सत्रह कलास पढ़े के बाद भी नइ जानेन अपन संविधान ल

देश भर म 26 नवंबर ल संविधान दिवस के रूप म मनाये जावत हाबे। भारत के संविधान ल 26 नवंबर 1949 के अंग्रीकृत करे गे रिहिस अउ येकर बाद 26 जनवरी 1950 के येहा पूर देश म लागू होइस। अब 65 बच्छर बीते के बाद संविधान के कतका बात ल हम सब जानथन येकर गुनान करबोन तव सौ म चार आना तको नइ जानन। हां अतकेच बात के जानबा हवय के हमर संविधान के निर्माता डॉ.भीमराव अंबेडकर जेन ल दुनिया बाबा साहेब के नाव ले जानथे। बाबा साहेब ह दुनिया के दुख तकलीफ ल झेलत ऊंच-नीच अउ जाति धरम के पीरा ल सहत हमर संविधान ल गढ़े हावय।

भारत के संविधान के जानकारी के मामला म का पढ़े-लिखे अउ का अनपढ़ सबो एकेच बरोबर। गांव अउ शहर के स्कूल म सत्रह बच्छर म सत्रह कलास पढ़ई कर डारेन तभो ले अंगठा छाप। कभू-कभू तो मन म आथे के कॉलेज ले मास्टर के डिग्री ले के बजाए संविधान के किताब म माथा खपाय रितेव तव आज कुछू काम के आदमी बन जाये रितेन।
जानकार मनके मुताबिक संविधान ह भारत के सबो नागरिक ल समानता अउ स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार दे हावय। ग्राम पंचायत, जनपद हो या नगर पालिका जोन हमला सुविधा देवत हावय वो कोनो जन प्रतिनिधि के दया अउ मेहरबानी नोहय, हमर अधिकार आए। 
हम अपन संविधान ल सर्वोपरि मानथन, ओकर एकक आखर कानून आए तब अगर भारत के एक भी आदमी संंंंग कहू असंवैधानिक बेवहार होवत हाबे या फेर ओला संविधान के अनुरूप मौलिक अधिकार नइ दे जावत हाबे तव येकर जिम्मेदारी काखर बनथे। लोक सभा, विधान सभा म चुन के अवइया नेता मन तको तो शपथ लेथे के देश विधान के अनुरूप काम करबो। एकता अउ अखंडता ल अक्षुण बनाये राखबोन। अउ ये सुनत-सुनत 65 बच्छर बितगे। प्रशासनिक अधिकारी मनला घलोक इही किरिया रिथे। तव फेर अब तक संविधान के सबो आखर आम जनता म परगट होत काबर नइ दिखे। घुम-फिर के फेर बात उहीच मेर आगे के ओ नेता मन कोन से हमर संविधान के बात ल जानथे जेकर किरिया खाये हाबय। अब सबो भारतीय ल भारत के संविधान पूरा पढ़े बर परही तभेच हम जान पाबोन के 65 बच्छर ले संविधान के पालन करे के फोकट किरिया खवइया मन बर संविधान म का का सजा के प्रावधान करे गे हावय। हम किथन के हमर वोट सबले बड़े ताकत आए फेर यहू ताकत ल तो देखते हाबन। वो पांच साल म एक पइत हमर आगू हाथ लमाथे अउ हमन अवरधा भर उकर आगू हाथ लमाये खड़े रिथन। अऊ कब तक अपने हक बर लुलवाबो संविधान पोथीच जाने।    
 - जयंत साहू
jayantsahu9@gmail.com
9826753304

जुआं,दारू 'दे-वारी'

मन ल भले अइसे लागथे के ए साल कुछ तिहार के रौनक कम हावय या फेर उच्छाह दिनों-दिन कम होवत हाबे। अइसन गांव कोति लागथे फेर जब सहर के लादिकपोटा, चपकिक-चपका भीड़ देखबे तव अइसे जनाथे मानो पउर साल ये साल जादा भीड़ हावय। ले अभिच्चे हमी मन ह रौनक कमतियावत हे काहत रेहेन अब भीड़ के मारे अकबका गेन। केहे के मतलब न तो रौनक कम होवय अउ न उच्छाह। सिरिफ तसमा(चश्मा) बदलथे अउ घड़ी के कांटा सरक-सरकके फेर उही मेर आथे। सबे तिहार के अपन-अपन मस्तियाए के सुरताल बने हावय उही म लोगन मस्त-मतंग रिथे। होली आगे तव नंगारा ठोको अउ नाचो, हरेली म गेड़ी चड़के झुमरव, बर-बिहाव, छट्टी-छेवारी सबे म ऊंकर(पियक्कड़) ओतकेच उमंग। हां जेन मन पीये-खाये नहीं तेने मन ल सब तिहार-बार मन फिक्का-फिक्का लागथे। दुनियां के मजा ले बर नइ जाने तेने मन तो तीज-तिहार के रौनक ल तको सरिफी म उड़ा देथे। अइसन गोठ सुन-सुन के अब चिड़चिड़ासी नइ लागय काबर के अब आदत परगे हावय। सुरू-सुरू म कोनो तिहार के दिन पियक्कड़ ह घर के दुवारी म गिलास अउ पानी मांगे न तव तन-बदन म आगी लग जाय। फेर का करबे, दे बर तको परय अपनेच रिस्तेदार मन ताए। खाली गिलास अउ एक लोटा पानी भर ल कइसे मड़ाबे, ठेठरी खुरमी के चखना घलोक दे बर परय। लागथे अब धीरे-धीरे अइसन चलागन बन जही के तिहार माने पीना-खाना मजा उड़ाना।      
एक ठी हाना हावय छत्तीसगढ़ी म- 'तेली घर तेल रिथे तव महल ल नइ पोतेÓ शायद मै ओही वाला तेली आवं। उही पाके कोनो तिहार के मजा ल नइ जान पायेव। आन तिहार म तो संगी मन संग संघर जथव फेर ये देवारी म तो एक ठिन खोली ह मोर बर मथुरा-कांशी हो जथे। पुन्नी मनाथे तव घर ले बाहिर के सुरूज ल देखथवं। मै नइ मनाहू तव तिहार आहिच नहीं अइसे तो नइहे, फेर का जइसे सब झिन मनाथे ओइसनेच तिहार मनाना जरूरी हावय?
देवारी ह आदिदेव महादेव अउ आदिशक्ति माता पार्वती के बिहाव के परब आए जेनला गउरा-गउरी के रूप म सुग्घर मनाथन। गउरा चौरा म गोड़-गोड़िन अउ बाजा रूंजी ले नेंग-जोंग अउ गीद सुनथन। येकर पहिली कातिक भर सुआ गीद के सुग्घर आनंद लेन। गउ माता के पूजा करबोन, राउत भाई मन सोहई पहिराही, काछन निकलही।  गोबरधन खुंदाही, एक दूसर के माथा म गोबर के टीका लगाके आसिस लेबो-देबो। मड़ईहा घर के मड़ई देव डीह किंजरही। अखरा डाढ़ म मातर जागही, सुग्घर अखाड़ा होही। बल-बुद्धि के आनी-बानी के खेल होही। ये सब म संघरबो तभे तो तिहार के मरम ल जानबोन। नहिंते भइगे हटरी के कुकरी-बोकरा, गोल बजार के फटाका। थप्पी-थप्पी नोट धरे मताये काट पत्ती, बोतल धर बाप-बेटा लेवे ढरका। अइसने अवइया पीढ़ी ल तको बताबो देवारी माने जुआं दारू दे-वारी।




