे। येमन पुरखौती धन मान के बड़ जतन के अपन अवइया पीढ़ी ल अखाड़ा सिखोथे। अखाड़ा म मुख्य रूप ले लउठी भांजे के करतब के संगे-संग तलवार चालथे अउ भावंरा या भन्नाटी घलोक चलाथे। येकर छोड़े अब तो अखाड़ा म अऊ गजब अकन शस्त्र सामिल होगे होबे। अखाड़ा म बल अउ बुद्धि दूनो के उपायोग होथे। काबर की कहू थोरको उच-निच होइस ते लउठी ह अपनेच उपर कचरा जथे। अइसने तलवार अउ खडग़ भांजे के बेरा घलो सावधानी बरतथे। भवंरा घुमाए बर तो अऊ जबर बुद्धि के जरूरत परथे। मातर के दिन अखरा डाड़ म चलत करतब म लोगन मन उदुप नइ उतरे बल्कि सिखेच मनखे मन ह अखरा म उतरथे। इही सब कला के प्रदर्शन ल देखे बर दुरिहा-दुरिहा गांव के लोगन मन जुरियाथे।
    मातर के दिन जोन अखरा विद्या के प्रदर्शन होथे एकर बिसय म किवदंती हावय कि ये राउत मन जोन अखाड़ा खेलथे वोहा द्वापर कालिन कला आए। वो समय भगवान कृष्ण ह यादव सेना के गठन करे रिहिस अउ गांव के चरवाहा मन ल सकेल के अखरा विद्या सिखोय रिहिस। भगवान कृष्ण ह बखत म आत्मरक्षा अउ कुल के रक्षा करे बर यादव मन के सेना बनाय रिहिन। अइसे घलो कहे जाथे के विदूर कका ह यादव वंश के रक्षा बर अउ भगवान के उपर अवइया विपदा ला अपन दम म टारे बर गुप्त विद्या सिखोय रिहिस। जोन आजो अखरा विद्या के रूप म हावे। मातर के दिन यादव मन के अखाड़ा ल उही यादव सेना के शौर्य कला के प्रतिक माने जाथे। मातर के अखाड़ा म एक बात अउ आजकाल देखे बर मिलथे कि अब अखरा विद्या ल सबो समाज के लोगन मन अपनावत हाबय। अब अखरा विद्या ह कला देखाय भर तक सिमित नइ भलुक येहा अपन-अपन शक्ति प्रदर्शन घलो होगे हावय। करतब देखाय के संगे-संग द्वंद युद्ध कौशल के घलो प्रदर्शन होथे। दइहान के ये करतब ह उवत के बुड़त दिन भर चलथे। अखरा देखइया मन बर गांव म मेला-मड़ई सहिक हाट बजार लगे रिथे। कतकोन गांव म मातर के दिन मड़ई तको भराथे। मातर मड़ई के रूप म कतकोन गांव म जबर जलसा के आयोजन घलोक होथे। जिहां आन-आन गांव के अखाड़ा खेलइया मन जुरियाथे। दिन के उतरे ले मातर अउ अखरा डाड़ के करतब भले बंद होथे फेर मेला ह रात के गढ़हावात ले चलते रिथे। कोनो-कोनो गांव म मातर दिन के मड़ई घलो होथे। दिन म मातर अउ रात के नाचा गम्मत के मजाच अलगे होथे। देवारी के मातर माने के बाद ओरी-ओरी सबों गांव मड़ईहा मन उमिया जथे अउ ओसरी पारी ये गांव ले वो गांव के मड़ई ओरिया जथे। यहू कहे जा सकथे कि गांव मन म मड़ई ह मातर माने के बादे सुरू होथे। येकरे सेती लोगन मन देवारी अउ मातर के बड़ अगोरा करथे।
जयंत साहू 
ग्राम-डुण्डा, पोस्ट सेजबाहर रायपुर, छत्तीसगढ़

जोत जेवांरा

             जेवरहा घर म बदना के दिन ले ही जेवांरा के जोरा करे के सुरू हो जथे। जेवांरा बोये के पाछू घर के कोनो मनौती पूरा होय के बाद या बदना बदे बर घलो जेवांरा बोथे। चइत-कुवार के महीना म मंदिर देवाला म जोत-जेवांरा बोय देखे पर मिलबेच करथे फेर हमर छत्तीसगढ़ के घरों म घलो जेवांरा बोय के पंरपरा हवय। जेवांरा बोइवया मन घर म कोनो देवी के मूर्ति के स्थापना नइ करय बल्कि अपन घर के मानता रूपी कुल दाई के अंगना म जोत बारथे अउ फुलवारी बोथे। इहां घरों-घर म देवी स्थान मिलथे फेर कहू मूर्ति रूप म नइ मिलय देखब म सिरिफ कुड़ही अउ कोनो घर म कटारी ह दिखथे। उही कुड़ही अउ कटारी ह कुटुम के देव-धामी आए। जग जेवांरा के बात होवय या कोनो उच्छाह मंगल अउ बिपत के बेरा ऊहचे हूम जग देके बदना बदथे। जेवरहा घर जेवांरा पाख के अगाहू समान के जोरा करे के सुरू हो जथे। कलस, बिरही, तेल,बाती, गुड़ी अउ सिंगार के समान ल नेवता देके बनवाय जाथे। कुम्हरा घर नेवता देके कलसा बनावाथे। कलसा बने के बाद कुम्हार ह बने के आरो करथे त घरवाले मन स्नान करके खुल्ला पावं रेंगत-रेंगत कुम्हार घर जाथे अउ चरिहा म बोह के रेगते घर आथे। घर के मुहाटी म पहुचथे तव घर के माइलोगन मन दुवारी म एक लोटा पानी ओछार के कलसा ला भितरी बलाथे। कोष्टा घर ले ओन्हा -कपड़ा अउ बाती मंगवाय के बखत घलो अइसने होथे। छत्तीसगढ़ म कोनो भी नवा जिनिस ला पबरित करके भितराय बर घर के मुहाटी म लोटा म पानी ओछारे के पंरपरा हवय। ये पंरपरा आज के नोहय तइहा ले चले आवथे। जेवांरा के सबो समान सकलाय के बाद नौ दिन गाए बर गांव के सेउक मन ल घलो नेवता देथे। जेवांरा के नेंग जोग ह सेउक मन के जासगीत बिगर पूरा नइ होवय। जइसे बर-बिहाव म सबो नेंग गीत ले चलथे ओइसने बरोबर जेवांरा म घलोक नवों दिन के अलग-अलग गीत ले सेवा गाए जाथे। जेवंरहा घर के चलागन अनुसार जेवांरा बोथे। कतको घर सेत पूजा कतकोन घर मारन के परंपरा म चलाथे। सेत पूजा म देवी म कोनो परकार के जीव के मारन नी होवय। दाई ल लिमवा अउ नरियरे ले मनाथे। जेवरहा घर म लिमवा अउ नरियर के बड़ महत्ता हे येला सेत पूजा वाला मन बोकरा-भेड़वा के सेती देथे। मारन वाला मन घलो अब  धीरे-धीरे सेत पूजा म देवी ल मनावत हवय।  रातिहा के फिलोय बिरही ल एक्कम के बिहनिया ले जेवांरा बोय बर जेवरहा घर म गांव के बइगा अउ सेउक मन सकलाथे। माता सेवा के गीत के संग जेवांरा ल कलस म बोये जाथे। कलस म जोत बारे जाथे। घर के चलागन अनुसार कतकोन घर दू ठिन कलस त काकरो घर तीन ठिन कलस मड़ाथे। माई कलस, सत्ती, खप्पर अउ माई दरबार म लगे फुलवरी के निसदिन पंडा अउ घर वाले मन संग गांव के सेउक मन सेवा गाथे। पंडा ह नौ दिन के उपास राखथे। पंचमी के दिन माई के अंगना ले पंडा मन गांव के देवी देवता के दरस करे बर निकलथे जेला पंडा निकालना कहिथे। पंडा सेउक मन संग गांव के मंदिर देवाला म हूम देवत, सबो जगा के पंडा मन एके जगा जुरियाथे। गांव के शितला दाई ठऊर ले बैरग घलो संभराके निकाले जाथे। इही दिन कलस अउ फूलवारी म ध्वजा जोतिया घलो चघाय जाथे। अष्टमी के हवन अउ नवमीं के दिन जेवांरा के विसर्जन के होथे। विसर्जन बर सरवर जावत माता ह अपन लंगूरें मन संग नाचत-गावत निकलथे। कतकोन झन मन देवता चढ़ के झुपत-झुपत माई ल सरवर अमराथे। देवता झुपइया मन अपन आस्था अउ भक्ति ल किसिम-किसिम ले देखाथे जेमा सांग, बाना, सोटा, बोड़ा लेवत झुमरत रिथे।
jayant sahu, raipur c.g.
 