- जयंत साहू
डूण्डा वार्ड-52, रायपुर
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मानव सेवा के प्रतिमूर्ति: स्वामी आत्मानंद

छत्तीसगढ़ के संत महात्मा मन मानव सेवा के जबर बुता करे हाबे। जेमा गुरू घासीदास, धनी धरमदास, भक्त वल्लभाचार्य के नाव अजर-अमर हवय। इही कड़ी म स्वामी आत्मानंद जी के नाव ल तको सोरियाथन जोन ह नान्हे उमर म जवनहा मन ला जगाए के उदीम करिस। किसनहा परवार के गुनिक लइका तुलेद्र वर्मा, भारतीय प्रशासनिक सेवा के परीक्षा पास करे के बाद घलो नौकरी नइ करिस अउ मानव सेवा के रद्दा म निकलगे। दुनिया म मानव सेवा के अलख जगइया स्वामी आत्मानंद मोह-माया ल छोड़ सकल जगत बर जीयत अम्मर होगे। अइसन महापुरूष के जनम छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़िया किसान परवार म होइसे ये हमर बर गरब के बात आए। 

अवतरन

मानव सेवा के प्रतिमूर्ति स्वामी आत्मानंद जी के अवतरन रायपुर जिला के बरबंदा गांव म 06 अक्टूबर 1929 के होइस। ओकर ददा के नाव धनीराम वर्मा अउ महतारी के नाव भाग्यवती रिहिस। छत्तीसगढ़िया किसान परवार म जनमे तुलेंद्र वर्मा के भाग ल कोनो नइ सोचे रिहिन होही के ओ लइका ह एक दिन स्वामी आत्मानंद बनके समाज म मानव सेवा के अलख जगाही। स्वामी आत्मानंद के नानपन के नाव तुलेंद्र वर्मा रिहिस। ओमन पांच भाई रिहिन, जेन म दू भाई स्वामी त्यागानंद जी अउ स्वामी निखिलात्मानंद ह ओकरे रद्दा म आगू चलके सन्यासी होगे। एक भाई डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा छत्तीसगढ़ी के बड़का कलमकार होइस अऊ एक भाई ओमप्रकाश वर्मा ह विश्वविद्यालय म प्रोफेसर होइस, आगू चलगे उही ह आत्मानंद विद्यापीठ तको चलाइस।

शिक्षा  

स्वामी आत्मानंद के ददा धनीराम जी हा गांधीवादी विचारधारा के मनखे रिहिस। ओमन ह वर्धा के आश्रम म लइका मन बुनियादी शिक्षा देवय। ददा संग बालक तुलेंद्र तको वर्धा के आश्रम म राहय। गांधी जी के अक्सर वर्धा आश्रम आना होवय। जब भी गांधी जी आश्रम आवय तव तुलेंद्र ह ओकर लउठी ल धरके आगू-आगू रेंगय। नानपन ले ही ओला गांधी जी के आसिरबाद मिलीस। बालक तुलेंद्र ह नानपन ले ही पढ़ई-लिखई म गजबे होसियार रिहिस हाबे। आगू के पढ़ई ल तुलेंद्र ह विवेकानंद आश्रम नागपुर म रहिके गणित विषय म एम.एस.सी. करिस। पहिली स्थान आए के सेती ओला सोन के तमगा तको मिलिस। अऊ संगवारी मनके सलाह ले ओहा आईएएस के परीक्षा म तको बइठिस, ओकर नाव ह पहिली दस स्थान अवइया के सूची म रिहिस तभो ले ओमन नौकरी ल तियाग दीस। येहा भारतीय प्रशासनिक सेवा के सबले बड़का परीक्षा आए जेन ल पास करे के बाद ये परीक्षा ल पास करइया लइका मन कलेक्टर, कमीश्नर बनथे। ओहा बड़े परीक्षा पास करके नौकरी के ल रद्दा छोड़ के स्वामी विवेकानंद के मानव सेवा के रद्दा म चलिस उही जवान ह आगू चलके छत्तीसगढ़ के नाव देस भर म बगरइस। 

सन्यास    

स्वामी विवेकानंद के संदेस अउ सिद्धांत ओकर हिरदे म बसगे रिहिस। थोरिक दिन अपन घर रायपुर म रहिस। तभें एक दिन तुलेंद्र ह अपन दाई सो पुछिस- दीदी जाँव का? ओहा अपन महतारी ल दीदी काहय। महतारी तको कहू जाय बर पूछत होही किके जाना कहि दिस। तुलेंद्र ह माया-मोह ल छोड़के आश्रम म चल दिस। आश्रम म ओकर नाव ब्रह्मचारी तेज चैतन्य धरागे। रामकृष्ण आश्रम म रहिके साधना करिस, बड़े-बड़े तिरिथ करिस। हिमालय परबत म तको गिस। गुरू के बात ल गुनिस। 1960 म तेज चैतन्य ह सन्यास लेके स्वामी आत्मानंद बनिस।

सेवा 

स्वामी आत्मानंद ह रायपुर (बरबंदा)के रहइया आए अउ ये माटी म स्वामी विवेकानंद के चरन परे हाबे कहिके इहां स्वामी विवेकानंद के नाव म आश्रम बनाइस। जिहा गरीबहा लइका मन रहिके पढ़ई-लिखई करिस। स्वामी आत्मानंद ह आदिवासी अंचल नारायणपुर म आश्रम सुरू करके वनांचल के लइका मन ल पढ़ाइस। अकाल-दुकाल के दिन म ओमन गांव-गांव म तरिया ल अऊ कोड़वाय। पचरी बंधवाय, किसान मनला खेती किसानी म तको मदद करय।