सुरता हीरालाल काव्योपाध्याय 2012

छत्तीसगढ़ी व्याकरण के सर्जक हीरालाल काव्योपाध्याय
               नव उजियारा सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था डहर ले आयोजित सुरता हीरालाल काव्योपाध्याय 2012 म छत्तीसगढ़ी भाखा खातिर जबर बुता करइया जुन्नटहा साहित्यकार मन के सम्मान करे गिस। 23 सितंबर के वृंदावन हॉल रायपुर म माई पहुना माननीय चंद्रशेखर साहू मंत्री छत्तीसगढ़ शासन अऊ माननीय विजय बघेल के पगरईती म साहित्यकार डॉ. बलदेव साव (रायगढ़), डॉ. दशरथलाल निषाद 'विद्रोही (धमतरी), श्री रघुबीर अग्रवाल 'पथिक (धमतरी), डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र जी मन सम्मानित होइन। इही संघाती हीरालाल काव्योपाध्याय के रेखाचित्र ल साकार रूप देवइया चित्रकार भोजराज धनगर के घलो शॉल, श्रीफल अउ स्मृति चिन्ह ले सम्मानित करे गिस।
          संस्था के अध्यक्ष सुशील भोले अउ सचिव जयंत साहू ह संघरे विज्ञप्ति जारी करत बताइन कि कार्यक्रम म आमंत्रित वक्ता डॉ. प्रभुलाल मित्र जी ह हीरालाल से हीरालाल काव्योपाध्याय तक के जीवन के बारे म संक्षित जानकारी देवत उनकर व्यक्तित्व, शिक्षा अउ व्यवसाय के बारे म अवगत करावत किहिन कि ये हमर बर गरब के बात आए की हमन बहुमुखी प्रतिभा के धनी के धरती म जनम लिये हन। तव हमरो फरज बनथे कि हमू मन हीरालाल काव्योपाध्याय के करे कारज ल सुरता करन अउ ओकरे देखाय रद्दा म रेंगन। संस्था के अध्यक्ष सुशील भोले ह अपन स्वगत भासन म पहुना मन ले निवेदन करिन कि शासन ह हरेक साल राज्योत्सव म गजब अकन सम्मान बांटथे, ओमा हीरालाल काव्योपाध्याय के नाव से सम्मान के अभी तक नइ सुरू करे गे हवय। अभी तक जतेक भी सम्मान के दे जावथे उंकर कारज के गुनान करे जाए तो हीरालाल काव्योपाध्याय के बुता ह सबले जबर हे। शासन हा हीरालाल काव्योपाध्याय सम्मान अउ पं. रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय म हीरालाल काव्योपाध्याय शोध पीठ बनय। संस्था के ये मांग म पहुना मन के संगे-संग कार्यक्रम म उपस्थित प्रदेश भर के साहित्यकार मन घलो एक सुर येकर समर्थन करिन।
            मुख्य अतिथि चंद्रशेखर साहू जी अपन उद्बोधन म किहिस कि हीरालाल काव्योपाध्याय सचमुच म छत्तीसगढ़ के गौरव आए आउ मैं आज ये जलसा म आके अपन आप ल भागमानी महसुश करत हाबवं। काबर कि मोरे विधान सभा क्षेत्र अभनपुर के कॉलेज के नामकरण हीरालाल काव्योपाध्याय के नाव म करे गे हाबय। अतेक दिन बिते के बाद घलो इहां के साहित्य-कला जगत के गजब झिन मन उनला जानबे नइ करय ये हमर दुर्भाग्य आय। हीरालाल जइसे महापुरूष के कारज न बिरथा नइ जावन देवन, ओकर सहिक काम तो नइ करे सकन फेर ओमन जेन छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी बर करिन ओला सुरता तो करेच सकथन। ओमन संस्था के कारज के सराहना करत स्वेच्छा अनुदान दे के घोषण घलो करिन अउ यहू वादा करिस कि शासन ह घलोक अइसने देवें एकर बर ओमन पूरा प्रयास करहीं। कार्यक्रम पगरईती करत माननीय विजय बघेल ह किहिन कि हीरालाल सिरतोन के हीरा रिहन अउ हीरे का परख ल जौहरी जानथे फेर आज काल के जौहरी अपन-अपन स्वार्थ साधे बर विभूतियों की आढ़ लेथे। अइसन स्वार्थी मन ले हट के हमन ला निस्वार्थ काम करना हे अउ हीरालाल जइसे हीरा के चमक ल कमतियावन नइ देना हे। अऊ आगू वोमन किहिन कि छत्तीसगढ़ी भाखा ल संविधान की आठवीं अनुसूची में सामिल करवाय बर हर संभव प्रयास करहीं।





             कार्यक्रम म सम्मान समारोह के बाद दूसरइया पांत म छत्तीसगढ़ी काव्य पाठ के घलो आयोजन करे गे रिहिस। जेमा संस्था के सुशील भोले, चंद्रशेखर चकोर, जंयत साहू, गोविंद धनगर, तुकाराम कंसारी, दिनेश चौहान, भोलाराम सिन्हा के संगे-संग साहित्यकार डॉ. सुखदेव राम साहू, डॉ. निरूपमा शर्मा, डॉ. पंचराम सोनी, श्रीमती सुधा वर्मा, अंजनी कुमार अंकुर, डॉ. दुर्गा मेरसा, जगतारण डहरे, श्यामनारायण साहू, दुर्गा प्रसाद पारकर, नेमीचंद हिरवानी, शरद कुमार शर्मा, दिवाकर मांझी, मकसुदन राम साहू, बन्धु राजेश्वर राव खरे, चोवाराम, विटठलराम साहू, सगार कुमार शर्मा, प्रो. अनिल भतपहरी, पुनूराम साहू, श्रीधर वराडे, कु. रीता विभारे, श्रीमती जयभारती चंद्राकर, परमेश्वर कोसे, जे.आर.सोनी, राम बिशाल सोनकर, हेमंत वैष्णव, उत्तम ठाकुर, श्रीमती शोभा शर्मा, श्रीमती आशा ध्रुव, पं. सुदामा शर्मा अऊ गजब झिन कविता प्रेमी, कवि, साहित्यकार उपस्थित  रिहिन।
                                                            

  जयंत साहू

चुगलाहा

           गांव ल तो सुनता अउ सद्भावना के ठउर केहे जाथे। नित नियाव के आसन म बइठे गांव के सियान ह गांव भर ल सुमता के डोरी म बांधे रिथे। परेम के तुतारी ले गांव भर ल हॉंकथे। कोनो ल दुख पिरा झन होवे किके गांवे म अपन मति अनुसार नियम बनाय रिथे। का अमीर का गरीब छोटे बड़े सबो ल सियान बबा ह एके लउठी म हॉके। अपन बखत म मानपुर गांव घलो सुनता अउ एकजुटता के मिसाल रिहीस फेर का करबे सबे दिन एक बरोबर नइ राहय अब सियान ह सियाने होगे, नित नियाव ह अब थाना कछेरी के होगे हे। गांव तिर म थाना का आगे थानादार बात-बात म गांव आ धमकथे।
          दाउ ह अपन पाहरो मे कभु थाना कछेरी नइ गे रिहीस फेर का करबे जब ले नियतखोर कोतवाल अउ घुसखोर थानादार के जोड़ी भराय हे तब ले दाउ अउ गांव वाला मन ल लिखरी-लिखरी बात बर हवलदार करा खड़ा होय बर परथे।
          ओ दिन एक घर सास बहू के झगरा होइस परोसी ल आरो नइ लगिस। फेर चुगलाहा कोतवाल के कान म खजरी उमडि़स ते पाय के गांव भर के मन गम पागे। कोतवाल के करनी अतकेच भर नोहे। बाप बेटा के झगरा, कोनो के भइसी गवागे, कुकरी चोरी होगे, कोनो ल कुकुर चाब दिस अइसन-अइसन नान-नान बात म कोतवाल ह थाना वाला ल बलाके गांव के लोगन मन ल परसान करय। इही थाना कछेरी के सेती गांव के पंचइत अउ नित नियाव छिदीर-बिदीर होगे। हरेक बात म थाना आगे। 
         मातर के दिन के बात आय मदन अउ दया ह झगरा होइस। नसा के रोस म दोनो झन मारिक-मारा होइस। कोनो नइ छोड़ातिस त तो मुड़ी कान के फुटत ले हो जतिस। सियान मन छोड़ाइस अउ घर म ओइलइस। बिहनीया नसा उतरे के बाद मदन अउ दया दोनो झन अपन-अपन कोती ले पंचइत सकेलीस। दाउ ल फैसला करे बर बलाइस। पंचइत सकलाय देख के कोतवाल के आखी फुटगे। जाके तुरते थाना म गांव के पंचइत के बात ल एक ले दू करके बता दिस।
          थानादार ह गांव अइस अउ खुन के मामला ये किके दूनो ल अंदर कर दिस। सिपाही संग भला कोन लड़तिस दाउ घलो चुप रइगे। मदन अउ दया के थाना म जाय के पाछु दोनो के घर वाला मन मिंझर के दाउ करा अपन-अपन घर वाला ल छोड़ाय के बिनती करिस। दाउ ह थाना म पइसा कउड़ी भर के दोनो झन ल छोड़ा के लानिस। एक घाव जिहां खुसखोरी के आदत परगे ते कहां छुटना हे। कोतवाल ह तो गांव म सिपाही मन के चुगलही करे बर बइठे रिहीस। उही ह खभर करे अउ दोनो कोत के पइसा झोरे। 
          गांव म कोतवाल के जिये खाय के पुरती कोतवाली जमीन हे तभो ले चोट्टही करके खाय बिगर ओकर पेट नइ भरे। थाना के डर म कोनो ओला कांही काहत घलो नइ रिहीस। ओकरो पारी आही त मजा बताबो किके मने मन म सबो बैर धरे राहय। दाउ घला कोतवाल के पारी के अगोरा करत रिहीस।
         एक दिन बिहनिया के बेरा रिहीस गांव भर के मन अपन-अपन काम म जाय के तियारी करत रिहीस। कोनो ल कोनो से गोठियाए के फुरसद नइ रिहीस। सबो झन बुता म मगन रिहीस ओतकेच बेर कोतवाल ह रेरी पारत घर ले निकलीस। चोर... चोर... चोर...। मोर घर म चोर खुसरे हे बचावा दाई ददा हो। मोला बचावा चोर... चोर...। चोरहा मन मुह म साफी बांधे कोतवाल ल मारत पिटत ओकर घर के संदूक पेटी ल खोले लगिस। कोतवाल ह अपन घर के रूपिया पइसा ल चोरी होत देख चोर चोर किके चिल्लावे। गांव वाला मन कोनो ओकर मदद बर आगु नइ अइस। चोरहा मन कोतवाल के घर म दंगा दासी करिस अउ चोरी करके चल दिस। कोतवाल रो-रो के करलई ले बताय लगिस।
           कोतवाल ह सबो किस्सा ल बतावथे अउ गांव वाला मन किस्सा सुने बरोबर हुकारू देवत हव हव किके सुनथे। कोतवाल घर ओतेक अकन के चोरी होय हे तभो ले कोनो ह मया के दू भाखा नइ बोलत हे। बने बेवहार के रितिस त तिर तखार के मन ओधतिस नियतखोर कोतवाल के चरितर के सेती दुख म घलो अपने अकेल्ला हे। उहू ह तो काकरो सुख दुख म साथ नइ दिस त ओकरे दुख म कोन साथ दिही। कोतवाल ह पर के झमेला म जोझा परके धन कमाय रिहीस। उपराहा म चोरी लुका ले अपन कोतवाली जमीन ल घलो बेचे रिहीस। घर म बने रूपिया के सकलाती होइस अउ बिलई कस झपटती होगे। पर के ल झपटे परे तेकर सेती ओकरो झटइस।
         रोवत गावत कोतवाल थाना पहुचिस अउ चोरी के बात ल थानादार ल बतइस। थानादार तमतमावत गांव अइस। गांव म एको मनखे नही। सबो अपन-अपन काम बुता म चल दे रिहीन। गांव म जइसे कुछू होयच नइये तइसे बरोबर रिहीस। देख के थानादार ल अचंभा लागिस। कोतवाल ल किथे- कइसे कोतवाल तोर घर सिरतो म चोरी होय हे। कोतवाल किथे हहो मालिक गांव भर के आगु म चोरी होय हे। गांव भर के आगु म चोरी होय हे फेर गांव म तो एको मनखे नइ दिखे। थानादार गांव के एक झन सियान ल पुछिस कइसे गा कोतवाल घर चोरी होवत रिहीस त रेहेस का। सियान किथे- कतका बेर चोरी हो गे साहेब हम तो जानबे नइ करन, येदे तुहरे मुह अभी सुने हन। लइका मन खेलत रिहीस तेमन ल पुछिस- तुमन देखे हव का। लइका मन किथे- चोरह घर का चोरी होही गा, लबारी मारथे। थानादार गांव वाला मन ल पुछ-पुछ के हलाकन होगे कोतवाल घर के चोरी ल कहू जानबे नइ करे। कोतवाल के समान चोरी होगे उपर ले कोना ह बताय बर तियार नइये।
          थानादार बिगर सबुत के पतियाबे नइ करिस कि ओकर घर चोरी हो हे। थानादार कोतवाल ल किहीस दु चार सौ देबे त तोर केस बनाहू। चोरहा मोर हांथ आ जही त तोर रूपिया मिल जही नही ते उहू ल गवांए जान। आखिर म थानादार ह कोतवाले ल समय खराब करथस किके खिसयइस अउ उही पावं लहुटगे।
          अतका बिते के बाद कोतवाल ल समझ आगे रिहीस की गांव म रइ के गांव वाला संग दोगलई करेवं तेकर फल आय किके। अपन करनी म छिमा मागे बर पंचइत सकेलिस। मानपुर म एक बेर फेर नियाव के आसन म दाउ बइठिस। सरी गांव वाला के आगु कोतवाल किहिस कि मै लालच म पर के नान नान बात के लिगरी लगा के सबला थाना कछेरी म रगेढ़त रेहेव। अब मोला क्षमा करदव। अइसन गलती दुबारा नइ करवं। मोर करनी के सजा तो मोला मिलगे मै कंगाल होगेव। दाउ ह कोतवाल ल अपन करनी म पछतावत देखके किहीस हमर पंचइत म काकरो संग अनियाय नइ होय। दाउ ह मदन ल आरो करिस। मदन अउ दया ह एक ठन मोटरी लान के मढ़इस। दाउ किथे कोतवाल ले धर तोर रूपिया पइसा ल, तै सरी गांव ले बैर करेस अपन लालच बर फेर गांव के मन तोर ले नही तोर लालच ले बैर राखे रिहीस। गांव के सुनता टोरे बर तै का-का नइ करे होबे। अब देखे डरेस न गांव के नियाव अउ गांव के सुनता।

हरेली : छत्तीसगढ़ी लोक परब

रोग-राई हरे बर 'हरेली' तिहार



खेती किसानी अउ बनि-भूति म रमे लोगन बर तिज-तिहार एक ठीन खुशी के ओढऱ भर नोहय बल्कि अइसन परब अउ रित रिवाज ह समाज म कोनो न कोनो किसम के संदेसा लानथे। मेहनत मजूरी म लगे लोगन ल वइसे बाहिर के दुनियां ले काहीं लेना-देना नइये अपन काम ले काम, अऊ खुशी मनाही तभो अपने मन मुताबिक। इही सेती किसनहा भुइयां छत्तीसगढ़ के सबो तिज तिहार कोनो न कोनो परकार ले खेती किसानी ले ही जूरे रिथे। छत्तीसगढ़ म असाढ़ के दूसर पाख ले पानी दमोरे के सुरू हो जथे, इहां के कतको लोगन मन गरमी के दिन म कन्हार ल अकरस जोतई कर डारथे। एक सरवर पानी परीस ताहन धान ल बो डरथे। अब मौसम के ऊंच निच के सेती बोवई कभू-कभू पिछड़ जथे। सावन तक एक्का दूक्का के छोड़े बोवई पूरा हो जथे। सावन के महीना किसान मन बर गजब खुशयाली लाथे। काबर कि पानी के टिपिर-टिपिर झड़ी संग तिहार ह घलो ओरी-ओरी ओरिया जथे। सबले पहिली आथे हरेली, येहा छत्तीगसढ़ के परमुख तिहार आय। किसान मन अपन नांगर बक्खर के पूजा करथे, लइका मन गेड़ी के मजा लेथे, गांव के सियानहा मन गांव के सुख समृद्धि बर डिह डोंगरी के देवता मन ल मनाथे। गांव के चरवाहा मन माल-मवेशी मन के बढ़वार अउ रोग-राई टारे बर दइहान म गरवा मन ल कंदइल(दवई) अउ लोंदी खवाथे। पाहटिया ह घरो-घर लीम के डारा खोचथे। तन मन ल निरोगी करे रखे म लीम के महत्ता ल तो डॉक्टर बईद सबो जानथे। जवान मन के झिमिर-झिमिर पानी म नरियर फेकउल। गेड़ी दउड़ अउ नरियर जीत। लोक परंपरा के धरोहर गठियाए सियन्हिन मन लइका सियान सबो पर रोटी-पीठा रांधथे अउ हरेली परब ल गजब हॉसी खुशी ले मनाथे।



सवनाही- सावन लगथे तव पहिली इतवार के गांव बनाय जाथे। गांव के सियान मन गांव के देवा धामी के ठऊर म जाथे अउ मानता अनुसार देव के मान गावन करथे। ये दिन गांव के बइगा संग सुजानी सियाने मन भर जाथे लइका मन ल ये कारज म नइ संघेरे। गांव म इतवार के पहिली गांव के सियान मन के गुड़ी म जुरियाथे। सवनाही रेंगाय बर बइगा ह चलागन अनुसार समान बताथे, गांव के मन बरार करके लानथे अउ शनिचरी रात म सवनाही रेंगाथे। असल म सवनाही गांव के देवी देवता अउ डीह डोंगरी के पूजन आय। गांव म जेन दिन गांव बनाथे वो दिन काम बुता के मनाही रिथे। गांव म जब तक पानी भरे अउ कचरा माटी फेके के हांका नइ होवे तब तक गांव के कोनो ह कुआ बोरिंग ले पानी नइ भरे अउ न कोनो ह घर के कचरा ल घुरवा म फेकय। जब सबे देवी देवता म हूमन-धूपन मान-गवन हो जथे तेकर पाछू गांव के मन पानी भरथे अउ कचरा माटी फेकथे। ये दिन घर कुरिया अउ कोठार मन म गोबर के पुतरी बनाथे। सवनाही के बाद सावन महीना के इतवार भर गांव म काम-बूता बंद रिथे। समे के संग गांव के लोगन मन के विचार कतको बदलत हे तभो ले गांव म सावनाही, इतवारी तिहार के परंपरा चलते हावे अऊ चलते रही काबर की ये हमर पंरपरा के आरूग चिन्हा आय। लोगन के सोच ह अंधविस्वास अउ टोना-टोट्का ले छटियाके अब सिरिफ रीति-रिवाज अउ परंपरा के निर्वाह म लगे हे।