निर्वाण 

छत्तीसगढ़ म मानव सेवा अउ शिक्षा-दीक्षा के अंजोर बगरइया स्वामी आत्मानंद ह 27 अगस्त 1989 के ये दुनिया ले बिदा होगे। 
                                                                                  स्रोत- छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम (कक्षा-5, भारती)


jayant sahu /जयंत साहू

किसान ल भगवान भरोसा छोड़के उद्योगपति, बयपारी के तिमारदारी म सासन

बिपदा म चिनहाथे अपन अऊ बिरान

जीव ह तो सबो मनखे के एके समान हवय, फेर जब देह ले छुटथे न तब छोटे आदमी के छोटे अऊ बड़े हो जथे। उद्योगपति अउ बयपारी के मउत म सासन-प्रसासन सोक मनाथे। अऊ कहू कोनो किसान मरथे तव ऊंकर टोटा के एक बला उतरथे। अब ये बात अऊ उजागर होगे के किसान के नीति पूरा-पूरा किसान विरोधी हवय। एक मुड़िया ह दस मुड़िया कर बेवहार करत हाबे। विकास के नाव म छत्तीसगढ़िया मनला भरका ले निकाल के कुआं म बोजे के उदिम होवथाबे। किसान मन जब पीरा म गोहार पारथे तव मुखिया मन कान ल मुंद लेथे अऊ कहू उद्योगपति बयपारी मन छिकथे ततके म सासन-प्रसासन तिमारदारी म लग जथे।   

बीमारी रइही तभे तो बइद के जरूरत परही, गरीब रइही तभे तो गरीबी दूरिहाय के योजना बनही अऊ किसान भूख म मरही तभे तो अन्न खातिर नेता अफसर के पांव तरी गिरही। ये हाना अब असल जिनगी म परगट दिखत हाबे। किसान बनिहार के तो भुखमरी के दिन आगे। भगवान का रिसइस सरकार तको मुंह फेर लिस। बड़ सरम के बात आये के धमतरी, राजिम अउ रायपुर अंचल के किसान मनला पानी खातिर प्रदर्शन करना परत हाबे। ये वो अंचल आए जिहा जलरंग बांधा बंधाये हाबे। सरी छत्तीसगढ़ ल तरनतार करइया गंगरेल ले पानी छोड़े खातिर किसान अउ सासन के बीच तनातनि होवत हावय। जब सैकड़ो किसान मन नेता मन संग गंगरेल बांध के पानी छोड़य के मांग करत गंगरेल जावत रिहिस तव पुलिस ह किसान मनला गिरफ्तार कर लिस, मानो किसान मन देसद्रोही, अपराधी, चोर-लुटेरा होही। ठऊर-ठऊर म पुलिस बेरीकेट्स लगाके रद्दा ल छेके के उदीम करीस अउ किसान मनला गंगरेल पहंचे के पहिली छेक के जेल म ओइला दिस। प्रदेस के किसान नेता मनके मुताबिक पुलिस ह प्रदर्शन करत किसान मन ऊपर बल के प्रयोग करे हावय, देस के अन्नदाता उपर लउठी उबाये हाबे सरकार। सरकारे के इसारा म पुलिस ह किसान मनला रद्दा म छेकिन। 
किसान उपर सबले जादा जोर-जबरई अर्जुनी मोड़ म होय हाबे जिहा खुदे जिला के कलेक्टर अउ पुलिस अधीक्षक मोर्चा संभाले खड़े रिहिस। कलेक्टर अउ पुलिस अधीक्षक ह समझाय के कोसिस करिस फेर नइ माने म सैकड़ो किसान ल अर्जुनी मोड़ म गिरफ्तार कर ले गिस। 
किसान मन नासमझ नइये, उहू मन जानथे के बादर ले पानी नइ गिरना प्राकृतिक विपदा आए। हद तो तब हो जथे जब सरकार ह अपन अऊ बिरान चिनथे। किसान के कोनो समस्या होथे तव मनढेरहा काम करथे अउ उद्योगपति अउ बयपारी के कोनो अड़चन आथे तव तुरते सुते जठना ले काम के निपटारा कर देथे। 
विकास-विकास के चारों मुड़ा फुटहा नंगारा बाजत हाबे। आए दिन कोनो न कोनो उद्योगपति कारखाना खातिर आवथे। सरकार बला-बलाके कारखाना लगवावत हाबे। कइथे इहां के अर्थव्यवस्था सुधरही, सबला रोजगार मिलही। तइहा समे ल देखे जाए तव छत्तीसगढ़ म न तो बेरोजगारी रिहिस न भुखमरी। इहां के किसान अपन म मगन सुख ले जिनगी जियत रिहिस। 
अलग राज बने के बाद अचानक बेरोजगारी, गरीबी अउ भुखमरी के योजना सुरू होगे। सरी राज म एक रूपिया दू रूपिया के चाऊर बांटे के बुता सुरू होगे। फोकट बरोबर सबो कोनो झोकत गिन। फेर कोनो ये नइ किहिस के हमन किसान आन, कोनो मेर जमीन देदे खेती करे खातिर, जमीन म खेती करबोन अउ अपन पांव म खड़ा होबो। अपन मेहनत ले रोटी खाबो। 
एक रूपिया दू रूपिया किलो के चाऊर खाना हमर स्वाभिमान गिराये के उदीम आए। आन राज के मन इही बात म हमर हांसी तको उड़ावत होही अउ सोचत होही के वास्तव म उहा भयंकर गरीबी हाबे। उहां के मन जादा महंगा के चाऊर ल नइ बिसा सके तेन पाके दू रूपिया के चाऊर खाथे। जादा होगे तव दस रूपिया। 
सोचव तो का वास्तव म हमर छत्तीसगढ़ म अतेकपान गरीबी हावय के हम दू अउ दस रूपिया ले आगर के चाऊर नइ बिसा सकन? का अतेक बिकराल रत्नगरभा छत्तीसगढ़ के किसान मनके अवकात दू रूपिया के हावय? 
सदा किसान मनला छोटे आदमी अऊ बनिहार जानिस नेता अउ अफसर मन। उद्योगपति अउ बयपारी ल घर म बलाके बइठारथे, खवाथे। लेकिन किसान ल कोनो नेता के घर म घुसरे के आगू अरजी दे बर परथे। मुलाकात होही त आवेदन मांगही, आवेदन मांगिस माने तोर काम लटकगे। कमती पढ़े-लिखे किसान-बनिहार मन यहू तो नइ जाने के कोन काम म कोन ल आवेदन देना हाबे। इही बात के फइदा सबो उठावत हाबे। सरकार तको तो किसान मनके सिधवापन के फइदा उठावत हाबे। पचास ठन योजना म एक ठन योजना बनथे किसान के हित म। 
ये सिटी ओ सिटी, फलाना विहार ढेकाना विहार ये विकास होवथाबे छत्तीसगढ़ के। मुड़ी ले पागा गिरत महल खड़ा होवत हाबे। चकाचक सड़क बनत हाबे, बिगर गड्डा वाले। सोचव तो ये सब कहां बनत हाबे, किसान के खेत म। किसानी होतिस तेन माटी म कांक्रीट के जंगल लगत हावय। बड़े-बड़े रूख राई ल चक-चक काट के गमला म दूबी बोवत हाबे। ये सब खेल खेती के भुइंया म होवत हाबे। अऊ इही सबके सजा देवत हाबे आज प्रकृति ह। हरियाली दुरिहागे, बरखा रिसागे। जीव जनावर सब हलाकान हवय। 
अतका होवय के बाद घलोक नेता अउ अफसर मन छत्तीसगढ़ के विकास के सम्मान झोके बर दिल्ली दरबार जाथे। ओ नेता-अफसर मन ल कभू कोनो ये सम्मान तो देतिस के कोन विभाग ह कतका किसान मनके खेती के भुइंया ल अधिग्रहित करे हाबे। कोन विभाग ह किसान के कतका मुआवजा ल दबाए हाबे यहू म सम्मान देना चाही। 
* जयंत साहू*