पशुधन के जतन- हरेली म माल-मवेशी मन के घलो बने जतन अउ हियाव करे जाथे। सावन म खेत-खार म कई किसम के नवा-नवा उपजे हरियर चारा गाय-गरवा अउ किसानी म काम करइया बइला-भइसा मन ल गजब सुहाथे। हरियर-हरियर कांदी अउ बन-बूटा ल ढिल्ला चरइया मवेशी म हरर-हरर खाथे। नवा उपजे इही चारा म कई किसिम के कीरा अउ रोग-राई संक्रमण वाला कांदी रिथे जेला पशुधन खा परथे। अइसन चारा चरे ले पशु मन म बीमारी फैले के डर रिथे। हरेली के दिन गांव के चरवाहा मन जोन कंदइल ल उसन के खवाथे वोहा गाय-गरवा मन बर औषधी के काम करथे, ओमन ल बरसात म होवइया संक्रमण ले बचाथे। अबके भासा म काहन त सामूहिक उपचार। जेन गरवा ह दइहान म नइ आवे तेकर बर किसान मन राउत करा ले दवई मांग के घर लेग के खवाथे, ताकी कोनो ह दवई खाय बर झन छूटे। चरवाहा मन ये कंदइल ल रात के उसनथे अउ बिहनिया ले दइहान के गरवा मन ल लोंदी संग खवाथे। लोंदी गहू पिसान के लोई आए जेमा थोर-थोर नून या बिगर नून वाला घलो बनाके खवाथे। चरवाहा मन दवई क पाछू कोनो रूपिया पइसा नइ लेवे। काठा-पइली धान अउ सेर सीथा भर लेथे। माल-मवेशी के जतका संसो घर गोइसया ल रिथे ओकते संसो पाहटिया ल घलो रिथे। गांव के लोगन मन अपन गाय-गरवा ल हियाव कर-करके सावन के रोग-राई ले बचाथे अउ अपन संगवारी मितान भाई बरोबर बइला-भइसा ल खवा पियाके हरेली तिहार ल जुरमिल के मनाथे।




कृषि औजार पूजा- खेती के काम अवइया नांगर, जुड़ा, कोपर, रापा, कुदारी, रपली, आरी, बसूला, सबरी, टंगिया ल सेकल के बढिय़ा धोथे मांचथे। कमई के दिन म जतका जी परान देके कमइया ह कमाथे ओतके भाव भक्ति ले अपन औजार के जतन घलो करथे। कोनो भी जिनिस होय बेरा-बेरा म ओकर देख-रेख अउ समे अुनसार जतनबे तव जादा दिन खटाथे। बनावटी तो सबो हे, सब बनावटी ल एक दिन खुवार होना हे। फेर जतन देबे त धिरलगहा खियाथे। गांव के सिधा-सादा मानुख ह जादा के तीन पांच ल नइ जाने अपन सरी विधी-विधान त परब बरोबर मानथे। सबो औजार ल धो मांज के एके जगा अंगना म मड़ाथे। चाउर पिसान ल घोर के सब हाथा देथे। बंदन के टीका लगाथे। चीला गुर के हूम-जग देथे। सबो परानी आरती उतारथे। भगवान ले बिनती करथे कि हे नांगर, हे जुड़ा, हे रपली कुदारी, हमन तुहरे परसादे बूता सिरजाथन। बने-बने सब काम बुलक जाए कोनो परकार के बाधा बिघन अउ अड़चन झन आए।




गेड़ी- हरेली ह किसान मन के तिहार आय त भला किसान के लइका मन कइसे तिहरहा मजा दे दूरिहा रही। ये दिन गेड़ी खाप के लइका मन गली खोर के चिखला माटी म चभरंग-चभरंग रेंगत रिथे। गेड़ी बांस के बनाय जाथे जेकर लंबाई चार हाथ ले बारा हाथ तक के घलो होथे। गेड़ी चघइया के सोहलित के मुताबिक गेड़ी बनाय जाथे, नान्हे लइका या नवसिखिया बर नानकुन अउ हूसियार लइका मन बारा-चौदह हाथ के गेड़ी के चड़थे। गेड़ी बनाय बर बॉस अउ बूच रस्सी के जरूरत होथे। पांव रखे बर पउवा ल बांस के बिचो-बिचो खिला म अटका के ओकर निचे नेकवा लगा के बूच के रस्सी से बाधे जाथे। गेड़ी चघईया मन गेड़ी म रेंगत खानी गेड़ी ले रचरिच-रचरिच आवाज निकाले बर बूच म अंडी या सरसो, माटी तेल डारथे, बिच म केश डारे ले घलो गेड़ी ले चमचमहा आवाज निकलथे। गेड़ी के बिसे अभी तक हमर अंचल म कोनो पौराणिक कथा या किवदंती तो सुनऊ म नइ आय हे। हरेली म गेड़ी के बनाय अउ गेड़ी रेंगे के पाछू कारण का होही ये मरम ल जानबो तव गजब अकन गोठ निकलथे। हरेली ह सावन के महीना म आथे। सावन झड़ी-पानी के दिन आय। पानी के सेती गांव के गली खोर म भारी गइरी माते रिथे जेती देखबे तेती माड़ी भर-भर चिखला भरे रिथे। गोड़ ल चिखला से बचाय बर गेड़ी चड़थे। बरसात म चिखला म कतकोन परकार के किरा-मकोरा अउ सांप-डेढ़ू रइथे। हरेली तिहार के ओखी सियान मन लइका मन चिखला-माटी ले बाचे के संदेसा देथे। गेड़ी ह केदवा अउ पानी-पानी म पांव कंदकंदाय ले बचाथे संगे-संग ये ह एक परकार के योग साधना घलो आय ऐकर से लइका मन पातर बांस म रेंग के शरीर के संतुलन बनाय के कलाकारी सिखथे। ऊंचहा बास म पांव मड़ाके जब लइका आगू डंगा फेरथे तव पूरा शरीर ह पउवा के थेभा पांव के काम करथे। गेड़ी रेंगइया मन बिगर कोनो सहारा रेंग जथे। गेड़ी बनाय के पाछू पौराणिक कथा-किवदंती नइ पायेन त का होगे, गेड़ी ह शरीर के संतुलन अउ पाव के संक्रमण के संगे-संग योग साधना, लइका मन ल आत्मविस्वासी बनाथे।




सावन संग आगे तिहार के झड़ी,

धोवव नांगर-बक्खर अउ मव गेड़ी।
आगे हरेली... आगे हरेली।।







छोटकू के मुड़ म सियानी पागा: ननपन खुवार

बड़हर के लइका मन जेन उमर म स्कूल-किताब सिलेट पट्टी अऊ आनी-बानी के खेल-तमासा म रमे रिथे। गरीबहा के लइका ह अपन पेट बनि म जूझे रिथे। दूनो घर के लइका अपन उमर ले आगू से आगू के जुगत म लगे रिथे बड़हर घर के लइका ह नानपन म ही पढ़ई के जोझा म पर जथे उहे गरीबहा घर के लइका ह नान्हे उमर म परवार पोसे के बोझा ल बोह लेथे। एक उपर पढ़ई जोझा दूसर उपर बनि के बोझा, आखिर पेरावत तो लइकेच के उमर। पढ़ई अउ कमई के एक उमर होथे। ये जिम्मेदारी ओमन ल सगियान अउ चेतलक होय म दिये जाय तब उकरो मन म उमंग रही। ये बात सियान मन ल सोचना चाही।
बड़े-बड़े साहर के बड़हर मन लइका ल घातेच हूसियार बनही किके कोरा के लइका ल दूध छोड़ा के मास्टरिन घर पठोय के सुरू कर देथे। महतारी के मया लइका मास्टरिन के किताब ल पढ़ के जानथे। मया अउ दुलार ल आखर ले जाने अउ सउहे महतारी ले पाय म ओतके फरक हे जतका चंदा-सुरूज म। हमला घर के छानी के उप्पर दिखथे तो फेर हम ओला अमर नइ सकन। किताब म लिखाय गियान आखर लइका ल गियानवान तो बना देथे फेर गुन म कोनो परकार के खंगता रइ जथे। जेकर भुगतना महतारी-बाप बुड़हत काल म भोगथे। ले लइका मन सिरिफ अऊ सिरिफ अपनेच जिनगी सवांरे म लगे रिथे। महतारी बाप बने-बने हावय तब तो सब ठीक हे। थोरको देह ल जियान परिस ताहन मां बाप ल इही लइका मन वृद्धा आश्रम अमरा देथे। सबोच लइका अइसन नइ होवय कतको लइका सरवन कुमार घलो निकलथे, महतारी बाप के सेवा जतन करथे। भगवान करे सबो लइका सरवन कुमार सहिक हो जए अउ वृद्धा आश्रम के नाव भुता जाय। नानकुन बात म बतेक गड़ान निकाले के जरूरत नइ रिहिस फेर का करबे आजकाल के लइका मन के गतर ल देखत कहे ल परथे। पढ़ही लिखही तव लइका के जिनगी सवंरही फेर नान्हे उमर म कनिहा के नवत ले बस्ता के बोझा लदकना घलो बने बात नोहय।
अइसने उमर तो छोट फेर जिम्मेदारी रोठ, जेला ईमानदारी ले निभावत रिथे गरीब घर के लइका। गली के कबाड़ी दुकान होय चाहे सड़क तिर के होटल, हथेरी ले बड़े कप-पलेट अउ बर्तन-भाड़ा मांजत-धोवत नान्हे लइका दिख जथे। कोनो ह कतको बाल मजदूरी रोके बर, बालश्रम कानून बनालय फेर फलित होबे नइ करे। कानहून ले ककरो काम ला छोड़ा के मजदूर अउ मजदूरी करइया ल चेता देले ओ मजदूर के गुजारा कइसे चलही पहिली ये बात म विचार होना चाही। नानकुन बिभो के बड़का ढिड़ोरा पिटना तो सरकार के कामेच हे। लइका बनि के छोड़ाके भलमंशी कहइया मन एक पइत ओकर बनि करे के पाछू का कारन हे येहू ल समझना देखना चाही। पोसे के ओखी म का लइका मन ल धूत्कार के कमवइया मन के दुनियां म कमी नइये, कतको सियाने मन दरूवा-मंदवा रिथे येमन अपन लइका करा काम करवाथे। अइसना निर्लज बाप ल समझाना चाही। नइ माने म अइसन मन ल कानहून के डंडा पडय़। एमन ल यमराज जब चाबूक मारही तब मारही पहिली समाज के सोटा परना चाही। समाज म अइसन कुबाप के कोनो जगा नइये। फेर लइका बिचारा का करय किथे न परोसी बुती सांप नइ परे तइसने बरोबर अपन जिनगी चलाय बर मजूरी करथे अउ अपन जिनगी चलाथे। कतको के महतारी बाप नइ राहय तेनो मन कमाथे अउ खाथे। एमन के पोसइया तो अवतरे नही फेर अइसना लइका मन बर सरकार,समाज अउ पास-परोस वाला मन ल कोनो न कोनो रद्दा निकालेच बर परही। कुछ संगठन अउ संस्था वाला मन संहराए के लइक बुता करत हे, बिन दाई ददा के लइका अउ गरीबी भूखमरी म जियत लइका मन बर बालश्रमिक स्कूल चलाके। कारखाना अउ कंपनी म काम करइया लइका मन ल काम ले उबरे के बाद गियान देके उदिम करत हे। अब के दुनियां म कोनो ह कोनो ल चारा चराए के जिम्मा नइ लेवे अपन पेट बर सबो ल जूझे ल परथे। नानपन ले बनि के घानी म पेरावत लइका मनके भाग सवांरे के परयास म लगे संस्था मन ल देवता साहमत देवय, अऊ बिगाड़ करइया के नास होवय। नान्हे लइका के ननपन ल खुवार करे म बड़ेच मनके हाथ हे। छोट उमर म लइका के पीठ म बस्ता के बोझा बोहाना अउ रोजी मजूरी कराना दोनो म जादा फरक नइये। काचा पघई के पनिया घड़ी भर नइ ठाहरे,कुंभरा के मेहनत संग घईला घलो जात रिथे। अइसने बरोबर लइका के उमर ल जानव। लइका पन म लइका ह लइकेच राहय।