jayant

जेन समाज के नेता रोठ, तिकरे जलवा हे पोठ

नानपन म पंच-परमेसर वाला पाठ पढ़े रेहेन। मन म तको इही भरम रिहिस के जेन ह गांव अउ समाज के सियानी करथे तेकर मन म कोनो परकार के दूवाभाव नइ होवे, सबो ल एकेच लउठी म हॉकथे। अब तइहा के बात ल बइहा लेगे। भले हमर देस प्रजातंत्रिक काहवत हावय फेर जब देस म चलत कानून बेवस्था ल देखबे तब असली मरम समझ म आथे। जेन समाज के कोनो आदमी ह बड़े नेता या अफसर हाबे उहीच समाज के जादा सुनई होथे। सबो बड़का नेता या फेर अफसर मन अपने-अपने आदमी कोति जादा लोरहकथे। 
कोनो मंत्री या विधायक कना कुछू काम लेके जाबे तब तोर काम पूरा कराये के पहिली ये देखे जाही के तै कोन पारटी के आदमी हरस। अगर कोनो पारटी के नइ रिबे त कोन ल वोट दे हावय ये बात के पता कराये जाही। वोट दे हावय त काम होही, नहीं त लगावत रहा चक्कर। अफसर के घलोक उही हाल हे। तोर आवेदन म लिखाए नाव अउ जाति देख के काम ल सरकाय जाही। 
छत्तीसगढ़िया आदमी मनके काम इही पाके जलदी नइ सरके काबर के सबो बड़का पद म तो बाहिर के लोगन मन बइठे हाबे। हमन तो नावे देख के छंटा जाथन। ओमन भले हमर राज म नौकरी करत हाबे फेर ओकरो भीतर तो अपन अउ बिरान के भाव हाबे। 
सासन अउ परसासान के करसतानी के कतकोन अइसे परमान हाबे जेकर ले ये उजागर होथे के वोमन मूल छत्तीसगढ़िया संग भेदभाव करथे। एक नजर मूल छत्तीसगढ़िया के रेहे अउ जीवन यापन के साधन के बारे म सोचे जाए के किसान ल का चाही, खेत या फेर कारखाना? 
आए दिन कोनो न कोनो बड़का कारखाना मालिक मन छत्तीसगढ़ म कारखाना लगाये बर जमीन मांगथे। सरकार ह एक पांव म खड़े रिथे उकर मदद करे खातिर। गरीब किसान मन आंदोलन करथे। धरना करथे, चक्का-जाम करथे। ऊंकर विरोध करथे। सरकार के कोनो आदमी किसान के संग खड़ा नइ होवय। सरकार वाले मन एक जुट हो जथे। किसान के आवाज ल दबा देथे। काबर के सत्ता म कोनो किसान नेता नइये। सबके सब बयपारी के समरथक अउ मददगार हो जथे। 
ताजा परमान देखव कमल विहार के। सुरू म कतका विरोध करिन किसान मन। धरना दीस, ज्ञापन सउपिस। आखिर म सरकार के जीत होगे। अब किसान मन परसासन के मन मरजी ले हलाकान, कमल विहार के अपन जमीन ल बेचत हाबे। सरकार तको तो इही चाहत रिहिस के किसान उहां ले भाग जावय। 
किसान उपर कार्यवाही करे बर सोचे-विचारे के जरूरत नइ परे सासन-परसासन ल। फेर उद्योगपति अउ बयपारी मन उपर कार्यवाही करत बखत दस बार सोचथे। नोटिस दे देके कतको मामला ल रफा-दफा तको कर देथे। येकर कारन इही हावय के उकर मनके ताकत कोनो अऊ हाबे। राज्य अउ केंद्र के सरकार म उकर बड़का-बड़का चिन-पहिचान के, नता रिस्तेदार मन बइठे हाबे। 
अइसन दुवाभाव तब तक चलही जब तक के छत्तीगसढ़िया मन म एक जुटता नइ होही। सत्ता म एके दू झिन छत्तीसगढ़िया के आये ले काम नइ बने, सरकार के कमान छत्तीसगढ़िया के हाथ म होना चाही। अइसन दिन तभे आही जब छत्तीसगढ़िया के स्वाभिमान जागही।
* जयंत साहू * 