बजगरी

छायाचित्र- लोक वाद्य संग्रहकर्ता/रंगकर्मी अउ बस्तर बैंड के संयोजक/निर्देशक श्री अनूप रंजन पांडेय जी के संग्रह ले साभार।
                   गांव-गांव के गाड़ा बाजा के बजइया म आधा ह अधमरा होगे हे आधा मन तो सिरागे हे, नवा पीढ़ी के बजगरी आही के नहीं ओकरो ठिकाना नइये। काबर कि जुन्ना गाड़ा बाजा के बजगरी मन ल कोनो संस्था, समिति अउ न तो शासन ह अन्ते कलाकार सहिक आदर अउ मान सम्मान देवथे। अऊ न तो जेकर घर बाजा बजाए बर जाथे ते घरवाले ह वो मन ला एक कलाकार के मान देवय। बजाय के बनि लेथे त बजगरी मन ल एक बनिहारे जानबो का ? अइसन काम करत देख के मन म ये बिचार आथे कि जब आने विधा के बजईया ल वादक-वादक कहिके मान सम्मान देथन तव का ये बजगरी मन अतको के लइक नइये। पाटन तिर के सोनडोंगर गांव के समाजी बाजा पार्टी वाले मन के गजब नाम हे। बर-बिहाव अउ मंगल उच्छाह म बाजा लगाय बर लोगन मन बिगर तोल-मोल के एक जुबान म सोनडोंगर के बाजा ल लगा लेवे। बजगरी मन घलो घर वाला मन ल निराश नइ करत रिहिस। अतेक मन लगा के गाना बजाना करे कि मन खुश कर देवय इही पाये लोगन मन बिदा करे के बेरा उपराहा दू चार आना आगर देवय। अब जोन किसम के बाजा बर-बिहाव म बाजथे तेमन तो कानफोड़ू बाजा आय। तब के अउ अब के दिन ल देखत झुमकाहा ह अपन बाजा मन ल बढ़ जतन के राखे हावय। झुमकाहा के छोड़ उंकर बाजा पार्टी के सबो बजगरी मन देवधाम चल दे हावय। जब ले झुमकाहा के संगत टूटे हे तब ले दफड़ा, दमउ, मोहरी, टिमकी मन ल चुमड़ी म भर के पटऊहा मे टांग दे हावय।
               झुमकाहा ल एक दिन ओकर टूरा ह किथे बाजा मन ल काबर नइ निकालत हाबस। निकालतेस नवा-नवा लइका मन ल सिखातेस। तूमन अपन समय के गजब नामी बजनिया रेहेव अभी तक लोगन मन बाजा लगाय बर तूहर नाव लेके पूछत गांव म आथे। लइका मन ल सिखोतेव तव तूहर नाव ल आगू बढ़ातिस। झुमकाहा किथे इही तो मै नइ चाहवं। हमन ह भले उमर भर बजगरी रेहेन ते रेहेन फेर अब कोनो लइका ल बजगरी होन नइ दवं। कलाकारी के सउख हे त जाव कोनो दूसर कलाकारी करव। लइका मन ल झुमकाहा ह समाजी बाजा बजाय बर मना करय, वो काहय कलाकारिच करे बर हे तव अऊ गजब विधा हे कोनो म जाव फेर गाड़ा बाजा झन बजाव।
                  काबर झुमकाहा ह समाजी बाजा बजाय के नाम से गुसियाथे ये बात ल गांव के सबो कोनो ह जानथे। गांव म एक पइत बड़ेक जान जलसा होत रिहिस। वो जलसा म राज के सबो नेता मन आए रिहिस। हमर राज भर के लोककला दल मन ल नेवता दे के बलाय रिहिन। झुमकाहा मन ल घलो बलाय रिहिन। नेता अइस तव समाजी बाजा वाला मन आगू-आगू जोहारत ठउर तक लेगिन। नेता मन ठउर म जाके भाषण दिन, ताहन फेर बाहिर ले आय कलाकार मन ल पारी-पारी मंच म बला के सम्मान करत गीस। सरी कार्यक्रम ह सीरागे फेर समाजी बाजा वाला मन के पारी आबे नइ करिस। सबो नेता मन अब मंच ले उतर के आर्केस्टा देखे बर नीचे म आगे। रात के दस बजती रिहिस। निसनहा के छाती पिरा उठगे। सबो बजगरी मन सकपका गे। संतरी-कंतरी सबो रिहिन फेर कोनो ह निसनहा ल इलाज पानी कराय के जिकर नइ करिस। मनोरंजन करत हाहा हीही म रमे रिगे। थोरकेच अलथी-कलथी लिस ताहन नारी जुड़ागे। अइसने-अइसने घटना मन म ओकर पार्टी के बजगरी संगी मन सिरागे। संगी मन के सिराय के बाद झुमकाहा ह बाजा ल छुबे नइ करिस। झुमकाहा के मन म इही बात के रिस हमागे हाबे कि सबो गाजा-बाजा अउ नचइया-गवइया वाला मन रूपिया पइसा लेथे। कला के परसादे अपन घर चलाथे। फेर काबर हमन बजगरी अउ वो मन वादक कलाकार होथे। हमर बर एनसन-पेंसन मान-सम्मान काही नइ।
                ये बात के जानबा झुमकाहा के लइका के होइस तव ओहा ये बिसय म गजब गुनान करिस। अउ अपन गांव के संगी साथी मन ल सकेल के एक ठीन संस्था बनइस। संस्था के एके ठीन उद्देश्य रखिस गांव-गांव के पारंपरिक कला ल संजो के रखना हे। गांव के कोनो भी विधा के जानकार होय ओकर मान बढ़ाना हे काबर की वोमन हमर प्रदेश के लोक संस्कृति ल जीवित राखे के बुता करत हे। लइका मन परन करके निसुवारथ काम म लगगे। वोमन गांव-गांव जाके पारंपरिक लोक वाद्य के संग समाजी बाजा दल,गोदना वाली,चिकारा नाच वाला,अखाड़ा वाला, भजनाहा, नाचा पार्टी, सुवा दल, पंथी, बांस गीत गवईया, आल्हा गवईया माता सेवा जइसन लोक संस्कृति के जानकार मन ल एके ठउर म समोख के उंकरे मन के मान बढ़ाय के उदिम म रमगे।
                   झुमकाहा के लइका ह गांव-गांव म अपने सहिक जवान मन ल संगी बना के अपन संस्था ल राज भर म फैला डरिस। अब तो राज म कोना कलाकार ल काहीं के तकलीफ होथे त उंकर संस्था ह भरपूर मदद करथे। कोनो ल आर्थिक तंगई छाथे तिकरों बर वो मन चंदा सकेल-सकेल के मदद करथे। लइका मन ल अइसन काम करत देख के झुमकाहा के मन के पिरा ह थिरइस। एक दिन खुदे अपन लइका ल बला के किथे जा तो रे सीड़ीया लान अउ वो पटउहा के बाजा मन ल हेर। लइका ह खुशी-खुशी गीस अउ बाजा ल हेरिस। सोनडोंगर के समाजी बाजा काहत लागे। नाननान लइका मन के कनिहा म साज बांध के झुमकाहा ह अपन झुमका झनकारिस। देवधाम के रहईया अपन बजगरी संगी मन के नाव सुमर के सोनडोंगर समाजी बाजा पार्टी ल फेर नवा बजगरी मन संग तियार करिस, दफड़ा, दमऊ, मोहरी, टिमकी ह फेर गदके लगगे।