कहिनी- डेहरी के पहुंना


बइला गाड़ी म माई पिल्ला जोरा के। डेरा-डांगरी धरे अपनेच गांव म लहुंटत हाबे सोनबरसा गांव के लोगन मन। जस नाम तस काम बरोबर सोनबरसा म सिरतोन म हरियर सोन के बरसा होवय। चारो कोति हरियर-हरियर डोली म धान, गहूं, चना, बटरा अउ सगा-भाजी के फसल लहलहावत राहय। 
अब तो जेने कोति मुड़ी ऊंचा के देखबे तेने तनी बादर ल छुवत महल खड़े हवय। नवा राज के बरोड़ा म खेती-खार अउ घर-दुवार सफ्फा उजरगे। आजादी के बाद का पायेन अउ का गवायेन ये राजधानी तिर के गांव म परगट दिखत हाबे। खेती के बदला सरकार ह नोट के गठरी धराके अपने डेहरी के पहुंना बना दिस। 
नवा राजधानी कोति के सोनबरसा गांव म एक झन सांवत मरार के तको खेती-खार रिहिस हाबे। रोज बिहनियां एक ठिन साइकिल म चार ठिन झोला ओरमाय रचरिच-रचरिच माना बजार आवय। बने ढंग के रद्दा तको नइ रिहिस हाबे। तभो ले ओ कोति के मन चर-चर कोस के बजार ल नाप देवय। उत्ती कोति म राजिम के जावत ले हाट बजार करय। रक्सहू कोति चंपारण के जावत ले अउ भंडार कोति म गंगरेल के जावत ले हाट बजार सइकिलेच म करय। बुड़ती कोति रइपुर परथे तेन पाके उकर जादा अवई इही कोति होवय। 
रइपुर के लकठा म माना गांव हवय। माना ह अब दू ठिन होगे हावय, एक माना बस्ती अऊ दूसर माना केंप। माना बस्ती म गांव वाले मन रिथे अउ माना केंप म बंगलादेस ले आए सरनारथी बंगाली भाई-बहिनी मन रिथे। सियान मन बताथे के बंगालदेस ले लोगन मनला सरकार ह बसाय हाबे। ओमन ला सरी सुख सुविधा तको मिलत हाबे। 
सांवत मरार ह माना केंप के बजार जादा आवय। माना केंप के बंगाली मन आते साठ सांवत के चार मोटरा भाजी ल बिसा डारय। माना केंप के बंगलहिन मन संग सांवत के अतेक चिन-पहिचान होगे रिहिस हाबे के उधार-बोड़ी तको चलय। एक दिन सांवत ह एक झिन बंगलहिन ले पुछथे- कस दीदी तुमन ओतेक दूरिहा ले इहां कइसे आगेव? 
बंगलहिन- का बताबे सांवत हमर जियइ दुबर होगे रिहिस हाबे। उहां रितेन ते आज ले हमर कुटुम के नास हो जतिस। हरहिन्छा जिये-खाये बर इहंचे आके बस गे हाबन।
सांवत- त इहां कइसे आगेव वो। 
बंगलहिन- का होगे गा आगेन तव? 
सांवत- ओहो नराज झिन हो दीदी। काबर आगेव किके नइ काहत हवं। मय पुछत हवं हमर छत्तीसगढ़ म कइसे आना होइसे। आन कोति तो अऊ लकठा म ठउर-ठिहा रिहिस होही काहत हवं?
बंगलहिन- छत्तीसगढ़ कस आन कोति के मनखे मन नइये। इहां बाहिर वाले मनला गजब मया मिलथे। दार-चाऊर, साग-भाजी के जोखा घलोक हो जथे। इही पाके इहां जमगे हाबन। सरकार कोति ले सबो सुविधा घलोक मिलत हाबे त अब जाके काय करबोन। 
सांवत- बने हवय दीदी, तुही मन आन देस राज ले आके तको इहां सुख ले हाबव। हमन इहचे के मूल निवासी आन तभो ले हमन ला हमरे घर दुवार खेती-खार ले कब निकाल देही तेकर कोनो ठिकाना नइये।   
 बंगलहिन- काबर निकाल देही गा। तुहर राज, तुहर घर-दुवार। अऊ खेती-खार के मालिक तुही मन तो आव, फेर काबर डर्राथव।
जइसने गोठकार सांवत मरार तइसने लेवइया माईलोगिन मन। पांच मिनट के लेवइया हा आधा घंटा ले कड़ार देथे। साग बेचाय के बाद सावंत मरार ह सइकिल मसकत-मसकत अपन गांव कोति जावत रद्दा भर माना केंप के बंगलहिन मनके बारे म गुनत रिहिस हाबे। देखले सरकार ल आन देस राज के मनला इहां सरी सुख सुविधा देके बसावत हाबे अउ हमन ल दुविधा म राखे हावय। 
सांवत ह ये बजार ले ओ बजार किंजर के देख डरे हवय के हमर छत्तीसगढ़ राज म कतेक बाहिर के लोगन मन आ आके बसे हावय। सुख-सुविधा ले जियत हाबे। इही पाके एक मन म बल तको करय के कइसे सरकार ह हमरे घर-दुवार ले हमन ला खेदारही। चिरई-चिरगुन तो नोहन के ये खोंधरा ले ओ खोंधरा उड़ा जाबो। इही गुनत-गुनत अपन गांव पहुंचिस सांवत मरार। 
गांव म गिस तव तहसीलदार ह गांव म बइठका लेवत राहय। सरकार के योजना के फरीफरकत करत राहय। इहां मंत्रालय बनही, बड़का-बड़का महल तनही। कोरी-कोरी सड़क लमियाही। सांवत ह साहेब ले पुछिस अऊ हमर का होही साहेब। तुहर का, तुमन ला मुआवजा मिलही। इहां बड़का-बड़का साहेब मन रिही, तुमन सुघ्घर पइसा झोकव अउ आन कोति जगह-भुइंया बिसाके राहव। 
सावंत किथे- अऊ कहू हमन नइ जाबो त का होही? 
साहेब किथे- हमर तो कुछु नइ बिगड़े तुहरे बिगड़ही। सरकार जेेन जोंगे हाबे तेन तो होबे करही। चाहे हांसी खुसी ले देवव या फेर जोर जबरई ले। खेत-खार तो दे परही। 
सरकार ह अपन मनमानी कर दीस। सांवत मरार सहिक अऊ आन किसान मन मुआवजा के रूपिया झोक-झोक के, आन कोति खेती बिसाके किसानी करत हाबे। गांव के सबो किसान मन आन-आन गांव कोति जाके बसे हावय तेन पाके गांव के तरिया, नरवा, रूख-राई, संगी-साथी संग भेट करे बर सुरर जथे। इही पाके तीज-तिहार म जुन्ना गांव के सबो किसान मन सकला के अपन दुख-सुख के गोठ ल गोठियाथे। 
तरिया पार म, नहवइया मन। कुआ-बउली म पनिहारिन। एक दूसर ल आन गांव के सगा बरोबर सोर संदेसा देवत हावय। चार महीना कमाय खाए बर आन राज चल देथे त अनगईहां जान। गजब दिन म भेट होथे त मया ह थोकिन जादच पलपलाथे। जब-जब ओमन सकलाथे तरिया-नंदिया म अइसनेहे गोठबात सुने बर मिलथे। ...तुमन कब के आए हव दई। ...अई हमन ला तो आठ दिन होगे, अउ तुमन? हमन आजे हाय हाबन...। बड़े लइका फोन करे रिहिस हाबे के अब इहू कोति पानी अवइया हाबे किके, ताहन झपकुन आगेन। हमर घर के सफ्फा खपरा गिरगे हाबे किहिस त हमू मन लघियात आय हाबन। वा हमर तो बियारा ल तो कते इंजिनीयर ह फेर नापत रिहिस किथे कोन जनी अऊ का बनाही ते। जे दे दिन गांव म पांव धरे ते दिन भइगे अइसनेच गोठ। मन के पीरा ताय सुनइया ल असकट लागे न गोठियइया ल। 
इही सब गोठ गोठियाय बर तो गिने-गनाय दू चार परवार ल छोड़ ताहन सोनबरसा गांव के लोगन मन दुघरा ले बनि कमाके अपन-अपन घर-दुवार कोति लहुंटे हाबे। बादर घुरूर-घाररत करत, असाढ़ लकठागे। गरेरा म छानी खपरा के दुर्दसा बिगड़े हावय। चिरई-चिरगुन सहिक ये पेड़वा ले ओ पेड़ म अपन बसुंदरा बनावत किंजरइया-फिरइया मन ला अब फेर अपन डेरा जमाना हाबे अपनेच गांव म। जेन गांव म पुरखा के नेरवा झरे हाबय तेला छोड़े के मन तको तो नइ करय। अऊ इहां बसे तको तो नइ सकय। काबर के घर के छोड़े अऊ कुछुच तो नइ बांचे हाबे। किसान मन बिगर खेतिहर भुइंया भला कइसे रही। सावंत तको दू-चार दिन बर जनम भुइया म आथे। घर-दुवार के सरेखा करथे। ताहन फेर रेंग देथे, अपन दुघरा।
                                                                                                                                             - जयंत साहू

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*छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया* के नारा ह अब गारी बरोबर लागथे

सरकार ह का सोच रखथे छत्तीसगढ़िया खातिर ये बात के पै इही मेर उभरथे के जतेक भी बड़का नेता-अभिनेता बीच सभा म आथे तव सबोच ह एकेच भाखा बोलथे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया का हमर बढ़िया हाबे तेन ला सबो जानत हाबे।  हमर काही मूड़ी-पूछी ल नइ जाने तेनो मन किथे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया। छत्तीसगढ़ के किसान अउ ओकर खेती के दुर्दसा अउ घड़ी-घड़ी महतारी भाखा के अपमान ल देखके अबतो छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के नारा ह गारी दे बरोबर लागथे।
राज के नेता-अभिनेता मनके बात ल तो छोड़ आन राज के नेता-अभिनेता मन तको जान डारे हाबे के छत्तीसगढ़ म जाके 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' किबे तहान उहां के लोगन मन गदगदा के ताली पिटथे। जेन आथे तेने हा भइगे 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया-छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' का-का बढ़िया हाबे छत्तीसगढ़िया के किके सवाल कोनो ले करबे त एकेच जवाब आथे के छत्तीसगढ़िया मन बड़ सिधवा होथे। माने हमन सिधवा हाबन तेकर सेती कोनो भी 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया'  कइके अपन बुता बना लेथे।  दूसर ल काए दोस देबे हमरे भाई-बंद मन पहिली हमर बुता बना देथे अउ बाद म परोसी ल तको लानथे।
देखव ना छत्तीसगढ़ी भाखा संग का होवथाबे। अवसरवादी  मन आयोग म तसमई खात हाबे। बछर भर हिन्दी सम्मेलन म ए राज ओ राज, ए देस ओ देस किंजरत हिन्दी कोति रमे रिथे अउ जब छत्तीसगढ़ राजभासा आयोग के सुरता आथे तव इहू कोति ढरक जथे। उहीं मन सम्मेलन के करता-धरता हो जथे। माने इहू कोति के कलेवा झिन चूके अउ उहू कोति के। बाकी जाय चुक्कूल म।
आयोग ले बने तो पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर हा जबर बुता करे हाबे एम.ए. पाठ्यक्रम सुरू करके। देखते-देखत छत्तीसगढ़ी बिसे म एम.ए. पढ़ईया लइका मनके एक अलंग नाहकगे। जतके झिन मन पढ़के नाहके हाबे ओकर ले आगर लइका मन अबही छत्तीसगढ़ भाखा म एम.ए. के पढ़ई करत हाबे। ओमन ला का पढ़ाय जावथे, का पढ़ाय जाना चाही, अउ का सोज्झे एम.ए. कक्छा सुरू करई का बने होही ये सब बात ल अभी घिरिया देथन अउ एक सूर म सबो छत्तीसगढ़िया मन विश्वविद्यालय अउ कुलपति जी के बड़ई करथन। कम से कम ओमन छत्तीसगढ़ी म एम.ए. सुरू करके स्कूल शिक्षा विभाग ल ये बिसे गुनान करे खातिर मजबूर तो करिन। अब ये स्कूल शिक्षा विभाग के सोच-विचार लगाये के बात आए के जब ओकरे जेवनी बाजू माने विश्वविद्यालय ह कॉलेज म छत्तीसगढ़ी पढ़ई सुरू कर देहे तव स्कूल म काबर नइ हो सकही। जब अंग्रेजी, संस्कृत अउ हिन्दी म एक छत्तीसगढ़ी भाखा बोलइया लइका ह पढ़ई कर सकत हाबे तव छत्तीसगढ़ी ल लिखे अउ पढ़े म का जियान परही। लइका मन बर तो अऊ बने सरल हो जही।
गुने के बात आए के छत्तीसगढ़ राज जिहा दू करोड़ ले आगर छत्तीगसढ़ी के बोलइया हाबे तउन राज म छत्तीसगढ़ी  म पढ़ई-लिखई नइ होवय। अउ तो अऊ स्कूल म एक ठिन किताब तको नइ हे छत्तीसगढ़ी के। नोहर-सोहर म एकका-दूक्का पाठ ल समोख के हमर मन मढ़हावत हाबे। सरकार ह छत्तीसगढ़ी ल परचार के भाखा, वोट मांगे के भाखा बना सकथे। फेर काम-काज के भाखा नइ बना सके। अऊ हमू कुछू केहे नइ सकन सरकार ल काबर के 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' हमर माथा म लिखाय हाबे।