अपन अउ बिरान

सोनपुर गांव म संभू अउ महादेव नाव के दू भाई रिहीस। दोनो भाई ह गांव के बड़का किसान रिहीस। संभू ह दोनो घर के सियानी करे, ओकर परवार म गोसइन भगवंतिन, ओकर भाई महादेव अउ भाईबहू सांति। संभू के एको झिन औलाद नइ रिहीस। महादेव के दू झन औलाद हे एक गोपाल अउ दूसर बाली। संभू ह अपन भाई ल भाई नही अपन बेटा माने इही बात म संभू के गोसइन भगवंतिन ह जलन मरे।
संभू अउ भगवंतिन के बीच बात-बात म ताना कसी होवत राहय। गोपाल ह गांव रइ के खेती किसानी के काम ल करे अउ बाली ह साहर म पढ़ाई करय।
           उहिच गांव म महादेव के लंगोटिया संगवारी रिहीस। निच्चट गरीब रिहीस ऊपर ले बिमारी घलो घेरे रिहीस। एक दिन अपन जवान छोकरी ल छोड़ के बितगे। संगी के मरे के बाद ओकर बेटी किसना ल अपने घर लान लिस। अब गोपाल अउ किसना ह मिल के घर दुवार के काम ल करे। हांसी खुसी ले दिन कटत रिहीस।
          एक दिन भगवंतिन के भाई के बेटा अउ बेटी ह अपन फुफू घर रेहे बर आथे। भगवंतिन के भतिजा ह गजब अनदेखना रिहीस। संभू ह गोपाल ल बेटा-बेटा काहत रहे ल भगवंतिन के भतिजा मन ल सहे नइ जात रिहीस। ओमन तो इही मंसा लेके आय रिहीस कि अपन फुफू के एको झन औलाद नइ हे सबो चिज बस ल हथिया लेबो। भगवंतिन घलो वोकरे मन के बुध म आगे।
भगवंतिन अउ ओकर भतिजा दोनो झन मिल के घर के बटवारा करा देथे। महादेव के छोटे बेटा बाली घलो सहर ले पढ़ के गांव आगे रिहीस। बाली अउ भगवंतिन के भतिजा दोनो झन साहर म संगे पढ़य ते पाय के दोनो झन के बने जमत रिहीस। बांटा होइस त बाली ह अपन दाई ददा ल छोड़ के वोकरे मन संग होगे। बाली ह वोकरे मन के सिखान म अपन भाई ले बाटा ले डरिस।
           बाप के बाटा के भाड़ी नइ रूंधाय रिहीस ओकरो मन के बाटा होगे। किसमत घलो एकउहा ओकरे उपर रिसागे। दोनो भाई के बाटा के बाद महादेव के तो सुध बुध हरागे। गांव के पंचइत ह ओकर मन के बाटा करइस। बाटा के बाद तुरते बाली के बिहाव होगे। महादेव घर म बीमार परे हे अउ बाली के बिहाव होवथे। महादेव ह बीमारी म मरत हावे अउ बाली के भावंर परत हाबे।
          गोपाल घेरी-बेरी दोनो के नता ल जोरे के उदीम करथे फेर भगवंतिन अउ ओकर भतिजा ह हमेसा नता ल टोरे के काम करय। गोपाल के बिहाव देखे के महादेव ल आखरी इच्छा रिहीस। गोपाल के बिहाव देखे के संभू ल घलो आस रिहीस। गोपाल अउ किसना ह उंकर मन के इच्छा ल पुरा करथे। जब ले बाटा होय हे दोनो के घर म परदा रूंधागे हे। परदा के ए पार संभु अउ वो पार महादेव रो रो के अपन दिन ल कांटे।
बिहाव के बाद बाली ह नौकरी करे बर बाहिर चल देथे। भगवंतिन ह अपन भतिजा के बुध म   रेंगथे। भतिजा ह ओला जोंख असन चुसत हावे। कोरा कागत म दसकत करवा-करवा के ओकर सबो चिस बस ल अपन नाम करा लेथे। संभु बरजथे तभो ले भगवंतिन नइ माने। दसकत वाला कागत ल धरके भतिजा ह सहर भाग जथे।
          अपन तो भागिस संग म घर अउ खेत ल घलो बेच बुचाके संभु अउ भगवंतिन ल कंगला कर दिस। भतिजा अउ भतिजिन दोनो मिल के फुफू के घर दुवार ल बरबाद कर दिस। सबो चिज बस ल लुटाय के बाद भगवंतिन ल चेत अइस कि कोन अपन अउ कोन बिरान। आखिर म गोपाल अउ महादेव ह वोकर घर अउ खेत ल बचा के फेर एक के एक होगे।