बतावव काकर-काकर घर छत्तीसगढ़ी म गोठबात होथे

हमर छत्तीसगढ़ के राजभासा छत्तीसगढ़ी आए, ये बात आजो हमला गोहार पार-पार के बताये बर परत हवय। काबर के सहर म रिबे तव तो गमे नइ होवे के हमर महतारी भाखा का हरे। गांव म जाबे तव मन म बिस्वास होथे हां मय छत्तीसगढ़ म हाववं। अब गांव म तको ए जादा दिन नइ राहय काबर के अब ऊहो के लोगन ल तको तो आगू बढऩा हे तरक्की करना हाबे, बाबू साहेब बनना हाबे। अउ बाबू साहेब बने खातिर चाल-ढाल, रंग-रूप, पहनावा अउ बोली सहरी होना चाही। एहर गांव के सोच आए। ये सोच ह गांव म जनम नइ लेवथे, अइसन सोच ल दूसर जघा पैदा करके गांव पठोय जात हे। तभो चुप हे लोक संस्कृति के रखवार, भाखा के तारनहार मन।
अपन बात ल सोज-सोज कहवं त महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म पढ़ई-लिखई अउ प्रशासनिक कामकाज नइ होय के सेती ये सब होवथाबे। हिन्दी अउ आन भाखा के संग म छत्तीसगढ़ी के तुलना करे म छत्तीसगढ़ी ह सबोच म सजोर हाबे, कोनो बात म कम नइये। ये सब बात ल शासन के एक अंग राजभासा आयोग तको जानत हाबे। छत्तीसगढ़ी के परचार-परसार अउ ओकर ऊरउती के बुता करना आयोग के काम हाबे। फेर कोन जनी आयोग ह घलोक निजी संस्था बरोबर काबर काम करत हाबे ते! 
आयोग के दू कार्यकाल नाहकगे। अबही तक के ओकर मनके एकेच बुता के बढ़ई करे बर परही ओहे सम्मेलन। हरेक बछर सम्मेलन करत हाबे, किताब छपात हाबे, गुनान करत हाबे। अतका दिन के आयोग के कार्यकाल म सुरू ले अब तक उही पहुना, उही वक्ता, उही स्रोता अउ उहीच गुनान के बिसे। केहे के मतलब ऐसो जोन बिसे राखे गे रिहिसे के छत्तीसगढ़ी ल कामकाज के भाखा कइसे बनाये जाए इही तो पउर साल तको रिहिस अउ परिहार साल तको रिहिस हाबे। माने उहीच-उहीच आदमी मन उहीच बिसे म गुनान करे बर हरेक साल जुरियाथे अऊ नतीजा कुछू नहीं तव अइसन गुनान के का फयदा जेकर कुछू सार नइ निकले। मोला तो एक सौ एक आना बिस्वास हे के आवइया बछर तको इहीच-इही मन फेर उहीच बिसे म गुनान करे खातिर सम्मोलन करही।
आयोग के सम्मेलन म एक बात तो हे के उहां चारो मुड़ा के साहित्यकार मन जुरियाथे। आना-जाना के पइसा मिलथे। रेहे खाय के बने बेवस्था रहिथे। फोकट म किताब अउ बेग मिलथे। दू दिनी सम्मेलन म बढि़य़ा महोल रिथे कलमकार मनके। वक्तामंच के पगरईत अउ गोठकार-वक्ता के नाव पुछे के जरूरत नइहे सबे जानेसूने रिथे। आधा इही पाके भाखा बर जबर बुता करइया मन दूरिहात हाबे। कहू आयोग ल ए बात के आपत्ति होही के ऊंकर छोड़ अऊ दूसर सियान नइये तव इहू बात उठथे के अतका दिन के कार्यकाल म ओकर का बड़ई करे के लइक कारज हाबे।
भाखा के परचार-परसार के बुता म लगे सियाने मन अपन परवार के लइका-सियान ल गिनय अउ बतावे के ओकर घर म कतका झिन छत्तीसगढ़ी म अउ कतका झिन आन भाखा गोठियाथे। छत्तीसगढ़ी ह कामकाज के भाखा काबर नइ बन पावथे कारन समझ म आ जही। जेन ल भी छत्तीसगढ़ी ले मया हावय ये बात कोति जरूर गुनान करै अउ अपनेच घर म देखय के छत्तीसगढ़ी के का महोल हवय। जेन जन आंदोलन छत्तीसगढ़ राज खातिर होइसे अब छत्तीसगढ़ी बर तको होना चाही। सासन या फेर आयोग उपर छोड़े ले अऊ कोनजनी कतका बछर अगोरा कराही, तेकर ले तो छत्तीसगढ़ी आंदोलन के संख बजाना बने होही।
 

जयंत साहू ल समाज गौरव सम्मान




समाज गौरव प्रकाशन कोति ले माता कर्मा विद्या मंदिर सुपेला भिलाई म सामाजिक प्रतिभा सम्मान समारोह के आयोजन 18 जनवरी के करे गे रिहिसे। आयोजन म माई पहुना के रूप म आचार्य सुकृतदस शास्त्री जी, महंत कबीर आश्रम सेलुद जिला दुर्ग, माननीय टीकाराम साहू, पूर्व सह महा प्रबंधक नाल्को भुनेश्वर ओडिसा अउ कार्यक्रम के संयोजक रिहिन शिक्षाविद् डा. सुखदेव राम साहू, निदेशक सम्पादक समाज गौरव प्रकाशन पुरानी बस्ती रायपुर। कार्यक्रम म सामाजिक प्रतिभा मन के सम्मान करे गिस जेमा युवा साहित्यकार जयंत साहू ल छत्तीसगढ़ी भाखा खातिर करे जबर बुता ल सोरियात सम्मानित करे गिस। उहंचे सर्व सिरी शिवकुमार दीपक, सुशील भोले, तुकाराम कंसारी, श्रवण साहू, सुरेश साहू, जे.आर.सोनी, कुबेर साहू, सोमनाथ साहू जी मन तको सम्मानित होइस। 


इमानदार भ्रस्टाचारी, नानि म गजब भाईचारा

* शिवशंकर भट्ट (पी.डी.एस.प्रभारी), संदीप अग्रवाल कम्पनी सचिव, गिरीश शर्मा उप प्रबंधक, जी.के. देवांगन  लेखाधिकारी, सुधीर कुमार भोले सहायक लेखाधिकारी, एस.के. चंद्राकर वरिष्ठ सहायक, जीतराम यादव वरिष्ठ सहायक, स्टेनोटायपिस्ट अरविंद ध्रुव निलंबित होगे।
*  तकनीकी सहायक प्रबंधक आर.पी. पाठक अउ देवेन्द्र सिंह कुशवाहा बर्खास्त।

घटिया चाऊर, घटिया बारदाना, सरी नागरिक आपूर्ति निगम कमिशनखोरी म बुढ़े

नागरिक आपूर्ति निगम म राज के सबले बड़का खोटालाबाज मनके भंडा फूटगे हावय। कोनो ल गम नइ रिहिसे के ओ विभाग म अतेक अकन रूपिया के लेन-देन होवत रिहिस होही। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के जांच म विभाग के बड़का अफसर ल लेके छोटे करमचारी मन तको मिल बाट के कमीशन खावत राहय। जब पुलिस के टीम जांच करे खातिर विभाग गिस तव गजब अकन नगदी रूपिया देख के ओहू मन अकचकागे काबर के नागरिक आपूर्ति विभाग म नगद रूपिया के कोनो कामे नइ रिहिसे। जाचं परताल म ये बात के फरीफरकत होगे के उहां के अफसर मन बारदाना अउ तालपतरी खरीदी म कमीशन लेके कइसनो भी, खराब मान के तको खरीदी करा देवत रिहिन हाबे। ओकर ये पै ह ये पाके नइ उभरत रिहिसे के सबो कोनो के ओमा हिस्सा राहय। ओमन ह गरीब के राशन म तको कड़हा-घुनहा ल बने सुघ्घर बताके पठो देवय।
राज म अइसन पहिली पइत होइसे जेमा ये बात के जानबा होय हाबे के विभाग के खपला या फेर ेकमीशन म सबो के हिस्सा रिथे।
भंडाफोड़ होय के बाद सबो कोति थू-थू होय ले उहा के बड़का अफसर माने एमडी अउ प्रमुख सचिव तक ल तुरते हाट के नवा अफसर ल जिम्मा दे गे हावय। नवा अफसर बृजेशचंद मिश्रा ह अपन पद म आते ही उहां के 17 करमचारी अउ अफसर मन ला निलंबित कर दे हावय। जेमा रायपुर मुख्यालय के प्रबंधक शिवशंकर भट्ट, कम्पनी सचिव संदीप अग्रवाल, उप प्रबंधक गिरीश शर्मा, लेखाधिकारी जी.के. देवांगन, सहायक लेखाधिकारी सुधीर कुमार भोले, वरिष्ठ सहायक एस.के. चंद्राकर, वरिष्ठ सहायक जीतराम यादव, स्टेनोटायपिस्ट अरविंद ध्रुव साामिल हावे। येकर अलावा निगम मुख्यालय म संविदा म काम करत तकनीकी सहायक प्रबंधक  आर.पी. पाठक अउ देवेन्द्र सिंह कुशवाहा ल बर्खास्त कर दे हावय।
आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के जांच म निगम के रायपुर मुख्यालय के प्रबंधक (पी.डी.एस. प्रभारी) शिवशंकर भट्ट के कार्यालय के कमरा म एक करोड़ 62 लाख 97 हजार 500 रूपिया नगद पाये रिहिन हाबे। शिवशंकर भट्ट, कम्पनी सचिव संदीप अग्रवाल ह निलंबित होके दुर्ग कार्यालय म काम करही। निगम के उप प्रबंधक गिरीश शर्मा के कार्यालय के कमरा ले बीस लाख रूपिया नगद पाये रिहिन हाबे। निगम के बालोद के सहायक प्रबंधक डी.पी. तिवारी, धमतरी स्थित उप प्रबंधक टी.डी. हरचंदानी, बिलासपुर स्थित उप प्रबंधक के.के. यदु, निगम मुख्यालय रायपुर के लेखा अधिकारी जी.के. देवांगन, सूरजपुर के सहायक प्रबंधक आर.एन. सिंह, निगम मुख्यालय रायपुर के सहायक लेखाधिकारी  सुधीर कुमार भोले, वरिष्ठ सहायक एस.के. चंद्राकर, वरिष्ठ सहायक जीतराम यादव, स्टेनो टायपिस्ट अरविंद धु्रव, निगम के सूरजपुर कार्यालय के कनिष्ठ तकनीकी सहायक विशाल सिन्हा, दुर्ग के कनिष्ठ तकनीकी सहायक आलोक चंद्रवंशी, जगदलपुर के कनिष्ठ तकनीकी सहायक  सतीश कुमार कैवर्त्य, रायगढ़ के कनिष्ठ तकनीकी सहायक क्षीरसागर पटेल, धमतरी के कनिष्ठ तकनीकी सहायक हरदीप सिंह भाटिया, कांकेर के कनिष्ठ तकनीकी सहायक हरीश सोनी ह घलोक निलंबित होगे हाबे।

सोज म काम नइ बनय तव टेढ़गा अंगरी ले निकालव लेवना

चारो मुड़ा ले चुनई-चुनई आरो मिलत रिहिसे। छोटे-बड़े सबो नेता अपन-अपन पारटी के बड़का-बड़का चुनई घोसना पाती धरे लोगन ल मोहाये के उदीम म रमे रिहिस हाबे। चुनई ह घर-घर के चुल्हा अलगाये के ओखी तको होइसे। काबर के सबो के विचार एके नइ हो सकय। कोनो ल राम के काम बने भाथे तव कोनो ल लखन के बेवहार बने लागथे। कोनो ल सुकालू के सियानी मति बने जचथे। अब चुनई तको उरकगे हवय, जीते हाबे तेन मन अपन पद म बइठगे। अउ हारे प्रत्यासी मन कलेचुप झिन बइठो। कलेचुप बइठे ले लोकतंत्र ह तीन बेंदरा बरन हो जही। झन देखव, झन सुनव अउ झन बोलव के रद्दा म रेंगे ले आम आदमी के दिन दूबर हो जही काबर के बपरा ह तो कुछू तीन पांच जाने नहीं कम से कम जानकार मनतो चेत करव। जनता ह हिने कोनो ल नही, हा जेन ला जादा आदमी मन करिस उही ह जीत के माला पहिरिस। हारे मन जनता ले बदला के भावना ल छोड़ ऊंकर हितवा बनही तभे लोकतंत्र के सांस चलही।
अब हमला उकर घोसना पाती के किताब ल हमेसा उघरा रखना हाबे। भुलाय म उनला सुरता कराना हाबे के ओ का का करे के वादा करे रिहिन हाबे। कहू नेता मन चुनई म हार के कारण आम आदमी(मतदाता)के उपर सबो रिस उतारही तव तो मरे बिहान हो जही। लोकसभा, विधानसभा अउ निगम असन गांव-गांव म तको अब विपक्ष के आदमी ल अपन-अपन भूमिका निभाना हाबे। पद वाले के नाक के खाल्हे म बइठे काम ल फत पारे के जुमेदारी विपक्ष ल निभाना हाबे। लोकतंत्र म अपन-अपन नेता चुने के अधिकार सबो ल हाबे। तभे तो एक्कइस म एक झिन जितके आथे। तव बाकी बांचे बीस प्रत्यासी जोन मन हारे हाबे ओहू मन तो काकरो अगवा होही। केहे के मतलब आधा जनता तो उहू मनला अपन नेता के रूप म देखना चाहे रिहिन हाबे, ये बात अलग हाबे के कुछ मत के अंतर के सेती कुर्सी नइ पाइस, माने कुरसी म बइठइया नेता ल ओकर काम के सुरता कराये के जुमेदारी दमदार विपक्ष के होनेच चाही। विपक्ष ह कहू कमजोर परही तव जीतइया ह घलोक अपन मनमानी करही। जनता ले कहे अपन वादा म मुकरे लागही। पद म बइठे नेता ह कहू अपन बात ले मुकरही तव ओहू ल ये बात के डर होना चाही के जनता ओकर का हाल करही। जनता के आवाज बनके आन प्रत्यासी के डटे रेहे ले ही काम ह सपूरन होही। गांव म तक अइसन किस्सा देखे बर मिलथे जिहा आन पारा के नेता आन पारा म काम ल बने रकम ले नइ करावे। जीते नेता ह मनखे चिन-चिन के काम कराथे के कोन वोला वोट दे हावय अउ कोन ह नइ दे हावय। अइसन दू भेदवा नेता मनके चेत चघाये बर पांच साल अगोरा करे बर परही। फेर हमन ला तो अबही काम हाबे, तव का करे जाय कइसे करे जाय ये गुनान करे ला छोड़ जेन पद म हाबे ओकरे सो बरजोरी कर काम ल सिद्ध परवाये बर परही। जब सोज अंगरी ले लेवना नइ निकले त अंगरी ल थोकन टेड़गाये बर परथे। बस उही बरन हमु मन ला अंगरी टेड़गा के तको अपन बुता ल सिद्ध पराये बर कहे ल परही। काबर के जोन नेता चुन के आए हाबे ओहा अपने बेड़ा भर के नेता नोहे, सबो पारा-मुड़ा के जुमेदारी ओकरे उपर हाबे तव चार समाज के चरयारी बुता बर तो जिकर करेच बर परही।