पेट कटारी बनी

        साहर के रिगबिग-सिगबिग अंजोर ले बने तो गांव के महिना पंद्रही के पुन्नी के अंजोरी बने। भले अगोरा करा के आथे फेर तिहरहा कस खुसयाली तो लानथे। जिहां दिन अउ रतिहा सबर दिन एके बरोबर उहां के मन पुन्नी पुनवासा के चैघडि़या ल का जानय। गांव के अउ साहर के बनी म अइसनेच फरक हे। वोमन बनिहार अउ पनही ल एके जान अपन पावं तरी रउन्द देथे। गांव अउ साहर के जिनगी ल जेन मन भोगे हे तेन मन जानथे। गांव म बनी करे ले मान मर्यादा बने रिथे, बाहिर कमईया मनके कोनो इज्जत नइ करे। फिरंता बबा ह अपन जवानी म परवार सुद्धा परदेस गे रिहीस कमाय खाय बर। आधा उमर काट के लहुटिस। उहू म अकेल्ला। ओकर परवार ल परदेस ह भख ले लिस। तब ले परन करे हे की अब गांव म कोनो घर ल सुन्ना नइ होन देव। सब ल गांवे म बनी भुति मिलय अइसन कारज म रमें रिथे। अपन ह सरी भुगतना ल भोग के बइठे हे ते पाय के गांव के मन ल सही रद्दा बताथे।
        इही पाय के गांव के मन अपन संका-समाधान बर फिरंता बबा ल बलाय। वोकर राय ले बिगर पाना नइ डोलावत रिहीस। फेर जब ले बिसरू ह साहर ले पइसा कमा के आय हे सबे मनखे मन ओकरे कोति ढरक गे हाबे। ओमन अब फिरंता बबा उपर दोस लगाय के सुरू घलो कर देहे। काबर कि उही ह गांव के मनखे मन ल साहर जाय बर बरजे। बिसरू ह बरपेली भगागे रिहीस तेनो ह जब गांव लहुटके अइस तव माला-माल होके। इही बात म गांव के दू चार झन मन ह फिरंता संग इरसा करे बर धर लिन। वोकर मनके मन ह सोचे कि बबा ह जानसुन के हमन ल पोट्ठ होवन नइ देवथे। गरीबे राहय किके साहर नइ जान दिस। सबे बेरोजगार जेवान मन ह बिसरू के संगत करत हाबे कि ओकरे संग साहर जाबो अउ रूपिया पइसा कमा के गांव लहुटबो।
        बिसरू पारा के मन ह अपन-अपन डेरा-डोगरी ल धरके तियारे रिहीस बिसरू संग साहर जाय बर। जइसे फिरंता बबा ह गम पइसे के गांव मन ह साहर जाय बर निकल गेहे किके तव वोमन ल किथे- झन जावा साहर बाबू हो, जोन भी गांव म रोजी बनी मिलत हे उही म खुश राहव। वोतके म अपन गुजारा चलत हे त जादा के लालच काबर करत हव। दूर देश म बनी कमा के कोनो ह जहीजाद नइ जोरे सके हे। जउन कुछ सिरजथे अपने खेती डोली म सिरजथे। अब तो सबो आंखी म बिसरू कस धन जोरे के सपना सिरजत रिहिस कोनो ह फिरंता बबा के बात नइ मानिस। बिसरू ह सबो झन से कागज म अंगूठा लगवाइस कि वोमन अपन-अपन मरजी ले बनी करे बर साहर जावथे कोनो वोमन ल जोर जबरई करके नइ लेगत हे। खुशी-खुशी अंगूठा चपकिस अउ चल दिस साहर म बनी करे बर।
        परदेस के भट्ठा म लेग के बिसरू ह काम लगा दिस। भट्ठा के मालिक ह सबो कोनो ल पैसठ रूपिया रोजी म काम में राख लिस। काम के काम अउ रहे बर घर पाके मगन होगे। बिसरू के केहे म काम मिलिस किके लोगन मन ओकर बड़ बड़ाई करिन।
        सबो कोनो बने मन लगाके पंदरा दिन काम करे रिहीस के मालिक ह संझा कुन बनी के चुकारा करे बर आगे। सबो बनिहार ओरी-ओरी ओरियइस नाव पुकार-पुकार के मालिक ह पचास-पचास रूपिया के हिसाब ले सात सौ पचास रूपिया देवत गिस। ओतके रूपिया ल देख के एक झिन बनिहार ह मलिक सो पुछथे कि मालिक तुमन तो पैसठ रूपिया रोजी कहे रेहेव फेर येतो पचासे के हिसाब आवथे। मालिक गुसिया के किथे येला तोर मुशी ल पुछ वोही ह बताही। कोन मुशी ल किथो साहेब। अरे उही बिसरू ल जेन ह तुमन ल लाने हे। पैसठ रूपिया तुहर रोजी हे जेमा के पचास रूपिया तुमन ल मिलही अउ पनद्रा रूपिया ह मुशी ल मिलही। मोर बात म परतित नइये त पुछ लव। गांव के बनिहार मन बिसरू ले पुछिस कइसे तै हमर पाछू दलाली खाय बर लाने हस का। बिसरू किथे येमा दलाली के का बात हे, गांव म तुमन तो अतको नइ पात रेहेवं। जतके मिलत हे ततके म खुश राहव। तुमन ल काम देवाय हवं घर देवाय हवं त मै वोतको नइ कमाहू। अब गांव के मन ल समझ अइस कि बिसरू ह काबर साहर लाने।
        वो भट्ठा म बिसरू असन कइयो झन रिहीस जेमन अपन-अपन कोति के लाने बनिहार के बनि म बांटा लेवे। भट्ठा के काम म लगे बनिहार मन पछिना पटक के कमावे अउ पगार के दिन म बाटा वाला मन आ जए। अब तो उंकर बनी म मुशी के, घर किराया, बिजली के, पानी के, निस्तारी के, सबो के अलग-अलग पइसा कटे के सुरू होगे। गांव के मन तो अइसन सपना म नइ सोचे रिहीन होही। साहर म कमा-कमा के गांव के ढाबा भरबो सोचे रिहीन, इहां तो बनी ह पेट कटारी होवथे। लइका सियान राए-राए कमावथे तेहू म साग नून तेल के पुरती नइ होवथे। उपर ले साहर म बिसहत के दार चाउंर, जरत ले महंगाई। गांव म अतेक जांगर टोर कमई नइ करत रिहीस तभो ले खाय बर सपुरन रिहीस।
        अब लोभिया मन ल सुरता आवथे फिरंता बबा के गोठ ह। सबे कोनो ह अब गांव जाए के सुध लमाइस। मालिक ले किथे अब हमन अपन-अपन गांव लहुटबो मालिक हमन ला अब छुट्टी दव। मालिक किथे इंहा ले कोनो ल छुट्टी नइ मिलय। तुहर भरोसा मेहा बड़का आडर ले डरे हवं, वो आडर ह जब तक पुरा नइ होही कोनो घर नइ जा सकव। कोनो बरपेली जाए के कोसिस घलो झन करहू काबर कि तुमन ह इहां लिखा पढ़ी करा के काम म आय हव। गांव के मन पुछथे कइसन लिखा पढ़ी मालिक। अरे जेन दिन तुमन आय हव वो दिन तुहर मन ले स्टाम म दसखत करवाय रेहेवं। वोमा लिखाय रिहीय कि तूमन मोर काम ल पुरा करे बिगर नइ जा सकव। जाहू त मोर नकसानी के भरपाई तुमन करहू।
        अब अइस आफत, काम करत हे त पेट कटावथे अउ काम छोड़त हे तव गर कटावथे। कसई खुटा म अरझे जांगर पेरावत हे। कानहून के जानकार मन बनिहार मन संग खेल कर करिस। दस रूपिया के स्टाम म मजदूर के जिनगी बिसा लिस। ये एक कानहून के तोड़ बर दूसर कानहून चाही। भट्ठा, कारखाना के कमइया मन कहां के कानूहन जानही। फिरंता बबा के बरजई ल नइ मानिस तेकर भुगतना ल भुतत हे।
        फिरंता बबा ह गांव म बइठे-बइठे इकर मन के भुगतना ल भांप डरिस अउ सरकार करा गांव के बनिहार मन लपता हे किके दरखास दिस। थाना-कछेरी, संतरी-मंतरी से मेल मुलाकात करके गांव के बनिहार मन ल छोड़ा के लानिस। गांव के मन दूसर जनम धरके गांव म लहुटिस, उच्छाह मंगल के गीत गावत सियान मन के पावं पलउटी परिस अउ गांवे म रोजी मजूरी बनी-भुति करे के किरिया खाके अपन खेती किसानी के बुता म रमगे।

मेला ले लहुटती..... छेमाही कुंभ के सपना

   शरीर ल जेने चिज के जादा अटकर हो जथे तेकरेच टकराहा हो जथे। अब देखना जेठू ह पंदरा दिन ले रोज बंबूर कांटा म सुत-सुत के आदत बना डरे हे अब तो वोला खटिया-पिड़हा ह सुहाबे नइ करय। पलंग सुपेती अउ मखमल के दसना ल तो सपना म घलो नइ सोरियावय। जेठू ल तो कांटाच के सपना आथे बड़े-बड़े कांटा, छुरिया-छुरिया कांटा। कभु मोखला कांटा त कभु बोइर कांटा नाना परकार के कांटा। कांटा म उघरा सुते हे अउ देखइया मन के मनमाड़े भीड़ जुरियाय हे। कोनो दस के नोट कोनो बीस के नोट फेकत हे,बाई करा रपोटे के फुरसद नइ ये अतका पइसा फेकाय हे। पंदरा दिन के एके मेला म साल भर के रूपिया झोर डरेवं, अइसन-अइसन सपना आथे जेठू ल।
                 मेला-मड़ई म करतब करइया जेठू एकेच झन मनखे नोहय। उहा तो आनी-बनी के करतब बाज आथे। पेट बर का का करथे लोगन मन मानो दुनियां म अऊ कोनो कामे नइये इंकर बर। टेटकू ह तो अपन पुरा शरीर ल रेती म तोप ले रिहीस, मुड़ी भर दिखत रिहीस। अवइया-जवइया मन ल ए दाई..., ए ददा... किके चिल्लवे। एक ठी लुगरा ल बिछा दे रिहीस जेमा धरमी दयालू मन रूपिया पइसा दार चाउर डारे। जेमन के टुटहा शरीर हे तेमन अपन टुटहा-फुटहा शरीर ल देखाके मांगथे। जेकर शरीर पुरा साबूत हे तेनो अपन आधा शरीर ल रेती म तोप के मांगथे। येमन ल दूसर काम करे बर घलो नइ केहे सकन काबर कि सबो काम ल सबो आदमी नइ कर सकय। एक ठी मेला म तो कई किसम के काम करइया हे। जेठू अउ टेटकू तो छोटे मोटे उदिम ले पइसा कमाथे फेर उहा तो कई बड़े-बड़े फांदा बाज पइसा झोरथे। मेला म कमइया खवइया मन तो भगवान ले एकेच अरजी बिनती करत रिथे कि हे भगवान राजिम सही जगा-जगा सलाना या छेमाही कुंभ लगाय के सुरू करवा दे। छेमाही कुंभ के सपना वाजिब घलो हे काबर की शासन ह कुंभ बनाय के फार्मूला जानथे, वो चाहय तो बना भी सकथे।
ये सब बात के अजम मोला राजिम के मेला म होइस। कुलेश्वर महादेव के नाव से भराने वाला राजिम के मेला ह आजकल राजीव लोचन भगवान के नाम से राजिम कुंभ होगे हे। हर साल मांगही पुन्नी ले शिवरात्री तक पंदरा दिन के मेला रिथे। देस म पांचवा कुंभ के नाम से मसहूर राजिम म अब पंदरा दिन मेला देखइया के गजब आवा जाही लगे रिथे। सरकारी गाड़ी अउ आम आदमी के सोहलियत बर नंदिया भितरी सड़क बने हे। सड़क के तिरे-तिर आनी-बानी के दुकान लगे हे। दुकान म मेला घुमइया मन के भीड़। बाहिर ले आय साधु संत मन के डेरा। घरौधिया साधु मन सगा साधु के आवभगत म मगन। देवता म चड़ाय बर फूल पान अउ नरियर के दुकान। मीना बजार रइचुली डांस पार्टी मौत कुआं। गोदना वाली। जादूवाला। ओखरा जलेबी कुसियार। फुग्गा घुनघुना लइका खेलवना। सांस्कृतिक मंच म रात भर नाचा कुदा।
मेला दरस के बाद अब मेला आयोजन के दसकरम ल समझ लेथन। मेला मड़ई ले कतको झिन के आस्था जुरे रिथे ते पाय के धरम-करम के गोठ करना जादा फभित के लागथे। ताते तात म अभी के राजिम मेला ह पांचे साल म गजब प्रसिद्वी पाथे येकर कारन धरम अउ आस्था नोहय बल्की पर्यटन मंडल अउ संस्कृति विभाग के चरितर आय। पर्यटन मंडल ह अपने हाथ म अपने पीठ थपथपाय वाला काम करत हे। पहिली तो मेला के मुख्य बिंदु माने कुलेश्वर महादेव के संग छेड़छाड़ करिस। कुलेश्वर महादेव के नाम ले भरइया मेला ल राजीव लोचन के नाम कर दिस। राजनीतिक गोटी-बाजी खेलके देवता धामी म फुट करा दिस। प्रतिवर्ष लगने वाला पांचवा कुंभ बना दिस। सरकारी धन के उपयोग करके बाहिर ले साधु संत बलाइस अउ संत बिरादरी म घलो राजिम कुंभ ल मानता देवादिस। एक कोलिहा हुंआ-हुंआ ताहन सबो कोलिहा के हुंआ-हुंआ होगे। बड़े लट वाला ह पांचवा कुंभ किहीस ताहन छोटे चोटी वाला मन हुकारू भर दिस बनगे पांचवा कुंभ। येमा सबले साव रिहीस राजिम के रहवइया मन ओमन ल दोनो कोति ले फयदा हे, ओकरे राजिम ओकरे मेला।
                  वइसे तो धरम-करम म लाभ हानि के बात करना निच्चट उज्जट पना हो जही फेर जहां लाभे-लाभ हे उहा दू चार बात करे जा सकथे। पहिली तो एकर ले नवा राज छत्तीसगढ़ के नाव देस दुनियां म उजागर होइस, राजिम ह तीर्थ अऊ उजरइस। कई माइने म कुंभ के पदवी के हकदार घलो रिहीस जइसे कि त्रिवेणी संगम, प्रयागराज, प्राचीन मंदिर, राम वनगमन मार्ग। लागथे कुंभ बनाय बर अतके परमान के जरूवत परत होही तभे तो मेला ल कुंभ के दर्जा मिलगे।
                    बाकी जरूवत ल सरकारी रकम पुरा कर देथे जइसे बड़े-बड़े साधु संत (बड़े संत माने जेकर छै आगर छै कोरी चेला) ल बुलवाना, रहे-बसे अउ खाए पिये के बेवस्था करना। दुरिहा-दुरिहा ले आय लोगन बर नाचा गम्मत कराके मनोरंजन अउ हीहीभकभक करना। मनोरंजन भी अइसे की मंदिर देवाला ले जादा मंच म भीड़।
राजिम अवइया दर्शनार्थी मन ल पयर्टक के उपाधी मिलिस। वोमन दर्शन ले जादा अवलोकन करथे। एक आदमी ह देवता म फूलपान चढ़ाके पावं पलौटी परथे तव दूसर ह देव-धामी के मुर्तिकला अउ निर्माणकाल के संगे-संग देवता के लंबाई चौड़ाई अउ ऊचाई नापथे। अब इहा दर्शन अउ अवलोकन के मतलब तो मै खुदे नइ समझ पावथवं। खैर ये कुंभ तो सफल हे एमा दूमति नइहे, लेकिन ये सफलता ला अउ भुनाय जा सकथे।
                  इहां अऊ कतकोन देव-धामी के ठउर हे जिहां राजिम सहिक संगम, प्रयाग अउ प्राचीन मंदिर हे जिहां के मेला ल विकराल रूप देके कोसिस होना चाही। शिवरीनारायण,सोमनाथ,महादेव घाट, बोहरही मेला, तुरतुरिया, पीथमपुर, बानबरद, देव बलौदा, लोहरसी, तोलाघाट, अंगारमोती, कौहीमेला, डाही, सिंगारपरु जइसे कतको स्थान हे जिहां के मन सपना संजोय हे कि एक नजर हमरो कोति ल देख लेतिस। इही बहाना आदमी ह देव धामी ले जुरही। मानुख म आस्था जगाना हे तव हर साल का हर छै महिना म एक कुंभ हो जए। पर्यटक नइ आही तव कम से कम दर्शनार्थी तो आही। दर्शनार्थी घलो नइ आही तव लेवइया बेचइया तो आही। इही बहाना मेला ठेला के परसादे जिवका चलइया मनके घलो तरनतार हो जही। मेला उसले के बाद रोजी रोटी के संसो ले उबर जही। आज इहां तव काल उहां।

बिगर परमान के मनुष्य आत्मा समान

अनुभागिय अधिकारी दौरा म रिहीस। पटवारी अउ आर आई अपन-अपन दुघरा गे रिहीस। सरपंच ह अपन सारी के बिहाव म सरपंचीन दूनो अपन ससुरार म बइठे हे। गांव म कोनो हस्ताक्षर वाला सियान नइये अइसन बखत म आत्माराम ल मरना आगे। काकर मरना कब लिखाय हे ते तेला तो कोनो नइ जानय फेर मरईया ल तो थोरिक सबर करना रिहीस। पढ़े लिखे पंचन ल अगोरना रिहीस। मरे बर तो काल अइस तभे मरीस फेर दुनिया बर अकाल मृत्यु होगे।
           आत्माराम के मुर्दा घर म परे हे नारी परानी मन सुलिन लगा के रोवा-राही करत हे। डउका लोगन मन रोवई ले जादा मृत्यु परमान पत्र के फिकर म हलाकान हे। बड़े टूरा ह मुड़ी धरे बाप करा बइठे हे, मंझला ह परमान पत्र बनावय बर बुद्वी लगावथे अउ रई-रई के छोटे टूरा ल काम तियारत हाबे। एला-बला,ओला-बला इही बुता फदके हे। कभु काठी के नेवता ल कभु गवाही बर आदमी सकेले बर। सांझ कुन के आत्माराम करे एकतो रात कन के खाए नइये। संझा ले बिहनियां, बिहनिया ले मंझनिया होगे। ऐती ओती के दउड़ भाग के टूरा के भुख करलागे। सरी बेरा म सही दिमाक लगाईस अउ ददा करा घोलंड के बमफाड़ रोए लगगे। रोवा राही म लगीस तव दुसर काम ले छुटकारा मिलीस। बाकी काम ल पास परोयस के मन संभाल लिस।
         बिगर मृत्यु प्रमाण पत्र के आदमी ल मृत नइ माने जा सके फेर हस्ताक्षर वाला मन के अगोरा म तो आत्माराम के मास बस्सा जतिस। आत्माराम के लाश के फोटू खिचाइस अउ लेसे बर मुरदौली म लेगिस। आत्माराम के लाश मुरदौली म परे हे अउ वोकर आत्मा ह सॉए ले यमराज करा चल दिस। यमराज आत्माराम के आत्मा ल बिना परिचय पत्र के भितर खुसरन नइ दिस। आत्मा ल किथे जा वापिस धरती अउ अपन आई डी प्रुफ लेके आ। राशन कार्ड, बिजली बिल, 1984 ले पहिली के भु-अभिलेख, मतदाता परिचय पत्र, बैंक के पास बुक, जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, मुल निवास येमा से एको ठिन तोर करा होही तव ओकर फोटो कापी लेके आबे तभे भितरी जाबे।
           आत्माराम के आत्मा ह अपन घर आके कगत पुरजा खोजिस, अरे रईतिस तब तो मिलतिस। दुच्छा आत्मा लहुटगे। आत्मा किथे मोर तो कोनो आई.डी.नइये, गांव के सियान करा लिखा के लानवं का जेन मन मोला जानथे। यमराज किथे वो नइ चलय,गांव के आदमी करा लिखाय वाला ल घलो राजपत्रित अधिकारी करा सत्यपित कराय बर परही। आत्मा बर अउ बकवाए होगे।
            सरपंच हे तेन हल्का उमर के, पटवारी आन गांव के, अउ तहसीलदार अंते राज के। येमन 87 साल के आत्माराम ल भला आत्माराम के रूप कइसे परमानित करही। यमराज किथे आत्माराम तोर कतको पिढ़ी इही गांव म जनमिस अउ मर खपगे ये बात ल तै जानथस मैं जानथवं तभो ले लिखित म होना जरूरी हे। अबतो जेन मनखे करा जन्म, जाति, निवास, अउ मतदाता पत्र म नाम नइये तिकर धरती म कोनो अस्तित्व नइये जीते जी आत्मा समान निवास करत हे। आत्मा किथे जादा झन सता महराज का करना हे तेला बता। यमराज किथे मै कुछू नइ करे सकवं तै तो आत्मा रूप हावस,शरीर सुद्वा रिते सोना चांदी पइसा कउड़ी धरे रिते तव कुछू अऊ सोचतेवं। तै जा अपन शरीर म लहुट जा।
          आत्मा मगन होगे वोला तो अऊ जिये के अवसर मिलगे। मारे खुशी के आव देखिस न ताव सॉए ले शरीर म झपागे। शरीर म आगी ढिलागे रिहीस। चिचियावत-चिचियवत आत्माराम चिता ले उठगे। शरीर म आगी के भभकती होइस अउ आत्मा के खुसती होइस। बचाव-बचाव किके बरते-बरत अलथी कलथी छटपटाए लगगे। कठीयारा मन के हावा पानी बंद होगे तभो ले बल करके धकर-लकर आगी ल भुताईस अउ सहर के सरकारी अस्पताल म लेगिस। आई.सी.यू.के खटिय म सुतिस अउ बिगर दवई बुटी खाय फेर मरगे। सरकारी अस्पताल के एम.बी.बी.एस.डॉक्टर ह आत्माराम ल मृत घोसित करिस अउ डेथ साटिपिकट जरी कर दिस। आत्माराम के आत्मा ल यमलोक म खुसरे के परमिसन मिलगे। घरोक मन घलो ये दरी के मरना ह सुभित्ता लागिस। प्रमाण पत्र घलो तुरते पा लीस। अब इही प्रमाण पत्र ह वोकर कुटुम के अस्तित्व के परमान होगे।